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अमेरिकी विमानों को क्या मार रहा है चीन?

Ram Gopal Jat
ताइवान के मुद्दे पर काफी समय से जारी अमेरिका और चीन के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। चीन अपने हरकतों से दुनिया में खौफ पैदा करता रहता है। चीन में लोकतंत्र नहीं होने के कारण कोई जवाबदेही नहीं है, जिसके चलते वहां की जिनपिंग सरकार वही करती है, जो उसको अच्छा लगता है। ड्रेगन ने एक बार फिर से ऐसी ही डरावनी हरकत करने का प्रयास किया है। कुछ दिनों पहले दक्षिण चीन सागर के ऊपर अमेरिकी विमान के सामने एक चीनी विमान आ गया। हालांकि, कोई दुर्घटना नहीं हुई, लेकिन अगर पायलट ने सूझबूझ नहीं दिखाई होती तो संभवतः विमान आपस में भिड़ भी सकते थे। अमेरिका ने कहा है कि चीनी नौसेना के लड़ाकू विमान ने इस महीने दक्षिण चीन सागर पर अमेरिकी वायुसेना के एक टोही विमान के पास खतरनाक तरीके से उड़ान भरी थी, लेकिन अमेरिकी पायलट ने अपनी कुशलता से दोनों विमान को भिड़ने से बचा लिया।
अमेरिकी सेना की हिंद-प्रशांत कमान ने बृहस्पतिवार को एक बयान में कहा घटना 21 दिसंबर को हुई थी, जब चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी का जे-11 विमान अमेरिकी वायुसेना द्वारा संचालित विशाल टोही विमान आरसी-135 के सामने छह मीटर की दूरी से गुजर गया। बयान में कहा गया है कि अमेरिकी विमान ‘कानून के अनुसार अंतरराष्ट्रीय हवाई क्षेत्र में दक्षिण चीन सागर पर नियमित अभियान पर था। चीन दक्षिण चीन सागर को अपना क्षेत्र बताता है और उसमें उड़ान भरने वाले अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के विमानों का पीछा भी करता है। हिंद-प्रशांत कमान ने अपने बयान में कहा, “अमेरिकी हिंद-प्रशांत संयुक्त बल एक मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर प्रतिबद्ध है। वह अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत सभी जहाजों और विमानों की सुरक्षा के लिए उचित सम्मान के साथ अंतरराष्ट्रीय समुद्री और हवाई क्षेत्र में उड़ान भरना एवं जहाज भेजना जारी रखेगा।
ऐसा पहली बार नहीं है, जब चीन ने किसी देश के विमान को रोकने या उसका पीछा करने का प्रयास किया है, इससे पहले जून में ओस्ट्रेलिया के रॉफ नामक एक सैन्य निगरानी विमान को खतरनाक तरीके से रोकने के लिये चीनी लड़ाकू विमान ने प्रयास किया था। दरअसल, इंडो पेसैफिक क्षेत्र ऐसी जगह है, जहां दक्षिण चीन सागर पर चीन अपना हक जताता रहा है, जबकि इस क्षेत्र को विश्व के कानूनों के अनुसार मुक्त क्षेत्र माना गया है। फिर भी चीन की आपूर्ति चैन के लिये वह इसका केवल अपने लिये इस्तेमाल करना चाहता है। चीन को लगता है कि यह क्षेत्र यदि केवल उसी के पास रहेगा, तो इसके दबाव में आकर अमेरिका, भारत ओस्ट्रेलिया, इस्राइल, जापान सरीखे देश उसके दबाव में रहेंगे। दुनिया की आबादी से लेकर अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र का बेहद महत्व है। इसके चलते वह हिंद प्रशांत क्षेत्र में इस तरह की बेजा हरकतें करता रहता है।
दरअसल, इस क्षेत्र की समस्या की जड़ में वैसे तो अमेरिका व चीन की दबदबा बनाये रखने की नीयत है, लेकिन बाकि देश भी इससे प्रभावित होते हैं। जून के महीने में आई एक रिपोर्ट ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन प्रशासन की नींद उड़ा रखी है। कंबोडिया में एक नए सैन्‍य अड्डे के निर्माण की खबर से बाइडन प्रशासन बचैन हो गया। रिपोर्ट के मुताबिक चीन कंबोडिया में एक नौसैनिक अड्डा बना रहा है। वाशिंगटन पोस्ट के मुताबिक चीन के सैनिकों की उपस्थिति कंबोडिया के रीम नेवल बेस के उत्तर में थाईलैंड की खाड़ी पर रहेगी। यह माना जा रहा है कि चीन ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर अपनी स्थित को मजबूत बनाने के लिए यह चौकी बनाई है। इस क्षेत्र में चीन का यह दूसरा सैन्य अड्डा है। इसके पहले चीन ने पूर्वी अफ्रीकी देश जिबूती में नौसैनिक अड्डा बनाया था। चीन के इस कदम से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की सैन्य शक्ति का विस्‍तार होगा। ऐसे में सवाल उठता है कि हिंद प्रशांत क्षेत्र पर चीन की नजर क्‍यों है? इससे भारत, अमेरिका समेत अन्‍य देश क्‍यों चिंत‍ित हैं? इन सब मामलों में विशेषज्ञों की क्‍या राय है।
