राजनीति में कदम रखने की पहली सीढ़ी पर सरकार ने रोक लगा दी है। कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार ने इस साल होने वाले छात्रसंघ चुनाव कराने से इनकार कर दिया है। बीती रात उच्च शिक्षा विभाग की अहम बैठक में यह फैसला किया गया है। गहलोत सरकार के इस फैसले के कुछ ही देर बाद प्रदेशभर में छात्रों द्वारा विरोध का सिलसिला शुरू कर दिया गया है। राजधानी जयपुर में छात्र नेताओं ने अपना रोष व्यक्त करते हुए कहा कि अगर सरकार ने जल्द से जल्द अपने फैसले पर पुनर्विचार कर छात्रसंघ चुनाव की तारीख का ऐलान नहीं किया तो प्रदेशभर में उग्र आंदोलन किया जाएगा, जिसके उपजी अव्यवस्थाओं के लिए सरकार खुद जिम्मेदार होगी।
इससे पहले शनिवार को छात्रसंघ चुनाव को लेकर उच्च शिक्षा विभाग की एक बैठक हुई थी। इस बैठक में प्रदेशभर के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने नई शिक्षा नीति-2020 लागू करने, यूनिवर्सिटी में चल रही प्रवेश परीक्षाएं और उनकी परिणाम प्रक्रिया का हवाला देकर छात्रसंघ चुनाव पर रोक लगाने की बात कही, जिस पर सर्वसम्मति से इस साल चुनाव नहीं कराने का फैसला किया गया।
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बैठक के बाद उच्च शिक्षा विभाग ने आदेश में कहा कि विवि के कुलपतियों ने यह स्पष्ट किया है कि छात्रसंघ चुनावों में धनबल और बाहुबल का खुलकर उपयोग किया जा रहा है और लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों का उल्लंघन किया जा रहा है। यदि चुनाव कराए जाते हैं तो पढ़ाई प्रभावित होगी, जिसके कारण राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत सेमेस्टर सिस्टम लागू नहीं हो पाएगा, इसलिए छात्रसंघ चुनाव नहीं कराने का फैसला किया गया है।
सरकार द्वारा चुनाव नहीं कराने के फैसले के बाद छात्रनेता भड़क गये। चुनाव लड़ने की तैयारी करने वाले छात्रों का कहा है कि छात्रसंघ चुनाव टालने के फैसले के बाद राजस्थान कांग्रेस सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो गई हैं, जिस राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का हवाला देकर सरकार छात्रसंघ चुनाव नहीं करने का फैसला किया गया है, वह 2020 से अब तक लागू हो जानी चाहिए थी, लेकिन सरकार और यूनिवर्सिटी प्रशासन की लापरवाही की वजह से वह आज तक लागू नहीं हो पाई, तो अब कैसे लागू हो जाएगी?
छात्रों का यह भी कहना है कि इस साल राजस्थान यूनिवर्सिटी में एडमिशन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है, जिसके लिए स्टूडेंट नहीं, बल्कि यूनिवर्सिटी प्रशासन और सरकार जिम्मेदार है, लेकिन इसकी सजा आम छात्रों को दी जा रही है, जिसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेंगे। एबीवीपी से जुड़े छात्रनेताओं का कहना है कि सरकार ने अगर अगले 24 घंटे में छात्रसंघ चुनाव कराने का फैसला नहीं किया तो प्रदेशभर के युवा एक साथ मिलकर इस चुनाव में इसका जवाब देंगे।
छात्रसंघ अध्यक्ष के चुनाव की तैयारी कर रहे राजस्थान विवि के छात्रनेताओं का कहना है कि राजस्थान की तानाशाह कांग्रेस सरकार ने NSUI की हार के डर से इस साल चुनाव नहीं करने का फैसला किया है, जो भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ है। इसका पुरजोर विरोध करते हैं। इसके साथ ही यह मांग करते हैं कि सरकार एक बार फिर अपने फैसले पर रिव्यू कर छात्रसंघ चुनाव की तारीख का ऐलान करे।
