भाजपा इन 100 नेताओं के टिकट काटेगी



राजस्थान में कांग्रेस ने टिकट वितरण में जहां कर्नाटक जीत का फॉर्मूला लागू कर चुकी है तो भाजपा गुजरात के टिकट फॉर्मूले को राजस्थान में भी लागू करने का प्लान बना रही है। कांग्रेस का टिकट वितरण फॉर्मूला मैं कल के ​वीडियो में आपको विस्तार से बता चुका हूं, जिसमें पार्टी ने अब तक करीब 100 नेताओं के टिकट तय कर लिए हैं, और इनको सितंबर के पहले पखवाड़े तक टिकट देकर जमीन पर उतार दिया जाएगा। आज मैं आपको बताउंगा कि राजस्थान में भी भाजपा कैसे गुजरात की जीत का फॉर्मूला लागू करने जा रही है। 


दरअसल, भाजपा ने गुजरात में अपनी सरकार रिपीट कराने के लिए बड़े पैमाने पर टिकट काट दिए थे। पिछली बार चुनाव हुए तब तक भाजपा सरकार गुजरात में 27 साल से सत्ता में थी, इसकी वजह से पार्टी के खिलाफ एंटी इंकंबेंसी होने का जबरदस्त खतरा था। इससे बचने के लिए पार्टी ने उन नेताओं को मैदान से बाहर कर लिया, जो तीन या चार बार चुनाव जीत रहे थे। साथ ही जिनकी उम्र 70 साल को क्रॉस कर रही थी, उनको भी टिकट नहीं दिए गये। पार्टी ने करीब 100 नेताओं के टिकट काटकर को घर बिठा दिया। 


इन नेताओं में पूर्व सीएम विजय रुपाणी से लेकर डिप्टी सीएम नितिन पटेल भी शामिल थे। साथ ही कई मौजूदा मंत्री भी थे। नतीजा यह हुआ कि जिस गुजरात में भाजपा मोदी के होते हुए 127 सीटों से आगे नहीं बढ़ पाई थी, वहां पर मोदी के बिना भी 182 में से 156 सीटें जीतकर इतिहास बनाने में कामयाब हो गई। इससे पहले गुजरात विधानसभा चुनाव में कोई भी पार्टी इतनी सीटों पर नहीं जीत पाई थी।

 भाजपा इन 100 नेताओं के टिकट काटेगी

भाजपा अब गुजरात वाले उसी टिकट फॉर्मूले को राजस्थान और मध्य प्रदेश में लागू करने जा रही है। पार्टी ने तय किया है कि राज्य की 200 में से करीब 100, यानी आधी सीटों पर उम्मीदवार बदले जाएंगे। इस लिस्ट में उन नेताओं के टिकट कट जाएंगे, जो कई बार से लगातार विधायक बन रहे हैं या फिर इनकी उम्र 70 साल से उपर हो चुकी है, किंतु भी खास करिश्मा नहीं कर पा रहे हैं। 


पार्टी सूत्रों का दावा है कि केंद्रीय स्तर पर ऐसे नेताओं की सूची बनाई जा चुकी है। इनमें से अधिकांश का टिकट कटना भी तय हो चुका है, केवल विशेष परिस्थिति में ही किसी नेताओं को फिर से उम्मीदवार बनाया जाएगा। हालांकि, यह नहीं बताया गया है कि वो विशेष परिस्थिति क्या होगी, लेकिन माना जा रहा है कि कहीं पर जातिगत आधार, जनाधार या पार्टी के लिए जरूरी अनुभव की जरुरत के हिसाब से कुछ नेताओं को ​इस श्रेणी से बाहर रखा जाएगा। 


जिन नेताओं के टिकट कटेंगे, उनमें अधिकांश वसुंधरा राजे कैंप के माने जा रहे हैं। ये नेता पूर्व मंत्री या विधायक हैं और कई बरसों से जीत रहे हैं, या फिर एक बार जीतकर दुबारा हार जाते हैं। जब बीजेपी की सत्ता नहीं होती है तो ये नेता चुनाव हार जाते हैं और जब भाजपा की सत्ता आती है तो जीतकर मंत्री बन जाते हैं। 


