Ram Gopal Jat
राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इतिहास में अपना नाम लिखवा लिया है। राजस्थान में अब तक 33 जिले थे, लेकिन अशोक गहलोत ने 19 नये जिलों की घोषणा करके खूब वाहवाही लूटी है। राजस्थान अब देश का तीसरा ऐसा राज्य हो गया है, जिसने जिलों का अर्दशतक पूरा किया है। इससे पहले उत्तर प्रदेश में 75 और मध्यप्रदेश में 55 जिले हैं। हालांकि, इस दौरान जयपुर और जोधपुर जैसे ऐतिहासिक जिलों का अस्तित्व संकट में आ गया है। दोनों के चार टुकड़े करके जयपुर उत्तर और जयपुर दक्षिण की तरह ही जोधपुर पूर्व और जोधपुर पश्चिमी बना दिया गया है। अब लोग अकेले जयपुर या जोधपुर का नाम नहीं ले पायेंगे। तकनीकी रुप से भले ही यह छोटी सी बात हो, लेकिन आने वाले समय में लोग उत्तर—दक्षिण और पूर्व—पश्चिमी के नाम से जानेंगे, ना किस जयपुर और जोधपुर के नाम से।
तकरीबन हर जिले में लोगों ने विरोध भी तेज कर दिया है। सबसे पहले अलवर के विधायक संदीप यादव ने राजनीतिक पद छोड़ दिया है। दूदू से लेकर कैंकड़ी और गंगापुर सिटी से लेकर जयपुर में हर जगह जिलों में बांटने को लेकर हकों की लड़ाई शुरू हो चुकी है। फुलेरा रेनवाल के लोगों ने धरने का आव्हान किया है, जिनको दूदू जिले में मिलाया जाना प्रस्तावित है। इसी तरह से सीकर में नीमकाथाना के अंदर भी सीमांकन से पहले विवाद हो गया है। बिना मांगे जिला देने का भी विरोध चल पड़ा है, तो छोटे जिलों को लेकर भी लोग आपत्ति कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इन जिलों को बनाने में ना तो भौगोलिक दृष्टि अपनाई गई है और ना ही आबादी को ध्यान में रखा गया है। ऐसा लगता है कि सभी जिले केवल राजनीतिक लाभ के लिये बना दिये गये हैं। माना जा रहा है कि जिलों की घोषणा नहीं करने का असल कारण भी विवाद होना था, जिसके कारण इतने अधिक जिले बनाये गये हैं, लेकिन इसके बावजूद भी जिलों की सीमाओं और पुराने जिलों में से तोड़कर नये जिलों में शामिल करने का विवाद सरकार के लिये सिरदर्द बन सकता है।
वैसे अशोक गहलोत ने इस कार्यकाल में घोषणाएं करने में कोई कमी नहीं छोड़ी है। जिसने भी कुछ मांगा, उसके लिये तुरंत घोषणा की है। ऐसा लग रहा है कि गहलोत ने केजरीवाल को पीछे छोड़ने का मन बना लिया है। अपने चुनावी घोषणा पत्र की तर्ज पर ही बजट घोषणा पत्र बना दिये हैं। तीन बजट पर गौर करेंगे तो पायेंगे कि आधी घोषणाएं भी ऐसी नहीं हैं, जो पूरी की जा सके। पिछले साल राज्य की 1.35 करोड़ महिलाओं को मोबाइल फोन देने का ऐलान किया गया था, अब कह रहे हैं कि 40 लाख को अगस्त में देंगे, क्योंकि सेमीकंडक्टर नहीं आ रहे हैं। बाजार में एक मोबाइल मांगने पर 10 दिखाते हैं, जबकि कंपनियां करोड़ों मोबाइल की डिमांड पूरी करने को दिनरात लालायित हैं। राजस्थान सरकार को पता नहीं किस कंपनी से मोबाइल खरीदने हैं, जिनके पास सेमीकंडक्टर नहीं शॉर्ट हैं। तीन साल पहले बजट में कहा था कि 1000 कॉलेज शिक्षकों की भर्ती की जायेगी, तब सदन में खूब तालियां पीटी गई थीं, लेकिन आज दिन तक नोटिफिकेशन भी नहीं निकाला जा सका है। इसके उलट पिछले दिनों शिक्षा संबल योजना में लगे अस्थाई शिक्षकों को भी हटा दिया गया है। सैंकड़ों कॉलेज खोलने की घोषणा कर दी, लेकिन कईयों के पास एक कमरा तक नहीं है, शिक्षक तो बहुत दूर की बात है। राज्य में कई विवि तीन कमरों में चल रहे हैं।
