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सचिन पायलट जब विरोध करते हैं तो धुवां निकाल देते हैं

Ram Gopal Jat
कांग्रेस पार्टी अपने विधायकों से फीडबैक ले रही है। पार्टी यह कार्यक्रम तीन दिन तक चलायेगी, जिसमें प्रत्येक विधायक से सरकार के कार्यों का फीडबैक लेगी और उसके बाद पूरी रिपोर्ट दिल्ली भेजी जायेगी। एक तरह से कहें तो यह फीडबैक कार्यक्रम सीएलपी मीटिंग की तरह ही है, लेकिन इसमें यह नहीं पूछा जा रहा है कि मुख्यमंत्री किसको रखा जाये या वर्तमान में सीएम को बदल दिया जाये। इस फीडबैक कार्यक्रम में प्रत्येक विधायक से 13 सवाल पूछे जा रहे हैं, जिनमें पहला ही सवाल जाति और धर्म की वोटिंग गणित के बारे में पूछा गया है। यही सवाल कांग्रेस के लिये मुसिबत भी बन गया है। भाजपा इसको कांग्रेस की तुष्टिकरण का उदाहरण ​बताते हुये कहा है कि 'भाजपा देश देखती है और कांग्रेस जात और धर्म देखती है। पहला ही सवाल समाज को तोड़ने का प्रमाण है।'
इसके अलावा पूर्वी राजस्थान में ईआरसीपी को मुद्दा बनाने, सरकार की योजनाओं के बारे में राय, महंगाई राहत कैंप की सफलता के बारे में विचार जैसे सवाल किये गये हैं। सोशल मीडिया अकांउट्स के बारे में भी जानकारी मांगी गई है। इस सूची में सचिन पायलट कैंप के बारे में या उसके नकारात्मक प्रभाव के बारे में कोई सवाल नहीं है। एक तरफ पार्टी जहां फीडबैक के जरिये राय लेकर सरकार की मनचाही गलतियों में सुधार करने का काम शुरू कर रही है, तो दूसरी ओर सचिन पायलट ने एक बार फिर से सरकार के उपर हमला बेाला है। पायलट ने यहां तक कह दिया है कि वह शालीन भाषा में विरोध करते हैं, लेकिन जब करते हैं धुवां निकाल देते हैं।
यह बात सही है कि सचिन पायलट ने इस वक्त कांग्रेस की धुवां निकाल रखी है। 11 अप्रेल को एक दिन का अनशन करके सचिन पायलट ने मौन रहकर अपनी ताकत दिखाई है। सरकार 13 जिलों को लेकर चिंतित है। इन जिलों से भी कांग्रेस की सरकार बनी थी, जहां ईआरसीपी का मुद्दा है और इस क्षेत्र में सचिन पालयट का सबसे अधिक प्रभाव माना जाता है। सरकार इस क्षेत्र में ईआरसीपी को लेकर बयान देती है, बजट देने का दावा भी करती है, लेकिन अभी तक एक फावड़ी तक नहीं चलाई गई है, जिससे साफ जाहिर है कि सरकार की नीयत में खोट है। पूर्वी राजस्थान के इन 13 जिलों की अधिकांश सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार जीते थे और उन्हीं के दम पर सरकार चल रही है। पश्चिमी राजस्थान, शेखावाटी और दक्षिण राजस्थान में कांग्रेस के बजाये भाजपा अधिक मजबूत स्थिति में है, जबकि पश्चिमी राजस्थान में इस बार हनुमान बेनीवाल सबसे बड़े दावेदार हैं। उनको नजरअंदाज करके कोई पार्टी सत्ता की सीढ़ी तक नहीं पंहुच पायेगी।
बीते दो दशक में राजस्थान में ऐसे दो ही नेता हुये हैं, जिनका पूरे राजस्थान में समान रुप से प्रभाव माना जाता है। साल 2003 में जब वसुंधरा राजे को राजस्थान भेजा गया था, तब उनकी पूरे राज्य में तूती बोलती थी, वह जिस क्षेत्र में जाती थीं, वहां अपार जनसमूह एकत्रित होता था। उसके बाद धीरे धीरे उनका प्रभाव कम होता चला गया। 2006 में शुरू हुये गुर्जर आरक्षण आंदोलन ने 2008 में वसुंधरा राजे को सत्ता से बाहर कर दिया। साल 2013 में भाजपा ने प्रचंड़ बहुमत की सरकार बनाई, लेकिन वो जीत गहलोत सरकार की नाकामियों और मोदी लहर की देन मानी जाती है। इसके बाद 2018 में वसुंधरा राजे का करिश्मा लगभग समाप्त हो गया। आज वसुंधरा कैंप भले ही उनके दम पर जीतने और सरकार बनाने का दावा करे, लेकिन जनता में अब वसुंधरा का चमत्कार समाप्त हो गया है।
