लाल डायरी में बीजेपी के इन विधायकों के राज भी छुपे हैं!



कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढ़ा द्वारा लाल डायरी को लेकर किए गये दावों के बाद से राज्य की राजनीति में तूफान मचा हुआ है। भाजपा इसको जहां एक मुद्दा बनाना चाहती है तो खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने सीकर की सभा में लाल डायरी को लेकर दिए गये बयान के बाद इसे लेकर चर्चा तेज होती जा रही है। विधानसभा की कार्यवाही 2 अगस्त को फिर से शुरू होगी, लेकिन भाजपा के द्वारा राज्य सरकार के खिलाफ पेपर लीक, लाल डायरी के भ्रष्टाचार और महिला अत्याचार को लेकर सचिवालय घेराव का कार्यक्रम रखा गया है। 


इस मामले को लेकर लाल डायरी को मुद्दा उछलने के बाद से ही भाजपा के कई नेता मुखर हैं, तो कुछ नेता मुखर होने का दिखावा भी कर रहे हैं। भाजपा के बड़े नेता राजेंद्र राठौड़ पर कांग्रेस द्वारा 2 हजार करोड़ की अवैध संपत्ति का आरोप लगाने के बाद राठौड़ बैकफुट पर आ गए हैं तो वसुंधरा राजे की ओर से जो हमला सरकार पर किया जाना चाहिए था, वैसा किया नहीं किया गया है। वसुंधरा राजे का वही रवैया आज भी कायम है, जो बीते साढे चार साल से रहा है। 


वसुंधरा राजे के कैंप को आज भी भरोसा है कि सीएम तो मैडम ही होंगी, लेकिन मोदी और अमित शाह की सियासी चालें बता रही हैं कि उन्होंने साढ़े चार साल पहले वसुंधरा राजे की सरकार जब सत्ता से ​बेदखल हुई थी, तभी तय कर लिया था कि राज्य में पांच साल बाद वसुंधरा राजे को फिर से सीएम नहीं बनाना है। किंतु राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और दो बार राज्य की सीएम रहने के कारण आला नेताओं द्वारा त्वज्जो दिए जाने के कारण वसुंधरा गुट को यही लगता है कि उनको ही सीएम बनाया जायेगा। 


उनके समर्थक भाजपाइयों द्वारा सोशल मीडिया पर कैंपेन भी चलाए जा रहे हैं कि मेडल ही 2013 में 163 सीटें लाई थीं, और इस बार 163 से भी पार ले जायेंगी, लेकिन एक दिन पहले ही आए एक सर्वे ने भाजपा की सरकार बनाने से ज्यादा बहुमत नहीं दिया है, जबकि गहलोत सरकार अभी महिलाओं को मोबाइल बांटना शुरू भी नहीं कर पाई, यदि मोबाइल के कारण असर हुआ तो सीटें और कम हो सकती हैं, लेकिन वसुंधरा खेमे को लगता है जनता में मेडल का क्रेज जोरदार है। हालांकि, इस तरह की गलतफहमी कई नेताओं और उनके समर्थकों को होती है, फिर भी जमीनी सच्चाई को समझकर प्लानिंग करने वाले नेता आगे बढ़ ही जाते हैं। 


लाल डायरी की खबरों के बाद राजेंद्र गुढ़ा के खिलाफ पहले से दायर मुकदमों की कार्यवाही में तेजी आने की खबरें सामने आ रही है। सियासी जानकारों का मानना है कि संभवत: लाल डायरी में ऐसा कुछ तो है, जिसके कारण सरकार के मंत्री और खुद मुख्यमंत्री भी इसको लेकर परेशान हैं। यही वजह है कि मामला बाहर आने से पहले ही नेता डायरी के पन्नों में सबकुछ सैटल कर लेना चाहते हैं। जिस तरह से राजेंद्र गुढ़ा ने कहा है कि सरकार बचाने और राज्यसभा चुनाव के समय किन किन विधायकों को कितना पैसा दिया गया था, इसको हिसाब उनके पास है, उससे यही लग रहा है कि भाजपा के कुछ नेता लाल डायरी की चपेट में आ सकते हैं। असल कारण यह है कि भाजपा से निष्कासित विधायक शोभारानी कुशवाह के लिए भी गुढ़ा ने नाम लेकर कहा है कि उनको पता गहलोत सरकार ने क्रॉस वोटिंग करने के लिए कितने पैसे दिए थे।


