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राहुल गांधी की राजनीति खत्म होने से किसको लाभ होगा?

Ram Gopal Jat
बीते एक सप्ताह से देश की राजनीति में राहुल गांधी हैं, जिनको पहले दो साल की सजा हुई और उसके बाद संसद की सदस्यता खत्म होने के बाद सरकारी बंगला भी खाली करने का नोटिस दिया गया है। कांग्रेस पार्टी इसको लेकर मोदी सरकार पर हमलावर है, तो भाजपा ने राहुल गांधी द्वारा ओबीसी समाज का अपमान करने को लेकर सोशल मीडिया से लेकर गांव—गांव तक कैंपेन चलाने का फैसला किया है। इधर, कांग्रेस भी राहुल गांधी के मामले को जमीन पर उतराने जा रही है। अप्रैल का महीना दोनों ही दलों के लिये इस संघर्ष में गुजरने वाला हो सकता है। हालांकि, राहुल गांधी की सदस्यता समाप्त होने से कई विपक्षी दल कांग्रेस के साथ खड़े हो गये हैं, लेकिन फिर भी भाजपा किसी भी सूरत में विपक्ष को खुलकर खेलने का अवसर नहीं देना चाहती है।
राजनीति में कौनसा मोहरा कहां से चलता है और किसको नुकसान कर जाता है, इसका अंदाजा लगाना बेहद कठिन है। राहुल गांधी को सूरत के कोर्ट ने सजा सुनाई और 30 दिन में उपरी न्यायालय में याचिका दायर करने की छूट के साथ जमानत भी दे दी। किंतु उसके बाद जिस तरह से सरकार और विपक्ष ने राजनीति का नाटक शुरू किया, वह देखने लायक है। दूसरे ही दिन लोकसभा सचिवालय ने राहुल गांधी को अयोग्य करार दे दिया और चार दिन बाद उनको नोटिस देकर सरकारी बंगला खाली करने का आदेश भी दे दिया। राहुल गांधी ने बंगला खाली करने का आश्वासन देते हुये लोकसभाध्यक्ष को पत्र लिखकर अपनी सहमति जता दी है। राहुल गांधी की खाली हुई सीट वायनाड में उपचुनाव होना है या नहीं, यह अभी कुछ तय नहीं है, लेकिन कांग्रेस ने राहुल के मामले को लेकर उपरी अदालत में अपील नहीं करके यह साबित कर दिया है कि उनको राहत नहीं चाहिये, उनको सहानुभूति के सहारे राजनीति ही करनी है। सेशन कोर्ट के बाद हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे भी राहुल गांधी के लिये खुले हुये हैं, लेकिन कांग्रेस ने अपील नहीं की और पीड़ित रहकर सियासत खेलने का प्रयास शुरू कर दिया है।
कुछ लोगों का मानना है कि राहुल गांधी को सजा होने और उनको संसद से अयोग्य करके भाजपा ने अपने पेरों पर कुल्हाडी मार ली है। राहुल गांधी को सजा होने से उनके प्रति देश में एक सहानुभूति की लहर बनेगी, जिसके कारण देश के आम चुनाव 2024 में भाजपा को सत्ता से हाथ धोना पड़ सकता है। इससे पहले गांधी परिवार दो बार इसी तरह से सहानुभूति के सहारे कांग्रेस को सत्ता दिला चुका है। इंदिरा गांधी को सजा होने के बाद 1980 और 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुये चुनाव इसके गवाह हैं। कांग्रेस के लोग राहुल गांधी सजा और अयोग्यता को लेकर देश में उसी तरह से माहौल बनाने का दाव कर रहे हैं। हालांकि, तब की परिस्थितियों में और अब की राजनीति में दिनरात का अंतर है। तब ना तो ​कांग्रेस के खिलाफ भाजपा जैसी मजबूत पार्टी थी और ना ही सोशल मीडिया था, जिसके द्वारा सच्चाई मिनटों में सामने आ जाती है।
सवाल यह उठता है कि क्या वास्तव में इस बार भी कांग्रेस को पीड़ित होकर सहानुभूति पाने का मौका मिलेगा? क्या कांग्रेस पहले दो बार की तरह इस बार भी फिर से उठकर भाजपा को सत्ता से बेदखल कर देगी? क्या राहुल गांधी को दो साल की जेल की हवा खिलाकर कांग्रेस को सत्ता मिल जायेगी। इस सोशल मीडिया के जमाने में एक एक खबर और पुरानी जानकारी पलभर में सामने होती है, तब जनता इस बात को तो अच्छे से जानती है कि राहुल गांधी के पास उपरी अदालत में सजा के खिलाफ अपील करने और बचने का एक नहीं, बल्कि तीन—तीन ​मौके हैं, किंतु फिर भी वह जेल को चुनकर सियासी लाभ लेना चाहते हैं। जब जनता राजनेताओं के इस खेल को समझ जाती है, तब सहानुभूति का लाभ नहीं मिल पाता है। हालांकि, यह बात सही है कि बीते 9 साल में नरेंद्र मोदी सरकार ने कांग्रेस को ऐसा कोई बड़ा मुद्दा नहीं दिया है, जिसके दम पर 2024 या उसके बाद 2029 में भी चुनाव जीतने का मौका मिल सके। इस वजह से शायद कांग्रेस राहुल गांधी की सजा को आपदा में अवसर मान रही है। पर आखिर यह अवसर किसके लिये होगा? राहुल गांधी, प्रियंका गांधी या प्रियंका गांधी के बेटों जैसे किसी अन्य कांग्रेसी के लिये अवसर पैदा किया जा रहा है?
