यूसीसी से राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना के बाद लोकसभा भी जीतेगी भाजपा?



राजस्थान में नई सरकार गठन में केवल साढ़े पांच महीने का समय बचा है। इस दौरान वर्तमान सरकार को काम भी करना है, चुनाव आयोग को आचार संहिता भी लगानी है, मतदान भी करवाने हैं और उसका परिणाम भी जारी करना है। इसी समय में नई सरकार के मुखिया का नाम तय कर उसको शपथ भी दिलाने का काम भी किया जायेगा। यानी मोटे तौर पर देखा जाये सबकुछ इन साढ़े पांच महीनों में ही पूरा करना है। वर्तमान सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम बने सचिन पायलट ने 17 दिसंबर 2018 को अपने अपने पद की शपथ ली थी। लगभग इसी तरह से कुछ सियासी ड्रामेबाजी के बाद मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। हालांकि, कई कांग्रेसी विधायकों के इस्तीफों के कारण मध्य प्रदेश की सरकार डेढ साल में ही गिर गई थी।


अब एक बार फिर से इन तीनों राज्यों में चुनाव की तैयारी शुरू हो चुकी है। भाजपा की ओर से तैयारियां जोरों पर चल रही हैं। 29 जून को पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा भरतपुर में थे, 30 को गृहमंत्री अमित शाह उदयपुर में रहे और 7 जुलाई को खुद पीएम मोदी बीकानेर दौरे पर हैं। यानी सभी तैयारी भाजपा का आलाकमान ही कर रहा है। राज्य की ईकाई जिस तरह की नींद में है, वह अपने आप में घोर आश्चर्य का विषय है। जब से राजस्थान भाजपा का अध्यक्ष बदला गया है, तब से भाजपा संगठन बिखरा हुआ सा दिखाई दे रहा है। पार्टी के पदाधिकारी और कार्यकर्ता निराशा और हताश दिखने लगे हैं। डॉ. सतीश पूनियां की जगह सीपी जोशी अध्यक्ष बनने के बाद भाजपा केवल एक प्रदर्शन कर पाई है, जिसमें भी लोग नहीं होने पर पूरा प्रदर्शन हंसी का पात्र बनकर रह गया था।


राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने महंगाई राहत शिविरों के नाम पर जनता को फ्री घोषणाओं का खजाना दे दिया है, हालांकि इस घोषणा खजाने के कारण सरकार का खजाना पूरी तरह से खाली हो चुका है। राजस्थान सरकार पर आज की तारीख में पौने छह लाख करोड़ रुपये का कर्जा है। आरबीआई के द्वारा आए दिन राजस्थान सरकार को बॉण्ड जारी करने पड़ रहे हैं। सरकार आए दिन कोई ना कोई सरकारी संपत्ति आरबीआई को गिरवी रख रही है। हालांकि, इसके उपर फिर कभी अलग से वीडियो बनाकर डिटेल से बताने का प्रयास करूंगा।


इसी तरह से मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह सत्ता रिपीट कराने के लिए पूरी ताकत से लगे हुए हैं। एमपी में शिवराज सिंह के साथ इस बार सीएम की रेस में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी होंगे। सिंधिया पिछली बार कांग्रेस के खेमे से सीएम उम्मीदवारी में थे, लेकिन चुनाव परिणाम के बाद वह कमलनाथ से पिछड गये और फिर उन्होंने भाजपा ज्वाइन करके केंद्र में मंत्री बन गये थे। हालांकि, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के लिए राहत की खबर हो सकती है, लेकिन टीएस सिंहदेव के डिप्टी सीएम बनने पर भी कांग्रेस की मुश्किलें कम नहीं हो पाई हैं। तेलंगाना में इस समय बीआरएस के केसीआर सीएम हैं और वह पीएम पद की दावेदारी भी जता रहे हैं। इसलिये 8 दिसंबर 2022 को उन्होंने अपनी पार्टी का नाम टीआरएस से बीआरएस कर लिया था। 


अब सवाल यह उठता है कि क्या भाजपा इन चार राज्यों में कांग्रेस और अन्य दलों से मुकाबला कर पायेगी? क्योंकि राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में सरकारों ने फ्री घोषणाओं के लिये खजाना खाली कर दिया है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सरकारों ने ओपीएस बहाल करके बड़ा दांव खेला है। इसके साथ ही फ्री की योजनाओं ने भी जनता में माहौल बना दिया है। इसी वजह से भाजपा खुद सकते में है। पार्टी की राज्य इकाइयों के पास इसका कोई तोड़ नहीं सूझ रहा है। अधिकांश सरकारी कर्मचारी अभी से कांग्रेस सरकार लाने के लिए जुटते दिखाई दे रहे हैं। पिछले चुनाव में किसान झांसे में आकर तीन राज्यों में भाजपा को सत्ता से बाहर कर चुके हैं, तो इस बार कांग्रेस द्वारा ओपीएस जैसा आर्थिक बर्बादी का खतरनाक हथियार फैंका ​गया है। 


