राजस्थान में कई सीटें ऐसी हैं, जो भाजपा-कांग्रेस के लिए सपने जैसी हो गई हैं। भाजपा जहां बीते 3 चुनाव से 20 सीटों पर नहीं जीत पा रही है, तो कांग्रेस 52 सीटों पर जीतने का सपना ही देख पा रही है। भाजपा इन 20 सीटों पर अलग रणनीति बनाने के साथ ही नया प्रयोग करने जा रही है, तो कांग्रेस ने इन 52 सीटों पर प्रोफेशनल लोगों को उतार रही है। दोनों ही दलों में बैठकों को दौर जारी है, लेकिन इससे इतर इस बार दोनों दलों के सामने हनुमान बेनीवाल भी एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आ गए हैं। हालांकि, बेनीवाल का प्रभाव पूरे प्रदेश में नहीं है, लेकिन खासकर पश्चिमी राजस्थान एक दर्जन जिलों में बेनीवाल ने अपनी सियासी पेठ के जरिए भाजपा-कांग्रेस के होस उड़ा रखे हैं।
वीडियो देखें: सांगानेर, मालवीय नगर, विद्याधर नगर क्यों नहीं जीत पाती है कांग्रेस?
जयपुर की पांच सीटों के अलावा अजमेर, टोंक, भीलवाड़ा, जोधपुर, पाली, राजसमंद, जालौर, बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, नागौर, चूरू, सीकर, झुंझुनूं तक हनुमान बेनीवाल ने बीते 5 साल में बहुत बड़ा जनाधार बना लिया है। इन जिलों की अधिकांश सीटों पर बेनीवाल की रालोपा इस बार पूरी मजबूती से चुनाव लड़ने की तैयारी कर चुकी है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अपनी पार्टी बनाकर बेनीवाल ने 57 उम्मीदवार मैदान में उतारे, जिनमें से 3 जीतकर विधायक बने। इसके बाद आम चुनाव में खुद हनुमान बेनीवाल नागौर से सांसद चुने गए। रालोपा राज्य की पहली क्षेत्रीय पार्टी बनी।
जयपुर जिले की दूदू, बगरू, सांगानेर, चाकसू, चौमू, झोटवाड़ा, आमेर सीट पर रालोपा को अच्छी खासी बढ़त है। यहां पर हर विधानसभा सीट पर रालोपा को 10 से लेकर 50 हजार तक वोट मिल चुके हैं। इस बार काफी अधिक मिलने क उम्मीद है। जयपुर जिले की 19 सीटों में से 8 सीट शहर और बाकी 11 सीटों को ग्रामीण क्षेत्र में माना जाता है। जयपुर की विद्याधर नगर, मालवीय नगर और सांगानेर ऐसी तीन सीटें हैं, जहां पर लंबे समय से कांग्रेस जीत ही नहीं पाई है। साल 2008 में विद्याधर नगर सीट अस्तित्व में आई थी, तब से लगातार भाजपा ही जीत रही है। इस सीट पर नरपत सिंह राजवी विधायक बनते आ रहे हैं। सीट को पूरी तरह से भाजपा को गढ़ माना जाता है। इसी तरह से सांगानेर विधानसभा सीट को भाजपा 2003 से लगातार जीत रही है। साल 1977 में बनी सांगानेर सीट पर अब तक कांग्रेस की इंदरा मायाराम दो बार विधायक बनी हैं, इसके अलावा यह सीट हमेशा भाजपा के पास ही रही है। अभी यहां से अशोक लाहोटी विधायक हैं, लेकिन उनका टिकट कटना पक्का माना जा रहा है।
इसी तरह से मालवीय नगर विधानसभा सीट पर कालीचरण सराफ विधायक हैं। कालीचरण वसुंधरा राजे की पिछली सरकार में मंत्री थे। हालांकि, पिछली बार वह 1704 वोटों के काफी कम अंतराल से जीते थे। कांग्रेस उनके सामने तीन बार राजीव अरोड़ा और अर्चना शर्मा को आजमा चुकी है, लेकिन पार नहीं पड़ रही है। सराफ यहां लगातार 2008 से जीत रहे हैं। यहां पर भी कांग्रेस जीत नहीं पा रही है। इसका मतलब यह है कि इन तीन सीटों पर भाजपा किसी भी उम्मीदवार को मैदान में उतारती है तो वह जीतकर आता है। सांगानेर में पहले विद्या पाठक जीतती रहीं, उसके बाद तीन बार घनश्याम तिवाड़ी जीते और अभी अशोक लाहोटी विधायक हैं, जबकि उनको यहां पर कोई जनाधार नहीं था।
मालवीय नगर सीट पर 2008 में कालीचरण सराफ ने राजीव अरोड़ा को 17558 वोटों से हराया। इसके बाद 2013 में कालीचरण के सामने कांग्रेस ने अर्चना शर्मा को टिकट दिया। इस बार सराफ ने अर्चना को 48718 वोटों से करारी शिकस्त दी। आखिरी बार 2018 में कांग्रेस ने फिर से अर्चना को टिकट दिया, लेकिन वह 1704 वोट से हार गईं। इस तरह से कालीचरण सराफ लगातार तीन बार विधायक चुने जा चुके हैं। किंतु इस बार भाजपा टिकट बदलने का मन बना रही है। कारण यह है कि कालीचरण सराफ वसुंधरा राजे गुट से आते हैं। दूसरी बात यह है कि सराफ 70 साल पार कर चुके हैं, जो गुजरात फॉर्मूले के हिसाब से टिकट कटने वालों की सूची में आ रहे हैं।
