Ram Gopal Jat
सचिन पायलट ने साफ कर दिया है कि वह जिन तीन मांगों को लेकर पिछले दिनों अशोक गहलोत सरकार को 15 दिन का समय दे चुके हैं, उन मांगों से पीछे नहीं हटेंगे। पायलट ने 31 मई को समय समाप्त होने के अवसर पर अपने विधानसभा क्षेत्र टोंक में पत्रकारों से बात करते हुए स्पष्ट किया है कि कांग्रेस आलाकमान से वह मिले हैं, और कुछ बातें हैं, जो आलाकमान को तय करनी हैं, लेकिन वह जिन तीन मांगों को पूरा करने के लिए गहलोत सरकार को चैलेंज कर चुके हैं, उनसे पीछे हटने वाले नहीं हैं।
पायलट ने साफ किया है कि युवाओं से जो वादे उन्होंने किये हैं, उनसे भी पीछे नहीं हटेंगे। पायलट के इस बयान से साफ हो गया है कि वह गहलोत के साथ किसी तरह का समझौता करने के मूड में नहीं हैं। भले ही केसी वेणुगोपाल ने मीडिया के सामने दावा किया हो कि दोनों नेता मिलकर चुनाव लड़ेंगे, लेकिन हकिकत यह है कि पायलट इस बात के मूड में नहीं है कि गहलोत के साथ मिलकर चुनाव लड़ा जाये।
इससे पहले सामने आया था कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच समझौता हो गया है, ऐसा कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने दावा किया है। एक दिन पहले चार घंटे चली मैराथन बैठक के बाद पायलट गहलोत को एक साथ लेकर महासचिव केसी वेणुगोपाल मीडिया के सामने आये और दोनों के एक साथ मिलकर चुनाव लड़ने और राजस्थान में कांग्रेस की सत्ता रिपीट कराने का दावा किया। इस दौरान मीडिया को यह नहीं बताया गया कि दोनों के बीच किस बात पर सहमति बनी है। कहा गया कि दोनों नेताओं को आगे क्या करना है, यह बात आलाकमान के उपर छोड़ दी गई है। आलाकमान जल्द ही अपने फैसले से सबको अवगत करवा देगा। पायलट यदि समझौता करते हैं तो कई तरह के सवाल खड़े होते हैं।
—सवाल नं. 1
कांग्रेस में आलाकमान कौन है? अध्यक्ष होने के कारण मल्लिकार्जुन खड़गे होने चाहिये और वही निर्णय करने चाहिये। वह तो खुद 4 घंटे बैठक ले रहे थे, फिर कौनसी बात उनपर छोड़ी गई? क्या खड़गे दिखाने के आलाकमान हैं, असल बॉस सोनिया गांधी ही हैं? क्या कांग्रेस आलाकमान राहुल गांधी हैं? यदि वो हैं तो भी बैठक में मौजूद थे, राहुल ने निर्णय क्यों नहीं किया? क्या असली बॉस सोनिया गांधी ही हैं? यदि सोनिया ही बॉस हैं, तो फिर खड़गे के साथ बैठक क्यों की? क्यों पायलट एक बार फिर रीढ़विहीन नेताओं के साथ बैठक करके संतुष्ट हो गये, जबकि इनके हाथ में कुछ भी नहीं है?
—सवाल नं. 2
यदि दोनों के बीच कोई समझौता हुआ है तो उस फॉर्मूेले को सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया है? पार्टी क्या छुपाना चाहती है और क्यों छुपाना चाहती है, जबकि पायलट गहलोत के बीच में अब कुछ भी छुपाने जैसा नहीं रहा है? इससे पहले भी कई बार समझौते दिखाये गये, लेकिन उनका परिणाम दोनों के बीच कलह बढ़ने के रुप में ही सामने आई है।
—सवाल नं.3
बीते साढ़े चार साल में बार बार धोखा खाने के बाद भी पायलट क्या फिर से धोखा खाने जा रहे हैं? क्या एक बार फिर से आलाकमान के नाम पर खुद का भविष्य दावं पर लगा रहे हैं? क्या गहलोत मे साथ उनकी शर्तों पर समझौता करने के अलावा पायलट के पास अब कोई चारा नहीं बचा है? आखिर क्यों पायलट पार्टी के ना पर अपना भविष्य दावं पर लगा रहे हैं, अपने समर्थकों का दिल तोड़ रहे हैं? क्या सचिन पायलट में बोल्ड कदम उठाने की क्षमता नहीं है? क्या पायलट अब तक अपने पिता के नाम पर ही खा रहे थे, उनकी खुद की कोई राजनीति क्षमता नहीं है? आखिर क्यों पायलट बार बार अशोक गहलोत के हाथों बेइज्जत होकर भी कठोर कदम नहीं उठा पा रहे हैं?
