राजस्थान भाजपा की दिग्गज नेता वसुंधरा राजे को बड़ा झटका लगा है। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और भीलवाड़ा की शाहपुरा सीट से पार्टी विधायक कैलाश चंद मेघवाल को पार्टी ने प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया है। इससे पहले कैलाश मेघवाल ने जयपुर में पत्रकार वार्ता कर अर्जुनराम मेघवाल पर गंभीर आरोप लगाए। कैलाश मेघवाल ने कहा कि अर्जुनराम मेघवाल जब कलेक्टर थे, तब बहुत बड़ा भ्रष्टाचार किया था और उसकी 12 साल जांच चल रही है, यदि जांच में दोषी पाए गए तो उनको मंत्री पद से बर्खास्त करना होगा।
वीडियो देखें: वसुंधरा गुट को खत्म करना चाहती है भाजपा, राजे कैंप के कैलाश मेघवाल की छुट्टी पहला विकेट
कैलाश चंद मेघवाल ने साफ कहा कि उनको कमजोर करने के लिए मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को प्रमोट किया जा रहा है, उनकी अनदेखी की जा रही है। इसके साथ ही आरोप लगाया कि वसुंधरा राजे को भी कमजोर किया जा रहा है। भाजपा में सतीश पूनियां, राजेंद्र राठौड़, सीपी जोशी जैसे कई गुट हैं। जोर देकर कहा है कि वसुंधरा राजे को राजस्थान की राजनीति से बाहर करने के लिए प्रयास चल रहे हैं। मेघवाल ने यह भी स्वीकार किया कि उनकी वजह से अशोक गहलोत की सरकार बची थी। इस बीच मजेदार घटनाक्रम यह हुआ कि प्रेस कॉन्फ्रेंस के बीच में ही उनको पार्टी से बाहर कर रास्ता दिखा दिया गया। इसके बाद कैलाश मेघवाल और आक्रामक हो गए। उन्होंने ऐलान किया कि वह शाहपुरा से चुनाव लड़ेंगे और भाजपा के उम्मीदवार को हजारों वोटों से हराएंगे।
माना जा रहा है कि कैलाश मेघवाल अब कांग्रेस से टिकट लेंगे और शाहपुरा से चुनाव लड़ेंगे। यह भी माना जा रहा है कि अब वसुंधरा गुट और कई तरह से भाजपा पर आक्रमण कर सकता है। भाजपा में वसुंधरा गुट के लोग अब इसी तरह से भाजपा के दूसरे नेताओं पर हमले होंगे। कैलाश मेघवाल ने कहा कि वसुंंधरा गुट को भाजपा के नेता चुन चुनकर खत्म करना चाहते हैं। पार्टी में गुटबाजी चरम पर है। खुद को वसुंधरा राजे गुट से बताने वाले मेघवाल ने कहा कि आने वाले समय में वसुंधरा कैंप के अन्य लोगों को भी पार्टी से बाहर किया जाएगा।
दूसरी तरफ भाजपा ने वसुंधरा राजे को दूसरा झटका देने की तैयारी कर ली है। तीन दिन पहले ही नागौर से पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा और खींवसर से कांग्रेस प्रत्याशी रहे सवाई सिंह चौधरी भाजपा में शामिल हुए हैं। अब पार्टी ने पूर्व मंत्री देवीसिंह भाटी को वापस लेने जा रही है। साथ में किसानाराम नाई भी भाजपा ज्वाइन करेंगे। इधर, पूर्व सांसद मानवेंद्र सिंह के भी भाजपा में शामिल होने की चर्चा चल रही है। मानवेंद्र सिंह भी जैसलमेर सीट से तैयारी कर रहे हैं। उससे पहले वह बाड़मेर से सांसद थे। 2013 में शिव से विधायक थे, लेकिन 2014 में उनके पिता जसवंत सिंह का टिकट कटने से नाराज होकर उन्होंने भाजपा के खिलाफ प्रचार किया था। साल 2018 के पहले वह कांग्रेस में शामिल हो गए, फिर उनको वसुंधरा राजे के खिलाफ झालरापाटन से चुनाव लड़ाया गया। वहां से चुनाव हारने के बाद उनको बाड़मेर से लोकसभा का चुनाव लड़ाया, लेकिन फिर हार गए। माना जा रहा है कि अपनी मूल पार्टी में लौटने के लिए मानवेंद्र सिंह काफी समय से प्रयास कर रहे हैं।
वरिष्ठ नेता देवीसिंह भाटी 1980 से 2003 तक कोलायत में भाजपा के टिकट पर विधायक रहे थे। बाद में 2003 के दौरान वसुंधरा राजे को लेकर नाराज देवीसिंह भाटी ने राजस्थान सामाजिक न्याय मंच से चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे। साल 2008 में फिर से भाजपा में शामिल हो गए। उस दौरान उनकी वसुंधरा राजे से सियासी लड़ाई हो गई। बाद में देवीसिंह भाटी ने फिर से भाजपा छोड़ दी। अब फिर से भाजपा ज्वाइन करने की तैयारी चल रही है। इसके साथ ही किशनाराम नाई भी फिर से भाजपा में शामिल हो रहे हैं। श्रीडूंगरगढ़ से पिछली बार टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर उन्होंने कॉमरेड गिरधारी महिया को समर्थन किया था। किशनाराम नाई ने फिलहाल अपने पोते आशीष जाड़ीवाल को राजनीति में सक्रिय रखा है और श्रीडूंगरगढ़ से 2023 का विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।