दूसरे नेता हैं सचिन पायलट, जिनको जनवरी 2014 में राजस्थान कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर भेजा गया। पायलट जब से राजस्थान में आये हैं, तब से उनके प्रति लोगों की दीवानगी बढ़ती जा रही है। आज वह सत्ता का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन उनकी पार्टी की सरकार होने के बाद भी वह विरोध कर रहे हैं, जिससे लोगों का उनके प्रति विश्वास और अधिक बढ़ा है। राज्य के राजनीति में सचिन पायलट सबसे शालीन भाषा में बोलने वाले नेताओं की पहली पंक्ति में खड़ हैं। 2020 से पहले तक अशोक गहलोत को परिपक्व नेता माना जाता था, लेकिन सचिन पायलट कैंप की बगावत ने अशोक गहलोत की पोल खोलकर रखी दी, जब उन्होंने नाकारा, निकम्मा जैसे बयान देकर अपनी असलियत दिखाई।
अशोक गहलोत सरकार द्वारा ओल्ड पेंशन स्कीम को वापस शुरू करना, बेरोजगारों को एक बार फीस देकर कितनी भी बार भर्ती परीक्षा देने की सुविधा देना, उज्ज्वला योजना वाले लोगों को 500 रुपये में सिलेंडर भरना, सभी उपभोक्ताओं केा 100 यूनिट तक बिजली फ्री करना, किसानों को 2000 यूनिट बिजली उपलब्ध करवाना और पेंशनधारियों को 1000 रुपये मासिक पेंशन देने जैसी योजनाएं दी जा रही हैं। इसके बावजूद सचिन पायलट का भारी दबाव झेल रही कांग्रेस सरकार सरकारी रिपीट होने के प्रति आश्वस्त नहीं है। माना जा रहा है कि इस बार अशोक गहलोत​ ने सत्ता रिपीट कराने के लिये राजस्थान में दिल्ली का फ्री मॉडल अपना लिया है, जिसके कारण सरकारी खजाना खाली है, विकास के काम ठप हो गये हैं, लोगों को मुफ्तखोर बनाने की प्रतियोगिता चल रही है। राजनीतिक चतुराई से सरकार तो सवा चार साल चला ली है, लेकिन फिर भी सत्ता दुबारा प्राप्त करने के लिये सचिन पायलट जैसे करिश्माई लीडर की जरुरत कांग्रेस को पड़ेगी।
11 तारीख को अनशन के बाद 17 अप्रेल तक सचिन पायलट शांत थे। वो दिल्ली में कांग्रेस नेताओं से मिले, उनको अपनी बात भी बताई, लेकिन इसके बाद वह शाहपुरा और खेतड़ी में दहाड़े, उसकी आवाज ना केवल सिविल लाइन के मुख्यमंत्री आवास तक पहुंची, बल्कि दिल्ली में राहुल गांधी के बंगले तक भी सुनाई दी है। अशोक गहलोत ने इस बार सीधे सचिन पायलट को कुछ नहीं बोला, बल्कि कांग्रेस आलाकमान को प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा के जरिये अपना जवाब भेजा है और बताया कि वसुंधरा राजे सरकार के भ्रष्टचार के 91 मामलों की जांच करवाई गई थी। हालांकि, इसमें किसी भी सीएम, मंत्री या अधिकारी पर कार्यवाही नहीं हुई, बल्कि वसुंधरा राजे के सचिव रहे आईएएस तन्मय कुमार को दिल्ली डेपुटेशन पर भेज दिया गया था, जिनको लेकर विपक्ष में बैठे अशोक गहलोत ने गंभीर आरोप लगाये थे।
