कांग्रेस के बर्खास्त मंत्री और उदयपुरवाटी से विधायक राजेंद्र गुढ़ा के द्वारा लाल डायरी को लेकर किए जा रहे खुलासों के कारण भाजपा को संजीवनी मिलती दिखाई दे रही है। चुनाव नजदीक देख भाजपा भी लाल डायरी के सहारे आंदोलन को आसमान की ऊंचाइयों पर ले जाना चाहती है। इसी क्रम में भाजपा ने मंगलवार को जयपुर में बड़ा प्रदर्शन कर ताकत दिखाने का प्रयास किया, किंतु इस इसमें पूर्व सीएम वसुंधरा राजे गुट ने एक तरह से बहिष्कार करके संगठन की ताकत को कम दिखाने की कोशिश की है।
मजेदार बात यह है कि जिस दिन भाजपा संगठन के द्वारा प्रदर्शन किया जाता है, उसी दिन वसुंधरा राजे या तो दिल्ली चली जाती हैं, या फिर जयपुर में होते हुए भी आंदोलन से दूर रहती हैं। सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि आखिर वसुंधरा राजे चाहती क्या हैं? आखिर क्या कारण है कि आलाकमान द्वारा गुटबाजी खत्म करने की तमाम कोशिशों के बाद भी वसुंधरा राजे का चार साल से गुटबाजी का प्रयास जारी है? लोग तो यहां तक चर्चा करते हैं कि वसुंधरा राजे संभवत: अपनी पुरानी स्टाइल में बीजेपी को दबाव में लेकर फिर से सीएम फेस बनने की कोशिशों में जुटी हैं। किंतु सवाल यह उठता है कि क्या भाजपा संगठन के प्रदर्शनों से दूरी बनाकर वसुंधरा सीएम फेस बनने में कामयाब हो सकती हैं?
दरअसल, जब मंगलवार को भाजपा ने प्रदर्शन किया, उसमें वसुंधरा राजे और उनका गुट पूरी तरह से गायब था। उससे पहले जब जेपी नड्डा जयपुर पहुंचे थे, तब उन्होंने गुटबाजी समाप्त करने के लिए सभी नेताओं को हिदायत देते हुए वसुंधरा गुट के नेताओं को अहम जिम्मेदारी देने को कहा था। जिसके बाद संगठन ने 'नहीं सहेगा राजस्थान' अभियान के तहत वसुंधरा कैंप के नेताओं को इस आंदोलन में भीड़ जुटाने और अपनी ताकत दिखाने का अवसर दिया गया था, लेकिन वसुंधरा कैंप के नेताओं की नीरसता के कारण भाजपा के आंदोलन में उम्मीद के मुताबिक भीड़ नहीं हो पाई।
भाजपा के जिन नेताओं को 'नहीं सहेगा राजस्थान' अभियान में जिम्मेदारी दी गई थी, उनमें पूर्व मंत्री सुरेंद्र पाल टीटी, प्रभुलाल सैनी, श्रीचंद कृपलानी और बाबूलाल वर्मा जैसे नेता थे। इसके साथ ही पूर्व विधायक अभिषेक मटोरिया, रामहेत यादव, प्रेम सिंह बाजौर, जोगाराम पटेल, चुन्नीलाल गरासिया, सुशील कटारा जैसे नेता भी थे।
इसी तरह से वसुंधरा खेमे के माने जाने वाले संजय शर्मा, सुनील कोठारी, शैलेश सिंह, हेमराज मीणा, मानसिंह गुर्जर, संजय जैन, पिंकेश पोरवाल, शंकर सिंह राजपुरोहित, नरेंद्र नागर सरीखे नेताओं को भी जिम्मेदारी दी गई थी। भाजपा के लोगों द्वारा कहा गया है कि जिन 36 जिलों से भीड़ जुटाने की इन 36 नेताओं को दी गई थी, उनमें से वसुंधरा खेमे के नेताओं ने लोगों को जयपुर लाने का प्रयास ही नहीं किया।
चर्चा है कि वसुंधरा राजे ने बीजेपी आलाकमान को साफ इशारा कर दिया है कि जब तक उनको सीएम फेस नहीं बनाया जाएगा, तब तक वह भाजपा को जिताने का कोई प्रयास नहीं करेंगी। इसी वजह से वसुंधरा कैंप के जिन नेताओं को आंदोलन करने की जिम्मेदारी मिली थी, उन्होंने काम ही नहीं किया।
अब सवाल यह उठता है कि क्या इस तरह से दबाव बनाने के कारण भाजपा आलाकमान, यानी नरेंद्र मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा वसुंधरा राजे को सीएम बनाने के लिए आगे कर देंगे? सवाल यह भी उठता है कि जब वसुंधरा राजे के पास अभी 75 साल पूरी होने का समय भी बाकी है, उन्होंने दो बार सीएम रहकर राजस्थान का नेतृत्व किया है, उनको आखिर क्यों तीसरी बार सीएम फेस बनाने से परहेज किया जा रहा है?