—सवाल नं. 4
पिछले दिनों अपने साथियों के साथ रैली में जो आक्रामकता दिखाई थी, क्या वह दिखावा थी? अपने स्वार्थ के लिये क्या पायलट ने एक बार फिर से युवाओं के सपनों को गांधी परिवार के यहां गिरवी रख दिया है? क्या सचिन पायलट के साथ पैदल चले हजारों युवाओं की उम्मीदों को पायलट ने तोड़ दिया है? क्या पायलट के साथी विधायकों ने उनपर जो विश्वास किया, उनको इसकी भारी कीमत चुकानी होगी? क्या पायलट छोटे आश्वासन से संतुष्ट हो गये हैं?
—सवाल नं. 5
क्या आलाकमान इस बार वास्तव में सचिन पायलट के साथ न्याय करने के मूड में है, या फिर से धोखे में रखकर गहलोत की सरकार रिपीट कराने की साजिश में उनको फंसाया जा रहा है? क्या गहलोत इस बात के लिये राजी हो गयें हैं कि आलाकमान जो कहेगा, वही मानेंगे? इससे पहले 25 सितंबर को गहलोत ने जो किया, वह कोई भी भूला नहीं है, इसलिये गहलोत इतने जल्दी हार मान जायेंगे, यह विश्वास करना ही अपने आप में सबसे बड़ा विश्वाघात है, तो पायलट एक फिर से धोखा खाने को तैयार हैं?
—सवाल नं. 6
क्या सचिन पायलट में इतनी हिम्मत नहीं है कि कांग्रेस छोड़कर अपने दम पर पार्टी बनाएं और मैदान में उतर जायें? क्या पायलट कभी भी आलाकमान या गहलोत को अपनी क्षमता से अवगत नहीं करवा पायेंगे? प्रदेश के लाखों लोगों की भावनाओं और साथ के बावजूद भी पायलट कोई स्टैप नहीं ले पायेंगे तो इस बार उनपर कोई भरोसा कर पायेगा? क्या समर्थक एक बार फिर से पायलट के नाम पर गहलोत की सरकार बनाने के लिये नारे लगाने और मेहनत करने को तैयार हैं?
—सवाल नं. 7
क्या पायलट के साथी विधायक इस बात पर राजी हो जायेंगे कि पायलट ने जो किया, सब ठीक है, उनके साथ आंख मूंदकर भरोसा किया जायेगा और जो होगा, उसको सहर्ष स्वीकार किया जायेगा? क्या मुकेश भाकर, वेद प्रकाश सोलंकी और राजेंद्र गुढ़ा जैसे बोल्ड बयान देने वाले नेता गहलोत के बहकावे में आये पायलट पर विश्वास कर पायेंगे? क्या पायलट समर्थक विधायक गहलोत के तमाम आरोपों के बाद भी उनकी सरकार की योजनाओं का बखान कर अपनी बेइज्जत कराने को तैयार होंगे?
—सवाल नं. 8
क्या इसके बाद आगे कोई लड़ाई नहीं होगी? चुनाव होंगे और सत्ता मिली तो क्या सचिन पायलट को सीएम बनाया जायेगा या फिर उनको गहलोत के अंतर्गत काम करना मंजूर होगा? क्या पायलट ने जो आरोप लगाये हैं, उनका निस्तारण हुये बिना दोनों मिलकर जनता के सामने सत्ता रिपीट कराने के लिये वोट मांगने जायेंगे? क्या पायलट अपनी बेइज्जती को अपने स्वार्थ के कारण भूल जायेंगे?
