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मोदी ही करेंगे सवा करोड़ मतदाताओं का शिकार!

Ram Gopal Jat
राजस्थान में विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो चुकी है। इसका नजारा विधानसभा के भीतर भी दिखाई देने लगा है, जहां पर सत्ता विरोधी लहर की संभावना के बीच कांग्रेस और उसको समर्थन करने वाले विधायक ही सरकार के मंत्रियों की कार्यशैली के बहाने सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। इस बात को समझना अधिक कठिन नहीं होगा कि जिस युवा चेहरे सचिन पायलट के दम पर कांग्रेस ने 2018 में भाजपा से सत्ता छीन ली थी, उनको अशोक गहलोत के जादू के भरोसे किनारे करके कांग्रेस ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। आंकड़े बताते हैं कि यदि कांग्रेस ने समय रहते सचिन पायलट को पॉवरफुल किया तो विधानसभा चुनाव में मुकाबला मोदी बनाम पायलट हो सकता है, और यदि कांग्रेस ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया तो 7 महीनों में होने वाले चुनाव कांग्रेस के लिये सत्ता रिपीट कराने का सपना ही रह जायेगा और खुद कांग्रेस पार्टी ही राजस्थान की सियासत का पूरा मैदान मोदी को वोटों का खुला शिकार के लिये दे देगी।
आंकड़ों पर गौर करें तो पायेंगे कि आने वाले चुनाव में राज्य को करीब 50 लाख नये वोटर मिल जायेंगे। हालांकि, पिछले 2013 से 2018 के बीच हुई बढ़ोतरी के मुकाबले 20 लाख कम होंगे। साल 2013 के चुनाव में कुल वोटर 4.08 करोड़ थे, जिनमें से 3.06 करोड़ वोट पड़े थे। इस चुनाव में कांग्रेस को 1.02 करोड़ मतों के साथ 21 सीटें हासिल हुई थीं, जबकि भाजपा 1.39 करोड़ वोट मिले और उसे 163 सीटों पर प्रचंड जीत मिली थी। इसी तरह से साल 2018 के चुनाव 4.78 करोड़ मतदाता थे और चुनाव में 3.53 करोड़ वोट डाले गये थे। इस चुनाव में कांग्रेस को 1.40 करोड़ मतों के साथ 100 सीटों जीत मिली थी। हालांकि, इस चुनाव में भी भाजपा को 2013 के बराबर 1.39 करोड़ मिले थे, लेकिन केवल 73 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। भाजपा 25 से 30 सीटों पर 1500 से कम वोटों से हारी थी। भाजपा को कांग्रेस के मुकाबले केवल .50 फीसदी, यानी करीब डेढ़ लाख कम वोटों के कारण सत्ता से बाहर बैठना पड़ा था। साल 2013 और 2018 के बीच राजस्थान में 70 लाख वोट बढ़े, जिनमें से 74% वोट डाले गये थे, मतलब जो 52 लाख नए वोट पड़े, उनमें से 38 लाख कांग्रेस को मिले। ये सभी लगभग नए मतदाता थे। अब इस साल 5 जनवरी 2023 तक 5.14 करोड़ कुल मतदाता हो गए हैं, यानि अब तक 36 लाख नए मतदाता जुड़ चुके हैं और अक्टूबर तक कम से कम 14 लाख और जुड़ने की संभावना है।
इसका मतलब 2023 में 70 लाख और 50 लाख नये मतदाता जुड़कर कुल 1.2 करोड़ मतदाता होंगे, जो 18 से 28 साल की उम्र के होंगे। क्योंकि राजस्थान में युवा मतदाताओं का जुड़ाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में माना जाता है या राज्य के युवा और जोशीले नेता सचिन पायलट के पक्ष में जाने की संभावना रहती है। इसलिये यदि कांग्रेस ने समय रहते सचिन पायलट को मुख्यधारा में लाकर इन करीब सवा करोड़ मतदाताओं को रिझाने का काम नहीं किया तो अधिकांश वोट मोदी के नाम पर भाजपा को चले जायेंगे। राजस्थान में 7 महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। यहां सत्ता के लिए मुख्य संघर्ष कांग्रेस और भाजपा के बीच ही रहा है। इस बार ऐसा होने की संभावना कम नजर आ रही है। इस बार कांग्रेस-भाजपा की राह में 4 दूसरे दल भी मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं।
