Ram gopal Jat
राजस्थान कांग्रेस में एक बार फिर से तूफान खड़ा हो गया है। हालांकि, यह तूफान रह रहकर बीते तीन साल से जारी है, किंतु अबकी बार सचिन पायलट ने सीएम अशोक गहलोत और कांग्रेस आलाकमान के सामने आरपार की लड़ाई का मन बना दिया है। सचिन पायलट के अनशन के बाद अशोक गहलोत सरकार पूरी तरह से बैकफुट पर है। कांग्रेस आलाकमान के यहां पर बैठकों का दौर जारी है। सचिन पायलट ने हेमंत बिश्वा शरमा, ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद जैसे नेताओं की तरह अचानक से पार्टी नहीं छोड़ रहे हैं, बल्कि बार बार कह रहे हैं कि उनको केवल ऐसेट नहीं समझा जाये उनको चल संपत्ति मानकर काम में लेना चाहिये।
सचिन पायलट ने अशोक गहलोत —वसुंधरा राजे के गठजोड और एक दूजे को बचाने का मुद्दा बनानाया है। हनुमान बेनीवाल बार बार कहते हैं कि वसुंधरा राजे भ्रष्टचार की देवी, जिनका गहलोत के साथ गठजोड़ होने के कारण वसुंधरा के घोटालों की जांच नहीं करवा रहे हैं। अब इसी को लेकर खफा पायलट ने जयपुर में अनशन किया है। राजस्थान में ऐसा पहली बार हुआ है जब पूर्व डिप्टी सीएम और पूर्व पार्टी अध्यक्ष ने अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ अनशन कर भ्रष्टाचार की जांच कराने की के लिये अनशन किया है।
मंगलवार को सचिन पायलट जयपुर में शहीद स्मारक पर एक दिन के अनशन और धरने पर बैठे। उन्होंने सरकार को दो पत्र लिखने के बाद भी वसुंधरा सरकार के घोटालों की जांच नहीं करवाई जाने के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। माना जा रहा है कि सचिन पायलट ने अब आरपार की लड़ाई का मन बना लिया है।
दूसरी तरफ प्रदेश प्रभारी महासचिव सुखजिंदर सिंह रंधावा ने कहा कि सचिन पायलट ने उनसे पहले कभी भ्रष्टाचार की बात नहीं की और अब अचानक से अनशन किया है। ऐसा कोई मामला था तो पार्टी फॉरम पर अपनी बात रखते, जबकि पायलट ने एक साल में दो पत्र अशोक गहलोत और कांग्रेस आलाकमान को लिखे थे, जिसके बाद भी एक्शन नहीं हुआ, तब यह कदम उठाया गया है। पायलट ने इसको लेकर कहा है कि उन्होंने हर मोर्च पर उठाया है, लेकिन सरकार जांच नहीं करवा रही है।
पायलट के इस अनशन कार्यक्रम से उन्होंने अपने समर्थक विधायकों को दूर रखा है, लेकिन माना जा रहा है कि जयपुर में इस मौके पर पचास हजार से अधिक लोगों के एकत्रित हुये हैं। जानकारी में आया कि कांग्रेस पार्टी अभी भी सचिन पायलट को मनाने का प्रयास कर रही है, इसको लेकर आज पायलट की मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात कर अपना पक्ष रखेंगे। आखिरी बार सचिन पायलट ने कांग्रेस अध्यक्ष से मुलाकात की है, इसके बाद वह सिर्फ जनता के दरबार में जायेंगे।
सवाल यह उठता है कि पायलट ने अनशन और धरने का समय क्यों चुना, जबकि पार्टी मई में होने वाले कर्नाटक चुनाव की तैयारी कर रही है? असल बात यह है कि राजस्थान में आठ महीनों के भीतर चुनाव होने हैं, यानी सरकार के पास मुश्किल से 5 महीने काम करने के बचे हैं। पायलट कैंप का सबसे बड़ा मुद्दा ही मुख्यमंत्री पद को लेकर है, जिसको लेकर 11 जुलाई 2020 को एक बार पायलट और दूसरी बार पिछले साल 25 सितंबर को गहलोत कैंप भी आलाकमान के खिलाफ बगावत कर चुका है।
पायलट का कहना है कि विपक्ष में रहते हुये वसुंधरा सरकार के खिलाफ खान आवंट में 45 हजार करोड़ के घोटाले को लेकर राष्ट्रपति तक गये थे। इसके साथ ही वसुंधरा सरकार के समय शराब घोटाला, बजरी माफिया और बेशकीमती सरकारी कालीन घोटाले के भी आरोप लगाये थे, जिनकी कांग्रेस सरकार बनने पर जांच कराने का वादा किया था, लेकिन सरकार को सवा चार साल बीत चुके हैं, किंतु जांच नहीं करवाई गई है, जिससे विरोधियों ने गहलोत—वसुंधरा गठजोड़ का आरोप तेज कर दिया है।