—सवाल नं. 9
क्या वास्तव में पायलट ने गहलोत के साथ समझौते को स्वीकार कर लिया है? इस फोटो में जहां गहलोत एक विजेता की तरह हंस रहे हैं, जबकि पायलट एक बार फिर से झूठी हंसी लेकर मीडिया को दिखा रहे हैं। क्या पायलट के चेहरे पर कुछ और मन में कुछ और दिखाई नहीं दे रहा है?
—सवाल नं. 10
किसी फॉर्मूले पर दोनों के बीच सहमति बनी है? क्योंकि पायलट को सीएम पद से कम मंजूर नहीं और गहलोत को छोड़ना मंजूर नहीं। ऐसे में किस बिंदू पर समझौता हुआ होगा? क्या पायलट मात्र अध्यक्ष बनकर खुश हो जायेंगे? क्या गहलोत सीएम पद छोड़कर पायलट को आगे बढ़ाने की हिम्मत कर पायेंगे? पायलट को सत्ता रिपीट होने पर सीएम बनाने का फॉर्मूला बना है? यदि बना तो क्या गारंटी है कि गहलोत उस समय पायलट के खिलाफ खड़े नहीं होंगे? क्या गहलोत को इतना मंंजूर होगा कि जिसने उनके खिलाफ बगावत की, उसको सीएम बनाकर बैठ जायें? वैसे भी गहलोत का नैचर ऐसा नहीं है कि वह अपने दुश्मन को माफ करके आगे बढ़ जायें।
सवाल नं. 11
क्या सच में पायलट अब थक गये हैं, जिसके कारण गहलोत की शर्तों पर समझौते को तैयार हो गये हैं? या फिर पायलट ने ठान ली है कि किसी को अहसास नहीं होने देंगे और 11 जून को हूंकर भरने जा रहे हैं? जिस तरह की बातें पायलट ने पिछले दिनों कही थीं, उनसे तो यही लगता है कि पायलट अब इसी कार्यकाल में सीएम पद से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे। यदि पायलट ऐसा नहीं कर पाये तो उनको राजनीतिक भविष्य खत्म हो जायेगा, जनता उनपर भरोसा नहीं करेगी। जो आज हजारों की संख्या में लोग उनके एक बुलावे पर सड़क पर आ जाते हैं, वो कभी नहीं आयेंगे।
निष्कर्ष:— वैसे भी अब गहलोत के कर्मों के कारण कांग्रेस खत्म होने की ओर है, तो ऐसे में पायलट के लिये कांग्रेस में कोई भविष्य नहीं रह जायेगा, इसलिये पायलट को एक लड़ाके के रुप में सामने आकर बोल्ड स्टैप से अपने समर्थकों को बताना चाहिये कि वह कमजोर नहीं हैं, वह धोखा खा सकते हैं, लेकिन अपने चहेतों को धोखा नहीं दे सकते हैं।
लोग कह रहे हैं कि पायलट को लेकर गहलोत कभी समझौता नहीं करेंगे, उनका दिल इतना बड़ा नहीं है कि वह माफ करके पायलट के साथ किसी नतीजे पर पहुंच जायें। असल बात यह है कि यह अशोक गहलोत की एक और चाल है, जिसमें आलाकमान के नाम पर पायलट फंसने जा रहे हैं। वास्तवकिता यह है कि राजस्थान के मामले में कांग्रेस आलाकमान पूरी तरह से पंगु साबित हो चुका है, निर्णय सिर्फ अशोक गहलोत को ही करने हैं, इसलिये यह कथित समझौता एक बार फिर पायलट के खिलाफ साजिश बनकर सामने आयेगा, और यह समझौता अशोक गहलोत का का सचिन पायलट के खिलाफ आखिरी ब्रह्मास्त्र है, जो उनकी राजनीति खत्म करने के लिये फैंका गया है।
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