ये वो लड़कियां हैं, जो हिम्मत दिखाकर सामने आ गई हैं, अन्यथा ऐसी कितनी अभागी लड़कियां होंगी, जो आरोपी के द्वारा शोषित की गई होंगी और हमेशा के लिये अपना मुंह बंद कर चुकी होंगी। बीते 12 साल से बृजभूषण भारतीय कुश्ती संघ का अध्यक्ष बना हुआ है।
उसे एक ही सीट से 6 बार लोकसभा चुनाव जीतने का घमंड भी है। उसको इस बात का भी गुमान है कि वह भाजपा ही नहीं, बल्कि जब भाजपा ने टिकट नहीं दिया, तब समाजवादी पार्टी से जीतकर भी संसद पहुंचा था।
बृजभूषण सिंह पर दर्जनों एफआईआर दर्ज हैं, जिनमें गैंगस्टर एक्ट, अपहरण, हत्या, कब्जा करने और दंगे भड़काने के मामले भी दर्ज हैं। इनमें ही एक मुकदमा उसपर अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहाने के दौरान का भी है। यह वह मुकदमा है, जिसके कारण बृजभूषण सिंह उन स्वयंभू हिंदुओं का मसीहा बन गया है, जो बिना सोचे समझे अंधभक्ति करते हैं, या किसी का अंधविरोध करते हैं।
बृजभूषण सिंह पर दर्जनों एफआईआर दर्ज हैं, जिनमें गैंगस्टर एक्ट, अपहरण, हत्या, कब्जा करने और दंगे भड़काने के मामले भी दर्ज हैं। इनमें ही एक मुकदमा उसपर अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहाने के दौरान का भी है। यह वह मुकदमा है, जिसके कारण बृजभूषण सिंह उन स्वयंभू हिंदुओं का मसीहा बन गया है, जो बिना सोचे समझे अंधभक्ति करते हैं, या किसी का अंधविरोध करते हैं।
बृजभूषण सिंह पर कितने मामले दर्ज हैं?
क्या कोई व्यक्ति इसलिये देवता बन जाता है कि उसपर राम मंदिर आंदोलन का केस दर्ज है? दरअसल, उस दौरान कुछ ऐसे लोगों पर भी मुकदमे दर्ज किये गये थे, जो बाबरी मस्जिद को गिराने में थे ही नहीं, बल्कि अन्य किसी कारण से उन पर मुकदमे हो गये थे।
कुछ के ऊपर राजनीतिक विद्वेष के कारण मामले दर्ज किये गये थे। क्या इसी आधार पर बृजभूषण देवता बन जाता है कि उसपर राम मंदिर बाबरी मस्जिद मामले का मुकदमा दर्ज हुआ था? या फिर जिस तरह से अयोध्या और हरिद्वार के कुछ स्वयंभू हिंदू संत उसके पक्ष में खड़े हैं, उसके पीछे मासिक वेतन का कारण तो नहीं है?
दरअसल, देश में आज भी कई जगह पर अपराधी किस्म के लोगों द्वारा अपना जनपक्ष लेने के लिये कई स्वयंभू साधु—संतों और गरीब लोगों की मासिक तौर पर सहायता के नाम पर धन मुहैया करवाया जाता है।
आपको ध्यान होगा कई राज्यों में धर्मांतरण कराने वालों द्वारा गरीब हिंदुओं को मासिक धन देकर उनका धर्म बदलवाया जाता है। क्या इसका मतलब यह हो जाता है कि वो धर्मान्तरण करवाने वाले लोग देवता हैं? क्या उनके पक्ष में गरीबों की लॉबी खड़ी हो जाये तो धर्मान्तरण को जायज ठहराया जा सकता है?
आपको ध्यान होगा कई राज्यों में धर्मांतरण कराने वालों द्वारा गरीब हिंदुओं को मासिक धन देकर उनका धर्म बदलवाया जाता है। क्या इसका मतलब यह हो जाता है कि वो धर्मान्तरण करवाने वाले लोग देवता हैं? क्या उनके पक्ष में गरीबों की लॉबी खड़ी हो जाये तो धर्मान्तरण को जायज ठहराया जा सकता है?
