भारत का पड़ोसी मुल्क चीन अक्सर अपने विस्तारवादी नीति की वजह से दुनिया के अन्य देशों के निशाने पर रहता है। चीन ने अपनी इस नीति को आगे बढ़ाने के लिए नया पैंतरा अपनाया है। उसने दुनिया के अलग-अलग देशों में खेती के लिए काफी जमीनें खरीदी हैं। जमीन लीज पर देने वाले देशों में अमेरिका जैसा देश भी शामिल है। आपको जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका में कई देशों ने खेती के लिए जमीनें खरीद रखी हैं। अमेरिका में जमीन खरीदने के मामले में चीन 18वें नंबर पर आता है। अमेरिका में ही नहीं, बल्कि चीन ने कई गरीब अफ्रीकी देशों में भी खेती के लिए जमीन खरीद रखी हैं।
दूसरे देशों में जमीन खरीदने की बात करें तो चीन के पास अब तक 3 लाख 84 एकड़ जमीन अलग-अलग देशों में है, जिसकी कुल कीमत 2.5 मिलियन डॉलर है। इसके अलावा अकेले अमेरिका में चीन ने बीते दो साल में 3 लाख एकड़ जमीन खरीदी है, उससे पहले उसने एक लाख एकड़ जमीन खरीद ली थी, यानी आज की तारीख में चीन के पास अमेरिका में 4 लाख एकड़ जमीन है। इसके चलते कई अमेरिकन स्टेट्स अब ऐसी पॉलिसी लेकर आ रहे हैं, जिसके तहत अब चीन जमीनें नहीं खरीद पाएगा। अमेरिका के राज्य ऐसे बिल बना रहे हैं, जिससे चीन के किसी भी प्राइवेट और सरकारी कंपनियों को जमीनें न दी जाएं। अमेरिका को डर है कि चीन उसके देशों में खेती के लिए जमीनें खरीदकर उसकी जासूसी कर सकता है।
खेती के लिए जमीनें हमेशा शहर से दूर गांवों में खरीदी जाती हैं, लेकिन चीन ने यूएस में एक एयर फोर्स बेस के पास भी सैंकड़ों एकड़ लैंड लीज पर ले रखा है। US के विशेषज्ञ बताते हैं कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार दुनिया में खेती के लिए जमीन लेने का सिलसिला साल 1990 से शुरू हुआ था। कई अमीर मुल्क दूसरे गरीब देशों से लीज पर जमीन लेते हैं और खेती करते हैं। गरीब देशों को ये फायदे का सौदा लगता है, लेकिन ऐसा होता नहीं है। अमीर देश इन विदेशी जमीनों पर ऐसी फसलें उगाते हैं, जिनमें पानी की खपत ज्यादा होती है। जैसे चावल, कपास और कॉफी इत्यादी। इन फसलों की एक ही जमीन पर लगातार खेती करने से भूमि की उपजाऊ क्षमता कम होने लगती है। इसके अलावा पानी के जो रिसोर्स खेती के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, उनमें काफी खर्चा लगता है। इसी बात को ध्यान में रखकर चीन जैसे कई देश दूसरे देशों पर ऐसी फसल उगाते हैं। इससे चीन की खुद की जमीन उपजाऊ बनी रहती है। वहीं दूसरे देशों की जमीन बंजर हो जाती है।
लेकिन चीन इस नीति से कहीं आगे बढ़कर इस जमीन का इस्तेमाल जासूसी के लिए भी करता है। हाल ही में जानकरी सामने आई कि यूएस के जिस एयरबेस के पास चीन ने जमीन खरीद रखी है, वहां पर कुछ जासूसी करने जैसे संकेत मिले हैं। इसके बाद अमेरिका सतर्क हुआ और उसने चीन को जमीन खरीदने पर रोक लगाने वाला कानून बनाने की तरफ बढ़ा है।
चीन इस मामले में गरीब और अमीर देशों के साथ दोहरी नीति पर काम करता है। गरीब जैसों को जहां महंगे लोन देकर उसकी जमीनें हड़प रहा है, तो अमीर देशों में खेती के नाम पर जमीन खरीद रहा है। हालांकि, मकसद दोनों में एक ही होता है। एक ओर तो चीन इसके जरिये घुसपेठ कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ वह अपनी विस्तारवादी नीति को भी अंजाम दे रहा है। बंग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान के अलावा अफ्रीकी देशों