अंतरराष्‍ट्रीय एवं रक्षा मामलों के जानकार कहते हैं कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विश्व भू-क्षेत्र का 44 फीसद हिस्सा है। विश्व जनसंख्या का 65 फीसद हिस्सा इसमें निवास करता है। विश्व जीडीपी का 62 फीसद भाग है और यह विश्व के 46 फीसद व्यापारिक माल के व्यापार में योगदान देता है। दक्षिण चीन सागर और प्रशांत महासागर के रास्ते लगभग 3.5 ट्रिलियन डालर का व्यापार होता है। सबसे महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं और भारत के व्यापारिक साझेदार अमेरिका, चीन, कोरिया और जापान का समग्र व्यापार दक्षिण चीन सागर और प्रशांत क्षेत्र से होता है। भारत के व्यापार का लगभग 50 फीसद हिस्सा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में केंद्रित है। हिंद महासागर में भारत का 90 फीसद कारोबार होता है और इसका 90 फीसद ऊर्जा स्रोत है। हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत का दृष्टिकोण स्‍पष्‍ट है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2019 में मालदीव की संसद में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र हमारा साझा क्षेत्र है। इस क्षेत्र में जहां विश्व की 50 फीसद जनसंख्या रहती है और यहां धर्म, संस्क़ृति, भाषा, इतिहास और राजनीतिक व आर्थिक प्रणालियों की व्यापक विविधता है। भारत का तर्क रहा है कि समुद्र और वायु क्षेत्र के साझा इस्तेमाल के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत सबकी समान पहुंच होनी चाहिए। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार विवादों के शांतिपूर्ण समाधान की स्वतंत्रता होगी, किंतु यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां कई अनसुलझे विवाद हैं। चीन की नजर इस क्षेत्र पर टिकी है। इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते अतिक्रमण से इलाके में महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता बढ़ी है, यह चिंता की बात है।
ऐसा नहीं है कि कंबोडिया में चीन का सैनिक बेस है, बाकि भारत केवल अपने देश तक सीमित है। विदेशी धरती पर मिलिट्री बेस, यानी सैन्य अड्डे बनाने का मकसद होता है सैन्य उपकरणों और सैनिकों की रक्षा करना। ऑपरेशंस समेत कई तरह के कार्यों की ट्रेनिंग दी जाती है। पूरी दुनिया में अमेरिका अकेला ऐसा देश है जिसके पास 38 अंतरराष्ट्रीय मिलिट्री बेस है। भारत की बात करें तो कई देशों में सैन्य बेस बना रखे हैं। ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे से करीब 130 किलोमीटर दूर दक्षिण-पूर्व में स्थित फरखोर में भारतीय मिलिट्री का एयर बेस है। इसे भारतीय वायुसेना संचालित करती है। इसका साथ ताजिकिस्तान की एयरफोर्स देती है। यह भारत का पहला मिलिट्री बेस है, जो अपनी धरती से बाहर बनाया गया था। ईरान में स्थित चबहार पोर्ट और अफगानिस्तान के रास्ते परिवहन की सुविधा मिली हुई है। यहां पर वायुसेना ने सुखोई-30एमकेआई फाइटर जेट तैनात कर रखे हैं।
भूटान में भारत का सैन्य बेस एक स्थाई ट्रेनिंग सेंटर है। इसे भारतीय मिलिट्री ट्रेनिंग टीम बुलाया जाता है। यह ट्रेनिंग सेंटर पश्चिमी भूटान में मौजूद है। इसकी स्थापना 1961-62 में की गई थी। यहीं पर भूटान की रॉयल भूटान आर्मी (RBA) के जवानों की ट्रेनिंग होती है। मित्र देश में मौजूद यह सबसे पुराना भारतीय मिलिट्री ट्रेनिंग सेंटर है। यहां का कमांडेंट भूटान के राजा को रक्षा मामलों में सलाह देता है, क्योंकि यहां पर रक्षामंत्री नहीं हो होते हैं। भारतीय मिलिट्री ने उत्तरी मैडागास्कर में लिसनिंग पोस्ट और एक राडार फैसिलिटी बना रखी है. इसका निर्माण 2007 में हुआ था, ताकि हिंद महासागर से होने वाले जहाजों के मूवमेंट पर नजर रखी जा सके। समुद्री संचार को सुना और समझा जा सके। इसकी मदद से मैडागास्कर की नौसेना सर्विलांस भी करती है। चुंकि मैडागास्कर की सेना इतनी मजबूत नहीं है कि वो घुसपैठ या आतंकी गतिविधियों को रोक सके, इसलिए भारतीय सेना उनकी मदद कर रही है।
