Popular

लूणकरणसर: भाजपा—कांग्रेस में दोनों ओर से गोदारा बंदुओं में मुकाबला



लूणकरनसर विधानसभा सीट राजस्थान की महत्वपूर्ण सीट है, जहां पिछले चुनाव 2018 में भारतीय जनता पार्टी के सुमित गोदारा ने जीत दर्ज की थी। इस बार लूणकरणसर विधानसभा सीट के परिणाम किस पार्टी के पक्ष में होंगे, यह जनता को तय करना है। साल 2018 में लूणकरणसर में कुल 42 प्रतिशत वोट पड़े। इस जाट बहुल क्षेत्र में साल 2018 में भारतीय जनता पार्टी से सुमित गोदारा ने कांग्रेस के वीरेंद्र बेनीवाल को 10853 वोटों के मार्जिन से हराया था। लूणकरनसर विधानसभा सीट बीकानेर जिले के अंतर्गत आती है। इस संसदीय क्षेत्र से सांसद अर्जुन राम मेघवाल हैं, जो भारतीय जनता पार्टी से हैं। उन्होंने 2019 में कांग्रेस के मदनगोपाल मेघवाल को 264081 से हराया था। अर्जुन राम मेघवाल ने यहां पर लगातार तीसरी बार सांसद का चुनाव जीता है। साल 2009 से अब तक लगातार अर्जनराम मेघवाल बीकानेर के सांसद हैं। उससे पहले 2004 से 2009 तक फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र भाजपा के सांसद थे। कांग्रेस पार्टी यहां पर 1999 में आखिरी बार जीती थी।

वीडियो देखें: भाजपा-कांग्रेस में दोनों ओर से गोदारा बंदुओं में मुकाबला

लूणकरणसर सीट का गठन 1977 के परिसीमन के बाद हुआ था। तब से अब तक कांग्रेस चार बार जीती है। जबकि भाजपा को 2018 में पहली बार जीत मिल पाई है। इस सीट पर अभी भाजपा के सुमित गोदारा विधायक हैं, जिन्होंंने कांग्रेस के वीरेंद्र बेनीवाल को हराया था। इस सीट पर जातिगत आंकड़ों की बात करें तो सबसे अधिक 78000 जाट मतदाता हैं, जिनमें से करीब 42000 अकेले गोदारा गोत्र के मतदाता हैं। इसके बाद 40 हजार एससी वर्ग के वोटर हैं। तीसरे नंबर पर मूल ओबीसी है, जिसकी संख्या करीब 33000 है। चौथे नंबर पर ब्राह्मण हैं, जिनके मतदाताओं की संख्या भी 32000 है। यहां पर 16000 मुस्लिम हैं, तो 13000 महाजन, 12000 राजपूत और चारण हैं। साथ ही 6000 अन्य जातियों के मतदाता हैं। क्षेत्र की कुल मतदाता आबादी 2.30 लाख है। 


भाजपा ने यहां पर 2018 में पहली बार जीत का स्वाद चखा, जिसका सबसे बड़ा कारण यहां के सर्वाधिक संख्या में रहने वाले गोदारा वोटर माने जाते हैं, जो यहां की कुल जाट आबादी की करीब 40 फीसदी जनसंख्या है। हालांकि, बीते पांच साल में क्षेत्र के मतदाताओं की राय में काफी अंतर आया है। आज सुमित गोदारा की कम सक्रियता उनको कमजोर कर रही है, जबकि कांग्रेस में टिकट के सबसे बड़े दावेदार रायसिंह गोदारा की सक्रियता और कांग्रेस पार्टी में उपर तक पकड़ उनको मजबूती प्रदान करती है। रायसिंह के मामले में प्लस पॉइंट ये हैं कि वह ना केवल वर्तमान में पीसीसी मैम्बर हैं, बल्कि कर्मठ कार्यकर्ता के तौर क्षेत्र में पहचान बना चुके हैं। इससे पहले रायसिंह गोदारा साल 2009 से 2014 तक राजस्थान स्टेट गंगानगर सुगर मिल के डायरेक्टर थे। साथ ही 1999 से 2001 तक राजस्थान स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन के भी डायरेक्टर रहे हैं। 