में गरीबी का फायदा उठाकर वहां पर बड़े पैमाने पर जमीनें हड़प चुका है। कई देशों के द्वीप अपने कब्जे में ले चुका है, तो कहीं पर श्रीलंका जैसे देश द्वारा लोन नहीं चुका पाने के कारण बंदरगाह पर कब्जा कर चुका है। पाकिस्तान में भी चीन ने बड़े पैमाने पर जमीन कब्जा कर ली है। इसमें सबसे बड़ी जमीन सीपैक की है, जहां से चीन को निकालना पाकिस्तान के बस की बात नहीं है। चीन ने पाकिस्तान को इतना कर्जा दे दिया है कि वह चाहकर भी नहीं चुका सकता है। नतीजा यह हो रहा है कि अब पाकिस्तान के अंदर चीन घुस चुका है, वहां के प्राकृतिक संसाधनों पर चीन ने कब्जा करना शुरू कर दिया है। चीन ने पाकिस्तान को एक तरह से अपना उपनिवेश बनाकर रखा है, जो इन दिनों आर्थिक रुप से कंगाली के दौर से गुजर रहा है।
चीन ने श्रीलंका को हंबनटोटा बंदरगाह अपने कब्जे में ले लिया है। इसी तरह से पाकिस्तान को ग्वादर भी चीन के कब्जे में है। अब चीन ने म्यांमार में बंगाल की खाड़ी में भी बंदरगाह विकसित करना शुरू कर दिया है। इस तरह से देखा जाए तो चीन ने बंदरगाह के माध्यम से भारत की घेरेबंदी कर दी है। इसी तरह से अफ्रीका के कई बंदरगाह का इस्तेमाल कर रहा है, जिनको चीन ने कर्जा दे रखा है। बाद में कर्जा नहीं चुकाने के कारण उनका भी अधिग्रहण कर लेगा। चीन की इस विस्तारवादी नीति से कई देश अभी भी परिचित नहीं हैं। हालांकि, पाकिस्तान को इस बात का अहसास हो गया है, लेकिन अब उसके उपर चीन का कर्जा इतना अधिक हो गया है कि वह चुका ही नहीं पायेगा।
अब सवाल यह उठता है कि चीन की इस नई विस्तारवादी नीति से भारत कैसे निपटेगा?
दरअसल, भारत उस रणनीति पर काम कर रहा है, जहां चीन को दूरगामी तरीके से घेरा जा सकता है। यही वजह है कि जहां—जहां पर चीन ने विदेशी धरती पर बंदरगाह या रणनीतिक रुप से सैनिक अड्डे बनाए हैं, उनके आसपास उन्हीं देशों में या उनके पड़ोसी देशों में उन देशों के बंदरगाह या तो खरीद लिए हैं, या उनको किराए पर ले लिया है। साथ ही जहां पर चीन के दूसरे देशों में सैनिक अड्डे हैं, वहां के पड़ोसी देशों में भारत ने भी अपने सैनिक बेस तैयार करने शुरू कर दिए हैं।
यह बात सही है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। और इसी रणनीति पर काम करते हुए भारत ने उन देशों को चुना है, जिनके पड़ोसी देशों में चीन की घुसपेठ हो गई है। जैसे चीन ने पाकिस्तान को चुना तो भारत ने ईरान में अपना बंदरगाह बना लिया। खाड़ी देशों के जरिये चीन ने जहां इज्प्टि से दोस्ती कर ली तो भारत ने इस्राइल से मित्रता कर वहां का बंदरगाह खरीद लिया। इसी तरह से से चीन ने बंग्लादेश और म्यांमार में बंदरगाह बनाया तो भारत ने सिंगापुर में बंदरगाह को किराए पर ले लिया। यही रणनीति भारत ने आर्मी बेस बनाने में ली है। भारत ने बंगाल की खाड़ी में अपनी पकड़ बनाने के लिए मालदीव में अपना बहुत बड़ा आर्मी बेस तैयार किया है। हालांकि, कहा यही जाता है कि मालदीव को सहायता के लिऐ भारत ऐसा कर रहा है, लेकिन यह चीज चीज अच्छे से जानता है कि भारत क्या कर रहा है।