भाजपा के नेताओं के पास इनका कोई जवाब नहीं है। भले ही भारत बीते 9 साल में अर्थव्यस्था के स्तर पर दुनिया 11वें नंबर से 5वें नंबर पर पहुंच गया हो, लेकिन यह बात जनता के गले ​तब उतरेगी, जब जनता को इसका सीधा लाभ जेब में होगा। भारत में आज भी अधिकांश लोग अपना हित देखते हैं, उनके लिये देश का हित बाद में ही रहता है। इस वजह से ओपीएस और बिजली, पानी, टिफिन जैसी फ्री घोषणाओं के दम पर सरकारें चुनाव जीत जाती हैं। 


इसी कारण मोदी सरकार ने इन सबका तोड़ निकालते हुए समान नागरिक संहिता के नाम से बीते चार साल का सबसे बड़ा हथियार बाहर निकाल लिया है। समान नागरिक संहिता वैसे तो भाजपा के मूल ऐजेंडे में हमेशा रहा है, लेकिन इसको लागू करने के लिए संसद के दोनों सदनों में बहुमत होना जरुरी था। एनडीए के पास इस समय लोकसभा में तो पूर्ण बहुमत है, लेकिन राज्यसभा में बहुमत जुटाना कठिन है।  लेकिन फिर भी माना जा रहा है कि जैसे गृहमंत्री अमित शाह ने अपने कौशल से धारा 370, तीन तलाक और नागरिकता संसोधन कानून पास करवाया गया था, उसी तरह से यूसीसी को भी संसद से पास करवा लिया जायेगा।


समान नागरिक संहिता का लागू करने के लिए पहले संसद में कानून बनेगा और उसके बाद उसको धरातल पर उतारा जायेगा। लेकिन उससे पहले उत्तराखंड़ में लागू हो सकता है। इसके लिए उत्तराखंड सरकार को कमेटी की सिफारिशें मिल चुकी हैं, वह जल्द ही इसको लागू करने जा रही है। यदि ऐसा हुआ तो उत्तराखंड देश का दूसरा राज्य होगा जो यूसीसी लागू करने जा रहा है। इससे पहले गोवा में 1961 से ही यूसीसी लागू है।


गुजरात और मध्य प्रदेश सरकार ने भी रिटायर जजों की कमेटी बना रखी हैं, जिनकी सिफारिशें मिलनी बा​की हैं। हालांकि, उससे पहले ही भारत सरकार ने यूसीसी का कानून बनाने की तरफ कदम बढ़ा दिये हैं। देश के सभी नागरिकों से 15 जुलाई तक सुझाव मांगे गये हैं। बताया जाता है कि अब तक करीब 12 लाख से अधिक सुझाव मिल चुके हैं। माना जा रहा है कि मानसून सत्र में ही ​इसका बिल संसद में पेश किया जायेगा, जिसे पास कराकर कानून बना दिया जायेगा, यानी देश में यूसीसी लागू किया जायेगा। इससे पहले फ्रांस, अमेरिका, इटली, सऊदी अरब, तुर्की, पाकिस्तान, मिस्र, मलेशिया, नाइजीरिया, आयरलैंड, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, सूडान, इजरायल, जापान और रूस जैसे कई देशों में समान नागरिक संहिता लागू है। इन देशों में सभी धर्म के लोगों के लिए एक समान कानून होता है।


भाजपा के घोषणा पत्र में राम मंदिर, धारा 370, तीन तलाक और यूसीसी जैसे मुद्दे हमेशा रहे हैं। मोदी की दूसरी सरकार ने अपने शुरुआती 6 महीने में तीन मामलों को निपटा दिया था, लेकिन किसान आंदोलन के कारण यूसीसी की तरफ कदम नहीं बढ़ा पाई। अब सरकार इस दिशा में आगे बढ़ रही है। कई बार यह चर्चा भी निकलकर सामने आती है कि मोदी सरकार आम चुनाव भी दिसंबर में तीन राज्यो के साथ कराने का मन बना रही है। किंतु ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है। क्योंकि यदि ऐसा होता तो सरकार चुनावी मोड में आ चुकी होती। 


अब सवाल यह उठता है कि क्या भाजपा यूसीसी से ही चार राज्यों और लोकसभा का चुनाव जीत जायेगी? आपको याद होगा साल 2019 में जब पुलवामा हमला हुआ था और सरकार ने तुरंत प्रभाव से पाकिस्तान में घुसकर एयर ​स्ट्राइक की थी? दरअसल, देश में एक ऐसा मुद्दा, जो बड़े जनमानस को प्रभावित करता है, उसके सहारे चुनाव जीता जाता रहा है और जीता जा सकता है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी को 400 से ज्यादा सीटें मिली थीं। सवाल यह उठता है कि इंदिरा गांधी के निधन से क्या कोई विकास की गंगा बह गई थी, नहीं? किंतु देश की भावनाएं कांग्रेस और राजीव गांधी के पक्ष में चल गईं और प्रंचड बहुमत की सरकार बनी।


