मोदी सरकार का सबसे बड़ा मास्टर स्ट्रॉक, जिसका देश को था 75 साल से इंतजार



भाजपा अपने घोषणा पत्र में जो वादे करके सत्ता में आई थी, उनमें से कई बड़े वादों को पूरा कर चुकी है। यही कारण है कि तमाम तरह के विवादों के बाद भी मोदी सरकार पर लोगों को विश्वास कायम है। 


हिमाचल प्रदेश, पंजाब, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक जैसे राज्यों में भाजपा की सत्ता नहीं होने के बाद भी आज मोदी के सामने विपक्ष के पास दमदार चेहरा नहीं है। 


विपक्षी दल एकता का दावा तो करते हैं, लेकिन असल बात यह है कि इनकी हालत ठीक कतई आपस में विश्वास करने जैसी नहीं है। साल 2019 के चुनाव से पहले भी चंद्रबाबू नायडू की अगुवाई में भाजपा के खिलाफ महागठबंधन करने का खूब प्रयास हुआ था, लेकिन अंतत: सभी दलों ने अलग अलग रहकर ही चुनाव लड़ा, जिसका नतीजा यह हुआ कि 2019 में भाजपा ने 2014 के मुकाबले 21 सीटें अधिक जीतीं।

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मोदी सरकार ने दूसरा कार्यकाल शुरू किया, तब सबसे पहले अपने वादों के अनुसार धारा 370, तीन तलाक, नागरिकता संसोधन कानून, राम मंदिर जैसे मुद्दों को हल किया। अब इसी दिशा में एक कदम आगे बढ़ते हुए भाजपा सरकार अपने वादे के अनुसार समान नागरिक संहिता का कानून बनाने जा रही है।


केंद्र सरकार ने इसको लेकर तैयारी शुरू कर दी है। माना जा रहा है कि मानसून सत्र में ही इस बिल को कानून का चौला पहना दिया जायेगा। दरअसल, 22वें केंद्रीय विधि आयोग ने 14 जून को नोटिस जारी किया है, जिसके अनुसार सभी लोगों से और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों से इसके बारे में सुझाव मांगे गये हैं। 30 दिन में सभी को अपने सुझाव देने हैं, उसके बाद सुझावों के अनुसार ड्राफ्ट में बदलाव किया जायेगा। अगले दो माह में इसका फाइनल ड्राफ्ट तैयार करके मानसून सत्र में संसद में पेश कर कानून बनाया जायेगा।


पिछले कुछ महीनों से चर्चा चल रही थी कि लोकसभा चुनाव 2024 से पहले केंद्र की भारतीय जनता पार्टी सरकार समान नागरिक सहिंता को लेकर कोई बड़ा फैसला लेने वाली है? 


सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार को समान नागरिक संहिता पर आगे बढ़ने से पहले उत्तराखंड में बनाई गई समिति की रिपोर्ट का इंतजार है। सूत्रों के अनुसार अगले कुछ दिनों में उत्तराखंड की कमेटी की रिपोर्ट आने की संभावना है। 


उत्तराखंड में समिति की रिपोर्ट के आधार पर मॉडल कानून तैयार किया जाएगा। उसी मॉडल कानून को अन्य बीजेपी शासित राज्यों और बाद में पूरे देश में लागू किया जा सकता है, इस मामले को 22वें विधि आयोग ने नोटिस जारी कर नागरिकों से अपने सुझाव आमंत्रित किए गया हैं।


सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज रंजना देसाई की अध्यक्षता में बनाई गई समिति में रिटार्यड जज प्रमोद कोहली, पूर्व मुख्य सचिव उत्तराखंड शत्रुघ्न सिंह, दून यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर सुरेखा डंगवाल और सामाजिक कार्यकर्ता मनु गौर शामिल हैं। 


कमेटी ने हितधारकों से राज्य में व्यापक विचार विमर्श किया है। कमेटी को अभी तक उत्तराखंड में दो लाख चालीस हजार सुझाव मिले थे। सूत्रों के अनुसार बहु विवाह को छोड़ कर कोई भी प्रावधान धार्मिक आधार पर नहीं है। 


यह महिलाओं के समान अधिकार इत्यादि पर बात कर सकता है। साथ ही, समलैंगिता, लिव इन रिलेशनशिप जैसे मुद्दों पर भी एक समान कानून की वकालत कर सकता है। इसके दूरगामी परिणाम होंगे, इसीलिए व्यापक विचार विमर्श किया जा रहा है। 


गुजरात में भी बीजेपी सरकार ने समान नागरिक संहिता के लिए कमेटी बनाने की बात कही है। वहां कैबिनेट ने मंजूरी दी है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि राज्य में समान नागरिक संहिता लागू की जाएगी। 


