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अब भी नहीं हो पाएगी कांग्रेस की सत्ता रिपीट!



राजस्थान में नवंबर आखिर या दिसंबर के पहले सप्ताह में विधानसभा के चुनाव प्रस्तावित हैं। उसके बाद आधे दिसंबर तक नई सरकार सामने आ जाएगी। अशोक गहलोत सरकार ने सत्ता रिपीट कराने का दावा कर रखा है, लेकिन कांग्रेस के सर्वे ही बताते हैं कि सरकार नहीं बना पा रहे हैं। राज्य में बीते 30 साल से सरकार बदलने का ट्रेंड रहा है। आखिरी बार 1993 के दौरान भैरोंसिंह शेखावत भाजपा की सरकार रिपीट करा पाए थे, उसके बाद कभी भी एक दल की सत्ता रिपीट नहीं हुई। यानी राज्य की जनता एक दल पर लगातार दो बार भरोसा ही नहीं जता पाई। 


किंतु इतना ही पूरा सच नहीं है, इसके इतर यह बात भी सत्य है कि उसके बाद से राजस्थान में केवल दो ही लोग सीएम पद पर रहे हैं। 1998 में अशोक गहलोत पहली बार सीएम बने थे, तब से तीन बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं, लेकिन एक बार भी सत्ता रिपीट नहीं करा पाए हैं। अलबत्ता अशोक गहलोत कांग्रेस को कभी सत्ता दिलाने वाले व्यक्ति रहे ही नहीं। आंकड़ों की जुबानी देखें तो 1998 का चुनाव परसराम मदेरणा के नाम पर लड़ा था, जिसके बाद कांग्रेस को पूर्ण बहुमत की 153 सीटों के साथ सत्ता मिली। अशोक गहलोत की जुबान में कहें तो सोनिया गांधी के आर्शीवाद से तब वह पहली बार सीएम बने। इसका मतलब यह है कि जनता ने वोट तो परसराम मदेरणा को दिया, लेकिन सरकार बनाने का सपना अशोक गहलोत का पूरा हुआ। 


उसके बाद 2003 में राज्य की जनता से अशोक गहलोत के शासन को उखाड़कर फैंक दिया। वसुंधरा राजे की ताजा हवा और परिवर्तन की आंधी ने कांग्रेस को केवल 56 सीटों पर समेट दिया। भाजपा ने पहली बार 120 सीटों के साथ सत्ता पाई। वसुंधरा राजे सीएम बनीं, तो राज्य में उत्साह का माहोल बना। विकास के मामले में भी काफी काम किया गया, लेकिन अंत समय में सत्ता और संगठन में तालमेल की कमी से 2008 में भाजपा सत्ता से दूर रह गई। पार्टी को 78 सीटों पर जीत मिली, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि कांग्रेस को पूर्ण बहुमत की सरकार मिल गई। सीपी जोशी के अध्यक्ष रहते कांग्रेस 96 सीटों पर तक पहुंच पाई। हालांकि, खुद सीपी जोशी ही चुनाव हार गए।


इसके बाद अशोक गहलोत को सोनिया गांधी को आर्शीवाद मिला। हांलांकि, जनता से ने सीपी जोशी, शीशराम ओला जैसे नेताओं पर विश्वास के साथ वोट दिया था, लेकिन गांधी परिवार के नजदीक अशोक गहलोत ने बाजी मार ली। यानी दूसरी बार किसी दूसरे की मेहनत पर अशोक गहलोत को सीएम बनने का गौरव हासिल हुआ। किंतु हमेशा की तरह अशोक गहलोत को लोगों ने सत्ता में देखना पसंद नहीं किया। गहलोत चाहे कितने भी दावे करें, लेकिन 2013 में राज्य की जनता ने इतिहास बनाते हुए केवल 21 सीटों के साथ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की पसंद अशोक गहलोत को बुरी तरह से सत्त से बाहर फैंक दिया।


इसके बाद वसुंधरा राजे दूसरी बार सीएम बनीं। भाजपा की 163 सीटों की सरकार के बाद भी वसुंधरा राजे 2018 में अपनी सत्ता नहीं बचा पाईं। इसके दो कारण थे। पहला तो यह कि कांग्रेस में बरसों बाद सचिन पायलट जैसा डायनेमिक आकर्षण वाला नेता अध्यक्ष बना था, जो अपनी चमक और कार्यकर्ताओं की मेहनत के दम पर प्रचंड बहुमत वाली वसुंधरा राजे की सत्ता से लोहा ले रहा था। दूसरी बात यह कि प्रचंड बहुमत पर सवार वसुंधरा राजे समझ ही नहीं पाईं, कि जनता क्या चाहती है? परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस को नहीं चाहते हुए भी पायलट को सीएम बनाने के लिए जनता ने 99 सीटों तक पहुंचा दिया। जनता भले ही सचिन पायलट के साथ थी, लेकिन ना तो सोनिया गांधी सचिन पायलट के साथ थीं और ना ही किस्मत। ऐसे में अशोक गहलोत तीसरी बार सीएम बन गए। 


