पिछले साल कश्मीर फाइल्स आई तो देशभर में हंगामा मच गया। इसी तरह से कुछ दिनों पहले केरला स्टोरी ने दुनिया का ध्यान भारत की तरफ खींचा। ये वो फिल्में हैं, जो एक एजेंडे के तहत कराए गये धर्म परिवर्तन और कश्मीर से मूसलमानों द्वारा 90 के दशक में हिंदू पंडितों का पलायन का सच लिए हुए है।
अब इसी तरह से 90 के दशक की एक और असली कहानी बड़े पर्दे पर आने वाली है। कहा जाता है कि यह कहानी जितनी सच है, उससे कहीं अधिक डरावनी और खौफनाक है। इस फिल्म को 14 जुलाई को रिलीज किया जाएगा, लेकिन उससे पहले ही कुछ मुस्लिम संगठनों ने इसपर बैन लगाने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
आज हम इसी कहानी की सच्चाई से आपको अवगत करवाऐंगे, कि कैसे उस दौर में उंचे घरानों की 300 हिंदू लड़कियों को राजस्थान के अजमेर में मोइनुद्दीन चिश्ती के केयरटेकर, यानी खादिम परिवार और कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं द्वारा अपनी हवस का शिकार बनाया गया।
21 अप्रैल 1992 को राजस्थान के अजमेर में रोज जैसा ही माहौल था, लेकिन उस दिन जो हुआ, उसके लिए शायद कोई भी मानसिक रुप से तैयार नहीं था। दरअसल, 21 अप्रैल को एक स्थानीय अखबार दैनिक नवज्योति में अजमेर में चल रहे एक सेक्स स्कैंडल का खुलासा किया था। ये 90 के दशक के उस दौर की बात थी, जब मोबाइल, इंटरनेट नहीं था और टीवी न्यूज चैनलों का भारत में आगमन भी नहीं हुआ था। उस दौर में कुछ बड़े धनाड्य लोगों के घरों में ही लैंडलाइन के फोन हुआ करते थे।
इस फिल्म की पूरी कहानी का वीडियो यहां देखिए।
दैनिक नवज्योति में खबर छपी कि अजमेर में लंबे समय से एक सेक्स स्कैंडल को अंजाम दिया जा रहा है। कुछ लोगों का एक ग्रुप स्कूल में पढ़ने वाली कम उम्र की लड़कियों का सामूहिक बलात्कार कर रहे हैं। हालांकि, इस खबर पर लोगों को भरोसा नहीं हुआ, क्योंकि तब तक न किसी लड़की ने खुलकर आरोप लगाए थे और न ही पुलिस में किसी ने शिकायत दर्ज की थी। इसके 24 दिन बाद 15 मई 1992 को फिर से एक खबर प्रकाशित हुई, जिसमें इन लड़कियों की धुंधली तस्वीरें भी छापी गई थीं।
लड़कियों की इन तस्वीरों में कुछ लोग उनके साथ आपत्तिजनक हालत में नजर आ रहे थे। दो दिनों तक लगातार ये तस्वीरें दैनिक नवज्योति अखबार में प्रकाशित हुईं और इस खबर ने अजमेर में तूफान ला दिया था। कहा जाता है कि ये खबर सामने आने के बाद तत्कालीन सीएम भैंरोसिंह शेखावत की कुर्सी तक हिल गई थी। हर रोज नई तस्वीरें सामने आने लगीं और इन तस्वीरों की जीरॉक्स कॉपियां भी लोगों के बीच बंटने लगीं। किसी ने इसे अजमेर गैंगरेप कांड, तो किसी ने अजमेर ब्लैकमेल कांड करार दिया।
कहा जाता है कि अजमेर ब्लैकमेल कांड में स्कूल-कॉलेज की 300 से ज्यादा लड़कियों का यौन शोषण किया गया था। जिसका आरोप शहर के सबसे रईस और ताकतवर खानदानों में से एक चिश्ती परिवार के नफीस चिश्ती और फारुक चिश्ती पर लगा था। सामूहिक यौन शोषण के इस मामले के सामने आने के बाद बहुत से लोग केवल इस वजह से इस पर यकीन नहीं कर रहे थे कि चिश्ती परिवार सामाजिक और आर्थिक हैसियत में हद से ज्यादा ऊंचाईयों पर था। फारुक चिश्ती अजमेर यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष और नफीस चिश्ती उपाध्यक्ष था।
