Ram Gopal Jat
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पूरी होने में कुछ दिन का समय शेष बचा है। कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक जाने वाली इस यात्रा के दौरान कांग्रेस ने यह बताने का प्रयास किया है कि राहुल गांधी ही हैं, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुकाबला कर सकते हैं। यह बात इसलिये भी साबित होती है कि हर राज्य में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके यह दिखाने का प्रयास किया है कि राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी पत्रकारों के सवालों से डरती नहीं है, बल्कि प्रशानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह सवालों से डरते हैं, इसलिये पत्रकार वार्ता नहीं करते हैं।
हालांकि, तमाम प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस ने पत्रकारों को सवाल पूछने में बहुत सीमित किया, किसी प्रश्न का सीधा और सहज जवाब नहीं दिया। राहुल गांधी ने अधिकांश प्रश्नों को पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के उपर टाल दिया, जैसे राजस्थान में गहलोत—पायलट विवाद के मामले में कुछ भी नहीं बोले। तमाम प्रेस वार्ता का एक ही एजेंडा रहा है कि मोदी सरकार पर बार—बार हमला बोला जाये और यह बताने का प्रयास रहा है कि राहुल गांधी एक टी शर्ट में यात्रा करके तपस्वी बन गये हैं।
प्रेस वार्ताओं के दौरान पांडवों के द्वारा जीएसटी लागू नहीं करना, पांडवों के साथ सभी धर्मों के लोगों का होना, राहुल गांधी को उनके द्वारा काफी पहले मार दिया हुआ बताना जैसी कई ऐसी बातें भी हुई हैं, जो सोशल मीडिया का मनोरंजन भी कर रही हैं। कांग्रेसजनों को उम्मीद थी कि राहुल गांधी इस यात्रा से परिपक्व हो जायेंगे, लेकिन यह यात्रा केवल राहुल गांधी और कुछ कांग्रेसजनों के लिये सैर सपाटे से अधिक कुछ दिखाई नहीं दे रही है।
इस यात्रा में बार—बार यह बोला गया है कि राहुल गांधी देश में नफरत खत्म करने, बेरोजगारी दूर करने ओर महंगाई को मिटाने के लिये यात्रा कर रहे हैं, लेकिन यह बात किसी ने नहीं बताई कि इस यात्रा से इन तीनों को कैसे खत्म किया गया या किया जायेगा?
यात्रा समाप्ति के अवसर पर कांग्रेस ने कई दलों को बुलाया है। जहां से इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिये गठबंधन पर प्राथमिक राय की जायेगी। एक तरह से इस यात्रा के द्वारा कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी को 2024 के लिये लॉन्च कर रही है।
हालांकि, यूपीए के घटक दलों की सहमति लेनी बाकी है, लेकिन तैयारी यही कह रही है कि राहुल गांधी को पीएम मोदी के बराबर दिखाना है, तो सहयोगी दलों को साथ लाने का भी प्रयास किया जा रहा है। इस पूरे मामले पर अलग से बात करेंगे, लेकिन दूसरी तरफ भाजपा भी इस साल होने वाले 10 राज्यों के विधानसभा चुनाव को सेमीफाइनल के रुप में खेलने जा रही है, साथ ही अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले अपना रोडैमप तैयार कर रही है।
इसको लेकर एक बड़ी बैठक सोमवार से दो दिन तक दिल्ली में रहेगी। इसमें ना केवल सत्ताधारी राज्यों के चुनाव को लेकर चर्चा होगी, बल्कि भाजपा जहां विपक्ष में है, वहां कैसे जीत सकते हैं, इसपर भी विस्तार से बातचीत की जायेगी। जम्मू कश्मीर को लेकर सबसे अधिक चर्चा हो सकती है, क्योंकि गृहमंत्री अमित शाह दो दिन पहले ही वहां दौरा करके लौटे हैं और वहां पर भी चुनाव करवाने हैं।
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री के चेहरे पर भी बात होगी, जहां पर लंबे समय से चेहरा नहीं बदला गया है। खासकर राजस्थान में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने जिस तरह से पार्टी के साथ असहयोग आंदोलन कर रखा है, उसको लेकर भी निर्णय लिया जाने की संभावना है।