सवाल यह उठता है कि सजा को चुनौती नहीं देकर कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी के लिये देश में सहानुभूति तो पैदा कर लेगी पर क्या इस पॉलिटिकल विक्टिम कार्ड से कांग्रेस 2024 का चुनाव जीत जायेगी? क्या गांधी परिवार एक बार फिर से वही करने जा रहा है, जो इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी के मामले में कर चुका है? दरअसल, साल 1978 में इंदिरा गांधी को भी अयोग्य करार दिया गया था और साल 1980 में वह फिर से चुनकर लोकसभा पहुंची थीं। इसी तरह से लाभ के पद के मामले में 2006 में सोनिया गांधी को इस्तीफा देना पड़ा था। बाद में वह फिर से चुनाव जीतकर संसद पहुंची थीं। इंदिरा गांधी के मामले में कांग्रेस पार्टी सहानुभूति की लहर का फायदा ले चुकी है, लेकिन राहुल गांधी के मामले में यह लाभ किसको मिलेगा? क्योंकि यदि अपील नहीं की और सजा बरकरार रही, तो राहुल गांधी को दो साल जेल में रहना होगा और इसके अलावा अगले 8 साल चुनाव भी नहीं लड़ पायेंगे। ऐसे में उनकी जगह कांग्रेस पार्टी में कौन लेने जा रहा है?
लोगों का मानना है कि कांग्रेस पार्टी के भीतर ही राहुल गांधी की राजनीतिक हत्या करने के लिये एक गुट काम कर रहा है। यह भी चर्चा है कि प्रियंका गांधी वाड्रा को वायनाड से उपचुनाव लड़वाया जायेगा। इसके बाद उनको 2024 में कांग्रेस की ओर से पीएम कैंडीडेट बनाने का अभियान शुरू किया जायेगा। यदि ऐसा है तो इसका मतलब राहुल गांधी की सियासत खत्म होने से प्रियंका गांधी वाड्रा को फायदा होने वाला है। तो क्या यह मान लिया जाये कि प्रियंका गांधी का गुट ही अंदरखाने राहुल गांधी की राजनीति खत्म करने का षड्यंत्र कर रहा है? यह बात तो सही है कि राहुल गांधी कांग्रेस के पुराने नेताओं की सुनते नहीं हैं और नये सलाहकार उनको गलत दिशा में ले जा रहे हैं। गांधी परिवार का लाड़ला यदि जेल जायेगा तो निश्चित रूप से सहानुभूति के सहारे कांग्रेस को चुनावों में फायदा होगा, लेकिन जब राहुल गांधी 8 साल चुनाव लड़ ही नहीं पायेंगे, तो इतने समय में प्रियंका गांधी राजनीति में उनका स्थान लेकर स्थापित हो जायेंगी। एक महीने के भीतर यदि राहुल गांधी ने उपरी अदालत में याचिका दायर कर अपनी सजा पर रोक नहीं लगवाई तो उनको अगले 22 दि में सरेंडर करना होगा और उसके बाद उनको 2 साल तक जेल में रहना होगा। सजा के अनुसार उसके भी 6 साल तक वह चुनाव नहीं लड़ पायेंगे। इस लिहाज से देखा जाये तो राहुल गांधी के जेल जाने को लेकर कांग्रेस पार्टी जो विक्टिम कार्ड आजमा रही है, असल में वह प्रियंका गांधी वाड्रा के काम आ सकता है।

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