द प्रिंट की एक खबर के अनुसार, 90 के दशक की शुरुआत में अजमेर में केवल दो ही रेस्टोरेंट थे। सोफिया स्कूल और सावित्री स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियां यहीं जाती थीं। अजमेर दरगाह के केयरटेकर, यानी खादिमों के परिवार से आने वाले नफीस चिश्ती और फारुक चिश्ती अपनी खुली जीप, एम्बेसडर और फिएट कारों में घूमते थे। पैसा, सामाजिक प्रभाव और सियासी ताकत सब कुछ उनके पास था। लड़कियों महंगे गिफ्ट देना और रेस्टोरेंट में खाना खिलाना इन लोगों के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी।
इस रिपोर्ट में दैनिक नवज्योति के रिपोर्टर रहे संतोष गुप्ता बताते हैं कि वे दोनों रेस्टोरेंट गए थे, जहां कुछ स्कूली छात्राएं भी बैठी थीं। उनमें से एक ने रेस्टोरेंट के मैनेजर से सभी को आइसक्रीम बांटने के लिए कहा, क्योंकि उस दिन उनके एक दोस्त का जन्मदिन था। ऐसी फिल्मी चीजें किसी को भी मंत्रमुग्ध कर सकती थीं।
अजमेर ब्लैकमेल कांड में फारुक, नफीस के साथ अनवर, मोइजुल्लाह उर्फ पुत्तन इलाहाबादी, सलीम, शमशुद्दीन, सुहैल वगैरह भी शामिल थे। उस दौर में गैस कनेक्शन मिलना आसान काम नहीं था। द प्रिंट के मुताबिक इन लोगों ने गैस कनेक्शन जैसी चीजें तक दिलवाने के लिए लड़कियों को अपना शिकार बनाया। इन लड़कियों को नफीस और फारुक से ये कहकर मिलवाया जाता था कि ये लोग बहुत शरीफ लोग हैं। जिसके बाद ये शरीफ लोग तमाम लड़कियों को अजमेर के एक बंगले, एक फार्महाउस और एक पोल्ट्री फार्म में ले जाकर उनका यौन शोषण करते थे और अश्लील तस्वीरों के सहारे ब्लैकमेल करते रहते थे। ये लोग अक्सर हिंदू लड़कियों को शिकार बनाने के लिए मुस्लिम नाम के बजाए हिंदू नाम से मिला करते थे।
लड़कियां जब इन लोगों से तस्वीरों की निगेटिव रील देने की मांग करती थीं, तो उनसे और लड़कियों से बात करने का दबाव बनाया जाता था। ऐसा होने के बाद निगेटिव नहीं मिलते थे, बल्कि शिकार की लिस्ट में एक लड़की और जुड़ जाती थी। बदनामी के डर से लड़कियां चुप रहती थी और दूसरी लड़कियों को भी मजबूरी में उनका शिकार बनवाने को राजी हो जाती थीं। इस तरह से एक के साथ एक जुड़ती चली गईं और करीब 300 लड़कियां इन दरिंदों का शिकार हो गईं।
विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इसी बीच एक पीड़ित लड़की ने एक पुलिस अधिकारी से पूरे मामले का खुलासा किया। लड़की को आश्वासन दिया गया कि उसकी तस्वीरें वापस कर दी जाएंगी, लेकिन फिर लड़कियों को धमकियां मिलने लगीं। कहा जाने लगा कि पुलिस के पास गई, तो तस्वीरों के पर्चे शहर भर में बांट दिए जाएंगे। जिसके बाद फिर लड़कियां चुप हो गईं। इनमें से कई लड़कियां अपना स्कूल खत्म कर दूसरी जगहों पर चली गईं और उनका यौन शोषण बंद हो गया। हालांकि, उसके बाद भी तमाम लड़कियों को ब्लैकमेल करने की तस्वीरें अभी भी दोषियों के पास ही थीं।
नफीस चिश्ती और फारुक चिश्ती समेत सारे दोषी एक कलर लैब में तस्वीरों को प्रिंट कराते थे। यहीं से कुछ तस्वीरें कलर लैब मालिक के द्वारा बाहर आने लगीं और मामला लोगों के सामने खुल गया। इसके बाद लड़कियों को कई रसूखदार लोगों के पास भी भेजा जाने लगा। यानी लड़कियों की पॉवर वाले लोगों के पास सप्लाई होने लगी। पुरुषोत्तम नाम का कलर लैब का एक कर्मचारी भी इसमें शामिल हो गया था। जिसने मुकदमा दर्ज होने के कुछ समय बाद आत्महत्या कर ली थी। कलर लैब से तस्वीरें सार्वजनिक होने के बाद कई लड़कियों ने आत्महत्या भी कर ली थी।
