Ram Gopal Jat
राजस्थान में विधानसभा चुनाव को केवल 10 महीने का समय बचा है। दिसंबर के बीच में सरकार का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। ऐसे में दिसंबर के पहले सप्ताह तक चुनाव परिणाम जारी होना जरुरी है। इसका मतलब यह है कि नवंबर के अंत से लेकर दिसंबर के पहले सप्ताह तक राजस्थान में विधानसभा चुनाव सम्पन्न हो जायेंगे। ऐसा ही पिछली बार भी हुआ था। हालांकि, मुख्यमंत्री की शपथ को लेकर एक सप्ताह की खींचतान जरुर सचिन पालयट और अशोक गहलोत के बीच चली थी। उस खींचतान में एक बार तो सचिन पायलट का नाम भी तय हो गया था, लेकिन अचानक से पलटी परिस्थतियों के बाद अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया गया।
जाने की किन परिस्थितियों और किस सौदे के तहत राहुल गांधी, अशोक गहलोत और सचिन पायलट की हंसती हुई फोटो आज भी सोशल मीडिया पर दिखाई दे रही है। उसके बाद सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री पद पर शपथ दिलाई गई। तब ऐसा लग रहा था कि गहलोत और पायलट के बीच शक्तियों का बंटावार बराबर का होगा, शायद इसी वजह से डिप्टी सीएम बनाया गया था, लेकिन हुआ उससे बिलकुल उलट। पहले तो गहलोत कैंप की ओर से अभियान चलाया गया कि एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत लागू किया जाये, ताकि सचिन पायलट को डिप्टी सीएम या कांग्रेस अध्यक्ष पद में से एक को छोड़ना पड़े। ऐसा चल ही रहा था कि मध्य प्रदेश में सचिन पायलट के सममक्ष और उनके मित्र ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दी। इसके साथ कांग्रेस के कई विधायकों ने इस्तीफा दे दिया और कमलनाथ की केवल 15 महीने पुरानी सरकार गिर गई।
कुछ ही सीटों से विपक्ष में बैठी भाजपा को अवसर मिल गया और शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री बन गये। मध्य प्रदेश में सियासत पलटने का सबसे बड़ा असर राजस्थान में देखने को मिला। पायलट की सिंधिया से मित्रता के बहाने गहलोत कैंप ने अपनी पूरी ताकत इस बात के लिये लगा दी कि जैसे उनके साथ मंत्री रहे सिंधिया भाजपा में जा चुके हैं, ठीक उसी तरह से पायलट भी राज्य की सरकार गिराकर भाजपा ज्याइन कर लेंगे। यहां तक दावा किया गया था कि उस वक्त हुये राज्यसभा चुनाव में भी पायलट कैंप कांग्रेस के खिलाफ वोट करेगा, लेकिन गहलोत कैंप के द्वारा फैलाया गया सारा नैरेटिव धराशाही हो गया।
हालांकि, पायलट तब तक भी डिप्टी सीएम और पीसीसी चीफ बने हुये थे, जिसके चलते गहलोत कैंप की मंशा पूरी नहीं हुई। इसके बाद दूसरा अभियान शुरू किया गया। सोशल मीडिया के जरिये गहलोत समर्थकों ने पायलट को भाजपा से मिला हुआ बताने का प्रयास किया गया और उससे भी बड़ी बात यह निकलकर सामने आई कि पायलट के साथी मंत्रियों और खुद पायलट के विभाग की फाइलें पर सीएमआर से अप्रुव होने लगीं। तब दावा किया जाता था कि मुख्मयंत्री गहलोत के घर पर बैठे उनके करीबी आईएएस अधिकारी पायलट के विभाग की फाइलों को तब तक पास नहीं करते थे, जब तक खुद पायलट उनको फोन करके नहीं कहते थे। कहा जाता है कि सचिन पायलट ने इसकी शिकायत गांधी परिवार से की, लेकिन उनकी रत्तीभर भी सुनवाई नहीं हुई। पायलट के उपर गहलोत शासन का ऐसा ही दबाव भी करीब चार महीनों तक चलता रहा। देश दुनिया में कोरोना की भयानक लहर के बीच 11 जुलाई 2020 को सचिन पायलट का धैर्य जवाब दे गया।
