Ram Gopal Jat
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार का नारा है 'बेटी बचाओ, बेटी पढाओ', लेकिन यह नारा आजकल बेतुका साबित हो रहा है। मोदी सरकार एक ऐसे माफिया, अपराधी, रैपिस्ट के सामने पूरी तरह से सरेंडर हो गई है, जिसके उपर अब तक 38 संगीन मुकदमे दर्ज हैं। एक तरफ तो रैपिस्ट है, दूसरी ओर मोदी सरकार ने वो बेटियां न्याय की गुहार लगा रही हैं, जो देश के लिये दर्जनों मैडल लाकर तिरंगे की दुनियाभर में शान बढ़ा चुकी हैं। ऐसी महिला खिलाड़ी हैं, जिनके हाथ मिलाकर मोदी भी खुद को गौरवान्वित होने का दावा करते हैं, ऐसी खिलाड़ी हैं, जिन्होंने बरसों तक संघर्ष करके देश के लिये कई मैडल जीते हैं। ये बेटियां बीते कई दिनों से दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना देकर बैठी हैं, न्याय की उम्मीद में कि मोदी सरकार उनके उपर हुये अत्याचारों से मुक्ति दिलायेगी, लेकिन तीन महीने पहले कमेटी बनाई, जो कुछ भी नहीं कर पाई और एक अपराधी सांसद बृजभूषण सिंह के खिलाफ अब एफआईआर भी तब हुई है, जब सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है।
इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि सरकार की कथनी और करनी में कितना अंतर है। ऐसा तो हो नहीं सकता है जिन मोदीजी को सोशल मीडिया पर चलने वाली छोटी छोटी बातों का पता होता है, उनको इस धरने के बारे में पता ही नहीं होगा। ऐसा तो होगा नहीं कि देश के टॉप पहलवान बेटियां दिल्ली में ही धरने पर बैठी हैं और मोदी सरकार को इसका अंदाजा ही नहीं है। सवाल यह उठता है कि जब मैडल जीतने पर इन बेटियों को प्रधानमंत्री मोदी चाय पर बुला लेते हैं, उनकी इतनी बड़ी पीड़ा को सुनने का दो मिनट समय नहीं है। अब तो हालात यह हो गये हैं कि जंतर मंतर पर धरने के लिये बैठने से भी मना कर दिया गया है। जहां पर धरना दिया जा रहा है, वहां की बिजली काट दी गई है और पानी भी बंद कर दिया गया है। मोदी सरकार एक बार फिर से वही गलती कर रही है, जो किसान आंदोलन में कर चुकी है। अगले साल चुनाव हैं और जिस तरह से पहलवान बेटियों को मोदी सरकार नजरअंदाज कर रही है, वह अगले साल होने वाले चुनाव में बहुत भारी पड़ सकता है।
बृजभूषण ने कहा है कि वह इस्तीफा दे सकते हैं, लेकिन दोषी रहते हुये नहीं देंगे, इससे यह साबित हो जायेगा कि वह अपराधी हैं। लेकिन सवाल यह उठता है जिसके उपर 84 मुकदमें दर्ज हो, उसे अपराधी कहने में कौनसा गुनाह है। अपराधी तो वह 1974 से ही है, जब उसके उपर पहला मामला दर्ज हुआ था। एक मर्डर तो उसने अपने एक इंटरव्यू में कबूल भी किया है। फिर उसको निर्दोष कैसे माना जा सकता है? उसके समर्थक या सरकार के समर्थक कैसे उसको निरपराधी का सर्टिफिकेट बांट रहे हैं।
मोदी अपने दो कार्यकाल पूरा करने की ओर हैं और तीसरे की आस लगाये बैठै हैं, लेकिन जिस तरह के हालात बन रहे हैं, उससे हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, पंजाब, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में भाजपा को बड़ा नुकसान हो सकता है, जहां दो चुनाव में भाजपा को बड़े पैमाने पर एक तरफा वोट मिले हैं। पार्टी पहले ही किसान आंदोलन के कारण पंजाब से साफ हो चुकी है, अगले साल ना केवल लोकसभा चुनाव हैं, बल्कि उसके बाद हरियाणा का विधानसभा चुनाव भी है, जिनमें पार्टी को झटका लगने कोई रोक नहीं पायेगा। बहुत ही संवेदनशील मुद्दे पर मोदी सरकार जिस तरह से चुप हैं और विपक्ष ने मोर्चा संभाल लिया है, उससे यह धरना एक बार फिर से किसानों के 13 महीने चले धरने की दिशा लेता जा रहा है। 2021 में भी भाजपा ने पहले किसानों से बात नहीं की और जब पूरा मामला विरोधियों के हाथ में चला गया, तब धरना 13 महीनों तक चलता रहा और दिल्ली के तीन राष्ट्रीय राजमार्ग जाम रहे थे, बाद में मोदी को माफी मांगते हुये तीनों कृषि कानून वापस लेने पड़े थे।