Ram Gopal Jat
रूस-यूक्रेन युद्ध को 1 साल पूरा हो चुका है। 24 फरवरी 2022 को शुरू हुई इस भीषण जंग ने यूरोप के खूबसूरत देश यूक्रेन को खंडहर में बदल दिया है। इस युद्ध की वजह से हजारों महिलाओं ने अपने सुहाग खो दिए। लाखों माताओं की गोद सूनी हो गई हैं, तो न जाने कितने सैनिकों ने कर्तव्य की राह पर अपने प्राणों की आहुती दे दी है। बीते 1 वर्ष से जारी इस युद्ध पर विराम कब लगेगा, इसका अंदाजा लगा पाना अभी अत्यंत कठिन दिखाई दे रहा है।
अगले 10 मिनट में हम इस युद्ध की एक—एक बात को जानने का प्रयास करेंगे। साथ ही यह भी समझने का प्रयास करेंगे कि अमेरिका इस युद्ध के पीछे क्या हासिल करने की सोच रखता है तो रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला किये जाने और युद्ध जीतने की जिद क्यों पाले बैठा है? यह बात भी इस एक वर्ष में स्पष्ट हो गई है कि भारत ने अमेरिका समेत यूरोप को अपनी ताकत का जो परिचय दिया है, उससे दुनिया अचंभित रह गई है। महाशक्ति अमेरिका, चीन, जापान, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन समेत पूरे विश्व को इस बात का पूरा विश्वास है कि भारत ही इस युद्ध को समाप्त कराने की क्षमता रखता है। आखिर क्या वजह है कि अमेरिका और रूस के वर्चस्व की जंग में युद्ध का मैदान युक्रेन बन गया है? और यह भी समझना होगा कि इस युद्ध के परिणामस्परुप क्या हो सकता है? जिस दिन युद्ध समाप्त होगा, उस दिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के सबसे पॉवरफुल नेता बनकर सामने आयेंगे, लेकिन मोदी की इस कूटनीतिक जीत के पीछे भारत के दो महान रणनीतिक और कूटनीतिकारों का प्लान भी सामने आयेगा। पहले यह समझना होगा कि इस एक साल में क्या कुछ हुआ है?
पिछले साल फरवरी महीने में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आदेश पर 24 फरवरी को रूसी सैनिकों ने यूक्रेन पर बड़े स्तर पर हमला करना शुरू किया था। रूस की तुलना में सैन्य शक्ति के मुकाबले काफी कमजोर देश यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने फिर भी हार नहीं मानी। अमेरिका सहित कई पश्चिमी देश इस युद्ध के लिए रूस को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। हालांकि, साल 1991 के समय जब यूएसएसआर का विघटन हुआ था, तब यूक्रेन एक स्वतंत्र देश बन गया था, लेकिन रूसी राष्ट्रपति पुतिन आज भी यूक्रेन को रूस का हिस्सा मानते हैं। पश्चिमी जगत के अनुसार व्लादिमिर पुतिन की मंशा है कि वो रूस को साल 1991 से पहले, यानि सोवियत संघ के विघटन से पहले वाले स्वरूप में वापस लेकर आएं। इसलिए जीत नहीं होने के कारण एक साल बाद आज भी पुतिन यूक्रेन पर लगातार हमले कर रहे हैं।
असल में इस युद्ध का एकमात्र सबसे बड़ा कारण है यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनाने की कहानी। भोगोलिक रुप से देखें तो नाटो देशों और रूस के बीच केवल यूक्रेन ही दीवार बची है। यदि यूक्रेन भी नाटो का सदस्य बन जाता है, तो रूस और अमेरिका सैनिक दृष्टि से आमने सामने होंगे, जो रूस चाहता नहीं है। यूएसएसआर का हिस्सा होने के कारण रूस और यूक्रेन में भाषा, सभ्यता, लोग, धर्म जैसी सभी समानताएं हैं। यूक्रेन को नाटो देशों ने हमेशा उसकी रूस से रक्षा करने और बड़ी सहायता देने का वचन देकर नाटो का सदस्य बनाने पर राजी किया है। वह नाटो का सदस्य बनने के लिये आवेदन भी कर चुका है। इसको ध्यान में रखते हुये रूस ने पहले उसको खूब समझाया था, लेकिन वह नहीं माना और आवेदन कर दिया, तब मजबूरीवश रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था।
