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सचिन पायलट और हनुमान बेनीवाल को किरोड़ीलाल मीणा की चुनौती

Ram Gopal Jat
कुछ दिनों पहले ही नागौर के सांसद और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के संयोजक हनुमान बेनीवाल ने दावा किया था कि यदि सांसद किरोड़ीलाल मीणा और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट उनके साथ आ जायें तो कांग्रेस—भाजपा को सत्ता से दूर बिठाकर 140 सीटें जीत सकते हैं। हनुमान बेनीवाल ने यह भी दावा किया है कि राजस्थान की जनता 30 साल से एक बार भाजपा, एक बार कांग्रेस के कुशासन से आजिज आ चुकी है, इसलिये बदलाव करना चाहती है। यही वजह है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी की सरकार बनायेंगे। बेनीवाल के इन दावों को लेकर एक वीडियो हमने पहले बनाया था कि कैसे ये तीनों नेता मिलकर 140 सीटें जीत सकते हैं या नहीं? इसमें कोई दोहराय नहीं है कि राजस्थान में इस वक्त इन तीनों नेताओं के पास व्यक्तिगत तौर पर बहुत बड़ा जनाधार है, जिसके दम पर ये चाहें तो एक होकर भाजपा—कांग्रेस को सत्ता से दूर रख सकते हैं। यह बात भी सही है कि इनके प्रयास अलग अलग तरह के भले ही हों, लेकिन ये नेता लगातार जनता के लिये संघर्ष करते हुये ही पाये जाते हैं। हनुमान बेनीवाल जहां युवाओं और किसानों के दम पर बड़ी रैलियां करके खुद को कई बार साबित कर चुके हैं, तो किरोड़ीलाल मीणा जब राजधानी में कूच का ऐलान करते हैं तो सड़कें छोटी पड़ जाती हैं। इसी तरह से सचिन पायलट के नाम पर युवाओं की भीड़ एकत्रित होना कोई आश्चर्य नहीं है।
बीते 30 साल से भाजपा—कांग्रेस ने सत्ता पर राज किया है। जिसमें तीन बार भाजपा और तीन बार कांग्रेस का शासन रहा है। इन 30 में से 25 साल दो ही लोग मुख्मयंत्री रहे हैं और हनुमान बेनीवाल कई बार कह चुके हैं कि ये दोनों का गठबंधन है, जिसको तोड़ना भाजपा—कांग्रेस के बस की बात नहीं है, इस अनैतिक गठबंधन को 2023 में राजस्थान की जनता तोड़ देगी। अब यह तो समय ही बतायेगा कि इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद कौन सत्ता में रहेगा और कौन सत्ता से दूर विपक्ष में बैठेगा, लेकिन इस बीच इन तीनों नेताओं ने अपने अपने स्तर पर प्रचार शुरू करके सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी पार्टी भाजपा की नींद जरूर उड़ा दी है। इस बीच इन नेताओं के धरने, प्रदर्शन और रैलियां शुरू हो चुकी हैं। हनुमान बेनीवाल ने जहां जयपुर में पेपर माफिया पर कार्यवाही के लिये शहीद स्मारक पर प्रदर्शन किया। उसके दूसरे दिन बाड़मेर के बालोतरा में बजरी माफिया के खिलाफ धरना दिया है, तो एक दिन पहले अजमेर में किसानों को बिजली नहीं मिलने को लेकर 7 घंटे घरना देकर अपनी मांगें मनवाने में सफल रहे हैं। दूसरी ओर सचिन पायलट लगातार पांच दिन तक किसानों—युवाओं के लिये नागौर, हनुमानगढ़, सीकर, पाली और जयपुर में रैलियां करके राज्य की अशोक गहलोत सरकार की जान हलक में ला दी है। पायलट के इस तूफानी दौरे से साफ हो गया है कि वह अब पूरी तरह से चुनावी पायलट बन चुके हैं।
