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महंगाई राहत शिविर से सत्ता रिपीट हो जायेगी या डिजाइन बॉक्स का प्रचार करेगा?



पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट द्वारा कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार को दिये गये अल्टीमेटम का समय बीते चार दिन हो चुके हैं, लेकिन ना तो अभी तक अशोक गहलोत सरकार ने कुछ किया है और ना ही सचिन पायलट गुट की तरफ से कोई एक्शन हुआ है। जिस तरह से सचिन पायलट कैंप में चुप्पी छाई हुई है, उससे समर्थकों में शंका का भाव उत्पन्न हो रहा है। इधर, अशोक गहलोत राहत शिविरों के माध्यम से अपनी सरकार का जमकर प्रचार कर रहे हैं। गहलोत के मंत्री कहां हैं, यह तो पता नहीं, ​लेकिन वह खुद वन मैन आर्मी ​बनकर प्रचार करने में जुट हैं। 

जिस डिजाइन बॉक्स ने अशोक गहलोत का काम संभाल रखा है, उस बखूबी प्रचार कर रही है। चुनिंदा मीडिया संस्थानों के साथ अशोक गहलोत का दौरा और सोशल मीडिया पर भाजपा—मोदी स्टाइल में दिनरात आ रही पोस्ट बताती हैं कि गहलोत इस बार आर पार की लड़ाई के मूड में हैं। राज्य पर अभी पौने 6 लाख करोड़ का कर्जा है, लेकिन फिर भी गहलोत सरकार की फ्री घोषणाओं का पिटारा खुलता जा रहा है, जितनी घोषणाएं बीते चार साल में नहीं हुई हैं, उससे अधिक बीते चार महीने में हो चुकी हैं। बाड़मेर में 100—100 स्कूलों को एक झटके में प्रमोट करना यह बताता है कि चाहे काम हो या नहीं हो, लेकिन घोषणा करके जनता में वाहवाही जरुर लूटी जा सकती है।

अरविंद केजरीवाल यदि फ्री के वादों से तीन बार सीएम बन सकते हैं, तो क्या गहलोत दूसरी बार भी नहीं बन सकते? इसी आधार पर कांग्रेस कर्नाटक का चुनाव जीता है, जहां पर 5 गारंटी लागू करके वाहवाही लूटी जा रही है। अब वही पांचों गारंटी राजस्थान में भी लागू करने का वादा किया जायेगा, ताकि सत्ता रिपीट करवाई जा सके। 

इस बीच रालोपा संयोजक हनुमान बेनीवाल ने अपनी रैलियों की घोषणा करके इरादे साफ कर दिये हैं। साल 2018 में भी बेनीवाल ने इसी तरह से लाखों लोगों की रेलियां करके पार्टी का गठन किया था। हालांकि, रैलियों का स्थान बताता है कि उनका अधिकतर ध्यान पश्चिमी राजस्थान और टोंक, शेखावाटी पर ही रहने वाला है। पायलट को आमंत्रित करने वाले बेनीवाल को अभी तक पायलट की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला है।

इधर, सचिन पायलट का दिया समय समाप्त होने के बाद लोगों को इस बात का इंतजार है कि पायलट कब पहला आंदोलन शुरू करेंगे? पायलट के आंदोलन साबित कर देंगे कि 11 जून को क्या होने वाला है? उससे पहले यदि पायलट ने कुछ नहीं किया तो यह समझा जायेगा कि वह 11 जून से शुरू करेंगे। इससे पहले 11 अप्रैल को अनशन, 11 मई को यात्रा कर चुके हैं। 

भाजपा की बात की जाये तो वसुंधरा राजे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निकट बिठाकर वसुंधरा कैंप को खुशियों से भर दिया है। इस बात को ऐसे प्रचारित किया जा रहा है, जैसे उनको सीएम कैंडिडेट ही डिक्लियर कर दिया हो। इनको कौन समझाये कि दो बार की सीएम को उनके प्रोटोकॉल के हिसाब से दूसरे या तीसरे नंबर पर ही रखा जाता है। एक तरफ संगठन मुखिया बैठता है, दूसरी ओर यदि पूर्व सीएम नहीं हो तो नेता प्रतिपक्ष बैठता है और यदि पूर्व सीएम मौजूदा पदों पर हों, तो वह बैठता है।

यह बात सही है कि अब वसुंधरा राजे को संगठन काम लेगा। उनके अनुभव और उनके समर्थकों की संख्या को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इसलिये उनको चुनाव कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष बनाया जा सकता है। यह कमेटी पूरे चुनाव के प्रचार का जिम्मा लेकर काम करेगी। यह पद राज्य में खाली बचा है, जहां वसुंधरा को बिठाया जा सकता है।

बेनीवाल को मिलने वाला सपोर्ट और पायलट के आंदोलन की रुपरेखा साबित करेगी कि गहलोत के राहत शिविर कितने सक्सेज हुए हैं। वैसे भी जो राहत शिविरों में दिया जा रहा है, वह तो बिना रजिस्ट्रेशन भी मिलेगा, तो फिर इतना पैसा और समय बर्बाद करने से क्या फायदा है?

सरकार के पास आधार कार्ड हैं, बिजली कनेक्शन का डेटा है, पेंशन वालों का आंकड़ा है, गरीबों की संख्या पता है, बीपीएल की जानकारी है तो फिर इन शिविरों को लगाने का मकसद क्या है? इनका मकसद केवल यही है कि सरकार जो कर रही है, उसको जमकर प्रचारित करे। यही काम डिजाइन बॉक्स की रणनीति का हिस्सा है, जो सरकार का काम कर रही है। 

सरकार भर्ती परिक्षाओं के परिणाम जारी कर रही है, लेकिन आरपीएससी के मैंम्बर बाबूलाल कटारा को एसओजी द्वारा पकड़े जाने के बाद एसआई भर्ती और सैकंड ग्रेड के रिजल्ट पर भी सवाल उठ रहे हैं। क्योंकि कटारा एसआई के इंटरव्यू में शामिल था। जबकि सैकंड ग्रेड के 6 सेट ले जाने के बाद भी केवल एक ही परीक्षा रद्द की है, जिससे बाकी पांच पर भी वाल उठ रहे हैं। 

महंगाई राहत शिविरों में गहलोत दावे तो खूब कर रहे हैं, लेकिन हकिकत यह है कि केवल घोषणाएं करने से कुछ नहीं होता है, उनको जब तक धरातल पर उतारा नहीं जायेगा, तब तक जनता वोट देने वाली नहीं है। यही वजह है कि गहलोत की तमाम घोषणाओं के बाद भी जनता का मूड गहलोत के पक्ष में नहीं बन पा रहा है, अन्यथा जब मोदी गुजरात के सीएम थे, तब जनता खुद नारे लगाकर मोदी को फिर से सीएम बनाने की मांग करती थी, इसी तरह से योगी को लेकर 2022 को उत्साह भी हमने देखा है, जब जनता खुद प्रचार कर रही थी, किसी कंपनी को प्रचार करने की जरुरत नहीं पड़ी। 

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