Ram Gopal Jat
—महंगाई राहत कैंप अब बचाव राहत कैंप बनते जा रहे हैं। सरकार तो दावा कर रही है कि सरकार इन्हीं राहत कैंपों से रिपीट होगी, लेकिन दूसरी खेमे ने इन राहत कैंपों को पहले आफत कैंप बनाया तो अब इनको बचाव राहत कैंप बनाने पर आमादा है। विरोधी कैंप के मुखिया एक जून के बाद क्यों करने वाले हैं, इसका अंदाजा लगाना अभी कठिन है, और उससे भी बड़ी बात यह है कि भाव नहीं मिलने के कारण हाल ही में एक्सपोज हुई महाराणी भी अब बेहाल दिखाई दे रही हैं। जिन बातों को कई बरस दबाये रखा, उनको एक युवा नेता ने पहली ही टक्कर में सार्वजनिक कर दिया। दोनों अलाइंसधारियों को सफाई देनी पड़ी पर सफाई से भी पार नहीं पड़ी है। आलाकमान दोनों से परेशान है और राणी का राजनीतिक भविष्य काणी होने की कगार पर पहुंच चुका है। बीते कई बरसों में जादूगर की विफलताओं पर कभी दो शब्द मुंह से नहीं बोलने वाली राणी ने एक दो बयान देकर रश्मअदायगी करने का प्रयास किया, लेकिन उससे आगे नहीं बढ़ पाईं और फिर रिपोर्ट भी दिल्ली पहुंची तो चुप हो जाना ही मुनासिब समझा। अब राणी को भी बचाव कैं की जरुरत पड़ती दिखाई दे रही है, जहां से सत्ता मिल जाये, लेकिन सत्ता रिपीट वाले ने पोल खोलकर टेढे—मेढे रास्ते भी बंद कर दिये हैं।
—सचिन पायलट ने पिछले दिनों यात्रा निकालकर सरकार और आलाकमान को पसीने छुड़ा दिये हैं। प्रभारी रंधावा को कहना पड़ा है कि दोनों को साथ बिठाना मुश्किल है और पायलट को पार्टी से बाहर नहीं किया जा सकता है। वही रंधावा हैं, जो अनशन के बाद बोले थे कि मैं सख्त कार्यवाही करुंगा। फिर बोले थे कि पायलट मेरे छोटे भाई हैं और मामला सुलझा लेंगे, चुनाव में दोनों नेता साथ मिलकर जायेंगे। पर ऐसा होना तो दूर की बात, साथ बैठना भी कठिन हो गया है। पायलट ने ऐलान ही कर दिया है कि वह अब पीछे हटने वाले नहीं हैं। कर्नाटक का सियासी नाटक खत्म होने के बाद अब आलाकमान राजस्थान की तरफ झांक तो रहा है, लेकिन कुछ कर पायेगा, इसकी संभावना नहीं के बराबर है।
—मई का समय बीतने में एक सप्ताह भी नहीं बचा है। और उसके बाद क्या होगा, यह जो निकलकर सामने आ रहा है, उसके अनुसार सरकार पर हमलों की रफ्तार तेज होने वाली है। युवा कैंप तैयारियों में लगा है और इसकी शुरुआत को लेकर कहा जा रहा है कि 11 जून का समय तय हो सकता है, जब स्व. राजेश पायलट की पुण्यतिथि होगी। हालांकि, एक जून से ही आंदोलन का समय निर्धारित किया गया था, लेकिन इसकी तैयारी करते करते 11 जून आ जायेगी, जो सबसे तेज गर्मी का समय होगा और यही गर्मी राजस्थान की राजनीति में बहुत तेज गर्मी पैदा करने वाली होगी।
—इधर, महंगाई राहत कैंप वाले जादूगर के लिये काम करने वाली डिजाइन बॉक्स के बॉक्स में से कई तरह के पम्पलेट, बैनर निकलकर सामने आ रहे हैं। जिनमें पायलट को बदनाम करने से लेकर चौथी बार वाला जननायक भी शामिल है। हालांकि, तीन बार का इतिहास और भाजपा की टीम के सामने डिजाइन बॉक्स कितना टिक पायेगा, यह देखने वाली बात होगी। अब राहत कैंप के जरिये भले ही 10 गुणा राहत के आंकड़े पेश किये जा रहे हों, लेकिन हकिकत यह है कि जब सरकार के पास आधार, जनाधार, बिजली के बिल, पेशनधारियों की जानकारी जैसी सभी तरह की चीजों मौजूद हैं, तो फिर इस भीषण गर्मी में गरीब जनता को लाइनों में लगाने का क्या औचित्य है? यह भी डिजाइन बॉक्स का ही कमाल है, वरना जो काम पहले चल रही रहा है, उसकी राहत कैसे हो सकती है? डिजाइन बॉक्स आज वो कर रहा है, जो मोदी के पीके ने 2012 के समय गुजरात में किया था। यानी डिजाइन बॉक्स भी पीके से 11 साले पीछे है और इसके कारण जादूगर भी एक दशक पीछे ही हैं।
