इन दिनों राजनीति के केंद्र में महाराष्ट्र है, जहां पर भाजपा ने बड़ा दांव लगाते हुए बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना के दो टुकड़े करने के बाद शरद पवार जैसे दिग्गज राजनीतिज्ञ की एनसीपी को भी दो फाड़ कर दिये हैं। भाजपा जिस तरह से राज्य में क्षेत्रिये दलों को तोड़ रही है, उनमें आपसी लड़ाई कर बिखराव करवा रही है और अपने साथ मिला रही है, उससे एक बात तो साफ हो गई के भाजपा के लिए अब कोई भी दल या नेता अछूत नहीं रह गया है। जिस तरह से विपक्षी दलों के नेताओं को भाजपा में शामिल किया जा रहा है, उससे यह तक कहा जाने लगा है कि भविष्य में यदि राहुल गांधी या राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत भी भाजपा ज्वाइन कर लें तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये।
महाराष्ट्र की इस कवायद के पीछे का सच तो यह है कि खुद उद्धव ठाकरे ने ही इस तोड़फोड़ की नींव रखी थी। जब चुनाव हुए थे, तब भाजपा और शिवसेना के बीच आधे आधे सीएम बनाने का कोई फॉर्मूला नहीं था, लेकिन सबसे बड़ी पार्टी बनी भाजपा के सामने तब संकट खड़ा हुआ, जब जीत के बाद उद्धव ठाकरे ने भाजपा को अंगुठा दिखाते हुए साफ कह दिया कि यदि ढाई ढाई साल के सीएम का फॉर्मूला लागू नहीं किया जायेगा तो वह गठबंधन तोड़ देगी। माना जाता है कि इसके पीछे विपक्ष के चाण्क्य शरद पवार के दिमाग की उपज बताई गई थी, जो एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस को मिलाकर महाविकास अगाड़ी सरकार बनाने का फॉर्मूला उद्धव ठाकरे को दे चुके थे। जब तक बालासाहेब ठाकरे जीवित थे, तब तक उनका कहना था कि वह ना तो चुनाव लड़ेंगे और ना ही सीएम बनेंगे, बल्कि सीएम बनायेंगे और लोगों को ही चुनाव लड़ाएंगे।
किंतु उनके ही बेटे उद्धव ठाकरे ने सीएम बनने की महात्वकांक्षा के चलते उस नियम को तोड़ दिया। शरद पवार ने सरकार बनाने और पांच साल तक उद्धव को सीएम बनाने का वादा कर दिया। हालांकि, दावेदारी और उम्र से हिसाब से एकनाथ शिंदे सीएम होने चाहिये थे, लेकिन उनको साइड लाइन कर दिया गया, जिसका परिणाम शिवसेना टूटने के रुप में सामने आया। कहते हैं कि जिस दिन उद्धव ठाकरे ने सीएम पद की शपथ ली थी, उसी दिन मोदी—शाह की जोड़ी ने कसम खाई थी कि ना तो सरकार पांच साल चलने देंगे और ना ही उद्धव की शिवसेना और उनको बहकाने वाले शरद पवार की पार्टी को एक रहने देंगे। उस शपथ का परिणाम आपके सामने है। आज जहां उद्धव के पास अपने पिता की बनाई पार्टी नहीं बची है, तो शरद पवार का घर ही टूट गया है। उनके भतीजे अजीत पवार ने पार्टी तोड़कर अपना हक जता दिया है। कहा यह भी जा रहा है कि जब ही महाराष्ट्र कांग्रेस के कई नेता भाजपा में शामिल हो सकते हैं। यानी मोदी शाह ने अपना ओपरेशन लोटस पूरा कर दिया है। सरकार भी अपनी बना ली है और दोनों दलों का अस्तित्व भी समाप्त करने की तरफ कदम बढ़ा दिये हैं।
वैसे दो चीजों मोदी शाह को अपने आप में यूनिक बनाती हैं। पहली बात तो यह है कि ये दोनों अपने दुश्मन को कभी नहीं भूलते हैं। चाहे समय कितना भी लग जाये, लेकिन उससे बदला लिये बिना नहीं रहते हैं। दूसरी बात यह कि जो लोग इनसे वफादारी करते हैं, उनको पुरस्कार जरूर मिलता है, चाहे थोड़ा समय अधिक लग जाये। मतलब साफ है कि दोनों नेता दुश्मन के साथ दुश्मनी और दोस्त के साथ दोस्ती पूरी सिद्दत से निभाते हैं। कई राज्यों में आपने देखा होगा कि कांग्रेस और दूसरे दल छोड़कर आये नेताओं को सीएम और केंद्रीय मंत्री तक बनाया गया है। आसाम के सीएम हेमंत बिश्वा सरमा और ज्योतिरादित्य सिंधिया इसके बड़े उदाहरण हैं। अब इसी तर्ज पर पंजाब में सुनिल जाखड़ को अध्यक्ष बनाया गया है। सुनिल जाखड़ कुछ महीनों पहले तक कांग्रेस के दिग्गज नेता थे, उनको कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के बाद सीएम का सबसे बड़ा दावेदार माना जा रहा था, लेकिन कांग्रेस ने उनको किनारे किया, जबकि वो तब पार्टी के अध्यक्ष हुआ करते थे।