ठीक इसी तरह से धर्म के नाम पर धंधा करने वाले कई ठेकेदार तो बकायदा नेताओं और माफिया द्वारा पोषित होते हैं, और जब उन नेताओं और माफिया पर किसी तरह का संकट आता है, तो वो लोग धर्म की आड़ लेकर बचने का प्रयास करते हैं। कहा जा रहा है कि अयोध्या के जिन कथित संतों ने बृजभूषण सिंह का पक्ष लिया है, उनका पोषण करने का काम यही करता है।
विधानसभा में एक बार योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि समाजवादी पार्टी द्वारा पोषित माफिया को मिट्टी में मिलाने का काम करेंगे। ठीक इसी तरह यदि बृजभूषण द्वारा पोषित स्वयंभू संत आज उसके साथ खड़े हैं, तो क्या वो सम्पूर्ण हिंदुओं के संत हो गये? और महिला पहलवान हिंदू नहीं हैं?
इसी वजह से अयोध्या में जब बृजभूषण ने संत समागम के नाम पर अपनी धार्मिक ताकत दिखाने का प्रयास किया, तब हजारों की संख्या में भगवे का सहारा लेकर धर्म के नाम पर धंधा करने वाले तथाकथित संत एक आरोपी के साथ खड़े दिखाई देने लगे। यहां तक कि सोशल मीडिया पर ये ही स्वयंभू संत महिला खिलाड़ियों पर प्रश्न उठाकर उल्टा उनपर ही लांछन लगा रहे हैं।
मजेदार बात देखिये, जब खिलाड़ियों ने ऐलान किया कि उनके साथ न्याय नहीं हो रहा है, इसलिये वो अपने मेडल गंगा में बहा देंगे, तब वहां के कुछ हरिद्वार के पंडे सामने आ गये, और बोलने लगे कि मेडल से गंगा को अपवित्र नहीं होने देंगे।
मजेदार बात देखिये, जब खिलाड़ियों ने ऐलान किया कि उनके साथ न्याय नहीं हो रहा है, इसलिये वो अपने मेडल गंगा में बहा देंगे, तब वहां के कुछ हरिद्वार के पंडे सामने आ गये, और बोलने लगे कि मेडल से गंगा को अपवित्र नहीं होने देंगे।
अब इन मूर्खों को कौन समझाए कि एक मेडल पाने के लिये बरसों की तपस्या लगती है, अपने पवित्र रक्त को पानी तरह तरह बहाना पड़ता है, परिजनों की कठोर मेहनत और लाखों—करोड़ों रुपये खर्च होते हैं, तब जाकर एक मेडल जीत पाते हैं, यदि ये मेडल ही अपवित्र हैं तो फिर संसार में ऐसी कोई वस्तु नहीं, जो पवित्र होगी। दूसरी बात यह है कि इसी गंगा नदी में ये ही पंडे दिनभर फेंके हुए सिक्के चुनते हैं, तब गंगा अपवित्र नहीं होती?
चंद सिक्कों के लिये अपना सब कुछ दांव पर लगाने वाले पंडे जब खिलाडियों के खिलाफ खड़े मिले, तब समझ आ गया कि बृजभूषण ने धर्म के नाम पर अपनी जड़ें कितनी गहरी जमा रखी हैं। तीसरी बात यह है कि इसी गंगा में इन्हीं पड़ों की अनुमति से लाशों को बहा दिया जाता है, तब गंगा अपवित्र नहीं होती है? जब इसी गंगा में इन्हीं पड़ों द्वारा अपना मल मूत्र नलों—नालियों के माध्यम से बहाया जाता है, तब गंगा अपवित्र होती है या पवित्र ही रह जाती है?
कई दशकों से इन पंड़ों ने गंगा में संसार की सबसे गंदी चीजें बहाई हैं और जब पवित्र मेडल बहाने का समय आता है, तब इन स्वार्थियों की आंखें खुलती हैं कि मेडल से गंगा अपवित्र हो जायेगी। इन्होंने कहा कि गंगा को राजनीति का अखाड़ा नहीं बनने देंगे, तब सवाल यह उठता है कि जब पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर तमाम नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिये इसी गंगा में डुबकी लगाते हैं, तब गंगा पवित्र होती है या अपवित्र?