रूस के लिये काला सागर बहुत महत्व रखता है, क्योंकि इसके उत्तर में स्थित महासागर साल के दस महीने बर्फ में जमा ही रहता है। यूक्रेन के नाटो का सदस्य होने के बाद नाटो जब चाहे काला सागर का रास्ता रूस के लिए ब्लॉक कर सकता है। इसके अलावा नाटो संधि के हिसाब से अमेरिका जब चाहे अपने परमाणु हथियार, फाइटर जेट सब कुछ यूक्रेन में तैनात कर सकता है। ऐसे में रूस के पास कोई विकल्प नही बचता है। कूटनीतिज्ञों का मानना है कि जिस नाटो की स्थापना सोवियत संघ और कम्यूनिज्म के विस्तार को रोकने के लिए हुई थी, जब वो दोनों ही नहीं रहे तो इस संगठन की जरूरत क्या रह गई? दुनिया में एकछत्र राज करने वाले सुपर पावर अमेरिका को ऐसे सैन्य गठबंधन की क्या जरूरत है? असल बात यह है कि वह रूस को पूरी तरह से तबाह करने के लिये काम कर रहा है। अमेरिका के खतरनाक मंसूबों को राष्ट्रवादी पुतिन बहुत अच्छे से जानते हैं। यही वजह है कि पुतिन यू्क्रेन को अपने पाले में रखकर अमेरिका को खुद की सीमाओं से दूर रखना चाहते हैं।
इस युद्ध की वजह से हुए नुकसान की बात करें तो संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त की तरफ से जारी एक आंकड़े के अनुसार पिछले एक साल के दौरान यूक्रेन में 71 हजार से अधिक नागरिकों की मौतों की पुष्टि की गई है। 12 फरवरी, 2023 तक इस युद्ध में कुल 7199 नागरिकों की मौत हुई है, इनमें से 438 बच्चे हैं। इसके अलावा 11756 लोग घायल हो चुके हैं। हालांकि, वास्तविक संख्या इससे भी अधिक हो सकती है। पिछले साल मार्च महीने में सबसे ज्यादा 3.2 हजार लोगों की मौत हुई थी। एक साल के दौरान रूस ने अपनी सीमा से सटी यूक्रेन की एक लाख वर्गकिलोमीटर जमीन वापस ले ली है।
इससे पहले साल 2014 में रूस द्वारा क्रीमिया पर कब्जा करने के बाद, यूक्रेन ने डोनेट्स्क और लुहांस्क में सरकार और रूस समर्थित अलगाववादी क्षेत्रों के बीच एक सैन्य संघर्ष चल रहा था। इस दौरान वहां के आम नागरिकों और सैन्यकर्मियों सहित 14200 से 14400 लोग मारे गए थे। उनमें से कम से कम 3400 आम नागरिक थे।
नॉर्वे के रक्षा प्रमुख जनरल एरिक क्रिस्टोफर्सन के अनुसार युद्ध में रूस के लगभग 1 लाख 80 हजार सैनिक मारे जा चुके हैं तो यूक्रेन के करीब 1 लाख सैनिक मारे गए हैं। अमेरिका और पश्चिमी देशों की एक रिपोर्ट की मानें तो रूस के लगभग 2 लाख से ज्यादा सैनिक मारे जा चुके हैं। इस युद्ध के कारण दुनिया की तकरीबन 32 लाख करोड़ रुपये, यानी 4 ट्रिलियन डॉलर बर्बाद हो चुके हैं। इस युद्ध में सबसे ज्यादा आर्थिक नुकसान झेलने वाला देश यूक्रेन ही है।
पिछले साल मार्च महीने में रूसी सेना ने जबरदस्त बमबारी करते हुए खेरसॉन को कब्जे में कर लिया था। इसी के साथ खेरसॉन रूसी सेना द्वारा कब्जा किया जाने वाला पहला क्षेत्र बन गया था। इस क्षेत्र में मर्चेंट शिप, टैंकर, कंटेनर शिप, आइसब्रेकर, आर्किट सप्लाई शिप बनाई जाती हैं। मई के महीने में मारियुपोल पर नियंत्रण पाने के लिए रूसी सेना ने अभियान शुरू किया था। जिसमें भारी बमबारी की वजह से मारियुपोल में कई नागरिकों की मौत हो गई। इसके बाद अजोवस्टाल आयरन एंड स्टील वर्क्स प्लांट में दोनों देशों के सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ।
आखिर में यूक्रेन के सैनिकों ने रूसी सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। अमेरिका से हथियार मिलने के बाद अगस्त में आखिरकार यूक्रेन ने भी जवाबी हमला शुरू किया। यूक्रेन की सेना ने पूर्वोत्तर यूक्रेन में खार्किव क्षेत्र की ओर रूस पर जवाबी हमला किया। इस हमले का जवाब देने की बजाय रूसी सेना बिना लड़े पीछे हटने लगी। पुतिन की यह रणनीति अमेरिका को समझ नहीं आई, जिसके बाद बाइडन ने कहा था कि पुतिन इस तरह से बिना लड़े पीछे हटने वाले नहीं हैं।
