Popular

हाथ मलती रह गईं वसुंधरा राजे

Ram Gopal Jat
राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया को असम राज्य का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। कटारिया के साथ ही 12 अन्य राज्यों के राज्यपाल भी नियुक्त किये गये हैं। अपनी नियुक्ति् से ही लगातार विवादों में रहने वाले महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी और लद्दाख के उपराज्यपाल राधाकृष्ण माथुर के इस्तीफे स्वीकार किये गये हैं। दोनों की जगह दूसरे राज्यपाल बना दिये गये हैं। राजस्थान के लिहाज से इस नियुक्ति को लेकर काफी चर्चा हो रही है। नियुक्ति की सूचना मिलने के बाद पूर्व सीएम वसुंधरा राजे से लेकर पार्टी अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां ने भी कटारिया के आवास पर पहुंचकर उनको बधाई दी है। इस अवसर पर कटारिया ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के हाल ही में पेश किये गये विवादित बजट पर भी तीखी टिप्पणी की है। हालांकि, राज्यपाल बनने के बाद कोई भी नेता सियासी बयानबाजी से बचता है, लेकिन क्योंकि अभी तक कटारिया ने राज्यपाल पद की शपथ नहीं ली है, इसलिये वह बयान देने के लिये स्वतंत्र हैं।
पिछली सरकार में प्रदेश के गृहमंत्री के पद पर रहे गुलाबचंद कटारिया को राज्यपाल बनाया जाना संघ के वफादार लोगों को उचित इनाम के तौर देखा जा रहा है। कटारिया पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की पिछली सरकार में गृहमंत्री जैसी दूसरी सबसे पॉवरफुल पोस्ट पर थे। वह अभी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद पर काम कर रहे थे। राजस्थान विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है और इस दौरान कटारिया को राज्यपाल बनाये जाने के कारण अब नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ की होगी, खासकर जब तक नये नेताप्रतिपक्ष का चुनाव नहीं होगा। कटारिया की नियुक्ति के साथ ही नेता प्रतिपक्ष पद के लिये भी लॉबिंग शुरू हो चुकी है। इस सूची में कई नाम सामने आ रहे हैं,​ जिनमें पहला नाम वसुंधरा राजे का है, जो पहले भी नेता प्रतिपक्ष रह चुकी हैं। बकायदा वसुंधरा राजे ने तो साल 2009 में इस पद के लिये अपने पक्ष के विधायकों को इस्तीफा देने के लिय दिल्ली तक भेज दिया था। बाद में उनको फिर से नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था। सदन के भीतर सत्तापक्ष से मुख्यमंत्री और विपक्ष से नेता प्रतिपक्ष का पद काफी गरिमामयी पद माना जाता है।
इस वजह से इस पद के लिये सबसे बड़ी दावेदारी वसुंधरा राजे और उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ के बीच है। राठौड़ को यदि नेता प्रतिपक्ष बनाया जाता है तो उनका बहुत बड़ा प्रमोशन होगा और यदि वसुंधरा राजे की इस पद पर वापसी होती है तो समझा जायेगा कि अभी तक वसुंधरा की राज्य भाजपा की राजनीति में पकड़ कमजोर नहीं हुई है। चुनाव नजदीक हैं, इसलिये वसुंधरा राजे इस पद के माध्यम से फिर सदन की सक्रिय राजनीति में आकर सरकार की खिलाफत करना चाहेंगी। हालांकि, यह सबकुछ केंद्र पर टिका है, कि इस पद पर किसको बिठाना का निर्णय लिया जायेगा। माना जा रहा है कि यदि वसुंधरा राजे की मर्जी के बाद भी उनको नहीं मिलता है, तो इससे उनके कमजोर होने के संकेत मिलेंगे और यदि वह वापस बन जाती हैं, तो सतीश पूनियां के अध्यक्ष बनने से कमजोर हुईं वसुंधरा फिर से फ्रंटफुट पर आकर खेलने लगेंगी। दरअसल, बीते पांच दशक से राजनीति में सक्रिय रहे कटारिया हमेशा संघनिष्ठ और स्पष्टवादी छवि के तौर पर जाने जाते हैं। हालांकि, भावनाओं में बहकर बयानबाजी करने के कारण वह कई बार विवादों का भी शिकार हुये हैं, लेकिन आजीवन संघ का दामन थामकर उसमें विश्वास रखने के कारण यह इनाम मिला है।
