कुछ समय पहले अचानक राजस्थान भाजपा अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां की जगह चित्तौडगढ़ सांसद सीपी जोशी को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया था, तब कुछ लोग ये दावे कर रहे थे कि करीब सवा तीन साल से भाजपा में जारी गुटबाजी खत्म हो जायेगी और वसुंधरा राजे संगठन के साथ मिलकर चुनाव की तैयारी कर भाजपा को फिर से सत्ता में लाने का प्रयास करेंगी, लेकिन वास्तव में देखा जाये तो ऐसा कुछ नहीं हुआ।
इसके उलट सतीश पूनियां के अध्यक्ष रहते भाजपा ने जो संगठनात्मक भीड़ जुटाई थी, वो कुछ ही महीनों में रफूचक्कर हो गई। सतीश पूनियां की जगह अध्यक्ष बने सीपी जोशी ने अब तक एक प्रदर्शन किया, जिसमें भी राज्यसभा सांसद डॉ. किरोड़ीलाल मीणा ने भीड़ जुटाई थी। कांग्रेस ने तो बकायदा सोशल मीडिया पर यह अभियान भी चलाया था कि भाजपा के प्रदर्शन में लोगों से ज्यादा पुलिस वाले थे। यदि डॉ. मीणा ने अपने कार्यकर्ता नहीं बुलाए होते तो भाजपा की बुरी तरह से फजीहत होने वाली थी।
भाजपा के नेताओं ने अंदरखाने इस बात के लिए किरोड़ीलाल मीणा को धन्यवाद भी दिया था।
राजेंद्र राठौड़ को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया तो उन्होंने प्रदेश के कई जिलों में सभाएं कर अपनी ताकत दिखाने का प्रयास किया, लेकिन संगठन को एकजुट करने की उनकी भी पार नहीं पड़ी। भाजपा का कार्यकर्ता जैसे सतीश पूनियां के हटाये जाने से निराश हो गया। परिणाम यह हुआ कि भाजपा ने धरने, प्रदर्शन और आंदोलन का विचार छोड़कर सोशल मीडिया पर ही कैंपेन शुरू कर दिया। कुछ ही दिनों में संगठन बिखराव के हालात इस कदर खराब हो गये कि थक हारकर भाजपा को अब फिर से अपने बैनर—पोस्टर्स में सतीश पूनियां को स्थान देकर भीड़ जुटाने का प्रयास शुरू कर दिया है।
इसके साथ ही बीजेपी लीडरशिप आगामी विधानसभा चुनाव के लिए नई रणनीति तैयार करने पर विचार कर रही है।
भगवा पार्टी को परेशान करने वाली बात यह है कि सतीश पूनियां की जगह सीपी जोशी को अध्यक्ष बनाने से लेकर अब तक उसके अब तक के सभी फैसले प्रतिकूल रहे हैं। भाजपा
सूत्रों की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य में संगठनात्मक फेरबदल करवाने वाले नेताओं से बेहद नाराज हैं। बीजेपी प्रदेश इकाई के नेतृत्व में बदलाव से पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ। सीपी जोशी को भाजपा की राज्य इकाई का अध्यक्ष इसलिए नियुक्त किया गया था, ताकि इससे पार्टी में जारी गुटबाजी समाप्त हो जायेगी, किंतु जोशी कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर सके। मोटे तौर पर सीपी जोशी को कुछ ही महीनों में विफल मान लिया गया है।
