Ram Gopal Jat
राजस्थान में 7 महीने बाद विधानसभा चुनाव हैं। विपक्ष में बैठी भाजपा में सबसे बड़ा सवाल मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर है। गुटबाजी शिकायतों के बाद भाजपा ने हाल ही में कई बड़े परिवर्तन किए हैं। वसुंधरा राजे की लगातार नाराजगी के बाद एक कार्यकाल पूरा कर चुके डॉ. सतीश पूनियां की जगह चित्तौडगढ़ सांसद सीपी जोशी को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया। राजेंद्र सिंह राठौड़ को नेता प्रतिपक्ष और डॉ. सतीश पूनिया को उपनेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दी गई है। इन बदलावों के बाद राजनीति के गलियारों में कयास लगाये जा रहे हैं कि क्या भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी को मुख्यमंत्री फेस के रूप में प्रोजेक्ट करेगी? या जीतने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी दी जायेगी?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमने भाजपा शासित 11 राज्यों में चुनावी रणनीति का अध्ययन किया। इनके चुनावों और मुख्यमंत्री के चुनाव को लेकर भाजपा की रणनीति को जानने की कोशिश की, जिससे पता चल सके कि भाजपा सत्ता हासिल करने के बाद CM कैसे चुनती है? हमारे विशलेषण में यह निष्कर्ष निकलकर सामने आया कि साल 2016-2017 के बाद भाजपा ने किसी भी राज्य में प्रदेशाध्यक्ष को मुख्यमंत्री नहीं बनाया। उससे पहले जरूर पार्टी प्रदेशाध्यक्ष को सीएम बना दिया करती थी। नरेंद्र मोदी अमित शाह ने अपनी चुनाव रणनीति में यह बदलाव देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश का चुनाव जीतने के बाद किया। तब से लेकर अब तक पार्टी ने 11 राज्यों में सरकार बनाई, लेकिन कहीं भी प्रदेशाध्यक्ष को मुख्मयंत्री नहीं बनाया गया। यहां तक कि प्रदेशाध्यक्ष को सीएम नहीं बनाने के अपने फैसले पर भाजपा ने उत्तराखंड में एक हारे हुए नेता को मुख्यमंत्री बना दिया।
जनसंख्या के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में साल 2017 और 2022 में भाजपा ने लगातार दो बार सरकार बनाई है। देश के सबसे बड़े राज्य में 2017 में केशव प्रसाद मौर्य पार्टी अध्यक्ष थे, जबकि 2022 में स्वतंत्र देव सिंह प्रदेशाध्यक्ष थे, लेकिन सीएम बनाया गया योगी आदित्यनाथ को। जब 2017 में योगी को सीएम बनाया गया, तब वह सांसद थे और सीएम का चुनाव करने में पार्टी को चार दिन लग गये थे। माना जाता है कि तब भाजपा के अध्यक्ष रहे अमित शाह ने योगी को आगे किया था, ताकि वह अपने संसद के अनुभव का फायदा उठाते हुये यूपी में भाजपा सरकार के द्वारा पार्टी को मजबूत कर सकें। आज योगी दूसरी बार सीएम हैं और जिस तरह के कड़े फैसले योगी लेते हैं, उससे साबित हो गया है कि अमित शाह का फैसला गलत नहीं था।
पूर्वी भारत में आज भाजपा का डंका बज रहा है, लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब पार्टी को वहां पर एंट्री तक नहीं मिली थी। आसाम राज्य में भाभेश कलिता इस समय प्रदेशाध्यक्ष हैं। उनके इस पद पर रहते 2021 में भाजपा की सरकार बनी, लेकिन सीएम बनाया गया हेमंत बिश्वा सरमा को। हेमंत बिश्वा सरमा पहले कांग्रेस पार्टी में हुआ करते थे, लेकिन त्वज्जो नहीं मिलने से नाराज होकर 2016 में पार्टी छोड़ दी थी।
