राजस्थान में एक तरफ जहां सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के चुनाव लड़ने के लिए एक साथ आने का दावा किया जा रहा है, तो दूसरी ओर भाजपा ने चुनाव की तैयारी के लिए अपनी जान झौंक दी है। भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और दो बार की सीएम वसुंधरा राजे को लेकर भाजपा अभी भी पसोपेस में दिखाई दे रही है। भाजपा अभी तक यह फैसला नहीं कर पाई है कि वसुंधरा राजे का क्या किया जाये?
पिछले 6 महीने में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चार बार राजस्थान आ चुके हैं। गृहमंत्री अमित शाह भी इस दौरान चार पांच बार राजस्थान के अलग अलग जगहों पर सम्मेलन और रैलियां कर चुके हैं। अध्यक्ष जेपी नड्डा भी चार बार राजस्थान का दौरा कर चुके हैं। इसी तरह से सड़क परिवहन मंत्री नितिन गड़करी अपने मिशन पर लगे हुए हैं। देशभर में आधुनिक सड़कों का जाल बिछाने के लिए गड़करी सबसे बड़े मास्टर साबित हुए हैं। राजस्थान में अध्यक्ष रहते डॉ. सतीश पूनियां के साथ छत्तीस का आंकड़ा दिखाने वाली वसुंधरा राजे की गुटबाजी से परेशान होकर भाजपा ने अध्यक्ष तो बदल दिया, लेकिन नये अध्यक्ष सीपी जोशी अपने पद का असर नहीं छोड़ पा रहे हैं।
भाजपा का संगठन इसी जुगत में है कि राजस्थान में जिस तरह से गुटबाजी दिखाई दे रही है, उसको अति शिघ्र खत्म की जाये। दरअसल, वसुंधरा राजे, सतीश पूनियां, राजेंद्र राठौड़, ओम बिडला जैसे सीएम पद पर दावेदारों के चलते भाजपा संगठन एकजुट दिखाई नहीं दे रहा है। पार्टी में आज एक धड़ा वसुंधरा राजे का है, तो दूसरा धड़ा संगठन का है, जिसमें डॉ. सतीश पूनियां, राजेंद्र राठौड़, ओम बिडला जैसे प्रमुख नेता हैं। सीपी जोशी के अध्यक्ष बनने के बाद पिछले दिनों टीम में बड़े स्तर पर बदलाव किया गया है, जिसमें सभी मोर्चों के अध्यक्ष बदले गये हैं। इसके बावजूद भी वसुंधरा राजे अभी तक संगठन के साथ शामिल दिखाई नहीं दे रही हैं। एक तरह से देखा जाये मोदी और शाह के मंच पर भी वसुंधरा राजे कौप भवन में बैठी दिखाई देती हैं।
सवाईमाधोपुर में भाजपा का मंथन चला, लेकिन उसका नतीजा पूर्वी राजस्थान के लिए ही निकाला जायेगा। इस बैठक में सभी नेता शामिल हुए हैं, यहां तक की वसुंधरा राजे भी पहली बार इस तरह की बैठक में पहुंची हैं, जिसमें केंद्रीय नेताओं में मोदी, शाह या नड्डा नहीं हैं। इससे कुछ दिनों पहले वसुंधरा ने कोटा में एक रैली करके खुद की ताकत दिखाने का प्रयास किया था। बताया जाता है कि इसी तरह की रैलियां करके वसुंधरा राजे खुद को सबसे बड़ी नेता साबित कर आलाकमान पर दबाव बनाना चाहती थीं, लेकिन उससे पहले ही उनको दिल्ली तलब कर लिया गया। दिल्ली भाजपा सूत्रों का दावा है कि वसुंधरा राजे को अब साफतौर पर सीएम पद के लिए संघर्ष का मार्ग छोड़कर पार्टी को सत्ता में लाने का टास्क दिया गया है। बाकी नेताओं को भी कहा गया है कि फिलहाल सभी सीएम बनने का सपना छोड़कर पार्टी के हित में काम करें।
भाजपा के सामने आज जहां गहलोत सरकार की असफलताओं का खजाना है, तो साथ ही सरकार द्वारा फ्री घोषणाओं के दम पर सत्ता रिपीट कराने की कसम बड़ी चुनौती है। यही वजह है कि भाजपा इस बार 2013 से ज्यादा तैयारी करने जा रही है। तब मोदी लहर चल रही थी, तो गहलोत सरकार ने केवल फ्री दवा और जांच योजना ही शुरू की थी, बाकि किसी तरह की कोई फ्रीबीज नहीं दी थी। इस बार गहलोत ने फ्रीबीज का अंबार लगा दिया है। सरकार के उपर पौने छह लाख करोड़ का कर्जा है, जबकि कई विभागों में कर्मचारियों को समय पर वेतन देने के लिए बजट नहीं है। रोडवेज कर्मचारियों को तीन महीने में वेतन मिल रहा है, तो लो फ्लोर के कर्मचारी वेतन को तरस रहे हैं। इसी तरह के हालात दूसरे विभागों में दिखाई दे रहे हैं।
सरकार ने जहां कर्मचारियों को ओपीएस बहाल करके खुश करने का प्रयास किया है, तो समय पर वेतन नहीं मिलने के कारण कर्मचारियों में रोष भी है। सरकार कर्मचारियों के लिए ओपीएस सबसे बड़ी राहत है, लेकिन यही राहत आम लोगों को रास नहीं आ रही है। पेंशन को बढ़ाकर एक हजार रुपये किया गया है, जिससे सामाजिक सम्मान बढ़ा है, लेकिन बेवजह ही महिलाओं को मोबाइल बांटने की तैयारी की जा रही है, तो कमाते खाते परिवारों को भी खाने के पैकेट देकर फ्रीबीज को बढ़ावा दिया जा रह है। पिछले दिनों में पीएम मोदी ने कहा है कि फ्रीबीज के कारण वह वर्तमान राजनीति में फिट नहीं बैठते हैं। राज्य में किसानों को 2000 यूनिट तक बिजली फ्री है, तो आम उपभोक्ताओं को भी 100 यूनिट तक बिजली फ्री है, तो साथ ही 200 यूनिट तक सभी तरह के सरचार्ज हटा दिये गये हैं। इसी तरह की अनैक योजनाओं के जरिये सरकार सत्ता रिपीट कराने का सपना पाले बैठी है।
