रामगोपाल जाट
राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने भाई—बहन बताकर राज्य में विधानसभा चुनाव प्रचार की शुरुआत की है। इसके साथ ही केजरीवाल ने कहा है कि पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट वसुंधरा राजे के भ्रष्टाचार की जांच की मांग करते मर गये, लेकिन जांच नहीं करवाई है। उन्होंने आरोप लगाया कि इन दोनों के बीच दोस्ती है, इसलिये जांच नहीं करवाई जा रही है।
इस मौके पर केजरीवाल ने यह भी कहा कि चुनाव से पहले अशोक गहलोत आरोप लगाते थे कि वसुंधरा राजे सरकार में जमकर भ्रष्टाचार हुआ है, लेकिन जब खुद सीएम बने तो कहा कि हम तो भाई बहन हैं, हम कार्यवाही नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि यदि दोस्ती को बढ़ावा देना है तो इनको वोट दे देना और यदि आपको देशभक्ति की राजनीति करनी है तो आम आदमी पार्टी को वोट दे देना है।
प्रश्न यह नहीं है कि अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे भाई बहन हैं या दोस्त हैं, सवाल यह उठता है कि जो बात बीते 15 साल से हनुमान बेनीवाल कह रहे थे कि गहलोत वसुंधरा का गठजोड़ है और ये दोनों एक दूसरे को बचाने का काम करते हैं, तो यह बात बाकी नेताओं को बोलने में 15 साल क्यों लगे? क्या बाकी नेता इन दोनों को पहचानने में लेट हो गय? क्या बाकी नेताओं को डर लगता था कि इनकी बात करेंगे तो उनपर कार्यवाही हो जायेगी? क्या बाकी नेताओं के भी इन दोनों के साथ कोई स्वार्थ छुपे हुए थे? या अन्य दलों के इन बाकी नेताओं को कहने में शर्म महसूस होती थी? अथवा ये बातें भी वैसे केवल आरोप हैं, जैसे राहुल गांधी अशोक गहलोत ने चुनाव से पहले सभी किसानों की कर्जमाफी का वादा किया था, लेकिन सत्ता मिलते ही सबकुछ भूल गये?
दरअसल, पिछले दिनों अप्रैल और मई में पूर्व उपमुख्यमंत्री और पीसीसी के चीफ सचिन पायलट ने जब परोक्ष रुप से कहा कि गहलोत के द्वारा वसुंधरा सरकार की जांच इसलिये नहीं करवाई जा रही है, क्योंकि दोनों का गठबधंन है, दोनों मिले हुये हैं और एक दूसरे की सरकार बचाने का और बनाने का काम करते हैं। पायलट ने ये बातों इशारों में जरुर कही थीं, लेकिन जनता सब जानती है कि पायलट क्या कहना चाहते हैं।
परिणाम यह हुआ कि वसुंधरा राजे नींबू और दूध का उदाहरण देकर एक होने से इनकार करने लगीं तो अशोक गहलोत ने धोलपुर में इस बात को स्वीकार कर लिया कि वसुधंरा राजे ने ही उनकी सरकार बचाई थी। हालांकि, जब मामला उछला तो वह पलट भी गये और कहा कि मीडिया ने उनकी बात को तोड़ मरोड़कर पेश किया है। जबकि वह आज भी आरोप लगाते हैं कि जब सचिन पायलट सरकार गिराने का प्रयास कर रहे थे, तब निर्दलीय विधायकों ने साथ देकर उनकी सरकार बचाई थी। गहलोत यह भी कहते हैं कि इन विधायकों को खरीदने के लिये भाजपा पैसे लेकर बैठी थी, तब भी इन्होंने अपने ईमान से सौदा नहीं किया और उनका साथ दिया।