इसके बाद शुरू हुई 34 दिन तक चली वो जंग, जो राजस्थान ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के लोकतांत्रित इतिहास में दर्ज हो गई। एक तरफ पायलट कैंप हरियाणा के मानेसर में रहा, तो गहलोत कैंप के मंत्री, विधायक 15 दिन जयपुर में फैयरमोंट होटल में रहे, तो बाद के 15 दिन तक जैसलमेर की सूर्यगढ़ होटल आशियाना बनी। गहलोत कैंप की ओर से दनादन बयानबाजी चलती रही, तो पायलट कैंप ने जबरदस्त धैर्य दिखाया। गहलोत सरकार ने राज्यपाल पर विधानसभा सत्र बुलाने का दबाव बनाया और राजभवन में धरना—प्रदर्शन तक किया। गहलोत ने राज्यपाल को यहां तक कह दिया कि जनता ने यदि आक्रमण किया तो राज्यपाल को बचाने कौन आयेगा? ऐसा ड्रामा राजस्थान की राजनीति में पहली बार देखने को मिला। इस प्रकरण के दौरान गहलोत के अपरिपक्वता से भरे बयानों ने उनके जीवनभर में कमाई गांधीवादी मुख्यमंत्री की छवि को भी मिट्टी में मिला दिया। अंतत: प्रियंका गांधी वाड्रा की पहल पर पायलट ने गहलोत सरकार को समर्थन दे दिया।
सरकार ने सदन में बहुमत साबित कर दिया और पायलट ने दावा किया कि वह जब तक सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच बैठे हैं, तब तक सरकार को कोई गिरा नहीं सकता। उसी दौरान सदन में सीएम गहलोत ने भी टेबल ठोककर दावा किया पूरे पांच साल उनकी सरकार को कोई नहीं गिरा पायेगा। तब से लेकर अब तक बयानबाजी से खूब हुई है, लेकिन सरकार सुरक्षित है। बीच बीच में गहलोत कैंप के नेता आरोप जरुर लगाते रहते हैं कि पायलट कैंप द्वारा भाजपा के साथ मिलकर सरकार गिराने का प्रयास किया जा रहा है। इस बात के ना तो आजतक कोई सबूत मिले और ना ही ऐसा करते हुये कोई पाया गया।
अब चार साल पूरे हो चुके हैं, जबकि मात्र 10 महीनों का समय शेष बचा है। उसमें भी दो महीने आचार संहिता के निकल जायेंगे, यानी केवल 8 से 9 महीनों का समय सरकार के पास बचा है। गहलोत दावा तो खूब करते हैं कि अनैक जनहितैषी कार्यों के कारण उनकी सरकार रिपीट होगी, किंतु जिस तरह की सत्ता विरोधी लहर चल रही है, उससे ऐसा लग रहा है कि अशोक गहलोत एक बार फिर से इतिहास बनाने जा रहे हैं। मुख्मयंत्री के तौर पर अशोक गहलोत के पहले कार्यकाल के बाद कांग्रेस को 2003 चुनाव परिणाम में केवल 57 सीटें मिलीं। इसके बाद जब 2013 में सत्ता से बेदखल हुये, तब एक बार फिर से सीएम रहते गहलोत ने कांग्रेस को इतिहास की सबसे कम 21 सीटों पर समेट दिया।
जैसे तैसे कांग्रेस ने सचिन पायलट के कंधों पर सवार होकर 2018 में 101 सीट पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई, लेकिन कांग्रेस ने उनको मुख्यमंत्री नहीं बनाया। आज गहलोत की सरकार पुरानी पैंशन स्कीम और चिरंजीवी योजना के सहारे सत्ता रिपीट के दावे किये जा रहे हैं, लेकिन धरातल पर जनता ने कुछ और ही सोच रखा है। चुनावी साल है और राज्य की जनता ने तय कर लिया है कि 10 महीने बाद चुनाव में क्या किया जायेगा? शायद यह बात गहलोत कैंप के लोगों को पता नहीं है, लेकिन संभवत: पायलट कैंप इस बात को समझ चुका है कि यदि सत्ता रिपीट करवानी है, जो जनता के बीच जाना ही होगा। राष्ट्रदूत अखबार की एक खबर के अनुसार पायलट कैंप के नेता अब सरकार में जाने के बजाये जनता के बीच जाने की बातें करने लगे हैं।