जिस तरह से महंगाई राहत कैंप लगाये गये हैं और उसके बाद जन सम्मान कॉन्टेस्ट के नाम से लकी ड्रॉ निकालकर गहलोत सकार जनता को आकर्षित करना चाह रही है, वह भाजपा के लिए एक चुनौती के रूप में सामने आई है। किंतु भाजपा सरकार की कमजोरियों पर चोट करने पर मंथन कर रही है। इस बार गहलोत और कांग्रेस ने भाजपा को उसी के हथियार से चुनौती दी है। कुछ समय पहले तक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिये भाजपा सभी दलों पर भारी पड़ रही थी, लेकिन अब कांग्रेस ने इसी हथियार को अपनी ढाल के साथ प्रहार का माध्यम भी बना लिया है। राजस्थान सरकार द्वारा जिस डिजाइन वाले बॉक्स को काम दिया है, वह सभी तरह के प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर रही है। सोशल मीडिया पर आए दिन सरकार के विज्ञापन से देकर नैरेटिव सेट करने का काम कर रही है।
यही वजह है कि भाजपा आज की तारीख में कमजोर पड़ती जा रही है। उसके उपर वसुंधरा राजे कैंप की बेरुखी ने भाजपा के सामने चुनौती पेश कर रखी है। कहा जा रहा है कि दो दिन पहले जब वसुंधरा राजे को दिल्ली तलब किया गया था, तब उनको जम्मू कश्मीर राज्य का एलजी बनाने का प्रस्ताव दिया गया है। इसके साथ ही दिल्ली भाजपा के नेता दावा कर रहे हैं कि वसुंधरा राजे को मोदी सरकार में मंत्री बनाने का भी विकल्प दिया गया है। माना जा रहा है कि वसुंधरा को गुजरात से राज्यसभा भेजा जा सकता है। राज्यसभा सदस्य कार्यकाल 6 साल का होता है। इस वजह से करीब एक साल इस बार मंत्री रहेंगी और अगली सरकार में पांच साल मंत्री बनी रहेंगी।
इसके साथ ही वसुंधरा राजे को जम्मू कश्मीर का एलजी बनने की स्थिति में बेटे और झालावाड़ से सांसद दुष्यंत सिंह को केंद्र में राज्यमंत्री बनाने का भी प्रस्ताव दिया गया है। दरअसल, दुष्यंत सिंह राजस्थान के सबसे सीनियर लोकसभा सांसद हैं। वसुंधरा राजे के 2003 में सीएम बनने के बाद हुए लोकसभा चुनाव में पहली बार दुष्यंत सिंह को झालावाड़ से सांसद बनने का अवसर मिला था, तब से वह लगातार चौथी बार सांसद हैं। बाकी सभी 24 सांसद इतनी बार सांसद नहीं बने हैं। हालांकि, आजतक दुष्यंत सिंह को मंत्री नहीं बनाया गया है, जिससे उनकी योग्यता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। जबकि आप देखेंगे कि दुष्यंत सिंह का नाम राज्य की जनता 25 में सबसे आखिर में जानती होगी। यह बात सही है कि दुष्यंत सिंह को चौथी बार सांसद बनने के बाद आज भी वसुंधरा राजे के बेटे के तौर पर अधिक जाना जाता है। उनकी व्यक्तिगत पहचान आज भी नहीं बन पाई है। दूसरी तरफ हनुमान बेनीवाल जैसे नेता हैं, जो पहली बार सांसद बनने पर भी देशभर में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं।
वसुंधरा राजे के सामने आज दो ही विकल्प बचे हैं। या तो वो जम्मू कश्मीर की एलजी बनकर सीएम—गर्वनर दोनों के रुप में 5 साल तक सत्ता का सुख भोग सकती हैं, या फिर केंद्र में मंत्री बनकर अपनी राष्ट्रीय पहचान बना सकती हैं। इसके अलावा वसुंधरा राजे के पास तीसरा विकल्प नहीं है। दरअसल, भाजपा ने यह तय कर लिया है कि नवंबर दिसंबर में होने वाले चुनाव के बाद ही सीएम बनाया जायेगा, चुनाव से पहले किसी को सीएम फेस प्रोजेक्ट नहीं किया जायेगा। चुनाव परिणाम के बाद सीएम किसको बनाया जायेगा, यह सब बाद में तय होगा। अमित शाह से लेकर तमाम मंत्री और जेपी नड्डा कई बार कह चुके हैं कि मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ेंगे और सीएम बनाने का निर्णय बाद में किया जायेगा। यानी मोटे तौर पर देखा जाये तो वसुंधरा राजे के सीएम बनने के सभी रास्ते बंद हो चुके हैं, वसुंधरा राजे अब जीवन में कभी भी सीएम नहीं बन पायेंगी।
वसुंधरा राजे का बेटा क्यों नहीं बन पा रहा है मंत्री?
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