Ram Gopal Jat
राजस्थान में इस समय दो नेताओं को लेकर भाजपा कांग्रेस के भीतरखाने बहुत कुछ चल रहा है। भाजपा में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के राजनीतिक भविष्य का फैसला होना है तो सचिन पायलट का इन चुनाव में क्या और कितना रुख रहेगा, इसको लेकर बड़ी चर्चा है। पार्टियों के भीतर दोनों को लेकर बहुत कुछ चर्चा हो चुकी है। वसुंधरा राजे दो बार सीएम रह चुकी हैं, और तीसरी बार सीएम फेस बनने की लड़ाई लड़ रही हैं, तो सचिन पायलट को 2018 में सीएम नहीं बनाया गया, वह पूरे साढ़े चार साल तक अशोक गहलोत के साथ बराबर टक्कर लेकर यहां तक पहुंचे हैं। हालांकि, इन दोनों को लेकर कोई नेता बाहर मीडिया के सामने या फिर सोशल मीडिया पर दो शब्द भी नहीं बोल पा रहा है। कारण यह है कि दोनों ही नेताओं का कद अपने अपने दलों में बहुत बड़ा है।
वीडियो यहां देखिए: वसुंधरा का बी और सी प्लान तैयार, पर पायलट को क्या दे दिया कांग्रेस ने?
बाहर जनता इस इंतजार में है कि वसुंधरा राजे को भाजपा चुनाव से पहले क्या भूमिका देती है और चुनाव के बाद क्या पद दिया जाता है। ठीक इसी तरह से सचिन पायलट को अभी तक कमेटियों में स्थान दिया गया है, साथ ही उनको सीडब्ल्यूसी में भी लिया गया है, जिसको कांग्रेस के सबसे पॉवरफुल कमेटी कहा जाता है। हालांकि, पॉवर और फुल दोनों ही तीन लोगों को सिमटा हुआ है, फिर भी कांग्रेसजन इस समेटी में हिस्सा बनकर बेहद खुश हो जाते हैं। कांग्रेस वर्किंग कमेटी में सचिन पायलट को स्थान में मिला है, उसमें अशोक गहलोत कई बरसों पहले ही सदस्य हर चुके हैं, इसलिए उनको पायलट के इस कमेटी में सदस्य बनाए जाने से कोई डर नहीं है।
सचिन पायलट ने जो पांच दिन की यात्रा की थी और आरपीएससी भंग करने, वसुंधरा राजे के भ्रष्टाचारों की जांच कराने और जिनकी भर्ती परिक्षाएं रद्द की गईं, उनको मुआवजा देने की मांग की थी। इन तीन मांगों को नहीं मानने पर एक जून से प्रदेशभर में आंदोलन करने की चेतावनी दी थी, लेकिन उसके करीब एक महीने बाद कांग्रेस आलाकमान के साथ पायलट का समझौता हो गया, जिसके बाद पायलट ने अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ बोलना बंद कर दिया। हालांकि, यह पता नहीं चल पाया है कि समझौता किस बात पर हुआ है, लेकिन उसके बाद से ही पायलट समर्थक भारी निराशा में हैं, मानों उनकी उम्मीदें टूट चुकी हैं। पिछले कुछ समय से अशोक गहलोत की टीम यह नैरेटिव बनाने में जुटी है कि यदि सत्ता रिपीट होती है तो भी अशोक गहलोत ही सीएम बनेंगे, यानी चौथी बार सीएम बनने की तैयारी चल रही है। यह बात और है कि खुद कांग्रेस के सर्वे ही सत्ता से दूर बता रहे हैं।
अब यह बात तो साफ हो चुकी है कि सचिन पायलट का तालमेल कांग्रेस के प्रदेश संगठन से नहीं है, बल्कि आलाकमान से ही है। इसके चलते पायलट उन बैठकों में ही जतो हैं, जो आलाकमान के निर्देश पर होती हैं या फिर जिनमें आलाकमान के प्रतिनिधि होते हैं। अन्यथा पायलट कांग्रेस की सरकार और प्रदेश संगठन में पूरी तरह से निष्क्रिय हैं। अब पायलट ने जहां अपने विधानसभा क्षेत्र से चुनाव प्रचार का आगाज कर दिया है तो इसके बाद अपने समर्थित नेताओं के क्षेत्र में जाकर प्रचार का प्लान बना रहे हैं। माना जा रहा है कि पायलट अपने साथी विधायकों की सीटों और जो प्रत्याशी हार गए थे, लेकिन पायलट कैंप के हैं, उनके क्षेत्र में प्रचार करने का काम करेंगे। साथ ही संगठन में अधिक से अधिक अपने लोगों को टिकट दिलाने का प्रयास करेंगे। कहने का मतलब यह है कि भले ही अध्यक्ष नहीं हों, लेकिन पायलट ने अपने गुट के नेताओं के तो अध्यक्ष हैं ही। यही वजह है कि इनके लिए उन्होंने अपने चुनावी हवाई जहाज का टॉप गियर डाल लिया है।