सचिन पायलट ने यही दावा किया है कि जो आरोप विपक्ष में रहते उन्होंने अशोक गहलोत के साथ वसुंधरा सरकार पर लगाये थे, उनकी जांच नहीं करवाई है। अशोक गहलोत ने इसका जवाब देते हुये लिखा है कि जब पायलट डेढ साल तक सत्ता में बैठे थे, तब उन्होंने इसको क्यों नहीं उठाया। चार साल तक भी वह नहीं बोले, लेकिन अब चुनाव नजदीक होने के साथ ही सचिन पायलट विरोध कर रहे हैं। यह बात भी समझने वाली है कि राज्य में असली लड़ाई अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सीएम पद की ही है, जिसपर अशोक गहलोत बैठै हैं, और हटना भी नहीं चाहते हैं। दूसरी ओर पायलट कैंप दावा करता रहा है कि राजस्थान में सत्ता सचिन पायलट के दम पर मिली थी, अशोक गहलोत ने ग्रांउड पर कोई मेहनत नहीं की थी। यह बात तो बिलकुल सच है​ कि जब कांग्रेस विपक्ष में थी, तब अशोक गहलोत राष्ट्रीय महासचिव बनकर दिल्ली चले गये थे, महीने दो महीनों में राजस्थान आकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के अलावा कुछ नहीं दिया था।
चुनाव के ठीक दो महीने पर पहले वह सचिन पायलट और राहुल गांधी के साथ रैलियों में नजर आने लगे थी, लेकिन सड़क पर या सदन में एक शब्द का संघर्ष अशोक गहलोत ने नहीं दिया था। उससे पहले अशोक गहलोत के सीएम रहते ही कांग्रेस पार्टी 21 सीटों पर सिमट गई थी। सचिन पायलट ने सड़क पर और रामेश्वर डूडी ने सदन में सरकार से लडाई लड़ी थी। जिसके कारण ही कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन पांच महीनों बाद सीएम बनाने का आश्वासन देकर सचिन पायलट को डिप्टी सीएम पद पर बिठा दिया गया। बाद में जुलाई 2020 को जो हुआ, उसके बाद से ही कांग्रेस सरकार तीन पैरों पर चल रही है।
कांग्रेस इस बात को तो अच्छे से जानती है कि सचिन पायलट के बिना सत्ता प्राप्त नहीं होगी, लेकिन आलाकमान की मजबूरी यह है कि वह अशोक गहलोत को हटा भी नहीं सकती है। यदि अशोक गहलोत को हटा सकती तो 25 सितंबर की घटना के बाद ही हटा देती। सचिन पायलट के बीते तीन साल से केवल आश्वासन मिल रहा है, किंतु वह अब आरपार की लड़ाई के मूड में आ गये हैं। चर्चा है कि इस महीने में यदि अशोक गहलोत को हटाकर उनको सीएम नहीं बनाया तो वह सरकार से हाथ खींच सकते हैं। हनुमान बेनीवाल ने गहलोत वसुंधरा का गठजोड़ बताया है, अब यदि पायलट की मांग के अनुसार गहलोत सरकार वसुंधरा राजे सरकार के भ्रष्टाचार की जांच करवाती है, तो इस बात का डर है कि भाजपा सरकार बनने पर गहलोत की तीनों सरकारों की जांच की जा सकती है। संभवत: गहलोत इसी डर से वसुंधरा राजे सरकार के भ्रष्टाचार की जांच नहीं करवा रहे हैं।
इधर, पायलट ने साफ कर दिया है कि अब वह ना तो डरने वाले हैं और ना ही पीछे हटने वाले हैं। इसका मतलब यह है कि कांग्रेस यदि उनके साथ न्याय नहीं करती है, तो वह आगे और अधिक आक्रामक होने वाले हैं। पायलट के निशाने पर भले ही वसुंधरा राजे नजर आ रही हों, लेकिन असलियत में उनका टारगेट अशोक गहलोत हैं, जो पायलट के बिना भी सत्ता रिपीट का दावा करते हैं। किंतु अशोक गहलोत शायद भूल जाते हैं कि उनके सीएम रहते दो बार कांग्रेस ने हार का नया इतिहास बनाया है। अब भी हालात जिस तरह के बन रहे हैं, उसके कारण उनके ही मंत्री विधायक कह रहे हैं कि कांग्रेस एक कार में बैठने जितनी ही सीटें जीत पायेगी।

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