इस बीच पायलट ने अजमेर आरपीएससी कार्यलय से जयपुर तक की अपनी पांच दिवसीय 125 किलोमीटर की यात्रा के समापन पर 15 मई को जयपुर में आयोजित हुई आमसभा में वादा किया था कि यदि 30 मई तो सरकार ने उनकी तीनों मांगों को नहीं माना तो पूरे प्रदेश में आंदोलन करेंगे। हालांकि, पायलट ने 20 दिन बाद भी आंदोलन शुरू नहीं किया है, जो सवाल जरुर पैदा कर रहा है।
पायलट की तीन मांगों में पहली मांग वसुंधरा राजे सरकार के भ्रष्टाचार की जांच करवाना था। दूसरी मांग आरपीएससी को भंग कर इसकी जगह नई संस्था का गठन करना था। तीसरी मांग यह भी कि जिन लाखों युवाओं का पेपर लीक होने के कारण भविष्य बर्बाद हुआ है, उनको सरकार आर्थिक सहायता दे। सरकार ने एक महीने से उपर होने के बाद भी तीनों मांगों पर कोई विचार नहीं किया है।
दरअसल, 2009 में भाजपा से अलग होने के बाद से ही नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल यह आरोप लगाते आए हैं कि अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे मिले हुए हैं, दोनों एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। बेनीवाल ना भाजपा में हैं ना कांग्रेस में, इसलिये लोगों ने उनके बयान पर उतना गौर नहीं किया, जितना अब किया जा रहा है। कारण यह है कि विपक्षी नेता के आरोप को लोग राजनीतिक आरोप मानकर हल्के में लेते हैं, लेकिन जब यही बात सत्तापक्ष का बहुत ही दिग्गज नेता बोले तो फिर लोगों का ध्यान उस तरफ जाना लाजमी है। और उसका असर भी उन नेताओं पर होता है, जिनपर आरोप लगता है। उससे पहले बेनीवाल के आरोप पर कभी भी वसुंधरा या गहलोत ने कोई रिप्लाई नहीं किया था।
एक तरफ जहां अरविंद केजरीवाल ने गहलोत पर आरोप लगाया है कि पायलट के कहने पर भी वसुंधरा के भ्रष्टाचारों की जांच नहीं करवाई जा रही है, तो दूसरी ओर आम आदमी पार्टी ने सचिन पायलट को अपने साथ लेने और मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव भी दे दिया है। आम आदमी पार्टी की नेता और दिल्ली सरकार ने शिक्षामंत्री आतिशी ने सचिन पायलट को प्रस्ताव देते हुए कहा है कि 'सचिन पायलट जी अगर आप चाहे तो हमारी पार्टी में शामिल हो सकते हैं, हम मिलकर राजस्थान में पूर्ण बहुमत की सरकार बनायेंगे और आपका मुख्यमंत्री बनना लगभलग तय है।'
इसके प्रस्ताव के साथ ही आतिशी ने सचिन पायलट का वो फोटो भी ट्वीट किया है, जो यात्रा के दौरान लिया गया था। इसका मतलब यह है कि सचिन पायलट को सीएम पद के साथ आम आदमी पार्टी ने सीएम बनाने का प्रस्ताव दे दिया है, अब सचिन पायलट को तय करना है कि वो कांग्रेस में रहते हैं, या आम आदमी पार्टी में शामिल होकर सीएम बनने की तैयारी करते हैं?