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर मोदी सरकार की ऐसी क्या मजबूरी है कि एक सांसद के खिलाफ जांच भी इमानदारी से नहीं करवा रही है? आखिर क्या वजह है कि खुद मोदी, या अमित शाह इस मुद्दे पर बोलने को तैयार नहीं हैं, पहलवानों को बुलाकर बात करने को तैयार नहीं हैं? ऐसी क्या मजबूरी है कि एक तरफ दर्जनों मैडल जीतने वाली महिला पहलवान हैं, तो दूसरी ओर एक ऐसा अपराधी सांसद है, जिसके खिलाफ 84 मामले दर्ज हैं। सरकार को इस बात में क्या प्रोब्लम है कि निष्पक्ष जांच बिठाकर धरना समाप्त किया जा रहा है। सरकार ने यदि अब भी समय रहते ध्यान नहीं दिया तो यह धरना भी किसान आंदोलन की तरह हाथ से निकल जायेगा और विरोधियों ने हाईजैक कर लिया तो फिर से मोदी को हाथ जोड़कर सबके सामने आना पड़ेगा। ऐसी नौबत क्यों आ रही है कि सरकार चुप होकर सारा तमाश देख रही है? आखिर क्या कारण है कि एक संगीन अपराधों के आरोपी को पद से हटाकर निष्पक्ष जांच नहीं करवाई जा रही है। सरकार की लापहवाही का आलम यह है कि शिकायत देने के बाद भी एफआईआर तक नहीं हुई उसके लिये भी पहलवानों को सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा।
इस धरने के पीछे की बात की जाये तो कई तरह की बातें सामने आ रही हैं। एक जाति विशेष के लोग तो सोशल मीडिया पर अभियान चला रहे हैं कि फेडरेशन पर हुड्डा और फोगाट परिवार कब्जा करना चाहता है, इसलिये लड़कियों केा आगे करके झूठे आरोप लगाये जा रहे हैं। यदि यह बात सही है तो सरकार क्या कर रही है? क्यों नहीं इस मामले की निष्पक्ष जांच करवाकर सच्चाई जनता के सामने रख रही है? क्यों एक अपराधी सांसद को कुश्ती संघ के पद से हटाकर उच्च स्तरीय जांच करवाकर सच सामने नहीं लाया जा रहा है?
एक आरोप यह है कि यह धरना केवल एक जाति का ही है, बाकि जातियों के खिलाड़ी इसमें शामिल नहीं हो रहे हैं। यदि यह आरोप सही है तो फिर सरकार को चाहिये कि इसका फंडाफोड़ किया जायेगा, जांच के द्वारा, सबूतों के द्वारा और कोर्ट में जाकर इस बात के प्रमाण देने चाहिये, ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। खिलाड़ियों ने कहा है कि बृजभूषण का नार्को टेस्ट करवाया जाये, उससे पूछा जाये कि क्या सबूत हैं, जो वह खुद को बेगुनाह बता रहा है। सबसे बड़ा सवाल ही यही है कि आखिर मोदी सरकार की क्या मजबूरी है जो एक सांसद को कुश्ती संघ के पद से हटाकर जांच नहीं करवाई जा रह है और मामला लगातार बढ़ता जा रहा है? यदि आज धरने की वजह से खिलाड़ियों पर एक जाति का ठप्पा लगाकर उनकी मांग को दरकिनार किया जा रहा है, तो फिर जब ये ही खिलाड़ी देश के लिये मैडल ला रहे थे, तब इनकी जाति के आधार पर नजरअंदाज क्यों नहीं किया गया, तब क्यों पूरा देश इनपर गर्व कर रहा था। आज जब ये लोग मोदी सरकार के एक अपराधी सांसद पर संगीन आरोप लगा रहे हैं, तो उनकी जाति के आधार पर तोला जा रहा है। आखिर क्या मजबूरी है सरकार की, जो खिलाड़ियों के उपर जातिगत आरोप लगाकर उनकी मांगों को दरकिनार किया जा रहा है?
दूसरी बात यह है कि जाति के आधार पर आरोपी बृजभूषण को जातिवादी लोग आरोप मुक्त भी कर रहे हैं और जिन खिलाड़ियों ने देश का मान बढ़ाया है, उनके उपर छींटाकशी कर रहे हैं। जातिवादी ट्वीटर अकाउंट्स के जरिये खिलाड़ियों के लिये गंदी गंदी बातें लिखी जा रही हैं, जिससे देश में दो जातियों के बीच दुश्मनी बढ़ रही है। समय रहते सरकार ने इस मामले का समाधान नहीं किया तो आने वाले दिनों में दो जातियों के बीच वैमनस्य बढ़ेगा, जो अपराध का कारण बनेगा। इससे पहले कि ये मामला खिलाड़ियों और फैडरेशन के बीच से दो जातियों के बीच का बन जाये, उससे पहले ही इसकी निष्पक्ष जांच करवाकर दोषियों पर कार्यवाही करनी चाहिये।
खिलाड़ियों पर एक आरोप यह भी लगाया जा रहा है कि उनकी उम्र अधिक हो गई है, इसलिये वो सीधे ओलंपिक में खेलना चाहती हैं, ताकि उनको नेशनल में ट्राइल नहीं देना पड़े। अगर ऐसी बात है तो सरकार को अपनी निगरानी में सभी खिलाड़ियों का ट्राइल कैंप लगावाकर चयन करना चाहिये, जो योग्य होगा, वो आगे बढ़ जायेगा और जो अयोग्य होगा, वह बाहर हो जायेगा। इसके लिये इतना बड़ बवाल करवाने की क्या जरुरत है? जिनकी ज्यादा उम्र हो गई है, वो स्वत: ही हारकर बाहर हो जायेंगे, उसके बाद कोई बहाना भी नहीं बचेगा। किंतु सवाल यह उठता है कि खिलाड़ी जब धरने पर बैठै हैं, तभी ये बातें क्यों आ रही हैं, उससे पहले किसी ने ऐसी बात क्यों नहीं बोली?