भाजपा सत्ता में नहीं आती तो ऐसे नेता या तो चुनाव हार जाते हैं या जीत भी जाते हैं तो संगठन के लिए कोई काम नहीं करते हैं, भाजपा के कार्यकर्ताओं के भी काम नहीं करते हैं। ऐसी गतिविधियां बीते दो ढाई दशक से चल रही है। क्योंकि अधिकांश नेता तब से ही इस मिजाज के बने हुए हैं, जब राज्य में वसुंधरा राजे का आगमन हुआ था। इस​ वजह से टिकट कटने की संभावना वाले अधिकांश नेता भी वही हैं, जो वसुंधरा राजे के कैंप में शामिल हैं। 


जिन नेताओं के टिकट कटेंगे, उनमें पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश चंद मेघवाल, प्रताप सिंह सिंघवी, कालीचरण सराफ, राजपाल सिंह शेखावत, नरपत सिंह राजवी जैसे नेताओं के टिकट कटने का नाम बताया जा रहा है। ये नेता वसुंधरा राजे के खास हैं। इसके साथ ही जिन नेताओं की उम्र 70 से उपर हो चुकी है, उनको भी फिर से मौका देने की संभावना कम नजर आ रही है। 


पार्टी ने टॉप लेवल पर यह तय कर लिया है​ कि चाहे टिकट कटने से कोई नेता नाराज होकर बागी भी होता है, तो हो जाएं, लेकिन उसके दबाव में आकर टिकट बदलने या उनको ही फिर से मौका देने काम नहीं किया जाएगा। यानी पार्टी के प्रति बिना टिकट के जो वफादार होगा, उसी को रखा जाएगा, बाकी जो बगावत करेगा, उसको बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। हालांकि, पिछले चुनाव में भी कई नेताओं को टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने बगावत कर दी थी, जिन्हें पार्टी से बाहर कर दिया, लेकिन बीते चार साल में कईयों को वापस ले लिया गया है।


राजस्थान की सियासत में यह भी चर्चा चल रही है कि भले ही भाजपा ने मोदी के नाम पर ही चुनाव लड़ने का निर्णय कर लिया हो, लेकिन फिर भी वसुंधरा राजे लगातार इस प्रयास में लगी हुई हैं कि कैसे भी करके उनको सीएम का चेहरा घोषित कर दिया जाए। इसको लेकर वसुंधरा जयपुर से दिल्ली के बीच दौड़ भी लगा रही हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि आलाकमान को दबाव में लेने के लिए पिछले दिनों वसुंधरा कैंप के नेताओं ने दिल्ली में जाकर दबाव भी बनाने का प्रयास किया था। 


कहा जा रहा है कि जैसे 2009 के समय वसुंधरा को नेता प्रतिपक्ष के पद से हटाने के बाद उनके नजदीकी विधायक ​इस्तीफे लेकर दिल्ली चले गये थे, ठीक इसी तरह से पार्टी छोड़ने का दबाव बनाने और नई पार्टी बनाने का प्रेशर क्रियेट करने के लिए भी वसुंधरा गुट दिल्ली में बैठा है। 


भाजपा सूत्रों का दावा है कि वसुंधरा राजे को किसी राज्य का राज्यपाल बनने का प्रस्ताव दिया गया है, लेकिन वह राजस्थान में सीएम फेस बनना चाहती हैं। यही वजह है कि भाजपा द्वारा बार बार सीएम चेहरा नहीं होने के बयान देने के बाद भी वसुंधरा राजे इस बात को स्वीकार नहीं कर रही हैं। कुछ सियासी लोग यह भी दावा कर रहे हैं कि वसुंधरा राजे को यदि भाजपा ने सीएम फेस नहीं बनाया तो आने वाले कुछ दिनों में वह अलग पार्टी बनाकर भाजपा को तोड़ भी सकती हैं। ऐसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए वसुंधरा कैंप के विधायक और पूर्व विधायक उनके साथ दिल्ली में दबाव बना रहे हैं। 


