Ram Gopal Jat
पिछले दिनों एक आंकड़ा सामने आया कि भारत से हर दिन 550 युवा देश छोड़कर दूसरे देशों में बस रहे हैं। इस आंकड़े को 365 से गुणा कर लिया जाये तो संख्या 2,00,750 हो जाती है। पिछले साल आईएमएफ की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत, चीन जैसे देशों से उद्योगपति अपना देश छोड़कर स्थाई रुप से दूसरे देशों में बस रहे हैं। भारत से यह संख्या करीब 5 लाख सालाना बताई गई थी, जिनको बेहतर औधोगिक वातावरण नहीं मिलने, टैक्स अधिक होने और सिंगल विंडो की सुविधा के अभाव में ऐसे देशों में जाना पड़ रहा है, जहां पर सुविधाएं कारोबार के अनुकूल होती हैं। सोचनीय बात यह है कि उनका पसंदीदा स्थल अमेरिका या ब्रिटेन नहीं हैं, जो अक्सर काफी समृद्ध माने जाते हैं, बल्कि ये लोग सिंगापुर और आस्ट्रेलिया जैसे देशों में बस रहे हैं।
सवाल यह उठता है कि जिस देश को आज विश्व में पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा मिल चुका है, जो देश अगले चार साल में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनने का दम भर रहा है, जो देश इस साल जनसंख्या के स्तर पर विश्व में पहले नंबर पर होगा, ऐसे देश की बड़ी प्रतिभाएं विदेश क्यों भाग रही हैं? हर दिन जो 550 युवा देश छोड़ रहे हैं, वे ऐसे हैं, जिनको उच्च अध्ययन के उपरांत अपना भविष्य बनाने की चिंता है। उनको ऐसा लगता है कि भारत में रहकर वे अपनी प्रतिभा के साथ ठीक से न्याय नहीं कर पायेंगे। यह बात सही है कि भारत में जमीन के मुकाबले जनसंख्या बहुत अधिक है, किंतु क्या इसी कारण अपनी बहुमुखी प्रतिभाओं को विदेश जाने के लिये मजबूर किया जाये कि हमारे पास युवा शक्ति प्रचूर मात्रा में उपलब्ध है? क्या इसीलिये आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया का दम भरा जाता है, कि वैश्विक व्यापारी भारत में आकर व्यापार करे कि हमारी प्रतिभाएं जब काम करने की स्थिति में आईं तो विदेश भाग गईं? क्या यह अति सोचनीय विषय नहीं है कि जिस देश को आज हम फिर से विश्व गुरू बनने की तरफ बढ़ता हुआ मान रहे हैं, जो देश आज सामाजिक, सांस्कृतिक और सभ्यता के स्तर पर दुनिया को नेतृत्व देने की स्थिति में दिखाई देने लगा है, जिस देश के पास अपनी विशाल और गर्व करने योग्य पुरातन संस्कृति की अकूत संपदा मौजूद है, उसकी नव प्रतिभाएं जब सेवाएं देने का समय आये, तब ऐसे देश में चली जायें, जहां उनका कोई रिश्ता—नाता नहीं है?