अक्टूबर महीने के पहले हफ्ते में रूस को क्रीमिया प्रायद्वीप से जोड़ने वाले 19 किलोमीटर लंबे कर्च रोड और रेल ब्रिज को धमाके से उड़ा दिया गया था। धमाके के बाद क्रीमिया की ओर जा रही ट्रेन के सात ईंधन टैंकों में आग लग गई थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस धमाके में तीन लोगों की मौत हो गई और पुल के दो हिस्से भी आंशिक रूप से गिर गए। हालांकि, रूस ने पुल को कुछ ही दिनों में रिपेयर करके वापस शुरू कर दिया था। इसके बाद रूसी सेना ने यूक्रेन के कई शहरों पर बमबारी शुरू कर दी। बमबारी का लक्ष्य यूक्रेन के महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे, जैसे बिजली ग्रिड और जल भंडारण सुविधाओं को नुकसान पहुंचाना था।
साल के आखिरी महीनें में रूस की ओर से जानकारी दी गई कि क्रिसमस के बीच भी रूस-यूक्रेन युद्ध थमने वाला नहीं है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कहा था कि क्रिसमस तक रूस को अपने सैनिकों को यूक्रेन से बाहर ले जाने की शुरूआत करें, जो दोनों की शांति के लिए उठाया गया पहला कदम होगा। इसके बाद बावजूद रूस पीछे नहीं हटा और उस महीने में भी दोनों देशों के बीच जंग जारी रही।
जनवरी में माकिइवका शहर पर एक यूक्रेनी मिसाइल हमले से रूसी सैनिकों की मौत हो गई। रूस के रक्षा मंत्रालय का कहना है कि 89 सैनिक मारे गए, जबकि यूक्रेन के अधिकारियों ने मरने वालों की संख्या सैकड़ों में बताई थी। इसके बाद रूस ने 12 जनवरी को सॉलेदार पर कब्जा करने की घोषणा की, हालांकि कीव ने रूस के इस दावे को खारिज किया। 20 फरवरी, यानि यूक्रेन युद्ध का एक वर्ष पूरा होने से चार दिन पहले सोमवार को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन अचानक कीव पहुंचे। किसी अमेरिकी राष्ट्रपति का इस तरह से युद्धग्रस्त क्षेत्र में जाना अप्रत्याशित और प्रोटोकाल के विरुद्ध था, लेकिन बाइडन ने यूक्रेन के प्रति अपना समर्थन जताने के लिए ऐसा किया। कीव में बाइडन ने कहा कि अमेरिका जब तक जरूरत होगी, तब तक यूक्रेन के साथ खड़ा रहेगा। बाइडन के दौरे से गुस्साये पुतिन ने चेतावनी दी और उसके साथ किया गया परमाणु समझौता भी तोड़ने का ऐलान कर दिया, जिसके बाद युद्ध के और भड़कने की आशंका पैदा हो गई है।
इस युद्ध में अमेरिका सहित कई पश्चिमी देशों ने रूस पर पूर्ण प्रतिबंध लगा रखा है और सभी नाटो देश लगातार यूक्रेन की मदद में जुटे हुये हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार तकरीबन 30 देशों ने भारी तादाद में यूक्रेन को हथियार और जरूरी चीजें उपलब्ध करवाया है। ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों ने भी एलान किया है कि यूक्रेन को विध्वंसकारी 'चैलेंजर 2 टैंक' और 'लेपर्ड 2 टैंक' यूक्रेन को दिये जायेंगे, यानी युद्ध खुले तौर पर अब रूस और नाटो देशों के बीच शुरू हो गया है।
अब तक यूक्रेन को सबसे ज्यादा मदद अमेरिका कर रहा है। अमेरिका ने यूक्रेन को 90 स्ट्राइकर भेजे हैं। इसके अलावा 59 ब्रेडली इन्फैंट्री लड़ाकू विमान भेजे हैं। रूस के खिलाफ लड़ने के लिए अमेरिका लगातार अपने हथियारों का जखीरा यूक्रेन को दे रहा है। एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिका ने युक्रेन को 30 अरब डॉलर के रक्षा उपकरण और सहायता के रुप में दिये हैं। रूस लगातार यह बात कहता आया है कि यह युद्ध युक्रेन के नाम पर अमेरिका लड़ रहा है।