हालांकि, अध्यक्ष बदलने के बाद भी भाजपा में सीएम पद के लिए आधा दर्जन से ज्यादा दावेदारों के बीच खींचतान अब भी जारी है। सियासी गलियारों में चर्चा है कि इस सारी गणित के पीछे प्रदेश संगठन मंत्री चंद्रशेखर की पर्दे के पीछे की रणनीति जिम्मेदार हैं, जो संगठन को अपनी उंगलियों पर नचाना चाहते हैं। हालात ये हो गये हैं कि अब तो प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह खुद ही झगड़े में शामिल हो गये हैं। इसके चलते पीएम मोदी अब राजस्थान का मामला खुद संभाल रहे हैं, लेकिन उसके बावजूद वसुंधरा खेमे के बागी तेवरों के कारण अभी कोई सुधार नहीं हुआ है। पीएम मोदी लगातार राजस्थान का दौरा कर रहे हैं और राज्य के लिए विभिन्न रियायतों की घोषणा कर रहे हैं।
पीएम मोदी इसी सिलसिले में 27 जुलाई को सीकर में एक सार्वजनिक रैली को संबोधित करने वाले हैं, जहां वह किसानों के लिए बड़े पैकेज की घोषणा करेंगे। इससे पहले एक राष्ट्रीय सड़क परियोजना जनता को समर्पित करने के लिए मोदी इसी महीने बीकानेर आए थे। वास्तव में देखा जाये तो पीएम मोदी राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत के कल्याणकारी कार्यक्रमों के जवाब में केंद्र सरकार की योजनाओं का प्रदर्शन करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन भाजपा नेता आपस में ही बंटे हुए हैं, ये नेता केंद्र की योजनाओं से अवगत कराने के लिए जनता तक नहीं पहुंच रहे हैं।
धड़ों में बंटी राजस्थान बीजेपी में जबरदस्त गुटबाजी है। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे इसका बड़ा पावर सेंटर हैं, जिसके कारण राजे के वफादारों का दावा है कि वह आगामी चुनाव में पार्टी का सीएम चेहरा बनने जा रही हैं।
इसके साथ ही लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला भी सीएम पद के प्रबल दावेदार बनकर उभर रहे हैं। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत पहले ही इस रेस में शामिल होते दिख रहे हैं। कहा जाता है कि इससे पहले बीजेपी नेतृत्व 2018 में शेखावत को सीएम उम्मीदवार के रूप में पेश करना चाहता था, लेकिन राजे ने उनकी संभावनाएं खराब कर दी थीं। इसी तरह से नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ और केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल भी सीएम की कुर्सी की चाह में आस लगाए बैठे हैं। सियासी अटकलों के मुताबिक पार्टी में तीखी खींचतान के बीच रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव भी सीएम पद के एक आश्चर्यजनक उम्मीदवार हो सकते हैं।
दरअसल, ये सभी नेता 2018 में वसुंधरा राजे सरकार की हार के बाद से ही महत्वाकांक्षा पालने लगे थे। इनका मानना था कि बीजेपी नेतृत्व वसुंधरा राजे को दोबारा मौका नहीं देगी और उनका नंबर लग सकता है। जब शीर्ष नेतृत्व ने राजस्थान में बीजेपी प्रमुख के रूप में सतीश पूनियां को नियुक्त किया तो इसे एक शुभ संकेत के रूप में देखा गया कि नए चेहरों को बड़ी भूमिकाएं दी जाएंगी। असल में संगठन के हिसाब से डॉ. पूनिया काफी सक्रिय थे। पिछले चार वर्षों में वसुंधरा राजे समेत अधिकांश सहकर्मियों के असहयोग के बावजूद उन्होंने धरातल पर कड़ी मेहनत की। उन्होंने पार्टी को दो दशक बाद वसुंधरा राजे के मायाजाल से बाहर निकालने के काम बखूबी किया। इसके चलते भाजपा नेतृत्व ने सतीश पूनिया को आश्वासन दिया कि चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा जाएगा, लेकिन अचानक नेतृत्व ने फेरबदल कर दिया।
