Ram Gopal Jat
राजस्थान में चुनाव नजदीक आते देख नेताओं के बयानों में तल्खी आने लगी है। राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने पाली में किसान सम्मेलन में अपनी ही पार्टी की अशोक गहलोत सरकार पर हमला बोलते हुये कहा कि 2013 चुनाव में हमारी सरकार चली गई थी, बीजेपी की सरकार बनी, उस दौरान हम लोगों ने सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन किया था।
वसुंधरा राजे सरकार में हुए भ्रष्टाचार को लेकर वसुंधरा राजे को चुनौती दी थी, बीजेपी की सरकार में हुए भ्रष्टाचार को एक्सपोज किया था। वसुंधरा राजे सरकार में खान घोटाला, जमीन घोटाला, बजरी घोटाला, शराब घोटाला, भूमाफिया पनप रहे थे, उससे पहले एक कालीन घोटाला हुआ था, इसमें अधिकारी, नेता सभी उस भ्रष्टाचार में शामिल थे और कांग्रेस के नेताओं ने कहा था कि हम सरकार में आएंगे तो इन मामलों का निष्पक्ष जांच करवाएंगे, इस मामले में जो भी दोषी होगा उसको सजा जरूर मिलेगी, लेकिन आज चार साल बीतने के बाद भी किसी मामले की जांच नहीं हुई।
सचिन पायलट के बयान के बाद एक बार फिर से यह बात तय हो गई है कि राज्य में चुनावी मौसम शुरू हो गया है। जिसमें नेता अपनी गर्मी को जनता के सामने दिखाने का प्रयास करेंगे और विपक्षी दलों को घोटालेबाज, तस्कर जैसे शब्दों से नवाजने का काम करेंगे। यह बात सही है कि चार साल से सरकार होने के बाद भी आरोप लगाने वाली कांग्रेस सरकार के मुखिया अशोक गहलोत ने एक भी मामले की जांच नहीं करवाई है। इसके कारण हनुमान बेनीवाल द्वारा वसुंधरा—गहलोत के गठजोड़ की बात सही साबित होती है। अब सवाल यह उठता है कि सचिन पायलट अपनी ही सरकार पर इतने हमलावर क्यों हैं? आखिर क्या वजह है कि पायलट इतने मुखर होकर गहलोत सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं? और अहम सवाल यह है कि पायलट के इन आरोपों के बाद क्या गहलोत सरकार उन घोटालों की जांच करवायेगी, जिनके कांग्रेस नेताओं ने विपक्ष में रहते हुये 2018 में लगाये थे? यह जानने से पहले जय जान लेते हैं कि वसुंधरा राजे सरकार पर दो बड़े घोटालों के आरोप क्या थे और उनका क्या हुआ?
सबसे पहले बात करते हैं वसुंधरा राजे की पहली सरकार पर लगे चर्चित कालीन चोरी मामले की, जिसमें लंबे समय तक सुनवाई हुई और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था। राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को करीब 18 साल पुराने खासाकोठी होटल से बेशकीमती कालीन सीएमओ पहुंचने से पहले गायब हो जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 6 नवंबर 2017 को राहत दी थी। इस मामले में तत्कालीन न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायाधीश नवीन सिन्हा की खंडपीठ ने सुनवाई के बाद यह कहते हुए याचिकाकर्ता की दायर याचिका खारिज कर दी थी कि इस मामले में प्रर्याप्त सबूत नहीं हैं। कोर्ट ने आगे कहा था कि मामले में पुलिस क्लोजर रिपोर्ट पहले ही दाखिल की जा चुकी है, लिहाजा नए आदेश जारी करने की जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकरण में सीबीआई जांच से भी इंकार कर दिया था।
इससे पहले याचिकाकर्ता की ओर से हाईकोर्ट में भी याचिका दायर की गई थी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। खासाकोठी होटल से सीएमओ के बीच कालीन चोरी मामले में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ उनके ओएसडी धीरेन्द्र कमठान पर भी आरोप लगाए गए थे।
दरअसल, बेशकीमती कालीन गायब होने का मामला 2005-06 का है। उस वक्त राजस्थान के सीएम की कुर्सी वसुंधरा राजे के पास थी। सीएमओ के आदेश पर सरकारी होटल खासाकोठी से मुख्यमंत्री कार्यालय के लिए ईरानी शैली के 8 बेशकीमती कालीन मंगवाएं गए थे, लेकिन ये कालीन सीएम कार्यालय न पहुंचकर बीच में ही कहीं गायब हो गए थे। बेशकीमती कालीन कहां गए, इसकी जांच के लिए मामला कोर्ट तक पहुंचा था। इस मामले में पीडब्ल्यूडी के अभियंता और होटल के अफसरों की संलिप्तता भी सामने आई थी।
ये कालीन खासाकोठी होटल को जयपुर राजघराने की ओर से दिए गए थे। कालीने करीब 150 साल पुरानी थीं। इन्हें जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह ने बनवाई थी। ईरानी शैली के इन कालीनों की कीमत करीब 250 करोड़ रूपए बताई जाती है। बेशकीमती कालीने राज्य के गेस्ट हाउस के तौर पर इस्तेमाल किये किए जाने वाले खासाकोठी की शान हुआ करती थीं।
इस मामलें में 6 नवंबर 2009 को पीडब्ल्यूडी विभाग के एक्जीक्यूटिव इंजीनियर सत्येंद्र कुमार द्वारा अशोक नगर थाने में एक एफआईआर दर्ज कराई गई थी। कालीन गायब होने के मामले की एफआईआर में पीडब्ल्यूडी विभाग के तत्कालीन अधिशासी अभियंता राकेश भार्गव व मुख्यमंत्री के तत्कालीन ओएसडी धीरेन्द्र कमठान के खिलाफ मामला दर्ज करवाया गया था।