इसी तरह से पुलवामा हमले के बाद सेना ने पाकिस्तानी आतंकी कैंप तबाह किये, लेकिन इस हमले के बाद और एयर स्ट्राइक से जनता का पूरा मूड एकदम से बदल गया, जिसका भाजपा को फायदा हुआ। उससे पहले 2014 में मोदी लहर इसलिये चली कि यूपीए के शासनकाल में घोटालों के रिकॉर्ड बने और जनता को लगा कि मोदी आयेंगे और चमत्कार करेंगे, जिससे भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा। यह बात सही है कि सरकार के स्तर पर भ्रष्टाचार के मामले नहीं आये हैं, लेकिन अधिकारी तो भ्रष्टाचार कर ही रहे हैं। आमतौर पर यही माना जाता है कि मुस्लिम कभी भाजपा को वोट नहीं देते, हिंदू ही भाजपा के वोटर हैं। समान नागरिक संहिता लागू होने से हिंदूओं को कोई फायदा नहीं होगा, मूसलमानों को ही होगा, लेकिन भावनाएं हिंदूओं की जुड़ी हुई हैं। इसलिये यूसीसी भी वैसा ही भावनात्मक मुद्दा है, जिसके सहारे राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना का चुनाव जीता जा सकता है। 


असल में देखा जाये तो भारत में जनसंख्या नियंत्रण कानून की भी जरुरत है, लेकिन उसको लेकर भाजपा कुछ नहीं बोल रही है आमतौर देखा जाता है कि भारत में जनसंख्या विस्फोट का कारण मूसलमान ही हैं। उत्तराखंड की एक रिपोर्ट बताती है कि बीते 10 साल में हिंदू जहां 16 प्रतिशत बढ़ हैं, वहीं मुस्लिम आबादी 60 फीसदी बढ़ गई है। यही हाल आसाम, पश्चिमी बंगाल, केरल, आंद्रप्रदेश, दिल्ली, जम्मू कश्मीर, बिहार जैसे राज्यों में है। इसका मूल कारण है मूसलमानों को शरियात के अनुसार चार शादी करने और 20 बच्चे पैदा करने का अधिकार। सरकार चाहती तो पहले जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाकर इनको कंट्रोल करने का प्रयास कर सकती थी, लेकिन उसने दूसरा रास्ता अपनाया। 


सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण के बजाए समान नागरिक संहिता पहली लाने का काम किया। सवाल यह उठता है कि इससे जनसंख्या नियंत्रण कैसे होगा। असल बात यह है कि मुस्लिम मर्दों को चार शादी करने का अधिकार होने, 9 साल की लड़की की शादी करने और संपत्ति में महिला को अधिकार नहीं होने के कारण जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। एक कहावत है, सांप को नहीं, सांप की मां को मारना चाहिये। यही मोदी सरकार कर रही है। जनसंख्या पर नियंत्रण करने के लिए बजाये उसके बढ़ने के कारणों पर रोक लगाने का काम कर रही है। एक शादी होगी तो अधिक से अधिक चार बच्चे पैदा होंगे। लडकी की शादी 9 के बजाए 18 साल में होगी तो 20 साल में पहला बच्चा होगा, 9 साल में शादी होने पर अगले 15 साल में तो उसकी बेटी भी बच्चा पैदा करने योग्य हो जाती है। यानी जनसंख्या का जो साइकिल 20—22 साल का होना चाहिये, वो 12—15 साल का हो जाता है। इसको रोकने से रफ्तार कम होगी। 


इसी तरह से एक मर्द के एक औरत होगी तो 4—6 बच्चे होंगे, 20—25 तो नहीं होंगे। अभी एक औरत 4 बच्चे एक के पैदा करती है, चार दूसरे के और चार तीसरे के बच्चे पैदा करती है। ऐसे में यदि समान नागरिक संहिता कानून को ईमानदारी से लागू किया गया तो देश को जनसंख्या नियंत्रण कानून की जरुरत ही नहीं पड़ेगी। यही वजह है कि सरकार ने पहले यूसीसी लागू करने का फैसला किया है। 


इस बड़े कानून से ना केवल चार राज्यों में भाजपा को फायदा होगा, बल्कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में भी इसका लाभ मिलेगा। उपर से जनवरी में राम मंदिर का उद्घाटन हो ही रहा है। जब देश में विकास के नाम पर चुनाव नहीं जीते जाते, तो इन ​दो मुद्दों के सहारे चुनाव जीता जा सकेगा।

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