कई दशकों से इन पंड़ों ने गंगा में संसार की सबसे गंदी चीजें बहाई हैं और जब पवित्र मेडल बहाने का समय आता है, तब इन स्वार्थियों की आंखें खुलती हैं कि मेडल से गंगा अपवित्र हो जायेगी। इन्होंने कहा कि गंगा को राजनीति का अखाड़ा नहीं बनने देंगे, तब सवाल यह उठता है कि जब पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर तमाम नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिये इसी गंगा में डुबकी लगाते हैं, तब गंगा पवित्र होती है या अपवित्र?
यदि नेताओं के द्वारा अपने पाप धोने के लिये गंगा को दुरुपयोग किया जाता है, तब गंगा गंदी नहीं होती है, तब कठोर तपस्या से कमाये मेडल बहाने से गंगा कैसे अपवित्र हो सकती है?
सरकार और प्रशासन की कमी यह रही है कि पहलवानों द्वारा आरोप लगाने के बाद भी उनकी एफआईआर दर्ज नहीं की गई, उनको न्याय पाने के लिये सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ा, तब मुकदमा दर्ज किया गया। इसके बाद सवाल यह उठा कि जब मेडल जीतने पर पीएम मोदी इन खिलाड़ियों को अपने घर बुलाते हैं, तब उनकी समस्या सुनने का समय क्यों नहीं देते हैं?
सरकार और प्रशासन की कमी यह रही है कि पहलवानों द्वारा आरोप लगाने के बाद भी उनकी एफआईआर दर्ज नहीं की गई, उनको न्याय पाने के लिये सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ा, तब मुकदमा दर्ज किया गया। इसके बाद सवाल यह उठा कि जब मेडल जीतने पर पीएम मोदी इन खिलाड़ियों को अपने घर बुलाते हैं, तब उनकी समस्या सुनने का समय क्यों नहीं देते हैं?
क्यों भाजपा की आईटी सेल और कई नेता इन महिला पहलवानों की सोशल मीडिया पर इज्जत उछालने का काम करते हैं? लड़कियों को न्याय दिलाने के लिये आखिर क्यों खापों को सामने आना पड़ता है? क्या देश में कानून का राज समाप्त हो गया है?
क्या कानून कई मामलों के एक आरोपी को इसलिये नहीं पकड़ पाता, क्योंकि वह सत्ताधारी दल का सांसद है? क्या एक माफिया पर सरकार हाथ डालने से इसलिये बचती है, क्योंकि उसकी जाति के वोट छिटकने का डर है?
दर्ज किये गये मुकदमों में जो बातें निकलकर सामने आई हैं, उससे साफ होता है कि आरोप झूठे नहीं हैं। जिस तरह से महिला पहलवानों को गलत जगह पर छूना, उनकी सांस चेक करने के बहाने छाती पर हाथ फेरना, कंधों को पकड़कर दबाना, बाहों में लेकर फोटो खिंचवाना, उनको सप्लीमेंट दिलाने का लालच देकर संबंध बनाने का दबाव बनाना, आगे खिलाने का लालच देकर शारीरिक संबंध बनाने को मजबूर करना। ये ऐसी बातें हैं जो बृजभूषण को जेल भेजने के लिये काफी हैं।
दर्ज किये गये मुकदमों में जो बातें निकलकर सामने आई हैं, उससे साफ होता है कि आरोप झूठे नहीं हैं। जिस तरह से महिला पहलवानों को गलत जगह पर छूना, उनकी सांस चेक करने के बहाने छाती पर हाथ फेरना, कंधों को पकड़कर दबाना, बाहों में लेकर फोटो खिंचवाना, उनको सप्लीमेंट दिलाने का लालच देकर संबंध बनाने का दबाव बनाना, आगे खिलाने का लालच देकर शारीरिक संबंध बनाने को मजबूर करना। ये ऐसी बातें हैं जो बृजभूषण को जेल भेजने के लिये काफी हैं।
इंडियन एक्सप्रेस ने जिस तरह से पूरी कहानी का खुलासा किया है, उसके बाद आरोपी के समर्थकों के तेवर भी नरम पड़े हैं, अन्यथा न्याय मांग रही महिला पहलवानों को ही असली आरोपी की तरह सोशल मीडिया पर भला बुरा कहा जा रहा था।
अब सवाल यह उठता है कि बृजभूषण सिंह कई गंभीर मामलों का आरोपी है, फिर भी उसके साथ ऐसे लोग क्यों खड़े हैं, जो खुद को हिंदू धर्म के साधु संत कहते हैं?