कालीन गायब होने के मामले में कांग्रेस नेता रामसिंह कस्वां ने याचिका दायर की थी। कस्वां ने एसएलपी में हाईकोर्ट के 2016 में दिए उन आदेशों को चुनौती दी थी, जिनमें प्रार्थी की हाईकोर्ट मामले में लगाई गई एफआर को चुनौती देने वाली और मामले की सीबीआई जांच करवाने संबंधी याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
इसी तरह से वसुंधरा राजे की दूसरी सरकार, जो 2013 से 2018 तक थी, उसमें खान विभाग के प्रमुख सचिव अशोक सिंघवी को एंटी क्रप्शन ब्यूरो ने ढाई करोड़ की नकद रिश्वत लेते हुये गिरफ्तार किया गया था।
तब सचिन पायलट ने रामेश्वर डूडी के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर राजस्थान में वसुंधरा राजे की सरकार ने निविदा आमंत्रित किए बिना और जल्दबाजी में 653 खानों का आवंटन किये जाने के आरोप लगाये थे, जिससे राज्य को कम से कम 45,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ बताया गया था।
आरोप था कि वसुंधरा सरकार ने आनन-फानन में ढाई माह के भीतर अपने चेहतों को ‘पहले आओ, पहले पाओ’ की नीति बनाकर निविदा मांगें बिना इन खानों का आवंटन किया, जबकि उन लोगों को कोई आवंटन नहीं हुआ, जिन्होंने 3 साल पहले आवेदन किया था।
सरकार खानों के आवंटन के लिए कितनी जल्दबाजी में थी, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 31 दिसंबर 2014 को एक ही दिन में करोली खान के आवंटन के लिए 10 लोगों ने दस्तखत किए थे।
कांग्रेस नेताओं ने तब यह भी आरोप लगाया था कि घोटाले में राजस्थान सरकार शामिल है और इसका प्रमाण यह है कि भ्रष्टाचार के आरोप में मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव अशोक सिंघवी को गिरफ्तार किया गया। राजे के पहले कार्यकाल में भी अशोक सिंघवी उनके प्रधान सचिव रहे और सरकार बदलने पर वे प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे, लेकिन दोबारा जब राजे मुख्यमंत्री बनीं तो उन्हें फिर से प्रधान सचिव नियुक्त कर दिया गया था।
पायलट ने इसे आजाद भारत में राजस्थान के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला करार दिया था और कहा कि था 653 खानों के लिए 1 लाख बीघा जमीन का बिना निविदा आमंत्रित किए आवंटन कर दिया। तब खुद सचिन पायलट इसे खनिजों की बहुत बड़ी लूट बताते थे। उन्होंने दावा किया था कि राज्य सरकार ने जितनी खानों का आवंटन किया, उनका मूल्य करीब 2 लाख करोड़ रुपए है, लेकिन यदि उनका आवंटन निविदाओं के जरिए पारदर्शी तरीके से होता तो राज्य सरकार को कम से कम 45 हजार करोड़ रुपए का नुकसान नहीं उठाना पड़ता।
तब तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी ने भी आरोप लगाया था कि राज्य सरकार से विधानसभा में जब भी पूछा गया कि उसने किस आधार पर 10-10 किलोमीटर लंबी खदानों का बिना नीलामी के आवंटन किया गया? तो इसका सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया। अपने चेहतों को खान का आवंटन करके फायदा पहुंचाने के लिए सरकार ने तेजी दिखाई और ढाई माह में ही सभी खदानों का आवंटन कर दिया था।
इन दो बड़े घोटालों का नाम लेकर ही सचिन पायलट, अशोक गहलोत और रामेश्वर डूडी ने वसुंधरा सरकार को आड़े हाथों लिया था। हर सभा और प्रदर्शन में यह दावा किया था कि यदि उनकी सरकार बनी तो वसुंधरा राजे सरकार के सारे काले चिट्ठे खोले जायेंगे, और उनकी सीबीआई से जांच करवाई जायेगी, लेकिन आज चार साल बीतने के बाद कांग्रेस पार्टी में कोई उनकी बात भी नहीं करना चाहता है।
खुद सचिन पायलट जब शुरू के डेढ़ साल तक उपमुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने भी कोई बयान नहीं दिया, लेकिन अब चुनाव नजदीक आने के साथ ही उन्होंने ना केवल वसुंधरा राजे की सरकार पर आरोप दोहराये हैं, बल्कि अशोक गहलोत की सरकार को भी याद दिलाया है कि उन घोटालों की जांच नहीं करवाई गई तो जनता के सामने क्या मुंह लेकर चुनाव प्रचार में जायेंगे।
क्या वसुंधरा राजे सरकार में हुये कालीन चोरी और खान घोटाले की सचिन पायलट द्वारा याद दिलाने पर अशोक गहलोत सरकार वसुंधरा राजे पर लगे गंभीर आरोपों की जांच करवायेगी? अशोक गहलोत पर सचिन पायलट की बातों का असर होगा? बड़ी बात यह है कि यदि गहलोत सरकार ने जांच नहीं बिठाई तो क्या सचिन पायलट के हमले और तेज होंगे? क्या था कालीन चोरी और 45000 करोड़ का खान आवंटन घोटाला?
वसुंधरा राजे के बहाने अशोक गहलोत को लपेट रहे सचिन पायलट
Siyasi Bharat
0
Post a Comment