वैसे तो राजस्थान को लेकर कई बार कहा जा चुका है कि मोदी और कमल के निशान पर ही चुनाव लड़ा जायेगा, लेकिन फिर भी इस बैठक में साफ हो जायेगा कि भाजपा क्या करने जा रही है। क्योंकि वसुंधरा राजे समर्थकों का मानना है कि भाजपा को मजबूरन वसुंधरा को ही आगे करना पड़ेगा, अन्यथा जीत नहीं पायेगी। इसकी क्या संभावना है, इसपर आगे बात करेंगे, पहले इस बैठक में क्या कुछ होने जा रहा है, इस पर बात करना जरुरी है।
भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक को लेकर बीजेपी मुख्यालय और NDMC में जोर-शोर से तैयारी शुरू हो गई है। इस बैठक में विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और सभी राज्यों के पार्टी अध्यक्षों समेत कई अन्य वरिष्ठ नेताओं के अलावा लगभग 350 कार्यकारी सदस्य शामिल होंगे।
बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक 16 और 17 जनवरी को होने जा रही है। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य 10 राज्यों में इस वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव और 2024 लोकसभा चुनाव के लिए एजेंडा तय करना है। इस बैठक में बीजेपी देश का आर्थिक, राजनीतिक, गरीब कल्याण और भारत की G20 अध्यक्षता जैसे चार प्रस्तावों को पारित कराने की कोशिश कर रही है।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री के रूप में पीएम मोदी के 9 साल के कार्यकाल की 'उपलब्धियों' और गुजरात में भारी जीत पर प्रकाश डाला जाएगा। जिन चुनावों में बीजेपी की हार हुई है, उन्हें लेकर चर्चा और प्लानिंग की जाएगी। बीजेपी की 160 सीटों पर कमजोरी और वहां से मिले फीडबैक को लेकर भी चर्चा की जाएगी।
आर्थिक मुद्दों पर चर्चा के दौरान यह बताया जाएगा कि जहां दुनिया वैश्विक मंदी से जूझ रही है, वहीं भारत हर देश को पीछे छोड़कर पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है।
भारत की G20 अध्यक्षता पर चर्चा करते हुए, इस बात पर प्रकाश डाला जाएगा कि भारत एक ग्लोबल लीडर बन गया है और पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में भारत के लिए एक बड़ा अवसर है, जिसमें भारत खुद को और मजबूत करने जा रहा है।
गरीब कल्याण योजना, अन्न योजना, आवास योजना, उज्ज्वला योजना, जन धन योजना सहित जन कल्याण से जुड़ी अन्य योजनाओं का लाभ लोगों को कैसे मिल रहा है, बैठक में इस पर भी चर्चा व मंथन होगा।
16 जनवरी को बीजेपी मुख्यालय में भाजपा पदाधिकारियों की बैठक होगी। उसके बाद NDMC में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक होगी। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के भाषण और नागालैंड, त्रिपुरा, मिजोरम, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक और जम्मू कश्मीर राज्यों पर राजनीतिक चर्चा की जाएगी।
दरअसल, दिल्ली में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अध्यक्ष पद पर जेपी नड्डा के कार्यकाल को बढ़ाने पर सहमति बनने की संभावना है। नड्डा का कार्यकाल 20 जनवरी को समाप्त हो रहा है और संगठन में चुनाव नहीं होने के कारण उन्हें अगले लोकसभा चुनाव तक अध्यक्ष पद पर बने रहने के लिए कहा जा सकता है।
बैठक में दूसरे दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पदाधिकारियों को जीत का मंत्र देंगे, जनता के बीच सेवा कार्यों से जनता से जुड़ने के नए तरीके बताएंगे और पार्टी कार्यकर्ताओं को कुछ नई जिम्मेदारी सौंप सकते हैं। इस साल होने वाले 10 राज्यों के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले होने जा रही बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कई मायनों में काफी अहम है।
राजस्थान के लिहाज से यह बैठक काफी अहम होगी, क्योंकि इसके बाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक इस साल नहीं होगी, जबकि इसी साल के अंत में राजस्थान में चुनाव होने वाले हैं। राजस्थान में कांग्रेस की अशोक गहलोत की सरकार है, जो खुद के नेता सचिन पायलट की दावेदारी से जूझ रही है। पायलट दौरों पर निकल पड़े हैं, जो ना केवल भाजपा के लिये, बल्कि कांग्रेस के लिये चिंता का विषय है। असल में भाजपा को यह तय करना है कि वसुंधरा राजे को ही आगे रखा जायेगा, या नये चेहरे पर दांव खेला जायेगा। वैसे तो भाजपा साफ कर चुकी है कि कोई चेहरा नहीं होगा, लेकिन वास्तव में भाजपा में चार चेहरे अपना अपना दावा ठोक रहे हैं।