खाड़ी देशों में जहां पर चीन ने पकड़ बनाई, तो भारत ने भी कई मुस्लिम देशों के साथ अपने संबंध प्रगाढ़ कर लिए हैं। मोटे तौर पर देखा जाये तो चीन की नजर जहां भारत के पड़ोसी देशों से रिश्ते खराब करवाकर उनको अपने पक्ष में करनी की रहती है, तो भारत उन देशों को चुनता है, जो भारत के बिलकुल पड़ोसी नहीं हैं, लेकिन हमारे पड़ोसी के करीबी हैं, जिनकी भारत के पड़ोसी देशों के साथ संबंध मधुर नहीं हैं। दूसरी बात यह है कि आज चीन दुनिया की दूसरी महाशक्ति है, इसलिये अमेरिका जहां अपने ताज को खतरे में मानता है, तो यूरोपीयन देश चीन से चिढ़ने लगे हैं। इसकी वजह से उनको चीन को मजबूत पड़ोसी देश पार्टनर के तौर पर चाहिये। जिसमें सबसे सूटेबल देश भारत ही है। जिसके कारण अमेरिका और यूरोपीयन देश भारत से दोस्ती बढ़ा रहे हैं।
चीन के पास आज की तारीख में खुद की जमीन पर 34 बंदरगाह हैं, जबकि दुनिया के 53 देशों में 96 बंदरगाह संचालित करता है। भारत के पास खुद की जमीन से लगते 13 पोर्ट हैं, और दुनिया के करीब एक दर्जन बंदरगाह भारत के द्वारा संचालित किए जाते हैं। हालांकि, चीन को भारत से दो साल बाद आजादी मिली थी, लेकिन उसके बाद से कम्यूनिस्ट पार्टी ने जमकर काम किया। मिशन मोड में काम करने के कारण आज चीन के पास अपने छोटे 2000 पोर्ट हैं, जबकि भारत के पास केवल 200 हैं। भारत सरकार बीते एक दशक से जिस रणनीति से दुनिया में काम कर रही है, उससे साफ हो गया है कि अब भारत भी चीन को उसी की भाषा में जवाब देने को तैयार हो रहा है।
भारत और चीन में एक बड़ा अंतर पड़ोसी देशों के संबंधों का है। चीन को केवल जापान के अलावा कोई देश परेशान नहीं करता है। बाकी पड़ोसी देशों को चीन ने या तो कर्जजाल में फंसा रखा है, या सैनिक दबाव में वो इतने कमजोर हैं, कि चीन के लिए कभी सिरदर्द बनने की स्थिति में नहीं आ पाएंगे। इधर, भारत की बात की जाए तो सबसे अधिक नुकसान करने वाला और विकास में बाधक बनने वाला देश पाकिस्तान साबित हुआ है, जो बीते 75 साल से भारत को आतंक की आग में धकेलता रहा है। नतीजा यह हुआ है कि पाकिस्तान जहां खुद का विकास नहीं कर पाया है, तो भारत को भी इस विवाद में उलझाकर रखा है। इसके परिणामस्वरुप भारत को जो विकास बरसों पहले करना चाहिए था, वह भी अब कर रहा है।
इसी तरह से बंग्लादेश का जन्म भले ही भारत द्वारा से पाकिस्तान से करवाया गया हो, लेकिन अवैध घुसपेठ से लेकर सीमा विवाद जैसे कार्यों में भारत को उलझाने का काम किया गया है। आज भी भारत और बंग्लादेश के बीच संबंधों को चीन प्रभावित कर देता है। नेपाल बरसों तक हिंदू राष्ट्र रहा है, लेकिन सांस्कृतिक रुप से भारत के करीबी होने के बाद भी चीन के उकसावे पर वह भारत के साथ विवाद उत्पन्न करने से नहीं चूकता है। दक्षिण में स्थित श्रीलंका आज कंगाली के दौर में भारत के सहारे ही खड़ा है, लेकिन एक समय वह भारत के बजाए चीन को अधिक तवज्जो देता था। कुछ बरसों पहले तक भारत ने श्रीलंका को चीन से नजदीकियां कम करने की चेतावनी दी थी, लेकिन वह नहीं माना और उसके कर्जजाल में फंसता चला गया, जिसके कारण उसको अपना हंबनटोटा पोर्ट तक चीन के गिरवी रखना पड़ा है।
हिमालय की गोद में स्थित भूटान को हमेशा भारत मदद ही करता आया है। उसको चलाने का काम भारत ही करता है। इसी तरह से म्यांमार की सीमाएं भारत से लगती है, लेकिन उसके रोहिंग्या मुस्लिम भारत के लिए सिरदर्द बन गये हैं। फिर भी म्यांमार ने चीन से संबंधों को अधिक तवज्जो दी है। ये सभी देश यदि भारत के साथ मिलकर काम करते तो इस पूरे क्षेत्र का अधिक विकास हो सकता था, लेकिन दुश्मनी निभाने के कारण ये भी कमजोर हुए हैं, तो भारत भी अपना उतना विकास नहीं कर पाया है, जितना कर सकता था।
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