पार्टी ने हरियाणा में 2014 और 2019 में लगातार दो बार सत्ता हासिल की है। इस दौरान रामबिलास शर्मा, सुभाष बराला और अब ओपी धनखड़ प्रदेशाध्यक्ष रहे हैं। लेकिन दोनों बार सीएम मनोहर लाल खट्टर को बनाया गया। हालांकि, खट्टर के खिलाफ महोल है, लेकिन भाजपा ने उनको बदला नहीं है। इससे साबित होता है कि पार्टी जनाधार वाले नेता को नहीं, बल्कि संगठन के प्रति पूर्ण निष्ठावान व्यक्ति को सीएम बनाती है।
आर्थिक रूप से देश के सबसे समृद्ध राज्य महाराष्ट्र में 2015 के बाद दो बार भाजपा सत्ता में आ चुकी है। इस दौरान वहां तीन प्रदेशाध्यक्ष रहे हैं। चंद्रशेखर बावनकुले, राव साहब दानवे और चंद्रकांत पाटिल प्रदेशाध्यक्ष रहे हैं। भाजपा ने 2014 और 2019 में देवेन्द्र फड़नवीस को सीएम बनाया। फड़नवीस को दूसरी बार सीएम पद से तो सप्ताह भर में ही इस्तीफा देना पड़ा था। अब साल भर पहले वहां एनसीपी-शिवसेना-कांग्रेस की सरकार गिर गई तो भाजपा फिर से सत्ता में आई है, लेकिन फड़नवीस को ही डिप्टी सीएम बनाया गया है किसी प्रदेशाध्यक्ष को फिर भी सत्ता नहीं दी गई।
बीते 27 साल से भाजपा का अभेद्य गढ़ बन चुके गुजरात में 2017 में जीतू वाघानी प्रदेशाध्यक्ष थे, लेकिन सीएम विजय रुपाणी को बनाया गया। इसके बाद हाल ही ही में भाजपा ने अब तक की सबसे बड़ी जीत 2022 में हासिल की। भाजपा की इस जीत में प्रदेशाध्यक्ष सीआर पाटिल का महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। पार्टी ने 182 में 156 सीटें हासिल की हैं, लेकिन भूपेंद्र पटेल को सीएम बनाया गया है।
भाजपा के लिये दक्षिण भारत के अपने प्रवेश द्वार कर्नाटक में इन दिनों नलिन कुमार कतील को प्रदेशाध्यक्ष बनाया हुआ है। कतील अगस्त 2019 से लगातार इस पद पर हैं। इस दौरान पार्टी ने पहले बी एस येद्दीयुरप्पा को सीएम बनाया है और बाद में बसवराज बोम्मई को सीएम बनाया गया था, जो वर्तमान में भी सीएम हैं।
इसी तरह से देश का दिल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश में पार्टी साल 2003 से लगातार 2018 तक सत्ता में रही। साल 2018 में पार्टी चुनाव हारी, लेकिन मार्च-2020 में फिर से सत्ता में आ गई। इस दौरान नरेंद्र पाल सिंह तोमर और राकेश सिंह प्रदेशाध्यक्ष रहे, लेकिन सीएम शिवराज सिंह चौहान को बनाया गया।
देवभूमि उत्तराखंड में तो भाजपा ने इतिहास ही बना दिया। इस पहाड़ी राज्य में भाजपा 2017 और 2022 में लगातार दो बार चुनाव जीतकर सत्ता में आई है। वर्ष 2017 में प्रदेशाध्यक्ष थे अजय भट्ट, लेकिन सीएम बनाया गया त्रिवेंद्र सिंह रावत को। फरवरी 2022 में प्रदेशाध्यक्ष थे मदन कौशिक, लेकिन सीएम बनाया गया पुष्कर सिंह धामी को, जबकि धामी खुद विधानसभा चुनाव भी हार गए थे।
