Ram Gopal Jat
राजस्थान कांग्रेस में दो टॉप नेताओं के बीच चल रही राजनीतिक जंग अब अंतिम सफर की तरफ जा रही है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी तीसरी सरकार का आखिरी बजट 8 फरवरी को पेश करेंगे, जिसमें ऐसी घोषणाएं होने की उम्मीद है कि या तो सत्ता रिपीट हो जाये, या फिर अगली सरकार उनको पूरा ही नहीं कर पाये।
वैसे पिछले बजट की कई ऐसी घोषणाएं हैं, जो अभी तक धरातल पर उतर ही नहीं पाई हैं। जिसमें सबसे बड़ी घोषणा प्रदेश की 1.33 करोड़ महिलाओं को स्मार्टफोन देना था। जानकारी में आया है कि सरकार ने इस घोषणा को फिलहाल चुनाव से करीब चार महीने पहले तक के लिये ठंडे बस्ते में डाल दिया है।
सरकार की मंशा है कि महिलाओं को मोबाइल ऐसे समय में दिये जायें, ताकि चुनाव तक उसका नशा नहीं उतरे और उसके सहारे वोट मिल सके। ऐसी ही अनेक मनभावन घोषणाओं को अंबार इस बार लगने वाला है, जिसकी तैयारी गहलोत के खास अफसर कर रहे हैं।
दूसरी तरफ पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट सरकार की विफलताओं को लेकर जनता के बीच पहुंच गये हैं। पिछले दिनों लगातार पांच बड़ी सभाएं करके पायलट ने किसान और जवान की आवाज बुलंद की है। पायलट आज अपने विधानसभा क्षेत्र के दौरे पर हैं, जहां जनता से मिलकर अपनी बात रखेंगे। गहलोत जहां अपनी घोषणाओं का जनता में ढिंढोरा पीटने में लगे हैं, तो पायलट राज्य की सरकार बनने से पहले कांग्रेस द्वारा किये जा रहे वादों को याद दिला रहे हैं। राज्य में कांग्रेस के दो नेताओं के बीच चल रही जंग लगातार बढ़ती जा रही है।
पिछले दिनों नागौर से हनुमानगढ़, झुंझुनू, पाली और जयपुर में हुई किसान—जवान रैलियों में पायलट ने सरकार को पंक्चर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पायलट की इस अचानक बढ़ी सक्रियता ने राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा कर दी है। चर्चा इस बात की अधिक हो रही है कि सत्ता में होने के बावजूद सचिन पायलट अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ लगातार बयानबाजी क्यों कर रहे हैं?
सियासी जानकारों का मानना है कि चुनाव नजदीक हैं, इसलिये सचिन पायलट किसान सम्मेलनों के जरिये जनता के बीच में हैं। पायलट की आक्रामकता ने स्पष्ट कर दिया है कि अभी नहीं तो कभी नहीं होगा। विधानसभा चुनाव में केवल 10 महीनों का समय रह गया है। इसके साथ ही राहुल गांधी की भारत जोडो यात्रा भी इसी माह के अंत में पूरी हो जायेगी। कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन अगले महीने रायपुर में होने जा रहा है। उसके बाद कांग्रेस के अध्यक्ष मलिल्लकार्जुन खड़गे को अपनी टीम बनानी है। जाहिर सी बात है कि इस दौरान खड़गे को राजस्थान की सियासी पहली को सुलझाना सबसे बड़ी समस्या होगी।
11 जुलाई 2020 से अब तक बगावत और सुलह के बाद सचिन पायलट इसी उम्मीद शांत में बैठे रहे कि दिल्ली वाले उनके साथ न्याय करेंगे। लेकिन राज्य में लगातार चले उपचुनाव, राज्यसभा चुनाव, राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव और गहलोत का इस्तीफा प्रकरण, इसके बाद राहुल गांधी की भारत जोडो यात्रा के कारण काफी समय गुजर चुका है। अब पायलट के पास न्याय पाने के लिये केवल 10 महीनों का समय शेष बचा है, जिसमें उनको सबकुछ हासिल करना है और सत्ता रिपीट भी करवानी है।