दरअसल, पार्टी के कई ऐसे कदम हैं, जो यह साबित करते हैं कि वसुंधरा राजे को कमजोर करने के लिए पार्टी उनके विरोधियों को पार्टी में लिया जा रहा है। सबसे बड़ा कदम तो वसुंधरा राजे को सीएम फेस नहीं बनाना है। इसके साथ ही सार्वजनिक मंचों पर कई बार वसुंधरा राजे को बोलने का अवसर नहीं दिया जाता। कभी उनको मंच पर पर्ची देकर बीच में रोका जाता है। इस वजह से वसुंधरा राजे नाराज भी हैं और खुद का ठगा सा महसूस कर रही हैं। अब जिस तरह से कैलाश मेघवाल ने खुद मोदी, भाजपा पर करारा हमला बोला है, उससे एक बात साफ हो चुकी है कि परोक्ष रूप से वसुंधरा राजे ही यह सबकुछ करवा रही हैं।
कैलाश चंद मेघवाल ने अभी कांग्रेस में जाने की बात स्वीकार नहीं की है, लेकिन इतना तय है कि उनको अब भाजपा से टिकट नहीं मिलेगा। इसके बाद वसुंधरा राजे के पत्ते खुलने का इंतजार भी किया जा रहा है। माना जा रहा है कि वसुंधरा राजे को यदि इसी तरह से नजरअंदाज किया गया तो आने वाले समय में किसी दूसरे दल से भाजपा के उन नेताओं को चुनाव लड़वा सकती हैं, जिनको वसुंधरा खेमे से माना जाता है और भाजपा से टिकट कट सकते हैं।
इस तरह के खेल राजनीति में होते रहते हैं। इससे पहले 2003 में अशोक गहलोत ने भाजपा के नाराज नेताओं को मिलाकर राजस्थान सामाजिक न्याय मंच बनाकर सभी 200 सीटों पर चुनाव लड़वाया था। जिसमें देवीसिंह भाटी जैसे नेता शामिल थे। हालांकि, पार्टी केवल वोट कटवा साबित हुई। अशोक गहलोत ने सोचा था कि सरकार के खिलाफ जो एंटी इनकमबेंसी बनी, उसको इससे कम किया जा सकेगा, लेकिन चुनाव परिणाम में मामला उलटा हो गया। जिस भाजपा को रोकने के लिए अशोक गहलोत ने सामाजिक न्याय मंच बनाया था, उसने उलटा कांग्रेस को नुकसान किया और अशोक गहलोत की लीडरशिप में चुनाव लड़ रही कांग्रेस केवल 56 सीटों पर चली गई।
इस समय राजस्थान में भाजपा, कांग्रेस के अलावा रालोपा तीसरी ऐसी पार्टी है जो तीसरा मोर्चा के तौर पर ताकत रखती है। माना जा रहा है कि भाजपा से नाराज और कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर बड़े नेता आरएलपी से चुनाव लड़ने को दौड़ लगाएंगे। ऐसे में यदि भाजपा ने वसुंधरा राजे कैंप को ज्यादा ही इग्नौर किया तो आने वाले समय में वसुंधरा राजे का पूरा कैंप रालोपा से चुनाव लड़ सकता है। उस हालत में वसुंधरा चाहेंगी कि भाजपा सत्ता से बाहर रहे या उतनी ही सीटें जीत पाए कि सरकार बनाने के नजदीक चली जाए, लेकिन बहुमत नहीं मिले, ताकि जो नेता आरएलपी या निर्दलीय जीतेंगे, उनको साथ लेकर खुद सीएम बन जाएं।
इससे पहले 2018 में ऐसा ही कारनामा अशोक गहलोत भी कर चुके हैं। तब सचिन पायलट कांग्रेस अध्यक्ष थे, लेकिन अशोक गहलोत तीसरी बार सीएम बनने की कोशिशों में थे। जब टिकट वितरण का समय आया तो सचिन पायलट ने युवाओं को अवसर दिया, और अशोक गहलोत के करीबी नेताओं के टिकट कटे। जिनके टिकट कटे, उनमें से 30 नेताओं को निर्दलीय चुनाव लड़ा दिया, उनमें से 13 विधायक जीत गए और कांग्रेस 99 सीटों पर ठहर गई। इसके बाद सात दिन तक सीएम पद की दौड़ चली, जिसमें अशोक गहलोत जीत गए। बाद में सभी 13 निर्दलीयों ने अशोक गहलोत सरकार को समर्थन दिया। इस बार इसी तरह का गैम वसुंधरा राजे करना चाहती हैं। उनको भी तीसरी बार सीएम बनना है।
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