उस समय एक स्थानीय अखबार के पत्रकार मदन सिंह ने अपने अखबार में रोज लड़कियों की ऐसी ही तस्वीरें छापना शुरू कर दिया। मदन सिंह के खिलाफ एक लड़की ने एफआईआर दर्ज करवाई कि वो तस्वीरें न छापने के लिए उससे पैसों की मांग कर रहा था। कुछ समय बाद मदन सिंह ने अजमेर ब्लैकमेल कांड से जुड़े 4-5 बड़े नाम छाप दिए। इसके बाद उस पर एक जानलेवा हमला हुआ। जिसका आरोप उसने पूर्व कांग्रेस विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल समेत कुछ लोगों पर लगाया था। इसके कुछ दिनों बाद 12 सितंबर 1992 को डॉ. राजकुमार जयपाल के लोगों द्वारा मदन सिंह की अस्पताल में घुसकर हत्या कर दी गई।
जो लड़कियां उस कांड की शिकार बनीं, उनमें से कुछ लड़कियां गवाही देने के लिए तैयार हुईं, जो आज भी कोर्ट में कभी-कभार आती हैं। इनमें से एक ने कुछ महीनों पहले कोर्ट में कहा था कि कब तक हमें परेशान किया जाएगा, अब हमारा परिवार भी है। हम दादी नानी बन चुकी हैं, हम हमारे परिवार के सामने खुद की कहानी कैसे बताएं।
जब मामला खुला तब 27 मई 1992 को पुलिस ने कुछ आरोपियों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत नोटिस जारी किया। सितंबर 1992 में अजमेर ब्लैकमेल कांड में पहली चार्जशीट फाइल की गई, जिसमें 8 आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई। हालांकि, जांच आगे बढ़ीं, तो मासूम बच्चियों और लड़कियों के यौन शोषण के इस मामले में 10 और आरोपियों के नाम जोड़े गए।
अजमेर ब्लैकमेल कांड जिला अदालत से हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, फास्ट ट्रैक कोर्ट और पॉक्सो कोर्ट के बीच नाचता रहा। शुरुआत में 17 लड़कियों ने अपनी सार्वजनिक इज्जत उछलती देख अपने बयान दर्ज करवाए, लेकिन बाद में ज्यादातर गवाही देने से मुकर गईं। घटना के 6 साल बाद 1998 में अजमेर की एक कोर्ट ने 8 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, लेकिन राजस्थान हाईकोर्ट ने 2001 में उनमें से चार को बरी कर दिया। साल 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने बाकी चारों दोषियों की सजा घटाकर 10 साल कर दी। इनमें मोइजुल्ला उर्फ पुत्तन इलाहाबादी, इशरत अली, अनवर चिश्ती और शम्शुद्दीन उर्फ माराडोना शामिल था।
साल 2007 में अजमेर की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने फारूक चिश्ती को भी दोषी ठहराया, जिसने खुद को दिमागी तौर पर पागल घोषित करवा लिया था। वर्ष 2013 में राजस्थान हाईकोर्ट ने फारुक चिश्ती की आजीवन कारावास की सजा घटाते हुए कहा कि वो जेल में पर्याप्त समय सजा काट चुका है। 2012 में सरेंडर करने वाला सलीम चिश्ती 2018 तक जेल में रहा और जमानत पर रिहा हो गया। अन्य आरोपियों को भी जमानत मिल गई थी। कई ऐसे भी थे, जिन्हें कभी पकड़ा ही नहीं जा सका। सिस्टम की लाचारी देखिए, नफीस चिश्ती और फारुक चिश्ती आज भी पूरी शान से अजमेर में रहते हैं और खादिम परिवार से होने के कारण जियारत करने वालों से भरपूर इज्जत पाते हैं।
जिस पत्रकार की उस वक्त खुलासा करने के कारण हत्या की गई थी, उसके बेटों ने 31 साल बाद अपने बाप के मर्डर का बदला ले लिया। इसी साल 7 जनवरी 2023 को पत्रकार मदन सिंह के बेटे सूर्य प्रताप सिंह ने अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए सवाई सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी, जिस पर उनके पिता की हत्या का आरोप लगा था। मजेदार बात यह है कि जिस मोइनुद्दीन चिश्ती पर कई हिंदू संगठनों द्वारा उस वक्त 3 लाख हिंदूओं का धर्म परिवर्तन करने का आरोप लगाया जाता है, वहां पर आज की तारीख में मुसलमानों से ज्यादा हिंदू माथा टेकने और जियारत करने जाते हैं।
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