इधर, केजरीवाल के बयान के भी मायने निकाले जा रहे हैं। लोगों का मानना है कि सचिन पायलट को कांग्रेस सीएम बनायेंगे नहीं, इसलिए उनके जनाधार के सहारे आम आदमी पार्टी राजस्थान में सरकार बनाने का प्रयास कर रही है। यह बात सही है कि सचिन पायलट के आंदोलन के समय को 20 दिन गुजर चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई हलचल नहीं है, जिसके कारण उनका राजनीतिक भविष्य भी अधर में लटक गया है, जबकि भाजपा के नेता पहले ही पायलट को बीजेपी में शामिल होने का प्रस्ताव दे चुके हैं। इस बीच यह भी सुनने में आ रहा था कि पायलट ने पार्टी बना ली है और कभी भी उसकी घोषणा कर सकते हैं, किंतु अभी तक कुछ नहीं हुआ है।
दरअसल, इसका कारण यह है कि अभी राहुल गांधी विदेश यात्रा पर गये हुए हैं और सचिन पायलट उनके वापस लौटने का इंतजार कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि राहुल गांधी 20 तारीख के बाद भारत आयेंगे और पायलट उनसे आखिरी बार मिलकर अपनी बात रखेंगे। उसके बाद ही अपना आगे का रास्ता तय करेंगे।
अब सवाल यह उठता है कि क्या सचिन पायलट आम आदमी पार्टी ज्वाइन कर सकते हैं? देखा जाये तो आम आदमी पार्टी के नेताओं को उनकी सड़कछाप भाषा के लिये जाना जाता है। अरविंद केजरीवाल से लेकर तमाम नेताओं की भाषा पर गौर करेंगे तो पायेंगे कि वो किसी भी तरह की भाषा का इस्तेमाल कर सकते हैं। उनके लिऐ भाषा की मर्यादा, सभ्यता, संस्कृति से अधिक ताल्लुख नहीं है। ये नेता अपने स्वार्थ के लिये झूठे से झूठे वादे भी कर लेते हैं, लेकिन दूसरी ओर सचिन पायलट के मामले में आप देखेंगे तो पायेंगे कि जिस सभ्य और शालीन भाषा का उपयोग सचिन पायलट करते हैं, उस तरह की भाषा राजस्थान ही नहीं, अपितु देश के भी कम ही नेता इस्तेमाल करते हैं।
इसलिये यदि सचिन पायलट आम आदमी पार्टी में शामिल होते हैं, तो उनको अपनी सभ्यता से समझौता करना होगा। उनके समर्थक भी शायद नहीं चाहते होंगे कि पायलट उस तरह की भाषा में बात करें, जैसे आम आदमी पार्टी के नेता करते हैं। यह बात भी सही है कि यदि सचिन पायलट आम आदमी पार्टी में जाते हैं तो उनके जनाधार का लाभ आप को होगा, लेकिन इससे पायलट का कद छोटा हो जायेगा। असल में पायलट के पास भले ही आज कोई पद नहीं हो, लेकिन उनका कद अरविंद केजरीवाल से काफी उंचा है। अगर वह आप ज्वाइन करते हैं तो उनको केजरीवाल के इशारों पर काम करना होगा, मतलब केजरीवाल के अधीन होकर काम करना हेागा।
संभवत: सचिन पायलट भी सीएम पद के लिये केजरीवाल जैसे नेता के अधीन काम करना पसंद नहीं करेंगे। पायलट की खूबी यह है कि वो भले ही सीएम बनने में सफल नहीं हुए हो, लेकिन उन्होंने कभी अपने विरोधियों को भी असभ्य भाषा में जवाब नहीं दिया। यही खूबी उनके समर्थकों को बेहद पसंद आती है और शायद पायलट नहीं चाहेंगे कि उनका जनाधार इसलिये पीछे छूट जाये कि उन्होंने अपने निजी स्वार्थ के लिये अपनी मर्यादित भाषा से समझौता कर लिया।
इस वजह से भले ही आम आदमी पार्टी ने उनको शामिल होने और सीएम बनाने का प्रस्ताव दिया हो, लेकिन वह फिर भी आम आदमी पार्टी ज्वाइन करेंगे, ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है। पायलट जो भी राजनीतिक निर्णय करेंगे, वो राहुल गांधी के भारत लौटने के बाद ही तय होगा, लेकिन इस दौरान उनके समर्थक जरुर थोड़े निराश दिखाई दे रहे हैं। इस निराशा को आशा में बदलने के लिए पायलट को जल्द ही बड़ा फैसला करना होगा।
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