Ram Gopal Jat
नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया के असम का राज्यपाल बनने के बाद राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद को लेकर खींचतान जारी है। उपनेता प्रतिपक्ष के पद पर बैठे राजेंद्र सिंह राठौड़ हर तरह से इस पद के काबिल हैं और संभावना भी सर्वाधिक उनके ही बनाने की है। पार्टी अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया को लेकर कुछ माइंडसेट पत्रकारों ने अफवाह फैलाने का काम तो किया, लेकिन यह अधिक टिक नहीं पाई। वसुंधरा राजे की अति सक्रियता ने भी लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। हालांकि, अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां पहले ही एक्टिव हैं, लेकिन अब वसुंधरा राजे की सक्रियता ने पार्टी में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। एक दिन पहले राजेंद्र सिंह राठौड़ ने अपने विधानसभा क्षेत्र में यह कहकर खुद को पार्टी का वफादार सिपाही बताया है कि पार्टी उनको जो भी जिम्मेदारी देगी, वह निभाने का काम करते रहेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीते तीन महीनों में अलग अलग माध्यमों से 5 बार राजस्थान पहुंच चुके हैं। कभी आबू रोड पर, कभी मानगढ़ धाम, कभी आसिंद, कभी दौसा तो कभी जयपुर ग्रामीण में भी वर्चुवली जुड़कर संबोधन दे चुके हैं। निकट भविष्य में गृहमंत्री अमित शाह भी पूर्वी राजस्थान में आने वाले हैं। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा पिछले दिनों राजस्थान पहुंचे थे, और जल्द ही उनका दूसरा दौरा भी बताया जा रहा है। जब चुनाव नहीं होते हैं, तब भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ सभा करती है और जब चुनाव नजदीक आते हैं तो कार्यकर्ताओं के साथ सीमित मात्रा में जनता को भी बुलाया जाता है, लेकिन जब चुनाव की घोषणा हो जाती है, तब भीड़ जुटाकर रैली की जाती है। भाजपा अभी दूसरी स्टैज पर है, लेकिन आने वाले चार से पांच महीनों में तीसरी स्टैज पर आ जायेगी।
कांग्रेस अभी तक यह तय नहीं कर पाई है कि चुनाव के दौरान सीएम फेस के रुप में पायलट गहलोत में से आगे किसको रखना है? गहलोत बजट की घोषणाओं को भुनाने का प्रयास कर रहे हैं, तो पायलट अभी आलाकमान के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। पायलट ने धैर्य से कांग्रेस नेताओं को एक बात तो सिखा दी है कि व्यक्ति अपने पैशन से राजनीति में खुद को मजबूत कर सकता है। कांग्रेस भले ही पायलट को लेकर निर्णय नहीं कर पा रही हो, लेकिन उनकी ताकत का अंदाजा इसी से लग जाता है कि गहलोत समेत कोई भी मंत्री उनके खिलाफ एक शब्द नहीं बोल पा रहा है। इस माह की 24 से 26 तारीख तक कांग्रेस का रायपुर अधिवेशन है और उसके बाद राजस्थान पर फैसला होने का दावा कांग्रेस के लोगों द्वारा किया जा रहा है। हालांकि, इसी संभावना इतनी कम है, जितनी राजस्थान में मई—जून के महीने में भारी बरसात की रहती है।
भाजपा की बात करें तो अब वसुंधरा ने यह संदेश दे दिया है कि वह अभी चुकी नहीं हैं, उनके अंदर काफी राजनीति बाकी है। लोग चर्चा कर रहे हैं कि कटारिया को राज्यपाल बनाकर वसुंधरा को भी संदेश दिया गया है, लेकिन यह संदेश भी इसी संदेश में छिपा है कि आलाकमान अभी वसुंधरा को लेकर निर्णय नहीं कर पाया है। कुछ नासमझ लोग यह भी दावा कर देते हैं कि कटारिया को राज्यपाल बनाकर वसुंधरा राजे को नजरअंदाज किया गया है। भाजपा के कार्यकर्ता यह भी कहते हैं कि चुनाव से कुछ समय पहले माहौल देखकर वसुंधरा राजे को मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश या गुजरात जैसे राज्य का राज्यपाल बनाया जा सकता है। उससे पहले पार्टी यह देखना चाहती है कि वसुंधरा राजे की राज्य में अभी कितनी पकड़ है। वसुंधरा अब सक्रिय होंगी, तो आने वाले तीन चार महीनों में उनकी सियासी जमीन और राजनीतिक ताकत का पता चल जायेगा।