पंजाब में हुए चुनाव के बाद कांग्रेस अपनी गुटबाजी के कारण सत्ता से बाहर हो गई और फिर पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह और अध्यक्ष सुनिल जाखड़ ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन कर ली। अब इनाम के तौर पर सुनिल जाखड़ को पार्टी ने पंजाब अध्यक्ष बनाया है। माना जा रहा है कि 2027 के चुनाव में भाजपा द्वारा जाखड़ को सीएम फेस भी बनाया जा सकता है, या चुनाव जीत के बाद सीएम बनाया जा सकता है। साल 2014 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के व्यवहार से खफा होकर पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल होने वाले हेमंत बिश्वास सरमा को भाजपा ने मई 2021 में सीएम बना दिया। यानी पांच साल मेहनत करने वाले सरमा को उनकी वफादारी और परिश्रम का प्रतिफल मिला।
इसी तरह से मणिपुर में बीरेन सिंह भी अक्टूबर 2016 तक कांग्रेस के नेता थे, लेकिन कांग्रेस की कार्यप्रणाली से नाराज होकर भाजपा में चले गये थे। जिन्हें 15 जुलाई 2017 को मणिपुर का सीएम बनाया गया था। वह लगातार दूसरी बार मणिपुर के सीएम हैं। ऐसे ही 16 सितंबर 2016 को कांग्रेस में सीएम रहते नाराजगी के बाद अरूणाचल के सीएम पेमा खांडू ने कांग्रेस छोड़ दी थी। खांडू ने 31 दिसंबर 2016 को अपने 33 साथियो के साथ भाजपा ज्वाइन की और फिर सीएम बने। इसके बाद 2019 के चुनाव में फिर से भाजपा को बहुमत दिलाकर दूसरी बार सीएम बने। कहा जा रहा है कि इसी तरह से 2020 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद मध्य प्रदेश का सीएम बनाया जायेगा। ज्योतिरादित्य सिंधिया 2018 के चुनाव के बाद मध्यप्रदेश सीमए के सबसे बड़े दावेदार थे, लेकिन कांग्रेस ने उनकी जगह कमलनाथ को आगे कर दिया। इससे नाराज होकर सिंधिया ने कांग्रेस से बगावत कर सरकार गिरा दी। अभी वह केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री हैं।
सिंधिया के खास मित्र और राजस्थान के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट भले ही आज तक भी कांग्रेस की सरकार नहीं गिरा पाये हों, लेकिन माना जाता है कि जुलाई 2020 में बगावत के समय उन्होंने यही प्रयास किया था। किंतु अपने ही कुछ साथियों की गद्दारी के चलते तब पायलट अशोक गहलोत की सरकार गिराने में सफल नहीं हो पाये थे। सियासी जानकारों का मानना है कि यदि पायलट तब सरकार गिराने में सक्सेज हो जाते, तो इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद पायलट को भाजपा अपनी तरफ से सीएम बना सकती थी। राजनीति के जानकारों का कहना है कि सचिन पायलट के पास अब भी भाजपा से मुख्यमंत्री बनने का अवसर है। माना जाता है कि जिस तरह से अशोक गहलोत दावा कर रहे हैं, उसके अनुसार यदि कांग्रेस की सत्ता रिपीट होती भी है, तो भी सचिन पायलट का कांग्रेस से सीएम बनने का सपना पूरा नहीं हो पायेगा।
ऐसे में राजनीतिक जानकार मानते हैं कि जैसे ही अवसर मिलेगा, वैसे ही सचिन पायलट भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो जायेंगे। यह भी माना जाता है कि भाजपा की रणनीति के अनुसार यदि चुनाव से पहले या चुनाव के बाद पायलट ने भाजपा ज्वाइन की, तो अभी तो नहीं, लेकिन अगले चुनाव के बाद उनको सीएम बनाया जा सकता है। हालांकि, यह भी कहा जाता है कि राजस्थान में जिस तरह से 1990 से अब तक एक बार भाजपा एक बार कांग्रेस की सरकारें बनती आ रही हैं, उसके कारण उनका 2028 में भी नंबर नहीं आये, लेकिन ऐसी स्थिति में भी भाजपा के पास दूसरे राज्य का सीएम बनाने का विकल्प खुला है, जिसमें जम्मू कश्मीर के बारे में भी चर्चा होती रहती है। सचिन पायलट कब और किस पार्टी से, किस राज्य से सीएम बनेंगे, यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इतना तय है कि जब तक राजस्थान में अशोक गहलोत हैं, तब तक सचिन पायलट का मुख्यमंत्री बनने का नंबर कतई नहीं आयेगा।
भाजपा में शामिल हुए तो सचिन पायलट बनेंगे मुख्यमंत्री
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