गहलोत सरकार ने सबसे अधिक वाहवाही लूटी है ओपीएस बहाल करके। राज्य के लाखों कर्मचारी और उनके परिवार बेहद खुश हैं। सत्ता से जाती सरकार को इस बात से कोई लेना देना नहीं है कि पैसा आयेगा कहां से? केंद्र ने पैसा लौटाने से इनकार कर दिया है, जबकि गहलोत दावा कर रहे हैं कि मोदी को भी ओपीएस लागू करनी होगी। यह बात सही है कि पुरानी पेंशन योजना का भार वर्तमान सरकार पर नहीं पड़ेगा, लेकिन अंतत: भारत तो राज्य पर ही पड़ेगा, संसाधन तो राज्य को ही देने होंगे। अभी हम राज्य के कर्मचारियों की कार्यशैली पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते, लेकिन क्यों सरकारी अधिकारी और कर्मचारी यह नहीं जानते कि राज्य पर कितना वित्तीय भार पड़ा हुआ है? किसको पता नहीं है कि विकास के लिये जरुरी पैसा राज्य के खजाने में है ही नहीं। उसी का परिणाम है कि महिलाओं को मोबाइल नहीं दिये जा सके हैं, ना किसी सेमीकंडक्टर की कमी है।
दस दिन में राज्य के सभी किसानों का कर्जा माफ करने का वादा किया गया था, और ऐसा नहीं करने पर मुख्यमंत्री बदलने का दावा किया गया था, बाद में उसको बदलकर केवल सहकारी बैंकों का पूरा किया गया, जबकि अधिक कर्जा तो राष्ट्रीयकृत बैंकों का है। वसुंधरा राजे ने सहकारी बैंकों का 50 हजार तक का कर्जा माफ किया गया। उसके तहत सरकार ने करीब 7200 करोड़ का कर्ज माफ हुआ था, जबकि 10 दिन में सभी किसानों का कर्जा माफ करने का दावा करने वाली गहलोत सरकार ने भी 20 हजार करोड़ का कर्जा माफ करने की बात कही है। जब सरकार बनी थी, तब राज्य के करीब 90 लाख किसानों पर 60 हजार करोड़ कर्जा चढ़ा हुआ था। इसलिये कर्जामाफी के बाद भी करीब 40 हजार करोड़ का कर्जा किसानों पर बकाया रहा, जिसके कारण कई किसानों की जमीनें नीलाम हो गईं।
वादा किया था बेरोजगारी भत्ते का और जब देने का समय आया तो उसको स्किल डवलेपमेंट से जोड़ दिया, जिसके कारण राज्य के लगभग 40 लाख बेरोजगारों में से करीब डेढ लाख को ही फायदा मिल सका। इसी तरह से बजट में घोषणा करी गई है कि चिंरजीवी योजना में 25 लाख तक का स्वास्थ्य बीमा होगा, लेकिन हकिकत यह है कि इसका फायदा लेने के लिये अस्पतालों में जाते हैं तो मरीज के साथ परिजन खुद ही बीमार पड़ जाते हैं। चर्चा यह है कि सीएम गहलोत बड़ी बड़ी घोषणाओं के दम पर सत्ता रिपीट कर और इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्सरों में अंकित कराना चाहते हैं।
दरअसल, बात यह है कि घोटालों से कमाये धन और शासन—सत्ता के दम पर किताबी इतिहास लिखवाने वाले तो इतिहास में बहुत हुये हैं, किंतु पैसे और पॉवर के दम पर इतिहास लिखवा देने वाला जननायक कैसे हो जाता है? खलनायक, जंगलनायक रुपी बाबर, अकबर, शाहजहां, औरंगजेब जैसे मुगलों तक ने तलवार और सलवार के दम पर काला—पीला इतिहास लिखा है, किंतु उनमें से किसी की भी सत्ता रिपीट हुई है और ना ही मुगल भारत की जनता के दिलों में राज कर पाये। किसी ने भाई को मारा, किसी ने बाप को जेल में डाला, किसी ने अपने सेनापति को मरवाया, किसी मुगल ने नवीं, दसवीं, ग्यारवहीं बीवी बनाकर भारत के प्राचीन भवनों का नाम बदला और अपना नाम पुतवा लिया, मगर आज उनके वंशज कहां हैं? जो कभी सत्ता की ताकत के दम पर झूठा और काला किताबी इतिहास लिखवा रहे थे, उनकी औलादों का खुदा को भी पता नहीं है। बाद में अंग्रेजों का शासन आया और उन्होंने भारत को लूटा। एक समय ऐसा था, जब ग्रेट ब्रिटेन के राज में सूर्य अस्त नहीं होता था, आज वही ग्रेट ब्रिटेन भारत के सबसे छोटे राज्य के बराबर रह गया है। ब्रिटेन की हालत इंग्लेंड, आईसलेंड और ब्रिटेन के रुप में तीन टुकड़ों में बंटने की हो गई है। इसलिये इस बात को अच्छे से समझ लेना चाहिये कि इतिहास अपने काम के दम से लिखा जाता है, ना कि अन्नपूर्णा रसोई को इंदिरा रसोई करने और भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना को चिंरजीवी बीमा योजना करने से। किसानों की बिजली सब्सिडी बंद कर उसे दो—तीन साल बाद शुरू करने से भी सत्ता रिपीट नहीं होती है। निगमों के टुकड़े करने से और जिलों की बंदरबांट करने से भी सत्ता रिपीट नहीं होती है।
