Ram Gopal Jat
राजस्थान भाजपा इन दिनों बदलाव के दौर से गुजर रही है। मार्च के अंतिम दिनों में अचानक प्रदेशाध्यक्ष बदलकर भाजपा ने सभी को अचंभित कर दिया। इसके बाद रविवार, 2 अप्रेल को पार्टी ने विधानसभा में नया नेता प्रतिपक्ष और उपनेता प्रतिपक्ष बनाकर बड़े बदलाव किये हैं। समाचार पत्रों की भाषा में कहें तो राज्य की सबसे बड़ी आबादी जाट को उपनेता प्रतिपक्ष, दूसरे नंबर की जाति राजपूतों को नेता प्रतिपक्ष और तीसरी सबसे बड़ी आबादी ब्राह्मणों को प्रदेश अध्यक्ष का पद देकर जातिगत समीकरण साधने का काम किया है। किंतु हकिकत कुछ और ही है। भाजपा ने यह गणित खुद नहीं बनाई, बल्कि प्रदेशाध्यक्ष बदलने को लेकर सामने आई आरएसएस की सख्त नाराजगी के बाद ये कॉम्बिनेशन बनाने को मजबूर होना पड़ा है।
दरअसल, पार्टी ने 23 मार्च को शहीद दिवस के दिन प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां की जगह चित्तौड़गढ़ सांसद सीपी जोशी को नया अध्यक्ष बनाया था। सतीश पूनियां का कार्यकाल वैसे तो 27 दिसंबर को ही पूरा हो चुका था, लेकिन पार्टी ने उनको विधानसभा चुनाव तक एक्सटेंशन दे दिया था। खुद प्रभारी अरूण सिंह ने भी कहा था कि विधानसभा चुनाव तक अध्यक्ष नहीं बदला जायेगा। किंतु तीन माह बाद अचानक से नया अध्यक्ष बनाकर भाजपा ने सभी को चौंका दिया। संभवत: इस बात का अंदाजा तीन दिन पहले तक सतीश पूनियां को भी नहीं रहा होगा कि उनकी जगह दूसरा अध्यक्ष बनाया जायेगा। इस बीच 21 मार्च को उन्हें दिल्ली बुलाया गया। उधर, आसाम के राज्यपाल गुलाबचंद कटारियो को भी दिल्ली बुलाकर रोका गया। दोनों से तीन दिन तक मंथन कर 8 नामों में से एक पर मंथन करने को कहा गया, जिसमें दोनों की ओर से सीपी जोशी का नाम सामने आया। 23 तारीख को कटारिया और पूनियां की मुहर लगने के बाद भाजपा ने सीपी जोशी के रुप में नये अध्यक्ष के नाम का ऐलान कर दिया।
नया अध्यक्ष बनते ही राजस्थान आरएसएस की इकाई नाराज हो गई। सामने आया कि जिस तरह से संघप्रिय सतीश पूनियां की जगह नया अध्यक्ष बनाया गया, उसको लेकर संघ ने अपनी नाराजगी भाजपा के सामने जताई थी। इसके कारण आनन—फानन में भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष, प्रदेश प्रभारी अरूण सिंह, प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी, संगठन महामंत्री चंद्रशेखर को जयपुर स्थिति संघ कार्यालय में तलब किया गया। जहां पर एक लंबी बैठक हुई और सतीश पूनियां को हटाये जाने पर संघ की नाराजगी से इनको अवगत करवाया गया। माना जाता है कि सतीश पूनियां संघ की पहली पसंद हैं, जिनको लेकर संघ कोई समझौता नहीं करना चाहता है। चूंकी प्रदेशाध्यक्ष बदला जा चुका था, इसलिये सीपी जोशी को वापस हटाया जाता तो पार्टी की किरकिरी होती, इसलिये यह तय किया गया कि सतीश पूनियां को तुरंत प्रभाव से अच्छी पॉजिशन पर लगाया जायेगा, ताकि प्रदेश की किसान कौम में जा रहे गलत मैसेज को कंट्रोल किया जा सके।
इसके बाद पार्टी के पास दो विकल्प थे। पहला नेता प्रतिपक्ष का और दूसरा उपनेता प्रतिपक्ष का पद। संगठन में अनुभव के हिसाब से सतीश पूनियां राजेंद्र राठौड़ से अधिक बड़ा कद रखते हैं, लेकिन चुनाव जीतने और विधानसभा के हिसाब से राठौड़ का अनुभव ज्यादा है। उम्र भी राठौड़ की सतीश पूनियां से अधिक है। राठौड़ 7 बार के विधायक हैं, तीन बार मंत्री रह चुके हैं और बीते चार साल से उपनेता प्रतिपक्ष हैं। इधर, सतीश पूनियां पहली बार के विधायक हैं, जबकि साढ़े तीन साल अध्यक्ष रहे हैं, उससे पहले 14 साल महामंत्री और युवा मोर्चा के अध्यक्ष रहे हैं। देखा