आपको याद होगा, पिछले दिनों अशोक गहलोत ने भी यह कहकर भाजपा में गुटबाजी को हवा देने का प्रयास किया था कि वसुंधरा राजे ही भाजपा में सीएम का चेहरा हो सकती हैं, उनके अलावा दूसरा कोई भी नहीं है। गहलोत के इस बयान को यदि हम उनके ही धोलपुर वाले बयान से जोड़कर देखें तो साफ हो जाता है कि संकट के समय अशोक गहलोत की सरकार बचाने वाली वसुंधरा राजे का कर्ज चुकाने के​ लिए गहलोत ने वसुंधरा को ही एकमात्र सीएम फेस होने का दावा किया है। अशोक गहलोत इस बात को जानते हैं कि यदि भाजपा ने वसुंधरा राजे को ही सीएम फेस बनाया तो उनको ही फायदा होगा। अब यदि वसुंधरा ही एकमात्र सीएम फेस होने के दावे की पड़ताल की जाए तो राज्य की जनता ने सीएम चेहरे के रूप में वसुंधरा राजे को दो—दो बार नकारा है। 


साल 2008 में वसुंधरा राजे ही सीएम चेहरा थीं फिर भी भाजपा हार गई थी। इसी तरह से 2018 में भी वसुंधरा राजे ही भाजपा की सीएम फेस थीं, फिर भी दूसरी बार जनता ने उनको नकार कर सत्ता से ​बाहर कर दिया था। वसुंधरा दो बार सीएम बनीं, लेकिन असल में देखा जाए तो केवल 2003 में ही खुद के दम पर सीएम बनी थीं। दूसरी बार 2013 में तो नरेंद्र मोदी की लहर में लोगों ने भाजपा को वोट दिया था। यह बात और है कि जैसे कांग्रेस ने अशोक गहलोत को तीन—तीन बार राजस्थान पर सीएम के रूप में थोपा है, ठीक वैसे ही भाजपा ने भी दूसरी बार वसुंधरा को ही सीएम बनाकर जनता के उपर फिर से थोप दिया था। 


यही वजह है कि नई लीडरशिप और नए कार्यकर्ताओं को विधायक बनाने के लिए इस बार वसुंधरा कैंप को पूरी तरह से बाहर किया जाएगा। क्योंकि जो मापदंड भाजपा ने टिकट काटने के बनाए हैं, उसमें अधिकांश विधायक और पूर्व विधायक वसुंधरा राजे कैंप से ही आते हैं। इसके अलावा भाजपा के मौजूदा विधायकों में भी आधा दर्जन के टिकट कटने तय हो चुके हैं। साथ ही तीन से चार नेताओं की सीटों में बदलाव भी किया जाएगा। भाजपा के ही कई लोग तो यह भी दावा करते हैं कि यदि सीएम बनाने की मंशा नहीं होगी तो वसुंधरा राजे का भी टिकट काटकर दूसरे नेता को अवसर दिया जाएगा। 


कुल मिलाकर बात यही है कि भाजपा पूरी तरह से गुजरात मॉडल पर टिकट वितरण का प्लान बना चुकी है। जिन सीटों पर भाजपा कमजोर पड़ेगी, वहां पर ऐसे नेताओं को टिकट मिलेगा, जो केवल संगठन और मोदी के नाम पर जीत सकें। यदि भाजपा ने गुजरात मॉडल को पूरी तरह से यहां लागू किया तो पहली बार पार्टी इतने बड़े पैमाने पर टिकट बदलने का काम करेगी। उसके बाद देखना रोचक होगा कि कांग्रेस का कर्नाटक मॉडल सफल होता है या भाजपा को गुजरात मॉडल? साथ ही यह भी मुकाबला रहेगा कि गहलोत की फ्री घोषणाएं काम करेंगी, या मोदी का विश्वव्यापी ब्रांड वाली छवि सरकार बना लेगा?

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