पूर्व सीएम के नाते वसुंधरा राजे तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के सपने देख रही हैं, जबकि बीते चार साल में उन्होंने राज्य में चार काम नहीं किये हैं, जो सरकार की असफलता को उजागर करते हों। फिर भी वसुंधरा राजे और उनके वफादारों को लगता है कि वही मुख्मयंत्री बनेंगी, इसके लिये उनके कद को सबसे बड़ा बताने और उनके बिना चुनाव नहीं जीतने तक का दावा किया जा रहा है। दूसरा चेहरा हैं पार्टी अध्यक्ष के तौर पर सरकार से लगातार लोहा ले रहे पार्टी प्रमुख डॉ. सतीश पूनियां। हालांकि, उनका कोई गुट नहीं है, संगठन को ही वह अपना गुट मानते हैं और उसके अनुसार ही चलने का दावा करते हैं, लेकिन संगठन पर उनकी पकड़ को देखते हुये उनको भी दूसरा बड़ा दावेदार माना जा रहा है।
तीसरा नाम है केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का, जो जोधपुर से दूसरी बार सांसद हैं। चर्चा यह भी है कि शेखावत को इस महीने होने वाले मंत्रीमंडल फैरबदल के दौरान हटाया जा सकता है, उनको राज्य में फोकस करने को कहा जा सकता है। यदि उनको मंत्री पद से हटाया गया तो यह माना जायेगा कि उनको मुख्यमंत्री के नामों में रखने पर संगठन विचार कर रहा है। उनके साथ ही अर्जुनराम मेघवाल के नाम पर भी चर्चा होती रहती है।
इसी तरह से लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला भी दावेदार बताये जाते हैं। ओम बिडला को अमित शाह का करीबी माना जाता है। रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव को लेकर भी सोशल मीडिया में चर्चा शुरू हो गई है, जो जोधपुर से संबंध रखते हैं, लेकिन उनके साथ दिक्कत यह है कि वह हमेशा उडिसा राज्य से आईएएस रहे हैं। पार्टी में मुख्यमंत्री के रुप में किसी पूर्व ब्यूरोक्रेट्स को लेकर सहमति बनना कठिन है, क्योंकि आरएसएस पार्टी के कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाने पर फोकस करता रहा है। कहने का मतलब यह है कि सीएम चाहे हो भी बने, लेकिन इनको लेकर चर्चा चल रही है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या भाजपा वसुंधरा राजे के बिना भी चुनाव जीत सकती है, या फिर हार जायेगी? दरअसल, राजस्थान में बीते 30 साल से एक बार कांग्रेस, एक बार भाजपा सरकार का ट्रेंड रहा है। इसलिये भाजपा को उम्मीद है कि सत्ता मिल जायेगी। दूसरी बात यह है कि अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर जोर पकड़ती जा रही है, जिसके कारण लोग भाजपा को उम्मीद की नजर से देख रही है। यदि वसुंधरा राजे को चेहरा नहीं रखा गया तो भी लोग भाजपा के पक्ष में दिखाई देंगे, क्योंकि वसुंधरा को जनता दो बार नकार चुकी है। साथ ही मोदी के नाम पर चुनाव में भाजपा की जीत आसान होगी। पार्टी साफ कर चुकी है कि सीएम का फैसला चुनाव परिणाम के बाद लिया जायेगा।
राजस्थान में कौन सीएम होगा और कौन केंद्र में मंत्री बनेगा, इसको लेकर फिलहाल कोई स्पष्ट फैसला होने की संभावना नहीं है, लेकिन इस बैठक के जरिये यह संदेश दिया जा सकता है कि कौन आगे सीएम पद की रेस में होगा और बाहर हो रहा है। राजस्थान के लिहाज से यह बैठक सबसे अहम वसुंधरा राजे को लेकर ही है, क्योंकि उनको यदि सीएम का चेहरा बनाने का फैसला नहीं किया गया तो यह तय है कि अब राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा राजे की राजनीति पर फुल स्टॉप लग गया है। आने वाले समय में उनको केंद्र में मंत्री या किसी राज्य में राज्यपाल की जिम्मेदारी मिल सकती है। इसलिये इस महामंथन बैठक पर सबसे अधिक नजर वसुंधरा राजे के वफादारों की ही टिकी हुई है।
वसुंधरा राजे की राजस्थान में राजनीति समाप्त हुई
Siyasi Bharat
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