दरअसल, राजस्थान की सभी सरकारी यूनिवर्सिटीज में छात्रसंघ चुनाव करवाए जाते रहे हैं। इनमें राज्य की सबसे पुराने और सबसे बड़े विवि राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर, महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय अजमेर, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर, मोहन लाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर, कोटा विश्वविद्यालय कोटा, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय बीकानेर, वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय कोटा, राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय जोधपुर, पं. दीनदयाल उपाध्याय शेखावाटी विश्वविद्यालय सीकर, महाराजा सूरजमल बृज विश्वविद्यालय भरतपुर, राजर्षि भर्तृहरि मत्स्य विश्वविद्यालय अलवर, गोविन्द गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय बांसवाड़ा, हरिदेव जोशी पत्रकारिता एवं जन संचार विश्वविद्यालय जयपुर, डॉ. भीमराव अम्बेडकर विधि विश्वविद्यालय, जयपुर और एम.बी.एम. विश्वविद्यालय जोधपुर के साथ ही प्रदेश के 400 सरकारी और 500 से अधिक प्राइवेट कॉलेज में छात्रसंघ चुनाव पर रोक लग गई है। इस वजह से प्रदेश के 6 लाख से ज्यादा स्टूडेंट्स इस बार अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर सकेंगे।
असल बात यह है कि राजस्थान में साल 2005 के आसपास छात्रसंघ चुनाव के दौरान काफी हंगामा और हुड़दंग हुआ था, जिसके बाद हाईकोर्ट में पीआईएल दायर की गई थी। कोर्ट ने सुनावाई करते हुए साल 2006 में कोर्ट ने छात्रसंघ चुनाव पर रोक लगा दी थी। इसके बाद लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के साथ साल 2010 में एक बार फिर छात्रसंघ चुनाव की शुरुआत हुई थी। उसमें यह तय किया गया कि एक छात्र एक पद पर एक ही बार चुनाव लड़ सकता है। साथ ही कॉलेज का चुनाव लड़ने की लिए अधिकतम उम्र 21 साल और विवि के छात्रसंघ का चुनाव लड़ने की अधिकतम उम्र 25 साल तय की गई थी। साथ ही चुनाव में खर्च सीमा भी 5000 तय की गई थी, लेकिन हकिकत यह है कि चुनाव में करोड़ों रुपये खर्च होते हैं।
इसके बाद साल 2020 और 2021 में भी कोरोना संक्रमण की वजह से छात्रसंघ चुनाव नहीं हो पाए थे, लेकिन पिछले साल 29 जुलाई को एक बार फिर सरकार ने छात्रसंघ चुनाव कराने का फैसला किया था। पिछले साल 26 अगस्त को प्रदेशभर में छात्रसंघ चुनाव के लिए मतदान हुआ, और 27 अगस्त को काउंटिंग और रिजल्ट की प्रक्रिया पूरी की गई थी।
चुनाव पर रोक लगाने से पहले शनिवार को ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि छात्रसंघ चुनाव को लेकर शिक्षा राज्य मंत्री राजेंद्र यादव ही फैसला करेंगे। साथ ही यह भी दावा किया कि जब चुनाव बंद हो गए थे, तब उन्होंने ही सीएम रहते चुनाव फिर से शुरू करवाए थे। गहलोत ने कहा था कि आज चुनाव से पहले ही स्टूडेंट इस तरह पैसे खर्च कर रहे हैं, जैसे एमएलए-एमपी के चुनाव लड़ रहे हों। आखिर कहां से पैसा आ रहा है और इतने पैसे क्यों खर्च किए जा रहे हैं, जबकि यह सब लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के खिलाफ है। छात्र नेता इसकी धज्जियां उड़ा रहे हैं, हम इसे पसंद नहीं करते हैं।