इधर, किरोड़ीलाल मीणा ने भी नकल माफिया पर कार्यवाही नहीं करने का आरोप लगाकर सीएम आवास के घेराव का कार्यक्रम तय किया है। अब 23 तारीख को विधानसभा बजट सत्र शुरू हो रहा है, और उससे पहले किरोड़ीलाल ने युवाओं के लिये राजधानी कूच की घोषणा करके गहलोत सरकार को पूरी तरह प्रेशर में ला दिया है। किरोड़ीलाल मीणा ने सचिन पायलट और हनुमान बेनीवाल की रैलियों पर बोलते हुये कहा है कि केवल बयानबाजी करने से कुछ नहीं होता है, कड़ाके की ठंड़ में, सड़क पर खुले में धरना दें, प्रदर्शन करें और सरकार को मजबूर करें कि पेपर लीक की जांच सीबीआई को सौंप दे। वैसे सुनने में तो यह बात बहुत छोटी सी लगती है कि किरोड़ीलाल मीणा ने बेनवाल—पायलट को चुनौती दी है, लेकिन यह बात सही है कि पायलट ने आज तक भी किरोड़ीलाल मीणा की तरह रातभर कहीं सड़क पर धरना नहीं दिया है, ना ही बेनीवाल की तरह दिनरात सड़क पर बैठे रहने का काम किया है। पायलट जब विपक्ष में थे, तब वह सड़कों पर उतरते भी थे, उनको पुलिस की लाठियां भी पड़ती थीं, लेकिन उनके धरने या प्रदर्शन दिनरात नहीं चले। इससे इतर बेनीवाल भी किरोड़ीलाल की तरह से धरना और प्रदर्शन करने में बड़े खिलाड़ी साबित हुये हैं। भले ही अभी तक किरोड़ीलाल ने पायलट के खिलाफ ऐसा आरोप नहीं लगाया हो, लेकिन अंतत: चुनाव नजदीक आने तक इन बयानों तल्खी आनी तय है।
अब सवाल यह उठता है​ कि इन तीनों ही नेताओं के प्रदर्शनों के केंद्र में जवान और किसान ही क्यों होते हैं? दरअसल, राज्य में करीब 8 करोड़ जनसंख्या बताई जाती है, जिसमें से 5 करोड़ से अधिक मतदाता हैं। पिछले चुनाव में भाजपा केवल एक लाख वोटों के अंतराल से सत्ता से बाहर हो गई थी। कांग्रेस को केवल 0.1 फीसदी वोट अधिक मिले थे, जिसमें सबसे बड़ा योगदान किसानों और जवानों का ही रहा है। चुनाव से पहले कांग्रेस ने किसानों की कर्जमाफी का वादा किया था, जिसके चलते ये वोट पूरी तरह से कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो गये। इसी तरह से बेरोजगारों को प्रतिमाह 3500 रुपये भत्ता देने का वादा किया, जिससे युवाओं ने भी कांग्रेस को वोट दिया, लेकिन वादा पूरा नहीं किया गया। किसानों को केवल सहकारिता का कर्जमाफी का झुंझुना पकड़ा दिया गया, जबकि राज्य के करीब 70 लाख बेरोजगारों में से सवा लाख को चिन्हित किया और उससे भी प्रतिदिन हाजिरी देने व चार घंटे काम करने का प्रावधान करके मामले पर लीपापौती कर दी। यही वजह है कि राज्य का जवान और किसान कांग्रेस से पूरी तरह नाराज है। हनुमान बेनीवाल राज्य में व्यवस्था परिवर्तन, किसानों को बिजली फ्री, युवाओं को रोजगार और प्रदेश को टॉलमुक्त करने का वादा करते हैं। बेनीवाल दावा करते हैं कि यदि रालोपा को सत्ता मिली तो इन वादों को पूरा किया जायेगा। दूसरी ओर पिछले चुनाव में सचिन पायलट पीसीसी चीफ थे और तब कांग्रेस ने जो घोषणा पत्र जारी किया था, वह उनकी ही देखरेख में बना था। उसमें किसानों और जवानों के लिये बड़े वादे किये गये थे, लेकिन सरकार ने उनको पूरा नहीं किया। अब सचिन पायलट सरकार से उन वादों को पूरा कराने के लिये रैलियों में भाषण दे रहे हैं, तो लोग सवाल पूछ रहे हैं कि चार साल पहले किये गये वादे यदि कांग्रेस ने पूरे नहीं किये तो उनपर किस आधार पर भरोसा किया जाये?