अशोक गहलोत की सरकार गिरने से बचने के लिए खुद गुढ़ा समेत सभी 6 बसपा विधायकों ने कांग्रेस ज्वाइन कर ली थी। गहलोत ने खुद धोलपुर की सभा में कहा था कि यदि वसुंधरा राजे, कैलाशचंद मेघवाल और शोभारानी कुशवाह नहीं होती थी उनकी सरकार गिर सकती थी। उसके बाद से ही वसुंधरा राजे कैंप के विधायकों पर भी भाजपा आलाकमान की टेढ़ी नजर बताई जा रही है।


यह कहा जाता है कि जब गहलोत सरकार संकट में थी, तब वसुंधरा राजे कैंप के माने जाने वाले कैलाश चंद मेघवाल, बिहारलाल बिश्नोई, प्रताप सिंह सिंघवी, गोपाल मीणा, हरेंद्र निनामा, गौतम मीणा व कैलाश मीणा, गोपीचंद मीणा, शोभारानी कुशवाह समेत डेढ़ दर्जन विधायकों ने भाजपा से बगावत जैसा कदम उठाया था। बाद में बीजेपी विधायक गोपाल मीणा, हरेंद्र निनामा, गौतम मीणा, गोपीचंद मीणा व कैलाश मीणा व्हिप के बावजूद विधानसभा से गायब हो गये थे। उस समय भाजपा में बहुत बवाल हुआ था और यह कहा गया था कि ये सारे विधायक वसुंधरा राजे के इशारे पर ही सदन से गायब हुए थे। हालांकि, बाद में डैमेज कंट्रोल करते हुए भाजपा ने सफाई दी थी कि कहीं पर गायब नहीं हुए थे, बल्कि सब बोलकर ही बाहर गए थे।


ऐसे में सवाल यह उठता है कि यदि लाल डायरी के जिन राजों की बात राजेंद्र गुढ़ा कर रहे हैं, क्या उनमें वसुंधरा कैंप के राज भी उसमें लिखे हैं। यदि राज गहलोत सरकार बचाने के लिखे गये हैं, तो यह तय बात है कि उस डायरी में वसुंधरा कैंप के लोगों के नाम भी हो सकते हैं। पीएम मोदी ने जोर देकर लाल डायरी का जिक्र किया है, इससे यह भी प्रतीत होता है कि भाजपा इसको लेकर आगामी विधानसभा चुनाव में बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने जा रही है।


इधर, वसुंधरा राजे द्वारा सरकार पर तीखे हमले नहीं किए जाने के कारण भी कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। वसुंधरा राजे जो भी ट्वीट या पोस्ट करती हैं, उसमें उस तरह से तीखे वार नहीं होते हैं, जैसे भाजपा के दूसरे नेता करते हैं, जबकि दो बार सीएम रहने के कारण उनके बयानों का महत्व बढ़ जाता है। वसुंधरा राज के इन कदमों से लोग उनको गहलोत से जोड़कर भी देखते हैं। खुद भाजपा नेता ही चर्चा कर​ते हैं कि यदि वसुंधरा राजे के द्वारा आगे बढ़कर भाजपा को लीड करने, धरना देने, प्रदर्शन करने और आंदोलन का नेतृत्व करने का काम किया जाता तो गहलोत सरकार पर अधिक असर होता। किंतु वसुंधरा की पार्टी के कार्यक्रमों को लेकर दिखाई देने वाली नीरसता भी कई गंभीर सवाल खड़े करती है।


कुछ लोग इसको हनुमान बेनीवाल के उस बयान से जोड़कर देखते हैं, जिसमें बेनीवाल कहते हैं कि गहलोत वसुंधरा एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं, दोनों एक ही सिक्के दो पहलू हैं। दोनों मिलकर एक दूसरे की सरकार बनाते हैं और बचाने का काम भी करते हैं। कहा तो यहां तक जाता है कि बेनीवाल जब गठबंधन में थे, तब उन्होंने वसुंधरा की शिकायत अमित शाह से भी की थी। गहलोत ने जब से कहा कि वसुंधरा राजे की वजह से उनकी सरकार बची है, तब से भाजपा के भी कई नेता राजे की उपर शिकायत कर चुके हैं। इसलिए लाल डायरी के पन्ने जब खुलेंगे, तब यदि कांग्रेस के नेता यदि उसमें फंसेंगे तो यह तय बात है कि भाजपा के भी कई बड़े नेताओं का नाम उसमें होगा। शायद यही कारण है कि पेपर लीक, महिला अत्याचार और भ्रष्टाचार को लेकर मुखर रहने वाले कई भाजपा नेता लाल डायरी के बाद बयानों में मीठापन ला चुके हैं। 

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