दरअसल, हनुमान बेनीवाल बीते 9 साल से गहलोत—वसुंधरा गठजोड़ का दावा करते हुये रालोपा की सरकार बनने पर दोनों को ही जेल में डालने का दावा करते हैं। यही बात बीते दिनों आम आदमी पार्टी ने भी कही है और सचिन पायलट ने भी इसी को मुद्दा बनाया है। लोगों का मानना है कि जो व्यक्ति अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन कर दे, वह सबसे इमानदार माना जाता है। सचिन पायलट ने चुनाव से पहले सरकार विरोधी माहोल को हवा दे दी है।
सचिन पायलट ने कहा है कि जब केंद्र सरकार कांग्रेस नेताओं के खिलाफ ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स जैसी ऐजेसियों को इस्तेमाल कर सकती है तो फिर कांग्रेस सरकार राज्य की ऐजेसिंयों को उपयोग कर वसुंधरा सरकार के खिलाफ जांच क्यों नहीं करवा रही है। इसको लेकर प्रभारी रंधावा ने दावा किया है कि सरकार केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के खिलाफ जांच करवा रही है और बीजेपी इस मामले को सीबीआई को सौंपना चाहती है, लेकिन राज्य की ऐजेंसियां सक्षम हैं।
अब सवाल यह उठता है कि यदि राज्य की ऐजेसिंयां सक्षम हैं, जो फिर कृष्ण पूनियां के खिलाफ विष्णुदत्त विश्नोई सुसाइड मामला और हरीश चौधरी भाई के खिलाफ कमलेश प्रजापति एनकांउटर मामला सीबीआई को क्यों सौंपा गया? क्या उन मामलों में राज्य की ऐजेंसिया सक्षम नहीं हैं? इसका जवाब कोई नहीं देना चाहता है।
साल 2008 में दूसरी बार गहलोत सरकार बनने के बाद 2009 में माथुर आयोग बनाया गया था, लेकिन उसको जानबूझकर कमजोर रखा गया, जिसपर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी। उस आयोग को कमिश्नर ओफ इन्क्वायरी एक्ट के तहत नहीं बनाया, जिससे वसुंधरा राजे को समन नहीं भेजा गया। यदि ऐसा किया गया होता तो सीएम, मंत्री और अधिकारियों को समन जाते, जिससे गहलोत ने बचा लिया और बिना ताकत का आयोग बनाकर वाहवाही भी लूटी।
इसी तरह से एकल पट्टा मामले में 2013 में वसुंधरा राजे की दूसरी सरकार बनने के बाद यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल के खिलाफ एसीबी ने जांच की और उनको गिरफ्तार करने तक की नौबत आई। तत्कालीन यूडीएच सचिव जीएस संधु को गिरफ्तार भी किया गया, लेकिन कहा जाता है कि गहलोत के कहने पर वसुंधरा राजे ने धारीवाल को गिरफ्तार नहीं करवाया।
इन दोनों मामलों की तरह कई प्रकरण हैं, जो गहलोत वसुंधरा के गठजोड़ के गवाह हैं। इसलिये पायलट ने कहा कि वसुंधरा सरकार के घोटालों की जांच होनी चाहिये, जिससे विरोधियों को यह नहीं लगना चाहिये कि दोनों मिले हुये हैं।
इस प्रकरण के सियासी मायने यही हैं कि पालयट ने आरपार की लड़ाई का बिगुल बजा दिया है। अब या तो पार्टी उनको सीएम बनायेगी, या बाहर का रास्ता दिखायेगी। यदि सीएम बने तो मामला समाप्त हो जायेगा और यदि बाहर किया तो पायलट को जनता की सिंपेथी मिलेगी। भाजपा के लिये ना कहते बन रही है और ना रोकते। वसुंधरा को बचाव किया जाये तो गहलोत पर अटैक दिया जाये।
यह बात तो सही है कि दोनों नेताओं के बीच सुलह के रास्ते लगभग बंद हो चुके हैं। ऐसे में पायलट पार्टी पर दबाव बनाकर अपने समर्थकों को अधिक से अधिक टिकट दिलवाने के लिये और प्रदेशाध्यक्ष पद अपने समर्थक को दिलवाने के लिये प्रयास कर रहे हैं, या फिर उन्होंने तय कर लिया है कि उनको कांग्रेस में रहना ही नहीं है, और जाते जाते इसको डूबोने का काम करना है, ताकि किसी सूरत में सत्ता रिपीट नहीं हो सके।
पायलट के अनशन में जितने लोग उन्होंने यही कहा है कि वह एकदम सही बात बोल रहे हैं, यदि घोटाले किये गये थे, तो गहलोत सरकार उनकी जांच क्यों नहीं करवा रही है? हर आदमी की जबान पर यही सवाल है कि आखिर कांग्रेस के नेता होकर गहलोत भाजपा की नेता वसुंधरा को क्यों बचाने पर तुले हुये हैं, जबकि उनकी ही पार्टी में बगावत फूट पड़ी है?
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