—मुफ्त और बेहतर इलाज के दावे करने वाले राज्य राजस्थान की सरकार के दावों के हकीकत...
राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत चिंरजीवी योजना के तहत 25 लाख रुपये और सरकारी कर्मचारियों के लिए आरजीएचएस के तहत मुफ्त इलाज का दावा करते हुए करोड़ों रुपये के विज्ञापन लगाकर अपना प्रचार कर रहे हैं। किंतु इसकी जमीनी हकिकत जान जायेंगे तो आपके पैरों तले जमीन खिसक जायेगी।
जयपुर में कार्यरत एक महिला कर्मचारी ने अपने पति को बचाने के लिए अपनी जमा पूंजी, शादी के गहने, मकान सब गिरवी रख दिये, लेकिन अभी भी इलाज के लिए पैसे नहीं बन पा रहे हैं। इसकी पूरी कहानी दीपेश चौधरी ने ट्वीटर पर शेयर की है, जिसमें पूरी कहानी बताई गई है। इसके साथ ही सबूत के तौर पर सभी कागजात की फोटोज भी शेयर की हैं।
दीपेश चौधरी ने लिखा है, 'ये अलवर निवासी दिनेश चौधरी एवं अंबिका हैं। इनके विधायक मंत्री टीकाराम जूली एवं सांसद महंत बालकनाथ हैं। कुछ महीने पहले तक दिनेश चौधरी अपनी पढ़ाई में लगे थे, तथा अंबिका मंत्रालयिक कर्मचारी थीं।
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अचानक एक दिन दिनेश की तबियत खराब हो गई, जिसके बाद अस्पताल ले जाने पर डॉक्टरों द्वारा तुरंत जयपुर के SMS अस्पताल में रैफर कर दिया गया।SMS अस्पताल के विशेषज्ञ डॉक्टरो द्वारा बताया जाता है कि दिनेश के फैंफड़े खराब हो चुके हैं, इसका एक ही इलाज है कि फैंफड़ों का ट्रांसप्लांट करवाना पड़ेगा।
उसके बाद डॉक्टर बताते हैं कि इसका इलाज राजस्थान में मौजूद नहीं है, आपको बेंगलुरू में kims अस्पताल में रैफर कर रहे हैं, वहां जाइये।
अंबिका सरकारी कर्मचारी थीं, अतः उन्हें लगा इलाज में दिक्कत नहीं आएगी। परंतु बेंगलुरु जाने के बाद पता लगता है यह इलाज RGHS के दायरे में आता ही नहीं है। पूरे इलाज का खर्च खुद उठाना पड़ेगा। गंभीर सवाल ये उठता है, जब इसका इलाज RGHS में आता ही नहीं तो RGHS के अंतर्गत वहां रैफर किया ही क्यों?
KIMS अस्पताल ने इलाज का मोटा—मोटा खर्चा 1 करोड़ रुपया बताया गया। इसके बाद परिजनों ने सरकारी सहायता की भाग दौड़ शुरू की। स्थानीय विधायक, सांसद, प्रशासन सबके दर दर भटके। जगह—जगह NGO's के चक्कर लगाए, परंतु किसी ने कोई सहायता नहीं की।
अलवर जिला कलेक्टर ने स्पेशल केस बताते हुए कहा कि मुख्यमंत्री ही करवा सकते हैं, CMO जाइये। लेकिन ना मुख्यमंत्री मिले ना CMO वाले अधिकारी मिले। खुद की जमा पूंजी, शादी के गहने, मकान सब गिरवी रखकर बेचकर जो बन पड़ा, उससे दिनेश का लंग्स ट्रांसप्लांट का ऑपरेशन सफल रहा। परंतु अगस्त तक उन्हें डॉक्टरों की निगरानी में उसी अस्पताल में भर्ती रखा गया है।
अंबिका वहीं उनके साथ हैं। RGHS का कुछ लाख का क्लेम भी यह कहकर टाल रखा है कि SMS अस्पताल का बोर्ड बनेगा, उसकी रिपोर्ट के आधार पर कुछ मदद करेंगे। आप सभी से निवेदन है अधिक से अधिक शेयर करें क्योंकि अस्पताल में ट्रांसप्लांट के बाद भी लाखों ₹ खर्च हो रहे हैं और होंगे।'
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इस कहानी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि सरकार की चिंरजीवी योजना का कितना आम मरीजों को लाभ मिलता है और आरजीएचएस के तहत कितना खर्चा मिल रहा है। यह भी पता चलता है कि स्थानीय विधायक, सासंद और कलेक्टर लोगों की कितनी मदद करते हैं। इसके साथ ही सबसे जरूरी चीज पता चलती है कि खुद को संवेदनशील कहने वाले सीएम अशोक गहलोत और उनके अधिकारी कितने अधिक संवेदनशील हैं, जिसके कारण सरकारी कर्मचारी तक को मदद नहीं मिलती है।
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