राजस्थान भाजपा की ओर से इस बार होने वाले विधानसभा के लिए अभी तक किसी को भी सीएम फेस नहीं बनाया गया है। इसके कारण एक ओर जहां वसुंधरा राजे आलाकमान पर दबाव बनाकर जल्द से जल्द निर्णय अपने पक्ष में करवाने के लिए जुटी हैं, तो साथ ही राज्य में भाजपा के 24 लोकसभा और 6 राज्यसभा सांसदों में से करीब आधा दर्जन से अधिक सांसद विधानसभा का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।
पार्टी भी संभवत: चार से पांच सांसदों को विधायक का चुनाव लड़ा सकती है। सांसद का वेतन भी अधिक होता है, उसको भत्ते भी विधायकों से अधिक मिलते हैं और प्रोटोकॉल में भी विधायक से बड़ा होता है। फिर ऐसी क्या जरूरत आ रही है कि सांसदों ने विधायक बनने की तैयारी कर रखी है? इसके कई कारण हैं, लेकिन इसका सबसे बड़ा कारण है पार्टी द्वारा पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को सीएम की रेस से साइड लाइन करना। भाजपा चाहती है कि पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा जाए, बाद में संसदीय बोर्ड की सिफारिश के आधार पर विधायक दल की बैठक में तय कर लिया जाए कि किसे सीएम बनाना है। यही वो सबसे बड़ा कारण है, जिसके चलते राज्य के आधा दर्जन से अधिक सांसद अब विधायक बनने की तैयारी कर रहे हैं। इसी वीडियो में मैं आगे बताऊंगा कि भाजपा के कौन—कौन सांसद हैं जो विधायक बनने की तैयारी कर रहे हैं? उससे पहले भाजपा उस रणनीति पर बात करना जरूरी है, जो अगले 25 साल तक राजस्थान पर शासन करने के लिए बना रही है।
हाल ही में साफ हुआ है कि पार्टी हर पांच साल में शासन बदलने की परंपरा से निजात पाना चाहती है। इसी वजह से राज्य में अगले 25 साल तक सत्ता में रहने की योजना पर काम किया जा रहा है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कहा है कि राजस्थान भाजपा को कम से कम 2047 तक सत्ता में रहने की योजना पर काम करना होगा। यही वजह है कि पार्टी राजस्थान की कमजोर सीटों पर आधा दर्जन से अधिक सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ाने पर विचार कर रही है। भाजपा झुंझुनूं, कोटपूतली जैसी करीब 19 सीटें पिछले तीन चुनाव से लगातार हार रही है। इसके अलावा राज्य की 200 में से 58 सीटों पर भाजपा तीन में से दो चुनाव हारी है।
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इन सभी सीटों को जीतने के लिए भाजपा कुछ सांसदों और दूसरी पार्टियों से शामिल हुए मजबूत नेताओं पर भी दांव खेलेगी। टिकट देने का आधार केवल कौन व्यक्ति जिताऊ हो सकता है ही रहेगा। भाजपा ने अब तक राजस्थान में तीन सर्वे करवाए हैं। इन्हीं सर्वे के रिजल्ट के आधार पर उम्मीदवार तय होंगे। भाजपा का दावा है कि प्रत्येक विधानसभा सीट पर 10 हजार लोगों को सर्वे में शामिल करके राय ली गई है। इन्हीं सर्वे के आधार पर जिताऊ उम्मीदवारों की तलाश की की जा रही है। कहा जा रहा है कि पार्टी जीत के लिए मौजूदा विधायकों और पिछले चुनाव के हारे हुए उम्मीदवारों के टिकट काटने की तैयारी में है। इससे पहले के वीडियो में मैंने आपको विस्तार से बताया था कि पार्टी किस तरह से गुजरात मॉडल का लागू करके राज्य की करीब 8 दर्जन सीटों पर उम्मीदवार बदलने का मन बना चुकी है।