भारत सरकार ने मॉरीशस के उत्तरी अगालेगा द्वीप पर कोस्टल सर्विलांस राडार सिस्टम लगाया है. यह द्वीप हिंद महासागर में स्थित है। इसे बनाने का मकसद था। भारत और मॉरीशस के बीच सैन्य सहायता पैदा करना, यह एक रणनीतिक स्थान है, जहां से बहुत बड़े समुद्री इलाके पर सीधी नजर रखी जाती है। यह पूरा का पूरा आईसलैंड भारतीय सेना का बेस है। ओमान के रास अल हद नाम की जगह पर भारतीय मिलिट्री ने एक लिसनिंग पोस्ट बना रखी है। इसके अलावा भारत के पास मस्कट नौसैनिक बेस पर बर्थिंग अधिकार है। यानी वहां पर भारतीय नौसेना के जंगी जहाजों, पनडुब्बियों आदि को ईंधन आदि की सहायता मिल जाती है। इसके अलावा Duqm में भारतीय वायुसेना और भारतीय नौसेना का छोटा बेस है। विदेशी धरती पर सैन्य बेस बनाने से कई तरह के फायदे होते है। पहला तो ये आप किसी ट्रेनिंग ले या दे पाते हैं। दूसरा उस देश के लोगों में भारतीयता का वर्चस्व बढ़ता है, प्रतिष्ठा बढ़ती है। साथ ही दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रखना आसान हो जाता है। दो देश मिलकर एक सैन्य बेस से कई अंतरराष्ट्रीय सीमाओं और वहां होने वाली गतिविधियों पर नजर रखते हैं।
दूसरी ओर अमेरिका और भारत के खिलाफ अपनी पकड़ बेहतर और मज़बूत करने की नीति को भी चीन कई तरह के सैन्य बेसों का कारण बना रहा है। चीन के पास अभी 13 देशों में सैन्य बेस हैं। ड्रेगन अपने व्यापारिक वर्चस्व को भुनाकर पिछड़े देशों के बीच रणनीतिक तौर से अहम लोकेशनों को अपना गढ़ बनाने की फिराक में है, जैसे अफ्रीका के 51 देशों में कई तरह के विकाय कार्यों, लोक​ निर्माण आदि प्रोजेक्ट्स में चीन का 94 अरब डॉलर का निवेश है। इसी तरह से वह पाकिस्तान, बंग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका जैसे भारत के पड़ोसी देशों में भी बड़े पैमाने पर निवेश करता है, ताकि उनके अपने पक्ष में रखने का काम किया जा सके। चीन की हिंद प्रशांत क्षेत्र में दिलचस्‍पी भारत के लिए भी खतरे की घंटी है। खासकर भारत के सामरिक लिहाज से यह चिंता का विषय है। कंबोडिया में बना चीन का यह नया सैन्य ठिकाना भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह से महज 12,00 किलोमीटर की दूरी पर है। चीन की नौसेना या युद्ध के जहाज यहां से आसानी से बंगाल की खाड़ी में पहुंच सकते हैं। चीन समुद्री रास्ते से म्यांमार में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने में जुटा है। इस सैन्य ठिकाने की मदद से चीन भारत और अमेरिका दोनों की सेनाओं की हरकतों पर खुफिया तौर पर निगरानी कर सकेगा। चीन लागातार पूरे विश्व में अपने सैन्य ठिकानों को विस्तारित करने की कोशिश में लगा हुआ है। चीन इसके लिए आर्थिक रूप से कमजोर देशों को फंडिंग करने के बाद उनके यहां घुसपैठ करता है फिर धीरे-धीरे वहां अपने सैन्य ठिकानों के निर्माण में लग जाता है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका और भारत एक महत्वपूर्ण साझेदार हैं। वर्ष 2018-19 के दौरान 87.95 बिलियन डालर के कुल व्यापार के साथ अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था। हिंद प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी रणनीति में खुला और मुक्त हिंद-प्रशांत का आह्वान किया है। इसमें हिंद-प्रशांत निकाय बनाने की मांग की गई है, जहां संप्रभुता और प्रादेशिक अखंडता की रक्षा हो सके। भारत यहां पर अमेरिका के साथ मिलकर चीन को निपटाने का प्लान बना रहा है। चीन इस क्षेत्र को एशिया प्रशांत क्षेत्र मानता है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के विचार को मान्यता नहीं प्रदान करता है। दक्षिण चीन सागर में अपने हितों को आक्रमक रूप से साधते हुए चीन हिंद महासागर क्षेत्र को अपनी बेल्ट और रोड पहल में एक महत्वपूर्ण संघटक के रूप में देखता है। जबकि रूस हिंद-प्रशांत क्षेत्र के विचार को नहीं मानता है और वह इस क्षेत्र को एशिया-प्रशांत क्षेत्र कहता है।

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