4 साल पहले बनी RLP वर्तमान में भाजपा और कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। RLP की मूल ताकत जाट, मेघवाल, मुसलमान जैसी जातियों से आने वाले पश्चिमी राजस्थान के मतदाता हैं। पार्टी के संयोजक हनुमान बेनीवाल नागौर से सांसद हैं। वे लगातार 3 बार विधायक भी रहे। बेनीवाल ने ऐलान किया है कि उनकी पार्टी राज्य की सभी 200 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। अभी RLP के पास 3 विधायक, एक सांसद समेत 100 से अधिक पंचायत समिति सदस्य हैं। 4 सीटों पर प्रधान जीते हुए हैं। दो सीटों पर नगरपालिका चेयरमैन हैं। इस बात की भी प्रबल संभावना है कि भाजपा या कांग्रेस जल्द ही RLP के साथ गठबंधन कर सकती है। बीते 4 साल में हुए 9 उपचुनाव में RLP ने औसतन 30—35 हजार वोट हासिल किए हैं। ऐसे में 7 महीने बाद होने वाले विधानसभा और 13 महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के सामने प्रदेश के सबसे बड़े वोट बैंक पर RLP की भी तगड़ी दावेदारी दिखेगी।
इसी तरह से देशभर में मुस्लिमों के अधिकारों को लेकर अपने बयानों से चर्चा में रहने वाले AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी राजस्थान में तेजी से सक्रिय हुए हैं। कुछ दिन पहले टोंक में रैली कर पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट को टोंक छोड़कर गुर्जर बाहुल्य सीट से चुनाव लड़ने की सलाह दी थी। ओवैशी ने कहा था कि सचिन पायलट का ख्वाब पूरा नहीं होगा, उन्हें टोंक छोड़कर दौसा या सवाई माधोपुर से चुनाव लड़ना चाहिए, क्योंकि टोंक में AIMIM चुनाव लड़ेगी। हाल ही में असदुद्दीन ओवैसी जोधपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मोहल्ले में जाकर जनसंपर्क कर राजस्थान सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने गहलोत के घर में जीतने का दावा किया है। राजस्थान में कुल 200 में से 35 से ज्यादा सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है। इनमें से 22-23 सीटों पर बीते दो दशकों में हुए चार चुनाव में मुस्लिम विधायक चुनाव जीतते रहे हैं।
आम आदमी पार्टी और ओवैसी क्या कर सकते हैं, इसका उदाहरण 3 महीने पहले हुए गुजरात चुनाव में मिल गया है। जहां सीएम अशोक गहलोत कांग्रेस के सीनियर ऑब्जर्वर थे और रघु शर्मा प्रभारी थे। भाजपा को वहां 156 सीटों के साथ अब तक की सबसे बड़ी जीत मिली। इसी तरह से दक्षिण राजस्थान में बीटीपी काफी सक्रिय है और उसका भी जनाधार लगातार बढ़ता जा रहा है। यहां पर साल 2018 में बांसवाड़ा और डूंगरपुर के आदिवासी बहुल इलाके बीटीपी के राजकुमार रोत और राप्रसाद डिंडोर जीते थे। हालांकि, 6 महीने पहले इस पार्टी में दो फाड़ हो गए हैं। अब ये दोनों विधायक एक नई पार्टी के गठन में जुटे हैं। बीटीपी वागड़ क्षेत्र में पंच-सरपंच, प्रधान के चुनावों में बीते 4 साल में खासी प्रभावशाली रही है। इस क्षेत्र में मौजूदा विधायक राजकुमार रोत और रामप्रसाद डिंडोर आदिवासी बहुल जिलों में 80 प्रतिशत आरक्षण आदिवासियों को देने की मांग कर रहे हैं।
इस क्षेत्र में आदिवासियों की आबादी लगभग 80 प्रतिशत बताई जाती है। इसे लेकर सितंबर 2020 में आदिवासी युवाओं ने एक उग्र प्रदर्शन कर उदयपुर-अहमदाबाद हाईवे सप्ताह भर जाम कर दिया था। सत्तारुढ़ कांग्रेस और भाजपा के लिये वागड़-मेवाड़ क्षेत्र में बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, प्रतापगढ़ जिलों की 15-16 आदिवासी बहुल सीटों पर मुश्किल हो सकती है। मोटे तौर पर देखा जाये तो जहां पर बहुपक्षीय मुकाबला होता है, वहां पर कांग्रेस को नुकसान होता है, जबकि भाजपा फायदे में रहती है। इसलिये जितनी अधिक पार्टियां राजस्थान में चुनाव लड़ेंगी, उतना ही कांग्रेस के लिये मुश्किल हो जायेगा।

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