—राहत कैंप वाले कह रहे हैं कि जो रजिस्ट्रेशन नहीं करवायेंगे, उनको भी सारे लाभ मिलेंगे, तो फिर इन करोड़ों—करोड़ों रुपयों की बर्बादी का डिजाइनर कौन है और जिम्मेदार कौन है? उज्जवला वाले कौन है, यह सरकार को पता है। बीपीएल कौन हैं, यह सरकार को पता है। पेशन वाले कौन हैं, यह भी सरकार को पता है। चिरंजीवी वाले कौन हैं, यह भी सरकार जानती है। तो फिर सवाल यह उठता है कि इस तपती लू में लोगों को लाइनों में लगाकर क्या हासिल करना चाहते हैं? असल बात यह है कि पहले से चल रही योजनाओं का ढिंढोरा पीटना है और लोगों को बताना है कि हम इतनी योजनाएं चला रहे हैं। इसका लाभ कितने होगा और चुनाव में क्या फर्क पड़ेगा, यह देखने वाली बात होगी, लेकिन फिलहाल पूरी सरकारी मशीनरी इसी अभियान में लग रही है, जहां करोड़ों रुपयों को फूंका जा रहा है।
—राजस्थान पहले ही कई चीजों में एक नंबर है। जैसे महिलाओं के पर अत्याचार में एक नंबर, दलित अत्याचार में एक नंबर, नाबालिकों के साथ अनाचार में राजस्थान पहले स्थान पर है। इसी तरह से किसान सुसाइड में राज्य का पहला स्थान है। ऐसे ही जल जीवन मिशन में भष्ट्राचार में राजस्थान का कोई सानी नहीं है। भष्ट्राचार तो राजस्थान के लिये चौली दामन का साथ बन चुका है। गहलोत की उपलब्धि कहें कि शर्मनाम बात, लेकिन पिछली बार मंत्री योन उत्पीड़न में पकड़े जाते थे और इस बार सरकार ने भष्ट्राचार के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं। इसलिये असली राहत तो जनता नवंबर के चुनाव में देगी, जब पांच साल बाद जनता को अपनी मर्जी करने का मौका मिलेगा।
—इधर, जादूगर के नये पैंतरे ने मैडल का बुरा हाल कर दिया है। काफी समय से हनुमान बेनीवाल कह रहे थे कि गहलोत—वसुंधरा एक ही हैं, लेकिन कोई मानता ही नहीं था। पायलट ने दोनों पर इशारों में उंगली उठाई तो दोनों ने ही परोक्ष रुप से स्वीकार कर लिया कि दोनों एक दूजे को बहुत मदद करते हैं। धौलपुर वाली सभा ने तो जादूगर का जादू ही फैल कर दिया। अब तो खुद भी पछता रहे होंगे कि भावावेश में क्या बोल दिया? लेकिन मुंह से निकले शब्द कब वापस आते हैं? भले ही बाद में कहें कि मेरा तात्पर्य यह नहीं था।
—डूबती नाव में सवार जादूगर ने भले ही जोश जोश में कहा दिया हो कि वसुंधरा राजे ने उनकी सरकार बचाने में मदद की थी, लेकिन यही वाक्य वसुंधरा के करियर पर सवाल खड़े कर गया है। सतीश पूनियां को अध्यक्ष पद से हटाने के बाद कुछ राहत की सांस आई ही थी कि गहलोत ने अपने मुंह से बोलकर सारे किये कराये पर पानी फेर दिया। अब तीसरी बार सीएम बनने की आस लगाये बैठीं वसुंधरा के सियासी सफर पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है। सुना तो यह भी है कि पार्टी की लीडरशिप ने रिपोर्ट ही आलाकमान को वीडियोज के साथ भेज दी है। सीएम बनने पर तलवार पहले से लटकी थी, अब बिलकुल ही पत्ता कट गया है। सुना तो यह भी है कि भाजपा ने गंभीरता से रिपोर्ट को पढ़ लिया है कि और उसको सुरक्षित भी रख लिया है।
—इधर, दो महीनों में दो धमाके करके सियासी आग लगा चुके पायलट तीसरे धमाके की तैयारी में हैं, जो जून की सबसे प्रचंड लू के साथ सामने आयेंगे। वैसे भी अब चुनाव में केवल पांच ही महीने बचे हैं, जो तैयारी के हिसाब से ठीक ठाक समय है। पायलट जब तक बहुत अधिक मुखर नहीं होंगे, तब तक पार्टी उनको बाहर करेगी नहीं, और पायलट ही बाहर जाते हैं, तो फिर गहलोत की पो बारह हो जायेगी, जो पायलट चाहते नहीं। इसलिये राजस्थान की सियासत में आने वाले दिनों में राजनीतिक ड्रामेबाजी की चरम जंग देखने को मिलेगी। इस दौरान कोई पार्टी से निकाला जायेगा, कोई पार्टी बनायेगा, कोई गठबंधन करेगा और कोई सत्ताधारियों को सत्ता से बाहर बिठायेगा।
जून में क्या धमाका करेंगे सचिन पायलट, वसुंधरा अब भी बेहाल क्यों हैं?
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