Ram Gopal Jat
इसी महीने की पांच तारीख को जयपुर में ऐतिहासिक जाट महाकुंभ का आयोजन किया गया। इस महाकुंभ में जाट महासभा के राजस्थान अध्यक्ष राजाराम मील और विजय पूनिया संरक्षक थे। देशभर के जाट समाज के लोगों को आमंत्रित किया गया था। इसके लिये करीब एक महीने से प्रचार प्रसार किया जा रहा था। महाकुंभ का ऐतिहासिक महत्व इसलिये था, क्योंकि 23 साल बाद इसका आयोजन हो रहा था। इसके जरिये बहुत सी बात सामने आईं, उसके बारे में जिक्र बाद में करेंगे, लेकिन सबसे पहले इस बात का जिक्र करना जरुरी है कि इस महाकुंभ में जो लोग शामिल हुये, उनमें जाट समाज के सभी क्षेत्रों और लोगों को प्रतिनिधित्व था? क्या जाट समाज के देशभर से सभी बड़े लोग शामिल हुये थे, जिनके आसपास जाट समाज की राजनीति और सोसाइटी चलती है? क्या इस महाकुंभ से वो सब हासिल हुआ, जिसकी समाज को जरुरत है? क्या इसको सफल कहा जा सकता है, जैसा की आयोजक कह रहे हैं?
सबसे पहले इस महाकुंभ में शामिल लोगों के बारे में बात की जाये तो आयोजक मंडल के अलावा जाट समाज के करीब करीब सभी संगठन शामिल हुये, क्योंकि उनको आमंत्रित किया गया था। इस समारोह में भाजपा के अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां, कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, मंत्री हेमाराम चौधरी, विश्वेंद्र सिंह, ब्रिजेंद्र ओला, हरीश चौधरी, रामेश्वर डूडी और भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत और महासचिव युद्धवीर सिंह जैसे नामी लोग शामिल हुये। सभी ने अपनी अपनी बात रखी। हालांकि, युद्धवीर सिंह के भाषण और राजाराम मील के बयान पर कुछ विवाद भी हुआ, किंतु अंतत: पूरा आयोजन शांति से निपट गया। भाजपा अध्यक्ष के सामने कुछ नेताओं ने भाजपा की कमी बताने का प्रयास भी किया, तो कांग्रेस के अध्यक्ष और सरकार के मंत्रियों के सामने थोड़ी असहज होने की नौबत भी आई। कुल मिलाकर नेताओं ने अपने अपने भाषण पूरे किये और समारोह का समापन हो गया।
अब सवाल यह उठता है कि इस समारोह से समाज को क्या हासिल हुआ? राजाराम मील ने बताया कि यह आयोजन इसलिये करना पड़ा, क्योंकि सरकारें जाट समाज को हल्के में लेने लगी थीं। तो क्या माना जाये कि अब सरकार जाट समाज के आगे झुक जायेंगी? क्या जाट समाज से मुख्यमंत्री बना दिया जायेगा, जिसकी मांग पुरजोर तरीके से रामेश्वर डूडी ने उठाई है? क्या राजस्थान में सबसे बड़ी जाट समाज की करीब 20 फीसदी आबादी के दम पर और विधानसभा में करीब इतनी ही संख्या वाले जाट समाज से आने वाले विधायक समाज की बात को पुरजोर तरीके से उठा पायेंगे? यदि ताकत दिखाने में सफलता पाई है, तो निश्चित रुप से इसका असर आने वाले दिनों में सामने आयेगा। युद्धवीर सिंह ने बताया कि चौधरी छोटूराम के माध्यम से समाज को चार मंत्र दिये गये थे, जिनपर चलना समाज के हर व्यक्ति का दायित्व है। क्या जाट महाकुंभ के जरिये समाज को बताया गया कि इन मंत्रों पर कैसे चलना है?
खास बात यह है कि जब जयपुर में जाट महाकुंभ हो रहा था, तभी जाट समाज के पुलवामा शहीद रोहिताश्व लांबा की वीरांगना सरकार से अधिकारों के लिये जयपुर की सड़कों पर पुलिस से भिड़ रही थीं। उसी दौरान एक वीरांगना अपने हक के लिये दर दर की ठोकरें खा रही थीं, और खुद को जाट समाज के मठाधीश कहने वाले बड़े लोग मंच पर बड़ी बड़ी बातें कर रहे थे। शहीद की पत्नी आठ दिन से धरने पर बैठी हैं, लेकिन इन समाज के नेताओं में से किसी ने साथ खड़े होना तो दूर, उससे मिलने तक की जहमत नहीं उठाई। क्या समाज का यही दायित्व है? अलबत्ता जिस महिला का समाज के द्वारा सम्मान दिया जाना चाहिये था, वह अपनी लड़ाई मीणा समाज से आने वाले डॉ. किरोड़ीलाल मीणा के साथ लड़ रही हैं, तो खुद को बीते 23 साल से जाट समाज का ठेकेदार मानकर बैठे हुये राजाराम मील ने एक शब्द तक उस वीरांगना के लिये नहीं बोला।
राजाराम मील को लेकर समाज में जो धारणा बनी हुई है, उसका ही परिणाम था कि एक महीने के प्रचार के बाद भी सबसे बड़ी जनसंख्या वाले समाज से हजारों में ही संख्या जुट पाई। रोचक बात देखिये इस महाकुंभ का असली मकसद क्या था, यह किसी को समझ ही नहीं आया। क्यों लोगों को इकट्ठा किया गया था और क्या उनको कहना था, यह बात कोई नेता नहीं बता पाया। सबने अपना अपना भाषण दिया और बिना किसी नतीजे पर पहुंचे निकल लिये। वैसे राजाराम मील को लेकर समाज में यह धारणा आम है कि वो गहलोत और वसुंधरा की सरकारों में नजदीक रहकर लाभ लेने का काम करते हैं, इसके अलावा समाज के लिये आज दिन तक उन्होंने कोई काम नहीं किया है। लोग जाट समाज को आरक्षण दिलाने में राजाराम मील की बड़ी भूमिका होने का दावा करते हैं, लेकिन इसी मंच पर यातायात मंत्री ब्रिजेंद्र ओला ने साफ किया कि जाट समाज को आरक्षण देने का काम तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवेगोड़ा की बनाई कमेटी के कारण हुआ था, ना किसी अन्य व्यक्ति के कारण।