नए चेहरों को आगे लाने के लिए गुजरात मॉडल की तर्ज पर टिकट बंटवारा होगा। पिछले साल गुजरात में हुए चुनाव में पार्टी ने मौजूदा 45 विधायकों के टिकट काटकर नए चेहरों को मैदान में उतारा था। इनमें से 43 ने चुनाव जीता। इसके अलावा हारी हुई सीटों पर भी उम्मीदवार बदले गए थे। परिणाम यह हुआ कि भाजपा ने इतिहास बनाते हुए 156 सीटों पर जीत हासिल की। उसी तर्ज पर राजस्थान में भाजपा की तैयारी है कि पिछली बार उतारे गए 200 उम्मीदवारों में से केवल जिताऊ को ही टिकट दिया जाए। गुजरात के मॉडल पर करीब 8 दर्जन नेताओं को रिटायर किया जाएगा।
हालांकि राज्य भाजपा के कई विधायक और विधायक प्रत्याशी चाहते हैं कि उनके बेटे, बेटी या बहू को टिकट दे दिया जाए, लेकिन भाजपा अपने परिवारवाद विरोधी अभियान पर कायम है। इसको लेकर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के खिलाफ भाजपा बरसों से हमलावर रही है। पीएम मोदी ने पिछले दिनों ही 'परिवारवाद क्विट इंडिया' नारा दिया है। भाजपा के सभी सांसदों को इस नारे को देशभर में जोरशोर से चलाने के लिए कहा गया है।
इसका सीधा सा संदेश यही है कि भाजपा किसी भी सांसद या विधायक के परिवार को टिकट नहीं देगी। पार्टी ने तय किया है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव में परिवार से एक ही व्यक्ति को टिकट दिया जाएगा। इससे पार्टी के भीतर यह तय हो चुका है कि बड़े नेताओं की ओर से खुद के साथ-साथ अपने बेटे-बहुओं को भी टिकट दिलाने की कोशिशों को पहले ही खारिज कर देना चाहिए।
वसुंधरा राजे के सीएम रहते या फिर सीएम का चेहरा रहते भाजपा हार चुकी है। बीते 30 साल से राजस्थान में सरकार बदलने की एक अनौखी परंपरा बन चुकी है। इसके कारण जो सरकार 10 या 15 साल का प्लान बनाकर काम करना चाहती है, वो काम होता ही नहीं है। आपको सरकारों की कई योजनाएं याद होंगी, जो सरकार बदलने के साथ ही बंद कर दी जाती है या उसका नाम बदलकर अलग तरह से चलाया जाता है। इसका सीधी नुकसान राज्य के विकास को होता है। प्रदेश के लोग जो टैक्स देते हैं, वो टैक्स का पैसा राजनीतिक दलों के एजेंडे की भेंट चढ़ जाता है।
आपको याद होगा अशोक गहलोत के पहले कार्यकाल में अकाल के समय बेहतरीन अकाल प्रबंधन किया गया था, लेकिन उसका स्थाई उपचार नहीं किया जा सका। जिसका सबसे बड़ा कारण था सरकार का बदल जाना। इसी तरह से वसुंधरा राजे की सरकार ने प्रत्येक गांव में तालाब खुदवाने और जमीन में वाटर रिजार्च को बढ़ाने की योजना बनाई थी, लेकिन सरकार बदलने के साथ ही वो डंप कर दी गई। पिछली वसुंधरा सरकार ने अन्नपूर्णा रसोई योजना शुरू की थी, लेकिन सरकार बदलते ही उसको बंद कर दिया गया और करीब तीन साल बाद फिर से शुरू किया तो उसका नाम इंदिरा रसोई कर दिया गया। भाजपा ने सरकार ने भामाशाह कार्ड बनाया और 3 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा दिया, लेकिन गहलोत सरकार ने आते ही कार्ड को निरस्त कर दिया। उसका नाम बदलकर जनाधार कार्ड कर दिया। आज भी कई अस्पताल भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना का पैसा सरकार से मांग रहे हैं।
अब सरकार टैक्स पेयर्स का पैसा रेवड़ी बांटने में लुटा रही है। बिना वजह महिलाओं को मोबाइल बांटे जा रहे हैं। किसी को जरूरत नहीं, फिर भी खाने के पैकेट दिए जा रहे हैं। बिजली उपभोक्ताओं को 100 यूनिट बिजली बांटी जा रही है, कुछ लोगों की मांग पर ओल्ड पेंशन स्कीम वापस शुरू कर दी गई है। इससे राज्य में सरकारी अराजकता फैली हुई है। जबकि किसानों का संपूर्ण कर्ज माफ करने का वादा आजतक पूरा नहीं किया है। जिस तरह की बंदरबांट सरकार ने इस बार मचा रखी है, निश्चित रूप से सरकार बदलने के साथ ही ये सब बंद हो जाएगा। परिणाम ये होता है कि जो लोग मुफ्त का खाने की आदत वाले होते हैं, वो सरकार से नाराज हो जाते हैं और फिर सरकार बदलने के लिए वोट कर देते हैं।