राजनीति में चर्चा यह भी है कि जिस तरह से मंत्री राजेंद्र गुढ़ा जैसे नेताओं ने खुलकर पायलट का समर्थन किया है, उससे आने वाले दिनों में बगावत का दूसरा पार्ट शुरू हो सकता है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास सितंबर में आलाकमान को आंख दिखाने तक 102 विधायक थे, लेकिन उस वक्त जो सियासी ड्रामा चला है, उससे कई विधायक अब छिटककर पायलट के कैंप में चले गये हैं। यही वजह है कि जो बात पहले गहलोत के समर्थक कहते थे, वह बात आज उनको खुद कहनी पड़ रही है। सचिन पायलट भी इस बात को अच्छे से जान गये हैं कि अशोक गहलोत सरकार अब उतनी सुरक्षित नहीं है, जितने सितंबर से पहले तक मानी जा रही थी।
शायद यही कारण है कि पायलट अचानक से इतने मुखर हो गये हैं। दूसरा कारण यह है कि पिछले दिनों पायलट ने भारत जोडो यात्रा के दौरान पंजाब में काफी दूर तक राहुल गांधी से बातचीत की थी, जिसके बाद से पायलट काफी तीखे बयान दे रहे हैं। माना जा रहा है कि राहुल गांधी ने पायलट को इस बात की अनुमति दे दी है कि जो वादे किये गये थे, उनको याद दिलाया जाये, ताकि गहलोत दबाव में आयें तो उनको पूरा करना शुरू करें, अन्यथा सत्ता रिपीट करवाना एक सपना ही रह जायेगा।
सचिन पायलट जिस तरह से नपे—तुले शब्दों में अपनी बात कह रहे हैं, उसको राज्य की जनता अच्छे से सुन भी रही है और समझ भी रही है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार पायलट को लेकर फैसला नहीं करने का असली कारण यह है कि कांग्रेस आलाकमान खुद इस समय संक्रमण के दौर से गुजर रहा है, जो इतना ताकतवर नहीं है कि सीधे अशोक गहलोत को हटने को कह सके। कांग्रेस आलाकमान की कमजोरी का ही नतीजा है कि यह विवाद करीब तीन साल बाद भी सुलझ नहीं पाया है।
कांग्रेस अध्यक्ष और गांधी परिवार की कमजोर का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उनके भेजे नुमाइंदों को खुलेआम आंख दिखाने वाले तीन नेताओं को नोटिस तो दिया गया, लेकिन उनपर अभी तक पार्टी कोई कार्यवाही नहीं कर पाई है। माना जा रहा है कि उस वक्त आलाकमान ने गहलोत को हटाने के लिये विधायक दल की बैठक बुलाई थी, जिसको भांपकर गहलोत कैंप ने आलाकमान से बगावत की थी, जिसके कारण सबसे अधिक आहत भी सचिन पायलट समर्थक ही हुये हैं।
सचिन पायलट इन दिनों जिन क्षेत्रों में सभाएं कर रहे हैं, उनमें वो इलाके अधिक हैं, जहां पर जाट या राजपूत बाहुल्य में हैं। यही वजह है कि पहली सभा जाट बाहुल्य नागौर में, दूसरी जाट, एससी बाहुल्य हनुमानगढ़ में, तीसरी राजपूत, जाट, गुर्जर बाहुल्य वाले गुडा में, चौथी राजपूत, जाट बाहुल्य पाली में और पांचवी जयपुर में हुई, जिसमें सभी तरह के स्टूडेंट्स होते हैं। पालयट ने अपनी इन सभाओं में अफसरशाही हावी होने का मामला उठाया है। पेपर लीक होने, किसानों को बिजली नहीं मिलने, कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की जगह रिटायर अधिकारियों को राजनीतिक नियुक्ति देने जैसे मुद्दों से पायलट ने गहलोत सरकार को जमकर घेरा है।
अब यह कहना तो फिलहाल कठिन है कि सचिन पायलट का यह बदला हुआ रूप उनको कितना फायदा पहुंचायेगा, लेकिन इतना तय है कि अशोक गहलोत सरकार द्वारा दावा की जा रही चार साल की उपलब्धियों पर पानी फैर चुका है। पालयट—गहलोत की इस खुली भिडंत के बाद राजनीतिक विशलेषकों की नजर अब आलाकमान पर है। लोग इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि राहुल गांधी की यात्रा और गहलोत द्वारा बजट पेश करने के बाद क्या पायलट के साथ न्याय होगा?
इनके बाद यदि कोई ठोस कदम उठाया जाता है, तो ठीक, अन्यथा राज्य की जनता 10 महीने बाद पायलट और कांग्रेस, दोनों के साथ न्याय करने के लिये अपनी अंगुली तैयार करके बैठी है। इस खबर पर आप क्या विचार रखते हैं, अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर दीजिये, ताकि यह पता चल सके कि राज्य की जनता गहलोत—पायलट विवाद पर क्या सोचती है?
पायलट ने गहलोत सरकार की इतनी रगड़ाई क्यों की?
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