किंतु इस समय सबसे बड़ा सवाल यही अटका हुआ है कि भाजपा नेता प्रतिपक्ष किसको बनायेगी? तीन नामों पर चर्चा तो हो रही है, लेकिन इसमें वसुंधरा राजे की मर्जी का ऐसा पेच फंसा हुआ है, जो मामले को अटका सकता है। चुनाव से पहले यही एक विधानसभा सत्र है, जो कितने दिन चलेगा, इसका अंदाजा नहीं है। इसलिये अधिक संभावना तो राजेंद्र राठौड को ही प्रमोट करने की नजर आ रही है, क्योंकि राठौड़ सात बार के नाबाद विधायक हैं। वह 1990 से लगातार जीतते आ रहे हैं। उनकी सदन में सक्रियता भी इस बात को सबसे अधिक सूट करती है। कुछ लोग दावा करते हैं कि जो नेता प्रतिपक्ष बनेगा, वो सीएम की रेस में सबसे आगे हो जायेगा। यदि ऐसा होता तो वसुंधरा राजे इस अवसर को नहीं छोड़ना चाहेंगी, लेकिन ऐसा दावा हमेशा सच नहीं होता है। कई राज्यों में भाजपा ने ऐसे नेता को सीएम बनाया है, जिसके बारे में कोई कल्पना भी नहीं कर पाता था।
वसुंधरा राजे नेता प्रतिपक्ष रहते सीएम बनी हैं, किंतु इसको हर बार लागू नहीं किया जा सकता है। सियासी जानकारों का मानना है वसुंधरा इस वक्त नेता प्रतिपक्ष के बजाये चुनाव प्रचार समिति की डोर अपने हाथ में रखने के लिये प्रयास कर रही हैं। सतीश पूनियां अध्यक्ष बने रहेंगे, लेकिन वसुंधरा यदि प्रचार समिति को संभालती हैं, तो फिर दोनों का पलड़ा बराबर का हो जायेगा। टिकट बंटवारे से लेकर चुनाव परिणाम के बाद सीएम बनने की बारी आने तक दोनों में कड़ी टक्कर रहेगी। सतीश पूनियां को वसुंधरा राजे के सभी प्रयासों के बाद भी हटाया नहीं गया है, जिसके कई संकेत हैं। ऐसा करके पार्टी गुटबाजी का रिस्क नहीं लेना चाहती है। दूसरी बात यह है कि संगठन को संभालना कठिन हो जायेगा।
अनुभव और वरिष्ठता के आधार पर यदि फैसला हुआ तो वसुंधरा राजे का नंबर पहले स्थान पर आता है, लेकिन 2018 के 'मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं' वाले नारे को याद रखा गया तो फिर प्रदेश को नया मुख्यमंत्री मिलना पक्का है। लेकिन जिस तरह से 2008 में 2003 वाले गहलोत को भूलाया गया था, 2013 में 2008 वाली वसुंधरा राजे को भुलाया गया और 2018 में 2013 वाले गहलोत को भुला दिया गया था, उसी तरह से 2018 वाली वसुंधरा को भी भुलाया जा सकता है। यदि ऐसा हुआ तो जैसा कि वसुंधरा राजे के समर्थक कहते हैं कि मैडम जैसी नेता राजस्थान में कोई नहीं है, कहते हुये राजे को तीसरी बार सीएम बनने का अवसर मिल सकता है।
वसुंधरा राजे सीएम बनेंगी, या नहीं, लेकिन यह समझना जरुरी है कि पार्टी अध्यक्ष, नेत प्रतिपक्ष और चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष की सीएम पद पर दावेदारी कितनी बनती है? वसुंधरा राजे पहली बार सीएम बनी थीं, तब पार्टी ने उनको सीएम फेस बना दिया था, लेकिन 2008 में सीएम होने और सीएम फेस होने पर भी भाजपा हार गई थी। इसी तरह से 2013 में वह नेता प्रतिपक्ष के कारण दावेदार भी सबसे बड़ी थीं, और उनके चेहरे पर चुनाव भी लड़ा गया था, लेकिन 2018 में सीएम फेस होने पर भी भाजपा सत्ता से बाहर हो गई। इसी तरह से गहलोत 1998 में पार्टी अध्यक्ष थे, लेकिन 2003 में सीएम और सीएम फेस होने पर भी पार्टी हार गई। 2008 में सीएम फेस कोई नहीं था, लेकिन फिर भी पार्टी जीत गई। इसी तरह से 2013 में गहलोत सीएम और सीएम फेस भी थे, लेकिन कांग्रेस हार गई थी। आखिरी बार 2018 में पायलट अध्यक्ष थे और अघोषित रुप से उनके नाम पर चुनाव लड़ा गया, और पार्टी जीत गई।
इसलिये कौन अध्यक्ष रहेगा, कौन नेता प्रतिपक्ष होगा और कौन चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष रहेगा, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है, ये सब चुनाव बाद संसदीय बोर्ड तय करता है, लेकिन इतना जरुर है कि यदि वसुंधरा कैंप का नेता प्रतिपक्ष होगा और खुद वसुंधरा ही चुनाव प्रचार समिति की कमान संभालेंगी तो फिर उनका पलड़ा तो भारी हो ही जायेगा। और ऐसी स्थिति में संसदीय बोर्ड को भी अपनी सोच में वसुंधरा राजे को सबसे पहले रखना होगा। लेकिन इसके विपरीत परिस्थितियां बनती हैं, तो फिर सतीश पूनियां पहले नंबर पर होंगे। हालांकि, राजेंद्र राठौड़ काफी सीनियर हैं, लेकिन फिर भी उनको नेता प्रतिपक्ष बनाया जाता है तो भी मुख्यमंत्री के रुप में उनको प्रमोट करना बेहद कठिन लग रहा है। सवाल यह है कि आखिर 33 साल बाद आज भी लोगों राजेंद्र राठौड़ में सीएम मैटर नजर नहीं आता है।
वसुंधरा राजे बनेंगी तीसरी बार मुख्यमंत्री!
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