जाये तो सतीश पूनियां को संगठन का अनुभव है, जबकि राठौड़ को विधानसभा का। विधानसभा में अच्छी तैयारी और अनुभव को देखते हुये राठौड़ भारी पड़ रहे थे। दूसरी बात यह है कि वह बीते चार साल से उपनेता के तौर पर सरकार के साथ राठौड़ दो—दो हाथ भी कर रहे थे। उन्होंने विधायकों के इस्तीफे मामले में कोर्ट में खुद पैरवी की है। साथ ही इस वजह से सरकार के निशाने पर भी आ गये थे। हालांकि, जब गुलाबचंद कटारिया को राज्यपाल बनाया गया, तब बजट रिप्लाई के समय सतीश पूनियां ही नेता प्रतिपक्ष के तौर पर बोले थे, तब यह माना जाने लगा था कि उनको नेता प्रतिपक्ष बनाया जा सकता है, लेकिन उनको पार्लियामेंट्री के तौर पर केवल चार साल का अनुभव है, जबकि राठौड़ के पास 23 साल का लंबा एक्सपीरियंस है। इस वजह से राठौड़ के उपर सतीश पूनियां को बिठाया जाना कैडर के हिसाब से ठीक नहीं रहता।
अंतत: यह हुआ कि राठौड़ को नेता प्रतिपक्ष के पद पर प्रमोट किया जाये। किंतु सतीश पूनियां को भी कहीं पर ससम्मान एडजस्ट करना जरुरी था। रविवार को कोर कमेटी की बैठक हुई, जिसमें तय हुआ कि राठौड़ को नेता प्रतिपक्ष और विधानसभा में उनके सहयोगी के रुप में सतीश पूनियां को उपनेता प्रतिपक्ष बनाया जाये। पार्टी ने इसपर मुहर लगाकर संघ को संतुष्ट करने का प्रयास किया है। उससे पहले यह माना जा रहा था कि राठौड़ के सहयोगी के रुप में वासुदेव देवनानी को उपनेता प्रतिपक्ष बनाया जायेगा। विधानसभा में अनुभव के आधार पर सतीश पूनियां की तरह भाजपा के बहुत कम विधायक हैं, जो पहली बार जीतकर पहुंचे हैं, लेकिन फिर भी सब पर सतीश पूनियां को वरीयता देना इस बात का पुख्ता प्रमाणा है कि संघ की नाराजगी ने भाजपा की पूरी रणनीति पर पानी फेर दिया है।
बताया जाता है कि राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष और प्रदेश प्रभारी अरूण सिंह के सामने संघ के पदाधिकारियों ने सतीश पूनियां को लेकर कड़ी नाराजगी जताई थी और कहा था कि यदि सतीश पूनियां को संगठन में जिम्मेदारी से बाहर रखा जायेगा तो इसका परिणाम आने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को भुगतना पड़ेगा। संघ का कहना था कि जिस तरीके से बिना विश्वास में लिये सतीश पूनियां को हटाया गया था, वह संघ के हिसाब से अपमानजनक था। संघ की नाराजगी को जब भाजपा आलाकमान को चला तब बीएल संतोष, अरूण सिंह जैसे नेताओं को जयपुर भेजा गया। संघ सतीश पूनियां को कितना पसंद करता है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि बैठक में संघ के पदाधिकारियों ने स्पष्ट शब्दों में पूनियां को अध्यक्ष पद से हटाये जाने को लेकर अपना रोष जताया था। इसी बैठक में यह तय हो गया था कि सतीश पूनियां को उपनेता प्रतिपक्ष बनाया जायेगा।
रविवार को कोर कमेटी की बैठक इसकी केवल रस्मअदायगी थी। वसुंधरा राजे की कमजोरी भी एक बार फिर से खुलकर सामने आ चुकी है। क्योंकि राठौड़ को भी वसुंधरा विरोधी माना जाता है। वह बीते तीन साल से सतीश पूनियां के गुट में रहे हैं। दूसरी बात यह है कि अध्यक्ष बने सीपी जोशी भी संघ के खास हैं। टॉप के तीनों पदों पर संगठन और संघ की पसंद के नेताओं को बिठाया गया है। अब केवल चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष पद पर ताजपोशी होनी बाकी है, जिसे पाने को लेकर वसुंधरा खेमा जोर लगा रहा है। यदि यह पद पर भी वसुंधरा खेमे को नहीं मिला तो तय है कि चुनाव बाद भी वसुंधरा राजे को कोई जिम्मेदारी नहीं दी जायेगी।
आरएसएस की नाराजगी ने बिगाड़े भाजपा के समीकरण
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