सरकार में लंबे समय तक काम करने के कारण नीचे से लेकर उपर तक उनकी पकड़ भी है और उनकी व्यतिगत पहचान भी है। एजुकेशन के लिहाज से भी एमबीए, एलएलबी के साथ सिविल इंजिनियरिंग होने के कारण उनके पास शिक्षा के उभरते हुए फील्ड का अनुभव है। सचिन पायलट से लेकर अशोक गहलोत और गोविंद सिंह डोटासरा से लेकर खुद राहुल गांधी तक भी राय सिंह गोदारा को उनके काम के कारण करीब से जानते हैं। भाजपा के सामने परेशानी यह है कि पहली बार 2018 में उसका विधायक जीत पाया, लेकिन कहा जाता है कि उनको कांग्रेस उम्मीदवार वीरेंद्र बेनीवाल होने के कारण जीत मिली। अब यदि कांग्रेस पार्टी ने राय सिंह गोदारा को टिकट दिया तो सुमित गोदारा की राह बेहद कठिन हो जाएगी। कांग्रेस सरकार की योजनाओं को लेकर भी राय सिंह गोदारा ने जनता में तक पहुंचाने के साथ ही लोगों में सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए जागृति लाने का काम किया है। 


राय सिंह गोदारा के लिए फायदेमंद यह भी है कि इस क्षेत्र में लंबे समय से कांग्रेस की पकड़ होने के कारण भाजपा के उम्मीदवार को काफी मेहनत करने की जरूरत है। स्थानीय जनता का कहना है कि भाजपा विधायक सुमित गोदारा का स्वभाव अच्छा नहीं है, वह लोगों से ठीक से बात नहीं करते हैं। कई बार काम बताने के बाद भी लोग बार बार धक्के खाते रहते हैं। किंतु विधायक युवा हैं, इसलिए सुमित गोदारा एक बार फिर से भाजपा की रणनीति के तहत टिकट के सबसे प्रबल दावेदार हैं।


इधर, कांग्रेस के प्रत्याशी की बात की जाए तो साल 2002 में वीरेंद्र बेनीवाल ने तत्कालीन मौजूदा विधायक पिता की मौत के बाद हुए उपचुनाव लड़ा था। अपने पिता की मृत्यु के बावजूद उपचुनाव में वीरेंद्र बेनीवाल करीब 20 हजार वोटों से हार गए थे। इसके बाद साल 2003 के विधानसभा चुनाव में वीरेद्र बेनीवाल कांग्रेस के टिकट से फिर मैदान में उतरे। इस बार उन्होंने भाजपा के माणिक चंद सुराणा को 20954 वोटों से हरा दिया। इस चुनाव में बीजेपी ने गैर-जाट प्रत्याशी मानिक चंद सुराणा को टिकट दिया। दूसरी तरफ सामाजिक न्याय मंच से गोपाल जोशी चुनाव लड़े। दोनों विरोधी पार्टियों के नेता गैर-जाट थे। जिसके कारण बीजेपी के वोट 2 उम्मीदवारों के बीच बंट गए। लिहाजा वीरेंद्र बेनीवाल को इसका फायदा मिला और वे चुनाव जीत गये।


साल 2008 के चुनाव में सत्ता विरोधी लहर के दौरान बीजेपी ने उम्मीदार नहीं उतारा, लेकिन भारतीय लोकदल पार्टी से समझौते के तहत लक्ष्मीनारायण पारीक को टिकट मिला। पारीक ब्राह्मण थे, लेकिन लूणकरणसर राज्य विधानसभा क्षेत्र में सारस्वत ब्राह्मण बहुसंख्यक हैं। लक्ष्मीनारायण इसलिए पारीक को उचित वोट नहीं मिला। उस समय सीपीआईएम के टिकट पर चुनाव लड़ रहे लाल चंद भादू को 19,000 वोट मिले थे और कांग्रेस उम्मीदवार वीरेंद्र बेनीवाल चुनाव जीत गए थे।