इसी तरह से सांगानेर सीट 1977 में पहली बार अस्तित्व में आई थी। तब विद्या पाठक विधायक बनीं। उन्होंने जैन सिंह को हराया। इसके बाद 1990 तक लगातार विधायक रहीं। 1993 के चुनाव में पहली बार इंदरा मायाराम ने कांग्रेस को जिताया। वह 1998 में दूसरी बार भी जीतीं, लेकिन 2003 में यह सीट फिर से भाजपा के पास चली गई। कांग्रेस पार्टी यहां पर इंदरा मायाराम के अलावा संजय बाफना, सुरेश मिश्रा और पुष्पेंद्र भारद्वाज को आजमा चुकी है। फिर भी कांग्रेस जीत नहीं पा रही है। इस बार फिर से भाजपा यहां पर टिकट बदलने का प्लान बना चुकी है। माना जाता है कि नगर निगम में भ्रष्टाचार के मामले में संघ के निंबाराम का नाम सामने आने के बाद संघ—भाजपा में अशोक लाहोटी से गहरी नराजगी है। इसके साथ ही लाहोटी की निष्क्रियता के कारण भी जनता में गुस्सा है।
जातिगत समीकरण की बात की जाए तो सांगानेर में सबसे अधिक ब्राह्मण समाज के मतदाता हैं। इसके बाद सिंधी, माली, एससी—एसटी, वैश्य, छीपा, मुस्लिम, जाट समाज से आते हैं। साथ ही 25 से 30 हजार दूसरी जातियों के वोटर भी हैं। जातिगत समीकरण के कारण ही सांगानेर सीट पर भाजपा का उम्मीदवार भारी पड़ता है। यहां पर संघ का बड़ा वर्चस्व है। आमतौर पर ब्राह्मण, सिंधी, माली, वैश्य, छीपा, जाट जैसी जातियों को भाजपा का कोर वोटर माना जाता है। किंतु पुष्पेंद्र भारद्वाज ने पिछली बार अच्छी फाइट की थी। इस बार पुष्पेंद्र भारद्वाज की सक्रितया उनके लिए काफी फायदेमंद साबित होगी। साथ ही भाजपा विधायक अशोक लाहोटी की निष्क्रियता के चर्चे चहूंओर है।
भाजपा की ओर से सांगानेर में वर्तमान विधायक लाहोटी के अलावा मजबूत दावेदारों में पूर्व पार्षद और वरिष्ठ भाजपा नेता मनोज चौधरी, नगर निगम में फायर एनओसी कमेटी के चेयरमैन पारस जैन, वरिष्ठ पत्रकार गोपाल शर्मा, प्रताप राव, वसुंधरा खेमे से राजस्थान विवि के पूर्व महासचिव अमित शर्मा भी प्रमुख दावेदार हैं। कांग्रेस की तरफ से अभी तक पुष्पेंद्र भारद्वाज सबसे मजबूत दावेदार हैं। इसी तरह से सुनील पारवानी और सचिन पायलट कैंप के खास सुरेश मिश्रा भी दावा जता रहे हैं। सुरेश मिश्रा यहां से 2008 में चुनाव लड़ चुके हैं।
मालवीय नगर से कालीचरण सराफ फिर दावा ठोक रहे हैं तो उनके सामने भाजपा के नए नेता तैयार हो चुके हैं। माना जा है कि इस बार कालीचरण का टिकट कटना भी पक्का बताया जा रहा है। उनकी बढ़ती उम्र और वसुंधरा फैक्टर के कारण भाजपा में युवा उम्मीदवार होगा। इसके साथ ही पिछली बार उनकी काफी कम अंतराल से मिली जीत भी टिकट बदलने का बड़ा आधार बताई जा रही है। साथ ही लगातार तीन बार से विधायक होने के कारण उनके खिलाफ बने माहोल ने भी पार्टी को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। फिलहाल पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता अमित गोयल सबसे मजबूत दावेदार हैं। अमित गोयल लगातार भाजपा के संगठन में सक्रिय हैं। लंबे समय से यहां से तैयारी कर रहे हैं। जातिगत समीकरण भी उनके पक्ष में हैं। वैश्य सीट की दावेदारी में मालवीय नगर में अमित गोयल भाजपा के लिए सबसे मजबूत दावेदार बनकर उभरे हैं। इसी सीट पर पुनीत कर्नावट, पंकज जोशी और एकता अग्रवाल भी टिकट के लिए प्रयासरत हैं।
मालवीय नगर के साथ ही अस्तित्व में आई विद्याधर नगर से नरपत सिंह राजवी लगातार तीन बार जीत चुके हैं। इस सीट पर इस बार भाजपा राजेंद्र सिंह राठौड़ और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का भी दावा बताया जा रहा है। चर्चा है कि राजेंद्र राठौड़ हारने के डर से इस बार चूरू छोड़कर विद्याधर नगर से चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं। अमित गोयल के अलावा मुकेश दाधीच और नरपत सिंह के बेटे अभिमन्यू राजवी भी टिकट मांग रहे हैं। माना जा रहा है कि अधिक उम्र और लगातार तीन बार विधायक बनने के कारण नरपत सिंह राजवी का टिकट कटेगा, जिसके कारण पार्टी उनके खिलाफ बनी विरोधी लहर को भी खत्म करना चाहती है। इसी तरह का फॉर्मूला पार्टी गुजरात में अपना चुकी है। राजवी को भी वसुंधरा राजे का करीबी माना जाता है।
माना जा रहा है कि यदि भाजपा ने इन सीटों सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं बदले तो ये अभेद किले ढह सकते हैं। इसी वजह से भाजपा इन सीटों पर गुजरात फॉर्मूले पर काम कर रही है। जयपुर जिले की 19 सीटों में से ये ही तीन सीट ऐसी हैं जहां पर लगातार भाजपा जीत रही है।
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