इन प्रश्नों का उत्तर देश की केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, उच्च जिम्मेदार अधिकारियों और बुद्धिजीवी लोगों की तरफ से मिलना चाहिये, क्योंकि इन्हीं के उपर इस बात की जिम्मेदारी है कि देश का युवा, जो देश की स्थाई सम्पत्ति है, वह वर्कफॉर्स बनने की स्थिति में देश छोड़कर नहीं भागे, उसको यहीं पर उचित संसाधन और अपनी प्रतिभा दिखाने, देश के विकास में भागीदार बनने का अवसर मिले। आज भारत को जरूरत इस बात की है कि अधिक से अधिक डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, शिक्षक और उद्योगपति विकास के लिये यहीं रहें और यहीं पर अपनी प्रतिभा से दुनिया को चकित करें।
भले ही सुनने और देखने में 550 की संख्या काफी कम लगे, लेकिन जब भारत हर दिन अपनी 550 प्रतिभाएं खोयेगा, तो एक दिन ऐसा भी आ जायेगा, जब हमारे पास केवल द्वितीय या तृतीय स्तर की प्रतिभाएं बचेंगी, बाकी एक नंबर की सभी तीक्ष्ण बुद्धि प्रतिभाएं उन देशों में सेवाएं दे रही होंगी, जिनका उनका निखारने में कोई योगदान नहीं था। अत: सरकारों को चाहिये कि इस तरह की चीजों पर ध्यान केंदित करें। जो युवा भारत में ही अपना उद्योग लगाना चाहता है, डॉक्टर बनकर देश सेवा करना चाहता है, शिक्षक बनकर देश का भविष्य बनाना चाहता है या इंजीनियर बनकर भारत के निर्माण में अपना योगदान देने की इच्छा रखता है, उसको उचित और सम्पूर्ण संसाधन सरकार के स्तर पर उपलब्ध करवाये जायें, ताकि उसकी प्रतिभा की असामयिक मृत्यु ना हो, जो पैसे के अभाव में अंतिम अवस्था में तड़प रही है, जो यह अवसर ढूंढ़ रही है कि कैसे उसका विदेश में चले जाने का मौका मिले।
यह बात सही है कि हम आंत्रपन्योरशिप के स्तर पर दुनिया को चकित कर रहे हैं, केंद्र सरकार भी अपनी पीठ थपथपाती है और जब कोई नया कारोबारी अपने दम पर शिखर को छूता है तो सरकारें खुद का किया बताने लगती हैं। तब यह वास्तविकता भी देख लेनी चाहिये कि हर दिन 550 युवा और हर साल 5 लाख नये कारोबारी विदेश में क्यों बस जाने को बेबस हैं? समाज के लिहाज से यह अत्यंत चिंता का विषय है। जब हम यह दावा करते हैं कि अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में सर्वाधिक डॉक्टर—वैज्ञानिक भारत के सेवाएं दे रहे हैं, तब यह भी ध्यान रखना होगा कि उनको वापस बुलाने और नये युवाओं को विदेश जाने से रोकने के उचित और सम्पूर्ण उपाय कैसे किये जायें?
इंटरनेट के इस जमाने में हम बहुत कुछ एक बटन दबाकर हासिल कर सकते हैं। धन होने पर कुछ भी खरीदने की क्षमता भी हमें मिल जाती है, बड़े और आलीशान प्लाट खरीदने, लग्जरी गाड़ी क्रय करने से भी हमें कोई नहीं रोक सकता, किंतु जब बात युवाओं देश छोड़ने और उनकी प्रतिभा को उचित अवसर नहीं मिलने की आती है, तब उनको बचाने की बेहद आवश्यकता महसूस होती है। आज भारत के पास टाटा, बिडला, महेंद्रा, अडानी, अंबानी जैसे उद्योग घराने हैं, लेकिन ये सब अपने दम से यहां तक पहुंचे हैं। इनको कोई सरकार मदद देकर बड़ा नहीं बना पाई है। अन्यथा इनके जैसे जाने कितने प्रतिभाशाली लोग या तो देश छोड़कर चले गये या यहीं पर संसाधनों के अभाव में घुट—घुटकर दम तोड़ चुके हैं। हमारा लाचार और भ्रष्ट सरकारी तंत्र तो वैसे ही प्रतिभा की हत्या करने को हमेशा तैयार रहता है। ऐसे में जो नये कारोबारी पनप रहे हैं, जो अपने दम पर पढ़—लिखकर वैज्ञानिक या डॉक्टर बनकर विदेश जा रहे हैं, उनको रोकना, उनको उचित संसाधन उपलब्ध करवाना और एक ऐसा वातावरण तैयार करना आवश्यक है, जिसके कारण ये लोग भारत को ही अपना सबकुछ माने और यहीं पर अपना भविष्य देखें, उसको संवारें, देश की सेवा में अपना योगदान करें और नई प्रतिभाओं के लिये रॉल मॉडल बन सकें।
देश छोड़कर भागती प्रतिभाओं को कौन रोकेगा?
Siyasi Bharat
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