अन्यथा कटारिया से अधिक उम्र के उनके ही समकक्ष सीनियर नेता पूर्व स्पीकर कैलाशचंद मेघवाल अभी केवल विधायक ही हैं। वसुंधरा राजे समर्थकों की ओर से माना जा रहा है कि गुलाबचंद कटारिया को राज्यपाल नियुक्ति करने के बाद राजे का तीसरी बार सीएम बनने का रास्ता बिलकुल तय हो गया है, क्योंकि यदि उनको इस समय राज्यपाल नहीं बनाया गया है तो इसका मतलब यही है कि वह अगले मुख्यमंत्री की रेस में सबसे पहले नंबर पर हैं। राजे खेमे के लोगों का कहना है कि कटारिया के राज्यपाल बनने से दावेदारों की सूची में एक नंबर कम हो गया है। दूसरी ओर संघ के जानकारों का कहना है कि पिछले दिनों दिल्ली में मीटिंग के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने पहले यही प्रस्ताव वसुंधरा राजे को दिया गया था, लेकिन उन्होंने एक्टिव पॉलिटिक्स में रहने की इच्छा जाहिर की थी, जिसके कारण उनको राज्यपाल नहीं बनाया गया है। वसुंधरा विरोधी खेमे का मानना है कि इससे एक बात साफ हो गई है कि वसुंधरा कैंप के लोगों को संगठन कोई त्वज्जो नहीं दे रहा है, नहीं तो कटारिया की जगह मेघवाल भी राज्यपाल बन सकते थे।
गुलाबचंद कटारिया उदयपुर के बड़े नेता रहे हैं। कहा जाता है कि उनको गुजरात का सीएम रहते नरेंद्र मोदी से भी करीबी रही है। सोहराबुद्दीन एनकांउटर लेकर धारिया एनकाउंटर और पिछले कार्यकाल में आनंदपाल एनकाउंटर के दौरान कटारिया के उपर कई आरोप लगे थे, लेकिन वह हर बार पाक साफ निकले हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि राजनीति में रहते हुये कभी भी कटारिया ने संघ के प्रति अश्विास नहीं जताया। सतीश पूनियां को अध्यक्ष बनाये जाने के बाद संगठन में वफादारी दिखाते हुये कटारिया ने अध्यक्ष को पूरा समर्थन दिया, जबकि वसुंधरा राजे के कैंप ने सतीश पूनियां को आज दिन तक स्वीकार नहीं किया है। इसका मतलब यह है कि जो संगठन के प्रति निष्ठा रखने वाले लोग हैं, उनका देर सवेर भला होना ही होता है। अशोक गहलोत की दूसरी सरकार के दौरान शुरुआत के दिनों में ही कटारिया को सीएम की रेस में भी माना जाने लगा था, लेकिन वसुंधरा के विराधी गुट का बिखराव होने के कारण वह गृहमंत्री तक सीमित रहे।
गुलाबचंद कटारिया ने पार्टी अध्यक्ष के रुप में सतीश पूनियां को अपना पूरा सहयोग किया है, कभी उनको ऐसा महसूस नहीं करवाया है कि पहली बार के विधायक को अध्यक्ष के रुप में वह स्वीकार नहीं करते हैं। वसुंधरा राजे की सरकार के गृहमंत्री थे, लेकिन जब कटारिया को लगा कि वसुधंरा संगठन के खिलाफ जा रही हैं, तो उनसे पल्ला झाड़कर संगठन के साथ रहना पंसद किया। कटारिया की उम्र भी 75 से अधिक हो चुकी है, जिससे उनको विधानसभा चुनाव का टिकट मिलना कठिन था। ऐसे में पुराने संघी को चुनावी राजनीति के अंत समय में अलग थलग छोड़ना नहीं था। तमाम ऐसे कारण हैं, जो उनके राज्यपाल बनाए जाने के हो सकते हैं।
वसुंधरा राजे का गुट भले ही कहे कि कटारिया के राज्यपाल बनने से उनका रास्ता साफ हो गया है, लेकिन हकिकत बात यह है कि पूर्व सीएम राजे को साफ संदेश दिया गया है कि यदि संगठन के प्रति वफादार रहोगे तो कभी ना कभी आपको भी अच्छी जगह मिल सकती है, लेकिन वसुंधरा राजे अभी तक भी संगठन के व्यक्ति सतीश पूनियां को अध्यक्ष के रुप में पचा नहीं पा रही हैं। जबकि सतीश पूनियां अध्यक्ष के पद पर मोदी—शाह के नियुक्त किये गये हैं। इसका तात्पर्य यह है कि वसुंधरा राजे ने मोदी—शाह की पसंद सतीश पूनियां को दरकिनार अपनी ताकत दिखाई है। सतीश पूनियां का कद इसी में बढ़ता जा रहा है कि दो बार की सीएम उनसे इसलिये नहीं जीत पा रही हैं, क्योंकि वह संगठन के निर्णय का विरोध कर रही हैं।
असल में देखा जाये तो सबसे सीनियर होने के बाद भी कैलाशचंद मेघवाल इसलिये राज्यपाल नहीं बन पाये, क्योंकि जब उनको अध्यक्ष के रुप में सतीश पूनियां के पक्ष में होकर संगठन के साथ खड़ा रहना था, तब वह वसुंधरा राजे के वफादार बनकर सामने आ गये। वह खुलेआम सतीश पूनियां की आचोलना करने से भी नहीं चूकते हैं। यह बात सही है कि संगठन और वसुंधरा राजे के नाम से दो गुट बने हुये हैं, जिसमें संगठन के गुट को सतीश पूनियां का गुट मानकर उनके बहाने कुछ नेता संगठन का ही विरोध करने लगते हैं। इसलिये वसुंधरा राजे के लोगों को संदेश के तौर पर कटारिया की राज्यपाल के पद पर नियुक्ति् देखी जा रही है।
कटारिया के राज्यपाल बनने से उदयपुर शहर की सीट भी रिक्त हो जाएगी। ऐसी स्थिति में उपचुनाव होते चाहिये, लेकिन राजस्थान विधानसभा के चुनाव में 9-10 महीने का समय ही बाकि है। सितंबर के आखिरी सप्ताह या अक्टूबर के पहले सप्ताह में आचार संहिता लगने के आसार हैं। ऐसे में महज 7 महीने के लिए संभवत: चुनाव आयोग उपचुनाव नहीं कराएगा, लेकिन यह चुनाव आयोग के विवेक पर निर्भर करेगा। राजस्थान विधानसभा को कटारिया की सीट रिक्त होने की जानकारी चुनाव आयोग को भेजनी होगी।

Post a Comment

Previous Post Next Post