दूसरी ओर भाजपा में वसुंधरा राजे की निष्क्रियता का चर्चा भाजपा नेताओं की जुबान पर आम है। सतीश पूनियां की जगह सीपी जोशी को अध्यक्ष बनाने के बाद भी वसुंधरा राजे पार्टी के साथ सक्रिय नहीं हो पा रही हैं। भाजपा ने चुनाव कैंपेन कमेटी को छोड़कर अपनी सभी समितियों को गठन कर दिया है और सभी ने काम करना भी शुरू कर दिया है। ऐसे में वसुंधरा राजे को चुनाव कैंपेन कमेटी का जिम्मा मिलने की संभावना है। यह बात यही है कि किसी भी कमेटी का अध्यक्ष बनने के बाद भी सत्ता मिलने पर सीएम बनाने की गारंटी नहीं है। यही वजह है कि वसुंधरा राजे का फोकस कमेटी अध्यक्ष बनने से ज्यादा सीएम फेस घोषित करवाने का दबाव बनाने पर है।
इसका मतलब यह हुआ कि भविष्य की आस में जहां सचिन पायलट कांग्रेस उपरी मन से जुड़ चुके हैं, तो वसुंधरा राजे अभी भी अस्तित्व की जंग लड़ रही हैं। भाजपा सूत्रों का दावा है कि भाजपा आलाकमान ने अपने प्रदेश नेताओं को वसुंधरा राजे के उन कार्यक्रमों से दूर रहने की सलाह दी गई है, जो पार्टी की अनुमति के बिना आयोजित हो रहे हों। संभवत: अब वसुंधरा राजे समझ गई होंगी कि पार्टी उनको जिम्मेदारी दिए बिना धीमे सियासी विष के जरिए राजनीतिक हत्या करने का काम कर रही है। यही कारण है कि वसुंधरा अपनी आखिरी पारी के लिए आखीरी चाल खेल सकती हैं।
चर्चा यह है कि भाजपा तो वसुंधरा राजे का ए प्लान है, इसके बाद बी और सी प्लान अलग से है, जिनके उपर भी काम किया जा रहा है। बी प्लान के तहत वसुंधरा राजे रालोपा जैसे दल के साथ जाकर चुनाव लड़ सकती हैं, तो सी प्लान में अपने दल का गठन कर सकती हैं। हालांकि, वसुंधरा को पता है कि रालोपा को छोडकर राज्य में ऐसा कोई दल नहीं है, जो उनके कद के अनुसार वोटर्स को प्रभावित कर पाए। कुछ सियासी लोगों का कहना है कि वसुंधरा राजे ने अपनी पार्टी बनाने का काम भी पूरा कर लिया है, यदि भाजपा ने उनको सीएम फेस नहीं बनाया या फिर सत्ता मिलने पर सीएम बनाने का वादा नहीं किया तो वह नए दल के साथ मैदान में आ सकती हैं।
सवाल यह उठता है कि यदि वसुंधरा राजे ने भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ा तो बीजेपी को कितना नुकसान होगा? दरअसल वसुंधरा राजे राज्य में दो बार सीएम रही हैं। इसके अलावा तीन बार विधायक और पांच बार सांसद का चुनाव जीत है। इस लिहाज से पार्टी में उनके बराबर कद्दावर कोई नेता नहीं है। किंतु ये सब कुछ वसुंधरा राजे ने भाजपा के टिकट पर ही हासिल किया है। कभी ऐसा नहीं हुआ कि उन्होंने निर्दलीय या दूसरे दल से चुनाव लड़ा हो। ऐसे में वसुंधरा राजे के साथ भाजपा के ही कार्यकर्ता प्रमुख रूप से हैं। यदि वसुंधरा अलग होकर चुनाव लड़ती हैं, तब उनके खुद के कार्यकर्ताओं का पता चलेगा। किंतु फिर भी मोटे तौर पर यह माना जाता है कि भाजपा के वर्तमान मतदाताओं में से करीब 10 फीसदी वोट वसुंधरा राजे को मिल सकते हैं। भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ने वालों को इतना ही वोट मिल पाता है। किंतु वसुंधरा यदि अलग होती हैं, तो इससे भाजपा को जरूर नुकसान होगा, जिसका सीधे तौर पर कांग्रेस और दूसरे दलों को फायदा मिलेगा।
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