अब सवाल यह उठता है कि बृजभूषण सिंह कई गंभीर मामलों का आरोपी है, फिर भी उसके साथ ऐसे लोग क्यों खड़े हैं, जो खुद को हिंदू धर्म के साधु संत कहते हैं?
आखिर क्यों ये लोग धर्म के नाम पर एक आरोपी व्यक्ति को बचाने के लिए खड़े हो गये हैं? हालांकि, जन चेतना महारैली से स्थगित हो गई है, लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों संगीन मामलों के एक आरोपी को बचाने के लिये हिंदू धर्म के ये कथित साधु संत खड़े हो गये हैं, जो केवल भगवा पहनकर हिंदू धर्म के ठेकेदार बने बैठे हैं?
सवाल यह भी उठता है कि 40 दिन बीतने के बाद भी भाजपा के नेताओं के मुंह से यह क्यों नहीं निकल रहा है कि आरोपी को पकड़ा जाना चाहिए, उसके बाद पॉक्सो एक्ट में जांच की जानी चाहिये।
वैसे भी पॉक्सो के अनुसार आरोपी की तुरंत गिरफ्तारी होनी जरूरी है। जब एक महिला के केवल आरोप लगा देने पर आम आदमी को पुलिस तुरंत पकड़ लेती है, तो फिर पॉक्स जैसा मामला होने पर भी बृजभूषण आखिर पुलिस की गिरफ्त से दूर क्यों है?
एक सवाल यह उठता है कि महिला पहलवान हरियाणा की हैं, और अधिकांश एक ही जाति की हैं। क्या इसी आधार पर बृजभूषण सिंह को बचाने के लिये सोशल मीडिया की आर्मी खड़ी हो गई है? कल तक देश के लिये दर्जनों गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली महिला पहलवानों की वजह से जिस देश का नाम ऊंचा हो रहा था, आज न्याय की मांग करने पर उन्हीं को एक जाति में बांध दिया जाना कितना उचित है?
एक सवाल यह उठता है कि महिला पहलवान हरियाणा की हैं, और अधिकांश एक ही जाति की हैं। क्या इसी आधार पर बृजभूषण सिंह को बचाने के लिये सोशल मीडिया की आर्मी खड़ी हो गई है? कल तक देश के लिये दर्जनों गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली महिला पहलवानों की वजह से जिस देश का नाम ऊंचा हो रहा था, आज न्याय की मांग करने पर उन्हीं को एक जाति में बांध दिया जाना कितना उचित है?
क्या एक आरोपी के पक्ष में एक जाति विशेष या वर्ग विशेष खड़ा है, वह ठीक है? क्या इसलिये एक आरोपी का बचाव किया जा रहा है कि वह सत्ताधारी दल का सांसद है? क्या इस आधार पर खिलाड़ियों का विरोध किया जा रहा है कि उनके पक्ष में विपक्षी दल खड़े हो गये हैं? सोचो यदि इन ख्यातनाम खिलाड़ियों की जगह यदि कोई आम महिला ने बृजभूषण जैसे माफिया, बाहुबली, धनबली पर आरोप लगाये होते तो उसका और उसके परिवार का क्या होता?
क्या ऐसे कोई महिला या लड़की बच सकती थी, जिसका नाम देश दुनिया में ख्याति प्राप्त नहीं होता? जब देश का नाम दुनिया में ऊंचा करने वाली खिलाड़ियों को ही न्याय के लिए बेइज्जत होना पड़ रहा है, तब सोचो आम महिला को पॉक्सो या यौन शोषण के मामलों में कितना न्याय मिलता होगा, और जब आरोपी विधायक, सांसद, रसूखदार, कारोबारी, माफिया, बाहुबली, धनबली हो, तब तो न्याय के बारे में सोचना ही पाप है।
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