कहा जाता है कि मोदी, अमित शाह को जिन भी नेताओं ने आंख दिखाई है, इन दोनों नेताओं ने अवसर मिलते ही उनकी राजनीति समाप्त कर दी है। आपको याद होगा जब 2009 में एक बार वसुंधरा राजे को नेता प्रतिपक्ष के पद से हटा दिया गया था, तब वसुंधरा राजे कैंप के विधायकों ने दिल्ली जाकर सामूहिक इस्तीफा देने का दबाव बना दिया था।
तब भाजपा के अध्यक्ष राजनाथ सिंह हुआ करते थे। पार्टी दबाव में आई और वसुंधरा राजे को फिर से नेता प्रतिपक्ष बना दिया गया। उसके बाद 2013 में जब नरेंद्र मोदी की लहर चली, तब वसुंधरा राजे को दूसरी बार सीएम फेस बनाया गया। किंतु जब 2018 में अमित शाह ने अध्यक्ष रहते हुए राजस्थान भाजपा को अध्यक्ष अपने पक्ष का बनाना चाहते थे, उस समय वसुंधरा राजे ने अमित शाह को आंख दिखाई। अमित शाह ने तब कुछ नहीं किया, बल्कि नरम दल के माने जाने वाले मदनलाल सैनी को अध्यक्ष बना दिया, किंतु अध्यक्ष रहते 24 जून 2019 को मदनलाल सैनी का निधन हो गया। इसके बाद एक बार फिर से अमित शाह और वसुंधरा राजे के बीच खींचतान का दौर चला, लेकिन आखिर में 84 दिन बाद भाजपा ने डॉ. सतीश पूनियां को अध्यक्ष बनाकर वसुंधरा राजे की विदाई का रास्ता तैयार किया।
करीब साढ़े तीन साल अध्यक्ष रहते डॉ. सतीश पूनियां ने ना केवल संगठन को वसुंधरा राजे की छाया से बाहर निकाला, बल्कि जमीन पर संर्घष कर कार्यकर्ताओं को दिखाया कि अध्यक्ष को ही आगे बढ़कर काम करना होता है, तब कार्यकर्ता अपने आप काम करते हैं। कहा जाता है कि इन साढ़े तीन साल में ना केवल वसुंधरा राजे गुट ने लगातार सतीश पूनियां के खिलाफ केंद्र को शिकायतें कीं, बल्कि जिनको अवसर नहीं मिला या व्यक्तिगत तौर कुंठित थे, उन नेताओं ने भी गुटबाजी दिखाकर अध्यक्ष बदलने का दबाव बनाया। इसके बाद भाजपा ने अध्यक्ष बदल दिया, लेकिन नए अध्यक्ष के तौर पर सीपी जोशी खास असर नहीं छोड़ पाए। परिणाम यह हुआ कि पीएम मोदी ने अध्यक्ष बदलने के फैसले पर अपनी नाराजगी जाहिर कर दी।
वसुंधरा राजे अब भी उसी धारा में बह रही हैं, जिसके लिए उनको जाना जाता है। अभी भी वसुंधरा दबाव की राजनीति खेल रही हैं। यही वजह है कि जब मोदी, शाह या नड्डा राजस्थान में कोई बैठक या सभा करते हैं तो वसुंधरा राजे शामिल होती हैं, अन्यथा भाजपा के किसी भी धरने, प्रदर्शन या आंदोलन में वसुंधरा ने पार्टिसिपेट नहीं किया है। अब जिस तरह से भाजपा के 'नहीं सहेगा राजस्थान' अभियान को भी वसुंधरा कैंप ने विफल बनाने का प्रयास किया है, उससे साफ हो गया है कि पूर्व सीएम केवल सीएम फेस बनकर ही भाजपा के साथ खड़ी होंगी, इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। मोदी शाह की जोड़ी अपने राजनीतिक दुश्मन को देर सवेर निपटाने के लिए जानी जाती है। देखने वाली बात यह होगी कि भाजपा के चाण्क्य अमित शाह को आंख दिखाने वाली वसुंधरा राजे का सियासी सफर थामने में कामयाब होते हैं या एक बार फिर अमित शाह उनके आगे घुटने टेक देते हैं?
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