उत्तराखंड की कमेटी की ड्राफ्ट रिपोर्ट आने के बाद अन्य राज्यों में भी उसी के आधार पर कानून बनाने में मदद मिलेगी। इस बीच केंद्रीय विधि आयोग ने अपना एक खाका तैयार कर लिया है, जिसके लिऐ सुझाव आमंत्रित किए गये हैं।


दरअसल, समान नागरिक संहिता बीजेपी की मूल विचारधारा से जुड़े तीन प्रमुख मुद्दों में से एक है। अन्य दो मुद्दे अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और जम्मू कश्मीर से धारा 370 समाप्त करना था। ये दोनों वादे बीजेपी ने पूरे कर दिए हैं। 


अब माना जा रहा है कि अगले लोक सभा चुनाव से पहले समान नागरिक संहिता पर भी केंद्र सरकार आगे बढ़ेगी।  केंद्र सरकार ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वह समान नागरिक संहिता के पक्ष में है और यह काम संसद का है, सुप्रीम कोर्ट का नहीं है। 


उत्तराखंड की कमेटी के गठन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया था। समान नागरिक संहिता का मतलब है विवाह, तलाक, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों में एक जैसे कानून लागू होना था। 


संविधान के अनुच्छेद 44 में वर्णित नीति निर्देशक सिद्धांतों में समान नागरिक संहिता की वकालत की गई है, लेकिन आजादी के बाद से ही विभिन्न सरकारों ने अलग-अलग धर्मों के आधारित नागरिक संहिता की अनुमति दी है। 


हालांकि, 21वें विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि समान नागरिक संहिता न तो आवश्यक है और न ही वांछित है। 


तत्कालीन कानून मंत्री किरेन रिजुजु ने संसद को बताया था कि 22वां विधि आयोग समान नागरिक संहिता के बारे में विचार करेगा, पिछले साल नवंबर में इसकी स्थापना की गई थी। 


यहां यह बता दें कि 21वें विधि आयोग का विचार विमर्श का दायरा सीमित था। उसे देशभर से 78 हजार सुझाव ही आए थे। जबकि, उत्तराखंड की समिति को छोटा राज्य होने का बावजूद दो लाख चालीस हजार सुझाव मिले हैं।


अब यदि समान नागरिक संहिता के फायदों और नुकसान की बात की जाये तो इसमें धार्मिक रंग देने का प्रयास किया जा सकता है। 


इससे पहले भारत के मुस्लिम समुदाय को कोई इफेक्ट नहीं होने के बाद भी नागरिकता संसोधन कानून के बाद देशभर में धरनों का दौर शुरू हो गया था। बाद में कोरोना के कारण धरने स्वत: समाप्त हो गये थे। 


तीन तलाक का कानून बनाने के बाद भी देश में कई जगह प्रदर्शन किए गये थे और जुलूस निकाले गये थे। इन सबको ध्यान में रखते हुये सरकार सोच समझकर कदम आगे बढ़ा रही है। 


मोदी की दूसरी सरकार के शुरुआती 6 महीनों में जिस तरह से सरकार ने एक के बाद एक तीन बड़े कानून बनाकर अपने इरादे जाहिर किए थे, उसके हिसाब से यही लग रहा था कि सरकार इस कार्यकाल में अपने सभी वादे पूरे करने के मूड में है, किंतु तीन कृषि कानूनों के बाद किसानों के आंदोलन ने सरकार को बहुत परेशान किया। साथ ही कोरोना के कारण देश की आर्थिक स्थिति को देखते हुए भी सरकार ने कदम पीछे खींच लिए थे। 


वैसे तो समान नागरिक संहिता से किसी को नुकसान नहीं होगा, लेकिन मुसलमानों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बना हुआ है, जिसमें सरिया के अनुसार शादी, तलाक और पारीवारिक मामलों के निपटारे का प्रावधान​ किया गया है, वह समाप्त हो जायेगा, इस कानून के बाद पूरे देश में सभी नागरिकों के उपर एक ही कानून लागू होगा, जिसें शादी, तलाक, जमीन जायदाद के बंटवारे समेत सभी मुद्दे हल हो जायेगें। इसको लेकर कुछ कट्टर धार्मिक संगठन विरोध कर सकते हैं। 


राजनीतिक फायदा उठाने का प्रयास करने वाले संगठन भी इसको लेकर विरोध करेंगे। इसी वजह से सरकार ने पहले सभी संगठनों से सुझाव मांगे हैं, ताकि बाद में विवाद नहीं हों। भारत में व्यक्तिगत कानून प्रायः महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं, विशेष रूप से विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और संरक्षण से संबंधित मामलों में समान नागरिक संहिता इस तरह के भेदभाव को समाप्त करने और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में मदद करेगी।