इसके बाद साल 2013 में बीजेपी से सुमित गोदारा को टिकट दिया गया। गोदारा के इस सीट पर 40,000 वोट हैं। माणिक चंद सुराणा बीजेपी के बागी हो गए। उन्हें 52 हजार वोट मिले और जीत गए। कांग्रेस के टिकट पर वीरेंद्र बेनीवाल थे, जो उस समय कांग्रेस सरकार में राज्य मंत्री भी थे। चुनाव परिणाम घोषित होने पर बेनीवाल तीसरे स्थान पर रहे। अंतिम चुनाव के दौरान 2018 चुनाव में बीजेपी ने फिर से सुमित गोदारा को टिकट दिया। इस चुनाव में बीजेपी से बागी हुए प्रभुदयाल सारस्वत ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और उन्हें 23 हजार वोट मिले। सारस्वत की बड़ी चुनौती के बावजूद सुमित गोदारा ने एक बार फिर कांग्रेस पार्टी को 10853 मतों से हरा दिया।


कांग्रेस के सबसे बड़े दावेदार राय सिंह गोदारा की बात की जाए तो लूणकरनसर विधानसभा क्षेत्र के धीरेरा गांव में जन्मे हैं, यानी गोदारा होने के साथ ही स्थानीय होने का फायदा भी उनको मिलेगा। राय सिंह गोदारा सिविल इंजीनियर ग्रेजुएट और सीएम अशोक गहलोत के करीबी हैं। साल 1999 से 2001 तक रोडवेज निदेशक रहते उन्होंने भाजपा सरकार द्वारा बढ़ाए गए रोडवेज बस किराए को वापस लेने के लिए नवगठित कांग्रेस सरकार को समझाने का काम किया। इसके साथ ही जब कांग्रेस की सरकार थी, तब 2009 से 2014 तक 5 साल वह गंगानगर शुगर मिल के डायरेक्टर रहे। अपने कार्यकाल के दौरान राय सिंह गोदारा ने क्षेत्र में एक नई मिल की स्थापना की। वे राजीव गांधी से प्रभावित रहे हैं और कांग्रेस विचारधारा के प्रबल समर्थक हैं। शेरेरान गांव के क्षेत्र में 40 किलोमीटर तक कोई बैंक शाखा नहीं थी। उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। जिसका फायदा उठाते हुए राय सिंह गोदारा ने केंद्रीय मंत्रालय से इस मामले पर चर्चा करके गांव में एक बैंक शाखा खोलने का काम किया। इसके साथ ही उनके प्रयास से लूणकरणसर सहकारी समिति में अनाज की खरीद शुरू की गई।


कुल मिलाकर भाजपा और कांग्रेस के बीच यहां पर इस बार फिर से रोचक मुकाबला देखने को मिलेगा, लेकिन कांग्रेस पार्टी में राय सिंह गोदारा के टिकट को लेकर अधिक संशय नहीं है। नमक की झील के कारण नामकरण होने वाली लूणकरणसर सीट पर कांग्रेस पार्टी से राय सिंह गोदारा काफी सक्रिय हैं। सिटिंग विधायक के खिलाफ माहौल के अलावा बदलाव की बयार भी राय सिंह के लिए राहत भरी दिखाई दे रही है। अब देखने वाली बात यह होगी कि टिकट डिक्लियर होने के बाद क्षेत्र का मतदाता किसको अपना आर्शीवाद प्रदान करता है।

1 Comments

  1. रायसिंह गोदारा कौन है
    हमने तो कभी देखा नहीं

    ReplyDelete

Post a Comment

Previous Post Next Post