सतीश पूनियां को हटाकर सांसद सीपी जोशी को प्रदेश अध्यक्ष पद दिया गया, तो काफी समय से बदलाव की उम्मीद लगाये बैठे कार्यकर्ताओं में भी मानो निराशा छा गई। राजेंद्र राठौड़ को नेता प्रतिपक्ष नियुक्त किया गया, जिसे इस संकेत के रूप में देखा गया कि राजे को मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में आगे नहीं बढ़ाया जाएगा। इससे भी अधिक आश्चर्यजनक बात यह थी कि सतीश पूनिया को विधानसभा में उपनेता का पद दिया गया था, जबकि उन्होंने चार साल तक पार्टी का नेतृत्व किया था। कुछ ही समय बाद उनको राष्ट्रीय कार्य समिति का सदस्य बनाकर नेशनल लेवल का नेता स्वीकार किया गया।
भाजपा सूत्रों का कहना है कि सीएम पद के दावेदारों ने राजस्थान में पार्टी में बदलाव के लिए पीएम मोदी तक पर दबाव बनाया गया था। उन्होंने तर्क दिया कि नेतृत्व परिवर्तन से पार्टी एकजुट होगी। नतीजा यह हुआ कि पीएम ने प्रदेश अध्यक्ष बदलने का फैसला ले लिया। राजनीतिक रूप से दूसरों की तुलना में कम अनुभवी सीपी जोशी कोई खास प्रदर्शन नहीं कर सके।
जब नेता पीएम मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा के मंच से बोलते हैं तो एकता की वकालत करते हैं, लेकिन जैसे ही ये राज्य छोड़ते हैं, स्थिति फिर से एक जैसी हो जाती है। गुटबाजी के कारण अजमेर में पीएम मोदी की रैली में भीड़ प्रभावशाली नहीं रही।
इसके बाद अर्जुन मेघवाल बीकानेर रैली के लिए भीड़ खींचने में सफल रहे। अब मोदी 27 जुलाई को सीकर में रैली को संबोधित करेंगे। इस रैली की योजना पहले नागौर में बनाई गई थी। इस रैली पर सभी की निगाहें होंगी, क्योंकि यह जाट बहुल क्षेत्र में हो रही है, जहां कांग्रेस का जबरदस्त दबदबा है। बीजेपी की रणनीति पीएम मोदी के करिश्मे पर फोकस करने की है। इसके लिए अन्य वरिष्ठ नेताओं को क्षेत्रवार जिम्मेदारियां दी जाएंगी। इस समय चुनाव सिर पर हैं और भाजपा इस बार कांग्रेस से राजस्थान छीनने को बेताब है।
इसके लिए पार्टी की दिल्ली में मीटिंग्स का दौर चल रहा है। राज्य में संगठन में बदलाव का मामला लंबे समय से चल रहा है। अरूण सिंह से लेकर चंद्रशेखर तक को बदलने की खबरें बार बार आती हैं, लेकिन संगठन में वसुंधरा राजे कैंप की नाराजगी के कारण कई बदलाव अटके हुए हैं। अब पीएम मोदी ने खुद अपने हाथ में सारा मामला ले लिया है, इसलिए यह माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में बीजेपी में और भी संगठनात्मक बदलाव हो सकते हैं।
संगठन की विफलता और गुटबाजी के कारण अब भाजपा आलाकमान ने दिल्ली से निर्देश देने शुरू कर दिए हैं।