सचिन पायलट सीएम पद के लिए नैसर्गिक दावेदार भी थे और उनकी मेहनत के कारण ही सत्ता भी मिली थी। इसके कारण उन्होंने पूरे साढ़े चार साल तक अशोक गहलोत से बराबर लोहा लिया। यह बात और है कि उनकी बगावत, यात्रा, अनशन और तमाम प्रयासों के बाद भी सोनिया गांधी का आर्शीवाद नहीं मिला। अब पायलट ने सत्ता रिपीट कराने की अपील की है। हालांकि, अब भी कांग्रेस पार्टी के किसी नेता की ओर से यह बयान नहीं आया है कि सत्ता रिपीट होने पर सचिन पायलट को सीएम बनाया जाएगा। यानी सत्ता रिपीट होती है, तो भी अशोक गहलोत ही सीएम बनेंगे। पिछले दिनों एक सभा में जब जनता से सचिन पायलट से पूछा कि वो सीएम क्यों नहीं बने तब उन्होंने बोले कि रात गई, बात गई कहकर पुरानी कहानी भुलाने का प्रयास किया। पालयट भले ही कांग्रेस पार्टी में हों और सत्ता रिपीट कराने की अपील कर रहे हों, लेकिन उनके भीतर आत्मविश्वास की भारी कमी साफ तौर पर दिखाई देती है।


दूसरी ओर भाजपा की बात की जाए तो वसुंधरा राजे को सांसद रहते हुए 2003 में अध्यक्ष बनाकर राजस्थान में उतारा गया था। उससे पहले वसुंधरा झालावाड़ से लगातार पांच बार सांसद का चुनाव जीत चुकी थीं। वो अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में राज्यमंत्री भी रही थीं। किंतु जैसे ही भाजपा ने भैरोंसिंह शेखावत की जगह वसुंधरा राजे को राजस्थान भेजा, वैसे ही जनता ने उनपर विश्वास कर लिया। किसी की बेटी, किसी की बहू, किसी की संबधन बनकर वसुंधरा ने सभी बड़ी जातियों को साधने का काम किया। इसका फायदा भी उनको मिला। जो भाजपा गठन के बाद 21 साल पूर्ण बहुमत नहीं पा सकी थी, उसको वसुुंधरा राजे ने 2003 में पहली बार 120 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत की सरकार बनाकर दी।


हालांकि, वसुंधरा भी अपने पद के साथ न्याय नहीं कर पाईं। साल 2008 के चुनाव से ठीक पहले वसुंधरा राजे और पार्टी अध्यक्ष ओमप्रकाश माथुर के बीच खींचतान के कारण टिकटों के बंटवारे में भाजपा चूक गई। इसके बाद प्रचार के दौरान भी दोनों नेताओं के बीच खटास देखने को मिली। इसके परिणामस्वरुप भाजपा सत्ता से बाहर हो गई। बाद में नेता प्रतिक्ष के पद को लेकर भाजपा और वसुंधरा के बीच शीतयुद्ध चला, जिसमें वसुंधरा ने बाजी मारी। वसुंधरा राजे को कुछ नेता बाहर करना चाहते थे, लेकिन वो खुद ही समय के साथ बाहर हो गए। साल 2013 के चुनाव में सत्ता विरोधी लहर और मोदी लहर के कारण भाजपा को 163 सीटों की प्रचंड बहुमत वाली सरकार बनाने का अवसर मिला। वसुंधरा राजे दूसरी बार सीएम बनीं, लेकिन वह पांच साल में जनता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाईं। इसके कारण 2018 में दूसरी बार सत्ता से बाहर हुईं।


कहते हैं कि 2018 में सत्ता से बाहर होने के साथ ही मोदी शाह की मजबूत जोड़ी ने वसुंधरा को किनारे करना शुरू कर दिया था। जिसके कारण दो बार अध्यक्ष बदला गया, लेकिन वसुंधरा की पासंद को दरकिनार किया गया। अब वसुंधरा राजे चुनाव से पहले सीएम फेस बनना चाहती हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि भाजपा ने उनको साइड लाइन करने का मन बना लिया है।


यानी बीते 30 साल में राज्य की जनता नया सीएम देखना चाहती है, किंतु उसके उपर फिर से पुराना चेहरा थौप दिया जाता है। यही सबसे बड़ी वजह है, जिसके कारण किसी भी पार्ट की सत्ता रिपीट नहीं हो पा रही है। संभवत: भाजपा ने जनता के मन की भावना को समझ लिया है, जिसके कारण 2003 के बाद पहली बार वसुंधरा राजे के बजाए पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया गया है। हालांकि, कांग्रेस अब भी यह बात मानने को तैयार नहीं है कि अशोक गहलोत के चेहरे पर ना तो सत्ता पाई जा सकती है और ना ही सरकार रिपीट की जा सकती है। 


अब देखने वाली बात यह होगी कि राजस्थान की जनता सत्ता रिपीट कराकर परंपरा को बदलती या फिर भाजपा को सरकार बनाने का अवसर देकर नए मुख्यमंत्री का चेहरा देख पाती है। 

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