पायलट समर्थक कांग्रेसियों को लगता है कि अशोक गहलोत के दम पर कभी सत्ता रिपीट नहीं हो सकती, लेकिन जिस तरह से सरकार काम कर रही है, उसके कारण तो पायलट भी कांग्रेस की वापसी नहीं करवा पायेंगे। ऐसे में शायद सचिन पायलट ने भी यह सोच लिया है कि जनता के दरबार में पहुंच जाना चाहिये और अपनी उपस्थिति को जोरदार तरीके से जाहिर करना चाहिये। यह बात सही है कि राजस्थान में आज लोगों के आकर्षण के मामले में सचिन पायलट पहले नंबर पर आते हैं। लेकिन सरकार की नाकामी के कारण उनकी छवि को भी नुकसान हो रहा है। और इसको देखते हुये उन्होंने दौरों का सिलसिला शुरू कर दिया है। पायलट सबसे पहले 16 तारीख को परबतसर जा रहे हैं, जहां पर विधायक रामनिवास गावडिया के क्षेत्र में किसान सभा करेंगे। इसके बाद उदयपुरवाटी में भी उनकी सभा होने की चर्चा चल रही है।
इन दोनों सभाओं में कम से कम दो लाख लोगों के पहुंचने की संभावना हैं इसी तरह से अन्य विधानसभा क्षेत्रों में भी किसान सभाओं का आयोजन किया जायेगा। सचिन पायलट पहले अपने समर्थक विधायकों के क्षेत्र में सभाएं करेंगे, उसके बाद उनके समर्थक हारे हुये प्रत्याशियों के क्षेत्र में भी सभाएं करेंगे। इस बहाने सचिन पायलट जनता का मूड भी जानना चाहते हैं, तो साथ ही आगे की तैयारी भी कर रहे हैं। दूसरी ओर सीएम गहलोत बजट की तैयारी कर रहे हैं। यह माना जा रहा है कि इस बजट में गहलोत घोषणाओं का इतिहास लिखेंगे। सियासी जानकारों का मानना है कि अशोक गहलोत ने अरविंद केजरीवाल का मॉडल अपना लिया है, जिसमें घोषणाएं ऐसी की जायें कि या तो सत्ता रिपीट हो जायेगी या फिर आने वाली सरकार उनको पूरा ही नहीं कर पायेगी।
अब यदि सचिन पायलट के मुख्यमंत्री की करें तो यह चुनावी साल है और अब सरकार केवल घोषणाएं कर सकती हैं, उनको जमीन पर उतारना आसान नहीं होगा। इस समय यदि सीएम का चेहरा बदला जाता है, तो पायलट हो सकता है कि कुछ घोषणाओं को पूरा भी कर दें, लेकिन राज्य के खजाने में इतना पैसा नहीं है कि ताबड़तोड़ तरीके से कांग्रेस के पूरे घोषणा पत्र को ही लागू कर दिया जाये। दूसरी बात यह भी कि पंजाब में कांग्रेस ऐसा प्रयोग करके देख चुकी है, जहां पर चुनाव की आचार संहिता से ठीक 111 दिन पहले सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर उनकी जगह चरणजीत सिंह चन्नी को लगाया गया। परिणाम यह हुआ कि वहां पर कांग्रेस बुरी तरह से हार गई। यही वजह है कि पायलट कैंप अब सीएम के लिये रुचि लेता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है, इसके बजाये सत्ता रिपीट कर नये सिरे से पूरे पांच साल के लिये मुख्यमंत्री बनने का प्रयास शुरू कर रहा है।
किंतु इस पूरे एपिसोड में कांग्रेस आलाकमान की कमजोर खुलकर सामने आ गई है। गहलोत ने पहले पायलट कैंप को सत्ता और संगठन से दूर कर दिया, फिर जब उनको राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का गांधी परिवार ने मन बना लिया था, तब उनके समर्थक मंत्रियों ने अलग ही विधायक दल की बैठक बुला ली और 91 विधायकों के इस्तीफे करवा दिये, जिनको तीन महीने बाद वापस ले लिया गया। कहा जा रहा है कि सरकार को अब किसी तरह का डर नहीं है, तो कुछ दिनों पहले ही विधानसभा का सत्र अवसान किया गया, जबकि इतने लंबे समय तक बैठकों के बिना सत्र को चालू नहीं रखा जा सकता है। कहने का मतलब यह है कि सरकार बचाने के लिये नियमों, परंपराओं को ताक में रखकर काम किया जा रहा है। अब यह सचिन पायलट के उपर है कि गहलोत सरकार की नाकामी को अपने उपर लेकर चुनाव से पहले सीएम बनकर मैदान में जाने का रिस्क उठाते हैं, या फिर नये सिरे से चुनाव में जाकर सत्ता रिपीट का प्रयास करते हैं।
पायलट नहीं बनेंगे सीएम, सत्ता रिपीट कराने का प्रयास शुरू
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