ऐसा लग रहा है कि पायलट धीरे धीरे अपनी गाड़ी का गियर टॉप करने की तरफ बढ़ रहे हैं। पहली, दूसरी, तीसरी, चौथी और पांचवी रैली की बातों पर गौर करेंगे तो पायलट के बयान हल्के से तीखे की तरफ बढ़ रहे हैं। लोगों का मानना है कि पायलट संभवत: कांग्रेस को सीधा संदेश देना चाह रहे हैं कि अभी तक वह केवल गहलोत सरकार के खिलाफ बोल रहे हैं, यदि वादों का पूरा नहीं किया गया तो वह पार्टी को भी लपेटे में ले सकते हैं। इस बीच सोशल मीडिया पर यह बहस छिड़ गई है कि अब सचिन पायलट सीएम नहीं बनना चाहते हैं, वह सत्ता रिपीट कराके ही पांच साल के लिये मुख्मयंत्री बनना चाहते हैं। सवाल यह उठता है कि जब कांग्रेस की सरकार ने वादे ही पूरे नहीं किये तो राज्य की जनता वोट क्यों देगी? यही वजह है कि पायलट इन रैलियों के बहाने सरकार पर दबाव बना रहे हैं और वादे याद दिला रहे हैं कि इनको पूरा किया जाये, ताकि वह जनता के बीच जाकर यह कह सके कि हमने अपने वादे पूरे किये हैं, इसलिये जनता को उनपर विश्वास करना चाहिये। लोगों का यह भी मानना है कि पायलट की सभाओं में भीड़ तो आ रही है, लेकिन यह भीड़ वोट में कन्वर्ट होने वाली नहीं है, केवल सचिन पायलट को सुनने वाली अधिक है। सवाल यह उठता है​ कि भीड़ आखिर सचिन पायलट को सुनना क्यों चाहती है?
दरअसल, राज्य में 25 साल के शासन में सत्ता की कुर्सी पर नया चेहरा दिखाई नहीं दिया है, जिसके कारण जनता निराश है और इन दोनों चेहरों से मुक्ति पाना चाहती है। यही वजह है कि सत्तारूढ़ कांग्रेस के नेता सचिन पायलट को भी जनता से उम्मीदें बाकी हैं। इधर, हनुमान बेनीवाल के समर्थकों को बहुम उम्मीदें हैं। बेनीवाल ने समर्थक भी अपने नेता को सबसे अच्छा मानते हैं और चाहते हैं कि एक बार सत्ता उनके मिले, ताकि राज्य की व्यवस्था बदली जा सके, जो बीते 25 साल में सड़ांध मार रही है। इसी तरह की उम्मीदें किरोड़ीलाल मीणा के समर्थक भी लगाये हुये हैं, जो चाहते हैं कि वह सीएम बनकर जनता का उद्वार करें। इन तीनों नेताओं के अलग—अलग रहते जनता की उम्मीदें भी अलग रहेंगी और समर्थकों का बंटे रहना भी तय है। ऐसे में बेनीवाल का कहना कि तीनों को एक साथ हो जाना चाहिये, काफी मायने रखता है। उपर से किरोड़ीलाल मीणा ने इशरों में कह दिया कि बेनीवाल और पायलट उनके साथ सड़क पर उतरें तो वह भी इनका साथ देने को तैयार हैं। इधर, पायलट अपनी ही सरकार पर गंभीर आरोप लगाकर साबित कर चुके हैं कि वह उस तरफ रहेंगे, जहां जनता से किये गये वादों को पूरा किया जायेगा।
सवाल यह उठता है कि क्या सचिन पायलट कांग्रेस छोड़कर इन दोनों नेताओं के साथ खड़े होंगे? क्या किरोड़ीलाल मीणा दूसरी बार पार्टी छोड़कर बेनीवाल—पायलट के साथ चले जायेंगे और सबसे अहम सवाल यह है कि किरोड़ीलाल, पायलट और बेनीवाल के साथ जाने से क्या उनको सत्ता मिल जायेगी? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि इन तीनों को सत्ता मिलने पर मुख्यमंत्री कौन बनेगा?

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