घोषणाजीवी मुख्यमंत्री बनने से भी सत्ता रिपीट नहीं होगी और ना ही किसी का हक मारकर सत्तासीन होने से होगी। काम ही करना होगा और वह भी पूरी ईमानदारी से, लगन से, मेहनत से जनता के दिलों में राज करने के लिये जनता के काम करने होते हैं, ना कि आलाकमान का पेट भरने के लिये उगाही के मासिक रास्ते बनाने से। सत्ता रिपीट होना उतना ही कठिन है, जितना अपने दम पर सत्ता प्राप्त कर लेना। कभी अपने काम के दम और अपने नाम के दम पर सांसद का चुनाव नहीं जीत पाया, वह भौगोलिक दृष्टि से देश के सबसे बड़े राज्य में सरकार कैसे बना सकता है? उसे तो हर बार एक महिला के पैर पकड़ने ही पड़ेंगे, उसको अपने से छोटे मंदबुद्धि व्यक्ति को आलाकमान कहना ही होगा। जो व्यक्ति राजनीतिक गुरू को ठिकाने लगा सकता है, जो गुरू के बेटे को जेल की हवा खिला सकता है, जो किसी को एक वोट से हराने के लिये किसी भी हद तक जा सकता है, जो चमत्कारी नेता की राजनीति खत्म करने के प्रयास में नाकारा, निकम्मा बन सकता है, उसको कभी भी सत्ता रिपीट का सपना नहीं देखना चाहिये।
विधायकों को डराने—धमकाने, लालच देने, किसी को प्लॉट, किसी को खान आंवटन, किसी को टॉल बूथ, किसी को पेट्रोल पंप तो किसी को होटल बनाकर देने से भी सत्ता रिपीट नहीं होती है। गुजरात में सीनियर ओब्जर्वरी का ऐतिहासिक हस्र देश देख ही चुका है। गठबंधन वाली नेत्री के लिये कानून बदलकर उसे जीवनभर के लिये बंग्ला तो दिया जा सकता है, पर वह भी सत्ता रिपीट नहीं करा पायेगी। जिसके सहारे जमीन से आसमान पर पहुंचे थे, उसको दरकिनार करने से, सत्ता से दूर बिठाने का जादू करने से और बार बार मोदी पर बयानबाजी से भी सत्ता रिपीट नहीं हो पायेगी।
जो शासक महिलाओं की सुरक्षा नहीं कर पाता, उसका तो वंश ही खत्म हो जाता है। हिंदू धर्म में महिला को पुरुष से उपर रखा गया है, स्त्री के बिना पुरुष का कोई अर्थ नहीं रहता है। जिस शासन में शासक की कमजोरी से स्त्रियां दुषित हो रही हों, तो समझ लीजिये कि उसका अंत निकट आ गया है। कौन राजा हुआ है आजतक, जो दो समाजों को आपस में लड़वाकर शासन कर पाया है? भगवान राम से लेकर कृष्ण और मध्यकालीन भारत तक ऐसा कोई शासक नहीं हुआ, जिसने अपने ही राज्य में जातियों को लड़वाकर राज किया हो, जिसने भी पूर्ण शासन किया, उसने अपनी भुजाओं और बुद्धि के बल पर किया है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो केवल फूट डालो, राज करो की नीति को राजनीति मान लिया है। कभी परिस्थितियां प्रतिकूल होने का अर्थ यह नहीं है कि प्रतिभाशाली नाकारा, निकम्मा हो गया है। उसको सही समय का इंतजार होता है। अपनी प्रतिभा को भाग्य के पत्थर पर रगड़ने के बाद उपजी धार वाली तलवार से किसी को भी काटा जा सकता है। नेताजी सुभाषचंद बोस जैसे कई प्रतिभाशाली महापुरुषों को इतिहास से मिटाने के प्रयास किये गये हैं, उनके कामों को दबाने का किताबी इतिहास लिखा गया है, लेकिन उनको भुलाया नहीं जा सका है। आज जॉर्ज पंचम की जगह उनकी लंबी चौड़ी मूर्तियां इठला रही हैं। इसलिये पैसे और पॉवर के दम पर अखबारों और किताबों में झूठ लिखवाया जा सकता है, लेकिन उसको स्थापित करने के लिये प्रमाण देना पड़ता है। बिना प्रमाण के अपने गाल बजाने से कोई नालायक कभी जननायक नहीं बन जाता है।
Ashok Gehlot झूठ का इतिहास लिखवा लेने से सत्ता रिपीट नहीं होती!
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