सोशल मीडिया ने सबको कुछ भी बोलने की आजादी दी है, इसका जितना सदपयोग हो सकता है, उससे कहीं अधिक दुरुपयोग हो रहा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि इस मामले से बाहर कैसे निकला जाये? यदि पहलवानों के आरोप सही हैं तो यह बात भी पक्की है कि इस गंदगी में उपर तक कई लोग शामिल होंगे, जो इन पहवानों का शोषण करते होंगे। हो सकता है एक बड़ी लॉबी हो, जो सरकार को अपने प्रेशर में लेकर चल रही हो। यदि ऐसा है तो फिर भाजपा को ऐसे लोगों को पार्टी से बाहर निकालकर जेल में डालना चाहिये। जब तक ऐसे लोग रहेंगे, तब तक पार्टी की छवि खराब होती रहेगी। इससे पहले मंत्री अजय टेनी के बेटे ने जब किसानों पर गाड़ी चढ़ाई, तब भी कार्यवाही करने में काफी देर कर दी थी, जिसका परिणाम भाजपा को आज तक भुगतना पड़ रहा है।
अब सवाल यह उठात है कि देश के सबसे अधिक जरुरी कौन हैं और उपलब्धियां किसके नाम हैं? सबसे पहले तो बजरंग पूनियां की बात की जाये तो साल 2013 से 2021 तक उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कुल 17 मैडल जीते हैं, जिसमें से 6 गोल्ड मैडल हैं। इसी तरह से विनेश फोगाट ने 2013 से 2018 तक कुल 7 मैडल जीते हैं, जिनमें से दो स्वर्ण पदक हैं। इसके साथ ही साक्षी मलिक ने अपने कॅरियर में 16 अंतर्राष्ट्रीय पदक जीते हैं, जिनमें 3 गोल्ड और एक ओलंपिक का कांस्य पद भी शामिल है।
दूसरी तरफ फैडरेशन अध्यक्ष की उपलब्धियों की बात की जाये तो वह लगातार 6 बार से सांसद है। एक बार सपा से भी सांसद रह चुका है। उसके उपर 1974 से लेकर 2007 तक कुल 84 मुकदमे दर्ज हैं, जिसमें गैंगस्टर एक्ट, मर्डर, बलात्कार, आर्म्स एक्ट, चोरी डकैली, मारपीट, अपहरण से लेकर हर प्रकार के मामले चल रहे हैं। अब यह भाजपा की मोदी सरकार को सोचना है कि एक तरफ उसके अपराधी सांसद को बचाना है या फिर देश के लिये सोना, चांदी की बरसात करने वाली बेटियों को न्याय दिलाना है, जिनके लिये देश गर्व करता है। सवाल यही उठता है कि यूपी से गैंगस्टर एक्ट के आरोपी के खिलाफ योगी मोदी की सरकारें कार्यवाही करने के बजाये उसको बचाने का काम किया जा रहा है, जबकि संगीन आरोप लगाने वाले बेटियों को तंग किया जा रहा है, उनपर ही सवाल उठाये जा रहे हैं, उनको लेकर सोशल मीडिया पर अनाप शनाप लिखा जा रहा है, उनको बेइज्जत करने के लिये पूरी लॉबी लगी हुई है।
एक तरफ गैंगस्टर, हिस्ट्रीशीटर, अपराधी सांसद है, जिसके उपर 84 संगीन से संगीन मामले दर्ज हैं, तो दूसरी तरफ वो महिला पहलवान हैं, जिन्होंने देश के लिये 40 से ज्यादा मैडल जीतकर देश का नाम दुनिया में रोशन किया है। वो महिला पहलवान हैं, जिन्होंने देश की बेटियों को कुश्ती करना सिखाया है, जिनको रॉल मॉडल मानकर देश की हजारों—लाखों बेटियां कुश्ती के मैदान में उतर चुकी हैं। अब यह देश की सरकार तय नहीं कर पा रही है, तो देश को ही तय करना होगा कि जो सरकारी तंत्र एक संगीन अपराधी को बचाने के लिये अपना पूरा जोर लगा चुका है, उसके उपर भरोसा किया जायेगा या देश के लिये सोना चांदी जीतकर लाने वाली बेटियों पर?
मोदी सरकार 84 मुकदमों के अपराधी बृजभूषण के आगे सरेंडर क्यों है?
Siyasi Bharat
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