इसी सिलसिले में प्रदेश संगठन को लाल डायरी, भ्रष्टाचार और आरपीएससी घोटालों को लेकर एक अगस्त को बड़ा आंदोलन के निर्देश दिए गये हैं। इस बार यह भी कहा गया है कि यदि पिछले प्रदर्शन की तरह भीड़ नहीं जुटाई गई तो कई पदाधिकारियों पर गाज गिर सकती है। प्रदेश संगठन मंत्री चंद्रशेखर को लेकर कई शिकायतें दिल्ली पहुंची चुकी हैं। यह भी आरोप लगाया जाता है कि पहले सतीश पूनियां के संगठन में अपने हिसाब से कई निष्क्रिय लोगों की नियुक्तियां कीं और अब सीपी जोशी की कार्यकारिणी में भी चंद्रशेखर दखलअंदाजी कर रहे हैं, जिसके कारण जमीनी कार्यकर्ता दूर हो रहे हैं।
दरअसल, जब राज्य में वसुंधरा राजे की सरकार का आखिरी साल चल रहा था, तब भाजपा ने संगठन मंत्री बदला था। तब यह कहा जा रहा था कि चंद्रशेखर के रूप में निष्पक्ष काम करने वाला लीडर होगा, लेकिन कुछ समय बाद ही चंद्रशेखर पर भी वसुंधरा सरकार से लाभ लेने के आरोप लगने लगे थे। इसके बाद जब वसुंधरा राजे की मर्जी के खिलाफ पार्टी ने सतीश पूनियां को अध्यक्ष बनाया, तब चंद्रशेखर ने संगठन को अपने कब्जे में रखने की भरपूर कोशिश की।
उस दौरान नरम मिजाज सतीश पूनियां के भोलेपन का फायदा उठाते हुए चंद्रशेखर ने कई ऐसे पदाधिकारी नियुक्त कर दिए, जो जमीनी स्तर पर कठोर परिश्रम करने वाले थे, उनको जगह नहीं दी गई, बल्कि जिनकी व्यवस्था थी, उनको पदाधिकारी बनाया गया। एक बार फिर संगठन में व्यवस्था वाले लोगों को जगह दी जा रही है। कुछ पदाधिकारी तो ऐसे हैं, जो संगठन के नाम पर अपना कारोबार कर रहे हैं, बरसों से संगठन में मंत्री, महामंत्री बने बैठे हैं और जयपुर से बाहर के जिलों में अपने क्षेत्र में पार्टी के नाम से काले कारनामे तक कर रहे हैं। कुछ पदाधिकारी तो ऐसे भी हैं, जो अपने क्षेत्र में सरपंच का चुनाव तक नहीं जीत पाये, लेकिन संगठन में महामंत्री तक बने हुए हैं, जबकि अध्यक्ष बनने का सपना भी पाले बैठै हैं।
यह बात और है कि उनका कहीं पर कोई जनाधार तक नहीं हैं।
यही वजह है कि वसुंधरा राजे युग के बाद सतीश पूनियां जैसे मेहनती लोग आगे आए तो इसी तरह के निकम्मे लोगों ने मिलकर सतीश पूनियां को हटाने और दूसरा अध्यक्ष बनाकर गुटबाजी खत्म करने की वकालत की थी। आलाकमान ने अध्यक्ष बदल दिया, लेकिन इसके साथ ही संगठन एक बार फिर से रसातल में जाता दिखाई दे रहा है। फिर भी सत्ता करीब देख ये लोग फिर से संगठन पर कब्जा जमाना चाहते हैं, किंतु इन लोगों के कहने से चार लोगों की भीड़ नहीं आती। ऐसे में इन्होंने अध्यक्ष सीपी जोशी को विफल करने का भी प्लान बना लिया है।
हो सकता है आने वाले समय में ये लोग एक बार फिर से संगठन पर हावी हो जायें और मोदी के चेहरे पर सत्ता मिल भी जाए, लेकिन संगठन के लिए फिर से अरुण चतुर्वेदी और अशोक परनामी वाला कमजोर दौर शुरू हो जायेगा, जिसके कारण पांच साल बाद फिर से सत्ता कांग्रेस को मिलेगी। भाजपा को चाहिए कि जब सतीश पूनियां को अध्यक्ष बनाकर संगठन को वसुंधरा राज से मुक्त कर ही लिया है, तो पार्टी अध्यक्ष कम से कम ऐसे व्यक्ति को बनाया जाना चाहिये, जो कुर्सी संभालकर संगठन सर्वोपरि का संदेश हमेशा के लिए पुख्ता कर सके।
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