अब समझने वाली बात यह है कि सरकार ने क्या वास्तव में राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करने और मुख्यमंत्री की चिंता के अनुसार चुनाव पर करोड़ों रुपये खर्च होने के कारण ही रोक लगाई है? सरकार द्वारा छात्रसंघ चुनाव पर रोक लगाने के पीछे केवल ये दो ही कारण नहीं हैं। असल बात तो यह है कि नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस सरकार नहीं चाहती है कि युवाओं का सरकार खिलाफ माहोल बने। राज्य सरकार को यह पता है कि यदि चुनाव के दौरान घटनाक्रम पूर्व की तरह रहा तो यह तय है कि एनएसयूआई की हार के कारण सरकार के खिलाफ हवा बनेगी। दरअसल, पिछले कई सालों से राज्य की अधिकांश यूनिवसिर्टीज में भाजपा के अग्रिम छात्र संगठन एबीवीपी का दबदबा रहा है। साथ ही अधिकांश महाविद्यालयों में भी एबीवीपी काफी आगे रहती है।
कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव से पहले राज्य के सभी बेरोजगारों को 3500 रुपये मासिक भत्ता देने का वादा किया था, लेकिन युवाओं को बेरोजगारी भत्ते का वादा आज भी पूरा नहीं किया गया है। जिसके कारण युवाओं में गहरा रोष है। सरकार को पता है कि यदि चुनाव में एबीवीपी ने उस वादे का प्रचार किया तो एनएसयूआई की हार को बचा पाना कठिन हो जाएगा। सरकार रहते हुए यदि कांग्रेस का अग्रिम संगठन हार जाता है तो सरकार की किरकिरी तो होगी ही, साथ ही विधानसभा चुनाव पर भी नकारात्मक असर होगा। इससे बचने के लिए सरकार छात्रसंघ चुनाव से पीछे हटी है।
इसके साथ ही बीते दो—तीन साल के दौरान जिस तरह से पेपर लीक होने के कारण कई परिक्षाएं रद्द की गईं, कईयों की परीक्षा दुबारा हुईं, कई भर्तियां आज भी अटकी पड़ी हैं और युवाओं के लगातार सपने टूट रहे हैं, उसके कारण भी राज्य के युवाओं में सरकार के खिलाफ जबरदस्त माहोल है। सचिन पायलट से लेकर हनुमान बेनीवाल और डॉ. किरोड़ीलाल मीणा से लेकर डॉ. सतीश पूनियां तक, जो कोई नेता युवाओं में आस जगाने का काम करता है तो हजारों की तादात में युवा खड़े हो जाते हैं। ऐसे में सरकार को अच्छे से पता है कि वास्तव में युवा वर्ग बहुत गुस्से में है। यदि यह गुस्सा छात्रसंघ चुनाव में निकला तो एनएसयूआई का सूपड़ा साफ हो जाएगा, जो मूल रूप से सरकार के खिलाफ माहोल का परिणाम होगा। इससे भी बचने के लिए सरकार छात्रसंघ चुनाव में जाने से डर गई है।
बात यदि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की बात की जाए तो इसको अभी अचानक ना तो लागू किया गया है और ना ही किया जा सकता है। इससे पहले दो सत्र निकल चुके हैं, लेकिन शिक्षा नीति को लागू करने में कोई दिक्कत नहीं हो रही थी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि इस बार ही ऐसा क्या हुआ जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति का बहाना बनाकर छात्रसंघ चुनाव पर रोक लगाई गई है? सरकार का कहना है कि चुनाव में एमएलए और एमपी चुनाव की तरह अथाव पैसा खर्च होता है, जो सीएम अशोक गहलोत की चिंता का सबसे बड़ा कारण है। गहलोत ने चिंता जताते हुए कहा कि इतने पैसे छात्रनेताओं के पास आते कहां से हैं? तब सवाल यह उठता है कि नेताओं के पास चुनाव में करोड़ों रुपये फूंकने के लिए कहां से आते हैं?
वास्तव में देखा जाए तो चुनाव पर रोक लगाने के पीछे असली कारण बेरोजगारी भत्ता नहीं देने से युवाओं का नाराज होना, पेपर लीक माफिया पर लगाम नहीं लगाने से सरकारी नौकरियां नहीं दे पाने की विफलता और चुनाव में एनएसयूआई की हार की संभावना के डर है। कांग्रेस ने तीन अलग अलग सर्वे करवाए हैं, जिसमें युवाओं की नाराजगी खुलकर सामने आई है। इस बात को सरकार जानती है। यही वजह है कि छात्रसंघ चुनाव पर रोक लगाकर लाखों युवाओं के उस गुस्से को कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार और अधिक नहीं बढ़ाना चाहती है।
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