कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी ने जयपुर में कहा कि छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन रही है और राजस्थान में भी कड़ी टक्कर देंगे। राहुल गांधी बयान देकर चले गये, लेकिन इसके बाद 156 सीटों के साथ सत्ता में वापसी करने का दावा करने वाले अशोक गहलोत के लिए उस बयान को संभाल पाना कठिन हो गया। अखबारों में खबरें प्रकाशित होने के बाद जब भी अशोक गहलोत का मीडिया से सामना हुआ है, तब यही प्रश्न पूछा जा रहा है कि आप सत्ता रिपीट का जोरदार दम ठोक रहे थे, जबकि आपके नेता राहुल गांधी ने जीत में संशय पैदा कर दिया है। इसके जवाब में हालांकि, अशोक गहलोत ने बात को संभालने का प्रयास करते हुए कहा कि राहुल गांधी ने उनको जीत का चैलेंज दिया है, जिसको कांग्रेस के कार्यकर्ता पूरा करेंगे। हालांंकि, इसके साथ ही कांग्रेस की जीत का दावा करने वाले सभी पंडितों को एक बार पुन: अपनी रिपोर्ट पर विचार करने को मजबूर कर दिया है।
राजनीति में एक बयान सरकार बना देता है और एक बयान से सरकार गिर भी जाती है। अब तक फ्री योजनाओं के दम पर अशोक गहलोत लगातार सत्ता रिपीट कराने का दावा कर रहे थे, लेकिन जैसे ही राहुल गांधी ने जीत में संशय जताया और टक्कर देने का बयान दिया, तब से खुद अशोक गहलोत और उनकी सरकार के जवाब देना कठिन हो रहा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर राहुल गांधी ने कांग्रेस की जीत का दावा क्यों नहीं किया? क्या राहुल गांधी को वो रिपोर्ट्स मिल रही हैं, जो सरकार रिपीट ना होने का दावा कर रही हैं? क्या कांग्रेस आलाकमान ने अलग से कोई सर्वे करवाया है, जो साबित करता है कि राजस्थान में सत्ता रिपीट नहीं हो रही है? क्या भाजपा के प्रचार सिस्टम पर राहुल गांधी को सरकार के कामकाज से भी अधिक भरोसा है? आखिर क्या वजह है कि राहुल गांधी ने राजस्थान में जीत का दावा क्यों नहीं किया?
राजस्थान की रैली में ही कांग्रेस की जीत का दावा नहीं करके एक तरह से अशोक गहलोत और कांग्रेस का मनोबल तोड़ने का काम किया गया है। इसका कितना असर होगा, ये तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन आज की तारीख में इस बात का विशलेषण जरूर किया जा सकता है कि आखिर क्यों कांग्रेस की सत्ता रिपीट नहीं होने का दावा किया गया है? दरअसल, इसके 6 कारण हैं, जो साबित कर देते हैं कि कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार रिपीट नहीं होकर 30 साल से चले आ रहे हैं राजस्थान के सियासी इतिहास को यथावत रखने का काम किया जाएगा। सबसे पहला और सबसे बड़ा कारण है सचिन पायलट की अनदेखी और जिम्मेदारी नहीं देना। याद कीजिए 2013 में इसी तरह से अशोक गहलोत सीएम थे और सत्ता विरोधी लहर से ज्यादा मोदी लहर चल रही थी। तब अशोक गहलोत की लीडरशिप में कांग्रेस इतिहास बनाकर 21 सीटों पर सिमट गई थी। यह मानकर चलिए कि जब अशोक गहलोत को राज्य की जनता दो दो बार सत्ता से बाहर कर चुकी है, फिर भी उनको तीन बार सीएम बनाकर थोपा गया तो इस बार क्यों लोग उनको सत्ता सौंपेंगे?