भाजपा का कहना है कि राज्य के विकास के लिए, डबल इंजन की सरकार होना जरूरी है और वो भी 2047 तक होनी जरूरी है। बीजेपी यह भी दावा करती है कि अगले 25 साल भारत में डबल इंजन सरकार होगी तो भारत विकसित हो जाएगा। राजस्थान में इसी के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इस वजह से राज्य में सीएम का चेहरा भी बदला जाएगा। इस बार चुनाव परिणाम के बाद किसी नए नेता को सीएम की कुर्सी मिलने वाली है। क्योंकि यदि वसुंधरा राजे को ही सीएम बनाना होता तो चुनाव से पहले ही सीएम फेस घोषित कर दिया जाता। इसको ध्यान में रखते हुए अपना नंबर लगने की संभावना के बीच कुछ सांसद भी विधायक बनने की फिराक में हैं।
अभी राजस्थान में कुछ विधायकों के अलावा लोकसभा अध्यक्ष और कोटा सांसद ओम बिरला के समर्थक भी उनको अगले सीम के रूप में देखते हैं। इसी तरह से जल शक्ति मंत्री और जोधपुर सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत भी खुद को भावी सीएम के तौर पर प्रस्तुत करने से नहीं चूक रहे हैं। हालांकि, उनके रास्ते में अशोक गहलोत ने संजीवनी घोटाले के कांटे बिछा दिए हैं। ऐसे ही अलवर सांसद बालकनाथ योगी भी उत्तर प्रदेश की तर्ज पर राज्य में अगले सीएम के रूप में खुद ही दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। बीकानेर सांसद और केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल के नाम भी चर्चा हो रही है। इसी तरह से राणी की जगह राणी के तौर पर राजसमंद सांसद दीया कुमारी भी खुद को सीएम के लिए जगह तलाश रही हैं। उनकी भी पीआर कंपनी सीएम फेस वैल्यू बनाने का काम कर रही है, जिसपर भी खूब पैसा खर्च हो रहा है।
जब राज्य में किसान सीएम की बात चलत है तो जैसलमेर बाडमेर सांसद और केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी भी अपने आप को सीएम की रेस में मानते हैं। कैलाश चौधरी संघ के करीबी भी हैं। इसी तरह से पूर्व मंत्री और जयपुर ग्रामीण से सांसद राज्यवर्धन राठौड़ खुद को सबसे योग्य उम्मीदवार के रूप में देखते हैं। राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा के समर्थक काफी समय से उनको सीएम बनाने की मांग कर रहे हैं, किरोड़ीलाल भी इस बार विधायक का चुनाव लड़ सकते हैं। राज्य में चौथी बार सांसद बने वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह को भी सीएम बनने के सपने आते होंगे। इसी तरह से पार्टी अध्यक्ष सीपी जोशी भी खुद को अगले सीएम के तौर पर देखने लगे हैं। कुछ लोग सीएम बनने के सपने तो नहीं देखते, लेकिन जयपुर सांसद रामचरण बोहरा, झुझुनूं सांसद नरेंद्र खींचड़, सुखबीर जौनापुरिया, भागीरथ चौधरी भी विधायक बनना चाहते हैं।
माना जा रहा कि सांसद से विधायकी का चुनाव लड़ने वाले तो काफी हैं, लेकिन करीब 4 या पांच सांसदों को विधायक का चुनाव लड़ाया जा सकता है। हालांकि, यह तय नहीं है कि उनमें से किसी एक को सीएम बनाया ही जाएगा, लेकिन फिर भी ये लोग इसी प्रयास में हैं कि विधायक बनकर इस रेस में शामिल होने का काम तो किया ही जा सकता है। यह बात सही है कि जिनको विधायक का टिकट मिलेगा, वो सांसद सीएम बनने का सपना भी देखने लगेंगे, लेकिन बनेगा कौन, यह सब तो उपर बैठे टॉप थ्री नेता ही तय करेंगे।
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