Uniform Civil Code पूरे देश में एक समान कानून लागू करता है। इसमें सभी धर्म के नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, गोद लेना, विरासत आदि के कानूनों में समानता दिए जाने का प्रावधान है। 


संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य भारत के सभी क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक सहिंता को सुनिश्चित करने को कहा गया है। भारत में अभी सिर्फ एक राज्य गोवा है, जहाँ यूनिफार्म सिविल कोड लागू है। 


गोवा में पुर्तगाल सरकार के समय से ही यूनिफार्म सिविल कोड को लागू किया गया था। वर्ष 1961 में गोवा सरकार यूनिफार्म सिविल कोड के साथ ही बनी थी। 


भारतीय संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 44 के अंतर्गत भारतीय राज्य को देश में सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता का निर्माण करने को कहा गया है, जो पूरे देश में लागू होता हो।


दुनिया के कई देशों में समान नागरिक संहिता लागू है। जिनमें प्रमुख रुप से अमेरिका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान, आयरलैंड, इजिप्ट और मलेशिया शामिल है। 


यूनिफार्म सिविल कोड लागू होने से सभी समुदाय के लोगो को एक समान अधिकार दिए जायेंगे। स्त्री पुरुष के बीच भेदभाव कम होगा और लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलेगा। 


समान नागरिक सहिंता लागू होने से भारत की महिलाओं की स्थिति में सुधार होगा। कानूनों में सरलता और स्पष्टता आएगी। सभी नागरिकों के लिए कानून समझने में आसानी होगी। 


व्यक्तिगत या धर्म कानूनों के आधार पर होने वाले भेदभाव को समाप्त किया जा सकेगा। कानून के तहत सभी को सामान अधिकार दिए जायेंगें। कुछ समुदाय के पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकार सीमित है। 


ऐसे में यदि Uniform Civil Code लागू होता है तो महिलाओं को भी समान अधिकार लेने का लाभ मिलेगा। महिलाओं का अपने पिता की सम्पति पर अधिकार और गोद लेने से संबंधी सभी मामलों में एक सामान नियम लागू हो जायेंगे। 


मुस्लिम समाज में बेटी की शादी की न्यूनतम आयु 9 साल है। UCC लागू होने से मुस्लिम लड़कियों की छोटी आयु में विवाह होने से रोका जा सकेगा। 


धार्मिक रूढ़ियों के कारण समाज के किसी वर्ग के अधिकारों के हनन को रोका जा सकेगा। मुस्लिम समाज में अभी भी कई तरह के तलाक हो रहे हैं, जिनका खामियाजा मुस्लिम महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है। यूसीसी के लागू होने से सभी समुदाय में तलाक की प्रक्रिया एक जैसे होगी।


ऐसा नहीं है कि इससे पहले कभी समान नागरिक संहिता को लेकर किसी सरकार ने प्रयास नहीं किया हो, लेकिन वोटबैंक  की राजनीति ने इसे पूरा नहीं होने दिया। अब उम्मीद की जा रही है कि दूसरे देशों की तरह भारत भी यूसीसी लागू करके अपने नागरिकों को समान अधिकार देने का काम करेगा। 


सबसे आखिरी बार शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ जाकर साल 1985 के समय जो गलती कांग्रेस की राजीव गांधी सरकार ने की थी, उसके कारण आजतक कांग्रेस को कभी बहुमत नहीं मिला और ना ही गांधी परिवार का कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री बना। 


तब राजीव सरकार ने शरीयत के अनुसार मुस्लिम मामलों को निपटाने का कानून बनाकर देश को धार्मिक आधार पर बांटने का काम किया था। इस तुष्टिकरण की नीति के कारण हिंदू लगातार कांग्रेस से छिटकते चले गये और भाजपा हिंदूओं की सबसे बड़ी पार्टी बन गई। 


परिणाम यह हुआ कि जो भाजपा 1982 के चुनाव में केवल दो सीटों पर जीती थी, वह बीते दो टर्म से बहुमत के साथ सत्ता में है। भाजपा का शुरू से ही चुनावी वादा रहा है कि यदि सत्ता में आई तो समान नागरिक संहिता लागू करेगी।अब सरकार उसी दिशा में आगे बढ़ रही है, जिसके पूरा होने से भाजपा का एक और वादा पूरा होने की संभावना है। 

हालांकि, लोग इसको चुनावी फायदे का सौदा बता रहे हैं, लेकिन क्योंकि बीजेपी के घोषणा पत्र में यह वादा हमेशा रहा है, इसलिये इसको पूरा करना भी अपने घोषणा पत्र को पूरा करना ही है। 

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