गोवा राज्य में वर्ष 2012 से लेकर अभी तक विनय दीनू तेंदुलकर और सदानंद शेठ लगातार प्रदेशाध्यक्ष रहे हैं। वर्ष 2017 और 2022 में लगातार पार्टी ने चुनाव जीते। वर्ष 2017 में मनोहर पर्रीकर और 2022 में प्रमोद सांवत को सीएम बनाया गया। वर्तमान में सांवत सीएम और शेठ प्रदेशाध्यक्ष हैं। मतलब यहां पर भी प्रदेशाध्यक्ष को सीएम का सपना ही देखना है।
हिमाचल प्रदेश में अभी 4 महीने पहले भाजपा सत्ता से बाहर हुई है, लेकिन जब 2017 में यहां चुनाव जीती थी, तब सतपाल सिंह सत्ती प्रदेशाध्यक्ष थे, जबकि सीएम जयराम ठाकुर को बनाया गया था। पूर्वी राज्य त्रिपुरा में अभी एक महीने पहले ही पार्टी सरकार में रिपीट हुई है। जहां पर सीएम बनाया गया है मानिक साहा को, जबकि राजवी भट्टाचार्य पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष हैं।
इस मामले में वसुंधरा राजे काफी भाग्यशाली रही हैं, हालांकि तब मोदी शाह का दौर नहीं था। सबसे पहले वर्ष 2003 और फिर 2013 में राजस्थान में वसुंधरा राजे को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया था और उन्हें ही मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर चुनाव लड़े गए। चुनाव जीतने पर उन्हें सीएम भी बनाया गया। असम में भी 2012 से 2014 के बीच प्रदेशाध्यक्ष थे सर्वानंद सोनोवाल। फिर उन्हें बदल दिया गया, लेकिन एक वर्ष बाद 2015 में वापस उन्हें प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया और 2016 के चुनावों में जीत मिलने पर सीएम भी बनाया गया। इसी तरह से वर्ष 2003 में मध्यप्रदेश में उमा भारती को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया था और चुनाव जीतने पर सीएम भी बनाया गया था। इसका मतलब साफ है कि भाजपा में जब मोदी शाह का दौर नहीं था, तब अध्यक्ष ही सीएम बन जाया करता था, लेकिन फिर उन्होंने इसका ट्रेंड ही बदल डाला।
2014 में प्रधानमंत्री के पद पर नरेंद्र मोदी के आने के बाद भाजपा की बहुत सी नीतियों में क्रांतिकारी बदलाव हुए। उनमें से एक बदलाव यह भी हुआ कि पार्टी ने प्रदेशाध्यक्ष की भूमिका एक संगठनकर्ता की बनाई गई है। इस भूमिका के तहत प्रदेशाध्यक्ष को संगठन संभालने, संगठन चलाने और संगठन के विस्तार की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाती रही है। पार्टी का स्पष्ट मत है कि पार्टी का संगठन मजबूत करने पर सत्ता प्राप्ति ज्यादा आसान रहती है। इसके लिए प्रदेशाध्यक्ष किसी काबिल रणनीतिकार को बनाया जाता है, जो बिना लाग-लपेट के पार्टी को सत्ता में लाने के लिए संगठन को तैयार कर सके, उसको सत्ता का मोह नहीं पालना चाहिये।
जिन राज्यों में भाजपा ने 2017 के बाद चुनाव जीते हैं, वहां पार्टी ने या तो किसी स्थानीय प्रदेश स्तरीय नेता पर भरोसा जताया है या फिर किसी तेज तर्रार सांसद पर। जैसे असम में तत्कालीन सांसद सर्वानंद सोनोवाल को सीएम बनाया था। ऐसे ही उत्तरप्रदेश में भी योगी आदित्यनाथ 2017 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने से पहले लगातार पांच बार सांसद ही थे। केंद्रीय रक्षा मंत्री जैसे शीर्ष पद से मनोहर पर्रीकर को भी 2017 में गोवा भेजकर सीएम बनाया गया था। त्रिपुरा में बिप्लव देव भी सीएम बनाए जाने से पहले सांसद थे। इनके अलावा मनोहर लाल खट्टर, देवेंद्र फड़नवीस, बसवराज बोम्मई, भूपेंद्र पटेल ऐसे नेता हैं, जो अपने प्रदेश में लो-प्रोफाइल माने जाते हैं, जिन्हें सीएम बनने का मौका मिला। पटेल और खट्टर तो विधायक भी पहली ही बार ही बने थे।