आयोजन कर्ताओं के परिवार वालों की दूसरी समाजों में रिश्ते के कारण पहले ही काफी सवाल उठते रहे हैं, इस आयोजन के बाद एक बार फिर करीब करीब सभी नेता सवालों के घेरे में हैं। समाज के अंदर से इन नेताओं पर सोशल मीडिया के द्वारा सवाल उठाये जा रहे हैं। एक और रोचक बात देखिये, इस मंच पर एक भी खिलाड़ी नहीं था, जिसने समाज का विश्व में नाम कमाया है। एक भी वीर सैनिक नहीं था, जिसके कारण समाज का मान बढ़ा है। एक भी ऐसा समाजसेवी नहीं था, जिसके उपर किसी तरह का आरोप नहीं हो। मंच पर एक भी ऐसा नेता नहीं था, जिसको लेकर समाज में ही कोई विवाद नहीं हो। वसुंधरा राजे को भी इस कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया था, जिसके पीछे की कहानी समझ ही नहीं आई। क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के अनुसान वो कुर्मी हैं। वसुंधरा राजे धोलपुर जाट राजघराने में ब्याही जरुर गई थीं, लेकिन तलाक होने के बाद वह जाट समाज की कुछ नहीं रह जाती हैं, तो फिर उनको बुलाने का क्या तुक था?
सबसे बड़ी बात यह है कि राजस्थान में अपने दम पर राजनीति को एक नई दिशा देने वाले नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल कार्यक्रम में नहीं थे। कुछ लोगों का कहना है कि उनको बुलाया ही नहीं गया, जबकि कुछ लोग मानते हैं कि बेनीवाल का राजाराम मील से विवाद होने के कारण वो नहीं आये। दरअसल, राजाराम मील कई बार हनुमान बेनीवाल पर समाज के युवाओं को गुमराह करने का आरोप लगाते रहते हैं। बेनीवाल के अलावा कॉमरेड नेता अमराराम और पेमाराम भी कार्यक्रम में नहीं थे। क्या राजस्थान में राजनीतिक और सामाजिक तौर पर हनुमान बेनीवाल, अमराराम और पेमाराम के बिना आयोजन किया जाना चाहिये? क्या इन लोगों के बिना समाज को पूर्ण प्रतिनिधित्व देने का दावा किया जा सकता है? क्या इनमें से एक भी नेता हनुमान बेनीवाल के बराबर अपने दम पर राजनीतिक ताकत रखता है?
जाट महाकुंभ में संख्या जितनी भी रही हो, लेकिन इस बात की पक्की गारंटी है कि इससे अधिक संख्या तो हनुमान बेनीवाल के एक इशारे पर एकत्रित हो जाती है। पश्चिमी राजस्थान की राजनीति आज हनुमान बेनीवाल को शामिल किये बिना संभव ही नहीं है। पूरे देश में यदि संख्याबल के आधार पर बात की जाये तो जाट समाज के युवा जितनी संख्या में हनुमान बेनीवाल के साथ खड़े होते हैं, उतने किसी भी नेता के साथ नहीं होते। राजाराम मील को हनुमान बेनीवाल से व्यक्तिगत द्वेष हो सकता है, लेकिन जब समाज की बात आती है, तो व्यक्तिगत कुछ नहीं रहता है, हर व्यक्ति को बुलाना और शामिल करना ही होता है। केंद्र की सत्ता में होने के बाजवूद जब किसान आंदोलन हो रहा था, तब अकेले हनुमान बेनीवाल ही थे, जिन्होंने सबसे पहले भाजपा से गठबंधन तोड़कर जयपुर दिल्ली राजमार्ग पर बैठ गये थे। उस समय अमराराम ही थे, जो पूरे 13 महीनों तक सड़क पर सोये थे, लेकिन जब जाट समाज के महाकुंभ की बारी आई, तो इन्हीं बड़े नेताओं को भुला दिया गया।
राजनीतिक तौर पर आज राजस्थान ही नहीं, बल्कि हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अकेले दम पर हनुमान बेनीवाल के बराबर जाट समाज में किसी नेता की पकड़ नहीं है। इसलिये जिस कार्यक्रम में वीर सैनिक नहीं, जिस कार्यक्रम में समाज के लिये कोई काम की बात नहीं बोली जाती हो, जिस कार्यक्रम के कर्ताओं को समाज की वीरांगना की सड़क पर चल रही लड़ाई नजर नहीं आती हो, जिस कार्यक्रम में समाज के लिये कोई लकीर नहीं खींची गई हो, और जिस जाट महाकुंभ में हनुमान बेनीवाल जैसे नेता शामिल नहीं हो वह महाकुंभ नहीं होकर कुछ नेताओं द्वारा समाज का सहारा लेकर अपने निजी हितों को साधने के कार्यक्रम से अधिक कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
हनुमान बेनीवाल के बिना कैसा जाट महाकुंभ?
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