अशोक गहलोत की हार का इतिहास ही सबसे बड़ा कारण है, जो सत्ता रिपीट कराने में आड़े आ रहा है। अशोक गहलोत को लोग बड़ा राजनीतिज्ञ कहते हैं, लेकिन वो जनता के नेता नहीं हैं, जनता उनके चेहरे पर वोट नहीं देती है। यदि गहलोत के चेहरे पर वोट मिलते तो 2003 और 2013 में कांग्रेस इतिहास बनाकर नहीं हारती। सरकार की फ्री योजनाओं के फायदे और नुकसान के बारे में बात अलग से की जा सकती है, लेकिन जनता ने जो मन बना लिया, उसके बाद कोई योजना काम नहीं करती है। यानी कांग्रेस को यदि सत्ता रिपीट करानी है तो सबसे पहले सीएम का चेहरा बदलना होगा।
दूसरा कारण है गुटबाजी। भले ही कांग्रेस के नेता कितना ही दावा करें, लेकिन इस बात को कोई नकार नहीं सकता है कि कांग्रेस आज तीन गुटों में बंटी हुई है। एक गुट अशोक गहलोत का है, दूसरा सचिन पायलट का और तीसरा गुट कांग्रेस का है, जिसमें वो लोग हैं जो ना गहलोत को पसंद करते हैं ना सचिन पायलट के साथ जाना चाहते हैं। ये तीनों खेमे अपने अपने हिसाब से प्रचार कर रहे हैं, एकजुट नहीं होने के कारण सरकार रिपीट कराने का सपना देखना ही बेमानी है। जब तक ये तीन गुट एक होकर चुनाव नहीं लड़ेंगे, तब तक कांग्रेस नहीं जीत सकती है।
तीसरा कारण है सिस्टम की लाचारी। अशोक गहलोत के सीएम रहते हमेशा ब्यूरोक्रेसी हावी रहती है। हालात यह होते हैं कि मंत्रियों को भी पता नहीं होता कि विधानसभा में कौनसा बिल लाया जा रहा है और सरकार ने क्या नीतिगत निर्णय कर डाले हैं। आपने देखा होगा इन पांच सालों में कई बार कलेक्टर्स के फैसलों ने सरकार की फजीहत करवाई है। कलेक्टर आदेश जारी कर देता और बाद में उसकी वजह से सरकार बैकफुट पर आती है तो कुछ समय बाद आदेश वापस हो जाते हैं। इसके कारण विपक्ष को हावी होने और सरकार के खिलाफ प्रचार करने का हथियार मिल जाता है। गहलोत के शासन में यह परंपरा बन चुकी है कि अधिकारी अपनी मर्जी से काम करेंगे, सरकार को पूछना ही नहीं पड़ता है। यह नैरेटिव कांग्रेस की राह में रोड़ा है।
चौथा कारण है अपराध और सरकार की तुष्टिकरण की नीति। बीते लोकसभा चुनाव में अलवर के थानागाजी कांड से लेकर अब तक सैकड़ों मामले ऐसे ही हो चुके हैं, जिसमें लड़कियों से रेप गैंगरेप होते हैं, उनकी हत्या होती है, उनको कुएं में फैंक दिया जाता है, किसी का सिर कुचल दिया जाता है, लेकिन सरकार इतनी लापरवाह होती है कि किसी को दंड ही नहीं दिया जाता है। कई लड़कियों और महिलाओं ने न्याय नहीं होने पर सुसाइड किया है। इसके साथ ही अशोक गहलोत सरकार पर मुस्लिम समाज से आने वाले अपराधियों को बचाने का आरोप लगता है, जिसका जवाब सरकार के पास नहीं है। उदयपुर में कन्हैया लाल का गला काटने से लेकर जयपुर बम धमाकों के आरोपियों को सजा से मुक्त होना इस तरह के उदाहरण है, जो सरकार की तुष्टिकरण की नीति को उजागर करता है। इसके साथ ही हिंदू संगठनों से जुड़े युवाओं पर छोटे छोटे मामलों में मुकदमें करना, उनको जेल में डालना और विपक्षी दल से होने के कारण उनको प्रत्याड़ित करना आम बात है।
पांचवा कारण सत्ता बदलने का रिवाज है, जो 30 साल से चला आ रहा है। साल 1993 में आखिरी बार भाजपा के नेता भैरोंसिंह शेखावत की सरकार रिपीट हुई थी, उसके बाद कभी किसी दल की सत्ता रिपीट नहीं हो पाई है। राजस्थान में 30 साल से यह परंपरा बन गई है कि जनता एक पार्टी को दुबारा सत्ता देती ही नहीं है। तीसरा दल है, लेकिन इतना ताकतवर नहीं है कि इन दोनों दलों के अलावा सत्ता बनाकर सके। अशोक गहलोत जैसे बिना जनाधार वाले नेता के सहारे इस परंपरा को नहीं तोड़ा जा सकता है। यदि कांग्रेस को यह परंपरा तोड़नी है तो सचिन पायलट जैसे डायनेमिक नेता को आगे करना होगा और उसको बिलकुल फ्री हैंड देना होगा, तभी सत्ता रिपीट कराने का सपना देखा जा सकता है।
छठा बड़ा कारण है भाजपा आलाकमान का दमदार काम और पीएम मोदी का बड़ा चेहरा। 9 साल पहले केंद्र की सत्ता में आए पीएम मोदी आज जब दुनिया के सबसे पॉपुलर नेता हैं, तो उनके सामने राहुल गांधी जैसे नेता का टिकना आसान नहीं है। भाजपा इसका फायदा उठा रही है। यही कारण है कि भाजपा ने किसी स्थानीय नेता के चेहरे के बजाए सीधे मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा जा रहा है। इससे पहले भाजपा ने कभी अपने राष्ट्रीय नेता के फेस पर चुनाव नहीं लड़ा था। पहले भैरोंसिंह शेखावत के नाम पर लड़ती थी और 2003 से 2018 तक वसुंधरा राजे के चेहरे पर चुनाव लड़े हैं। आज कोई यदि मोदी और गहलोत के बीच बराकर का मुकाबला होने का दावा करे तो उसको राजनीतिक नासमझी का शिकार ही माना जाएगा।
ये वो कारण हैं जो संभवत: राहुल गांधी को यह कहने को मजबूर कर रहे हैं कि राजस्थान में कांग्रेस पार्टी भाजपा से टक्कर ले रही है। राहुल गांधी ने इसी कारण वैसे जीत का दावा नहीं किया है, जैसे अशोक गहलोत 156 सीट जीतकर सत्ता रिपीट कराने का दावा कर रहे हैं।
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