राजस्थान में नव नियुक्त प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी भी दो बार से लगातार सांसद हैं। उनका नाम भी सीएम फेस की चर्चाओं में शामिल हो गया है। दूसरी ओर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला भी लगातार दो बार से सांसद हैं। उनका नाम भी राजस्थान के भावी मुख्यमंत्री के रूप में चर्चाओं में लगातार बना हुआ है। उनके अलावा तीन केन्द्रीय मंत्री राजस्थान से हैं गजेंद्र सिंह शेखावत, अश्विनी वैष्णव और अर्जुनराम मेघवाल, इन तीनों का नाम भी भाजपा के सीएम चेहरों में शामिल माना जाता है।
भाजपा इतनी मजबूत पार्टी हो चुकी है कि वो देश के किसी भी राज्य में सरकार बनाती है, तो उसके पास 5 से 10 चेहरे होते हैं, जो सीएम मटेरियल कहे जाते हैं। पार्टी उन्हीं में से किसी को प्रदेशाध्यक्ष और किसी को नेता प्रतिपक्ष और किसी को सीएम बनाती है। इतना तय है कि पार्टी कॉर्पोरेट कल्चर की तरह वर्क ऑफ स्पेशलाइजेशन का सिद्दांत अपनाती है। पिछले 8-10 वर्षों में जब से मोदी शाह केंद्रीय सत्ता में आए हैं, तब से भाजपा की रणनीति में जबरदस्त बदलाव हुए हैं। अब पार्टी में कोई भी खास फैसला केवल दो लोग ही करते हैं, एक तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह। वे हर मेहनत करने वाले को पुरस्कृत करते हैं, लेकिन कब और कैसे यह वे ही तय करते हैं।
किसी भी राजनीतिक संगठन में फैसलों में स्पष्टता होना सबसे बड़ा गुण है। निस्संदेह रूप से यह सच है कि भाजपा में फैसले सुस्पष्ट हैं। वहां सबकी जिम्मेदारियां तय हैं। उन्हीं पर काम किया जाता है। प्रदेशाध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष या कोई और पदों पर जो नेता हैं, उन्हें उनकी जिम्मेदारियां दे दी गई हैं।
हाल ही में भाजपा ने राजस्थान में डॉ. सतीश पूनियां की जगह सीपी जोशी अध्यक्ष बने हैं। जिस तरह का ट्रेंड भाजपा अपना रही है, उससे चर्चा यह भी है कि सतीश पूनियां का समय बीता नहीं है। हो सकता है पार्टी ने रणनीति के तहत गुटबाजी खत्म करने के लिये अध्यक्ष बदला हो और बाद में चुनाव जीतकर सतीश पूनियां को फिर से मुख्यधारा में ले आये। यह बात केवल मोदी शाह को ही पता है कि किसे कहां बिठना है, इसके अलावा संसदीय बोर्ड के नाम का बहाने करते नेता चुपचाप उनके आदेश का इंतजार करते रहते हैं। यही वजह है कि राजस्थान में कोई भी नहीं कह पा रहा है कि अगला सीएम कौन होगा। राजस्थान में आज की तारीख में भाजपा के पास सीएम के रुप में 6 चेहरे मौजूद हैं। सतीश पूनियां की जगह सीपी जोशी के अध्यक्ष बनने के बाद वसुंधरा राजे की सक्रियता ने नेताओं को चिंतित तो कर दिया है, लेकिन इस बात का वसुंधरा को भी भरोसा नहीं है कि उनका भविष्य क्या होगा?
वसुंधरा राजे के लिये ये खबर दोनों ही तरह से बुरी है
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