चार दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने वादा किया है कि जल्द ही 50 करोड़ डालर मूल्य के हथियार और गोला-बारूद यूक्रेन भेजे जाएंगे। नाटो और यूरोपीय संघ भी लगातार यूक्रेन को सैन्य और आर्थिक मदद पहुंचा रहे हैं। हाल ही में नाटो ने यूक्रेन को लियोपार्ड टैंक देने की घोषणा की है। इधर, रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने कहा है कि जैसे यूक्रेन का मित्र जो बाइडन कीव की यात्रा पर गया है, ठीक वैसे ही उनका मित्र शी जिनपिंग भी मास्को की यात्रा पर जायेंगे। पुतिन की इस घोषणा के कारण नाटो समेत पूरी दुनिया में खलबली मच गई है। कई देश विश्वयुद्ध की तैयारी मान रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि दुनिया के बाकी देशों ने युद्ध थामने के लिये कुछ नहीं किया है। तुर्की पहले ही विफल प्रयास कर चुका है। पिछले दिनों आये भयानक भूकंप के बाद अब वह अपने नागरिकों को संभालने में लगा है। इस युद्ध के मद्देनजर भारत ने शानदार कूटनीति का उदाहरण दिया है। भारत ना तो रूस के साथ पूरी तरह खड़ा दिखा है और ना ही यूक्रेन के साथ खड़ा हुआ है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमेशा यह बात कही है कि आज का युग युद्ध का युग नहीं है। भारत ने हमेशा दोनों देशों से शांति की अपील की है और बातचीत के जरिए मामले को सुलझाने की वकालत की है।
इस दौरान अमेरिका समय यूरोप की भारी नाराजगी के बाद भी भारत ने रूस से कच्चा तेल खरीना जारी रखा है, बल्कि एक साल में 28 गुणा अधिक तेल खरीद की है। रूस से भारत को कच्चे तेल का आयात फरवरी 2022 में अपने कुल आयात का एक फीसदी से भी कम था, जो अब बढ़कर 28 प्रतिशत हो गया है। भारत रूस से 1 मिलियन बैरल प्रति दिन से भी अधिक कच्चा तेल खरीद रहा है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का अमेरिका व यूरोप ने खूब घेरने का काम किया, लेकिन भारत ने कभी भी अपने पुराने साथी रूस का साथ नहीं छोड़ा है।
एक तरफ तो अमेरिका यूक्रेन को खुलेआम सहायता दे रहा है तो दूसरी ओर भारत से युद्ध समाप्त करवाने की अपील भी कर रहा है। दरअसल, अमेरिका समेत पूरी दुनिया यही मानती है कि भारत यदि रूस को कहेगा तो वह युद्ध से पीछे हट जायेगा, इसलिये ये देश लगातार मोदी से पुतिन को कहकर युद्ध बंद करवाने की अपील कर रहे हैं। हालांकि, भारत इस जंग को खत्म करने में अपनी भूमिका जानता है, इसलिये वह पर्दे के पीछे से सभी कूटनीतिक प्रयास कर रहा है। बीते दिनों भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने मास्को में पुतिन से मुलाकात की है। इसी तरह से भारत के विदेश मंत्री एस जशंकर नाटो देशों के साथ समन्वय बिठाने का काम कर रहे हैं। भारत सरकार के ये दोनों मंत्री दोनों तरफ बातचीत कर जंग की समाप्ति का रास्ता निकाल रहे हैं।
एनएसए अजीत डोभाल जहां रूस और उसके मित्र देशों के साथ बात कर उनकी शर्तों को लचीला बनाने का प्रयास करे हैं, तो विदेश मंत्री जयशंकर ने अमेरिका और यूरोप के देशों के साथ बात करके उनको नरम पड़ने के लिये तैयार कर रहे हैं। माना जा रहा है कि रूस की शर्तों में से अधिकांश शर्तों को अमेरिका मान चुका है, लेकिन सबसे बड़ी शर्त को मानने से अभी भी इनकार कर रहा है, इसी वजह से युद्ध जारी है। हालांकि, अगले कुछ दिनों में भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर और एनएसए अजीत डोभाल के भामाशाही प्रयास सफल हो सकते हैं और रूस यूक्रेन युद्ध समाप्त हो सकता है।
जयशंकर—डोभाल की कूटनीति से मोदी को मिलेगी वैश्विक विजय
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