Ram Gopal Jat
साल 2023 भारत के लिए नया तनाव ला सकता है। अमेरिका से बुरी तरह चिढ़ा हुआ चीन अपनी ताकत का अहसास कराने के लिए भारत की हिमालयी सीमा पर युद्ध कभी भी छेड़ सकता है। दुनिया का ध्यान भले ही चीन व ताइवान के बीच विवाद पर हो, लेकिन विशेषज्ञों ने दावा किया है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने हाल ही में अपनी सेना को हर वक्त तैयार रहने की हिदायत भारत के खिलाफ ही दी है।
साल 2023 में दुनिया में युद्ध की आशंका वाले इलाके कौन से हो सकते हैं, इसके एक आकलन में भारत-चीन युद्ध की आशंका सबसे ऊपर है। विदेश मामलों के जानकारों का मानना है कि दुनिया में अभी अपनी ताकत साबित करने के लिए अमेरिका और चीन के बीच कुछ वैसा ही शीत युद्ध चल रहा है, जो कभी 90 के दशक में रूस और अमेरिका के बीच चल रहा था।
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद लगातार इस बात की आशंका जताई जा रही है कि अब चीन अपनी ताकत का अहसास कराने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। यह ताइवान पर कब्जे की कोशिश से लेकर जापान के सेनकाकू द्वीपों पर अपना हक जताने तक कुछ भी हो सकता है, लेकिन इन दोनों ही स्थितियों से ज्यादा आशंका चीन के भारत से उलझने की जताई जा रही है। अब तक भारत चीन से एक घोषित युद्ध लड़ चुका है। दोनों देशों के बीच सियाचिन और इससे जुड़ी सीमा पर अघोषित युद्ध की स्थिति बरसों से बनी हुई है।
आखिर क्यों 2023 में भारत और चीन के बीच युद्ध की आशंका ज्यादा है? क्यों चीन, ताइवान पर हमले के बजाय भारतीय सीमा पर अशांति फैलाने में ज्यादा फायदा देखता है?
भले ही चीन बार बार ताइवान पर अटैक करने का दावा कर रहा हो, लेकिन माना यह जा रहा है कि चीन का ताइवान या जापान पर हमला आसान नहीं होगा। क्योंकि इन दोनों पर हमला करने से अमेरिका सीधे जंग में उतर जायेगा, जबकि भारत के मामले में अमेरिका खुद को पीछे रख सकता है। हालांकि, नैतिक तौर पर वह भारत का पक्ष ले सकता है, लेकिन फिर भी अमेरिका इस युद्ध में भारत को प्रत्यक्ष रुप से कोई मदद नहीं करेगा। इस वक्त भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जबकि भारत के नंबर एक उद्योगपति गौतम अडानी ने दावा किया है कि 2050 से पहले भारत दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यव्था हो जायेगा। इस वक्त एशिया में चीन पहले और जापान दूसरे नंबर हैं, लेकिन अगले तीन साल के भीतर भारत जापान को भी भी पीछे छोड़ देगा, यानी उसके बाद सीधे चीन व भारत के बीच एशिया में नंबर वन का मुकाबा रहेगा।
भारत और चीन के बीच 3488 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा है। इसका निपटरा कभी हुआ ही नहीं। भारत जब ब्रिटिश के हाथों में था, तब भी इसको लेकर कोई समाधान नहीं किया जा सका, क्योंकि तब चीन में राष्ट्रवादियों की सत्ता थी, जो विस्तारवाद में विश्वास नहीं करते थे। साल 1949 में जब चीन कम्यूनिस्ट पार्टी के हाथ में चला गया, तब यह विवाद शुरू हुये। बाद में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1954 में भारत चीन के बीच सीमा निर्धारित करने का आदेश दिया, जो 1962 में घोषित युद्ध का कारण बना। साल 1962 में भारत चीन के बीच युद्ध के समय चीन ने अक्साई चिन में भारत की 38000 वर्गकिलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया। इस युद्ध में भारत के 1300 जवान शहीद हुये थे। इस युद्ध के अलावा एलएसी पर दर्जनों बार सैनाओं के बीच झडपें हो चुकी हैं। साल 2016 की डोकलाम और 2020 में गलवान घाटी की झडप के बाद दोनों देशों के बीच रिश्ते ठंडे बस्ते में चले गये हैं। कहा जाता है कि गलवान घाटी में चीन के हमले में भारत के करीब 20 जवान शहीद हुऐ थे, लेकिन चीन के भी करीब 3—4 दर्जन सैनिक मारे गये थे। जिसके कारण चीन ने भारत से बदला लेने की ठान रखी है।
गलवान विवाद के बाद से दोनों देशों के बीच कई दौर की सैनिक वार्ता हो चुकी है, जिसमें कई पॉइंट्स से पीछे हटने पर सहमति बनी, लेकिन अभी तक पीछे नहीं हटे हैं। दोनों ओर से कम से कम 50—50 हजार सैनिक सीमा पर तैनात हैं। चीन बरसों से भारत की सीमा के नजदीक सड़कों और हवाई पट्टियों का निर्माण कर रहा है। भारत ने भी 2014 के बाद चीन की सीमा के नजदीक सड़कों का निर्माण कार्य तेज कर दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार भले ही संसाधनों और युद्धक सामग्री में चीन आगे हो, लेकिन युद्ध की हालात में दोनों पक्षों की स्थिति लगभग समान रहने वाली है।
विदेश मामलों के जानकार कहते हैं कि भारत के अलावा साल 2023 में एशिया के 3 और हिस्सों में जंग की नौबत आ सकती है।
पहला है ताइवान पर चीन का हमला, लेकिन अमेरिका से सीधी टक्कर नहीं चाहता। इसी साल की 5 अगस्त को अमेरिकी स्पीकर नैंसी पलोसी ताइवान से लौटीं थीं। उनके 4 दिन के ताइवान प्रवास के दौरान चीन इसी इलाके में युद्धाभ्यास करता रहा। उसने बार बार अमेरिका से कहा कि वह मान जाये, और नैंसी पैलोसी की यात्रा टाल दे, लेकिन अमेरिका नहीं माना और उसने यात्रा सम्पन्न करवाई, लेकिन चीन की धमकियां कम नहीं हुईं। हाल ही में इंडोनेशिया की राजधानी बाली में हुये जी20 सम्मेलन के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने आशंका जताई है कि चीन कभी भी ताइवान पर हमला कर सकता है। चीन पर इस वक्त चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी का कब्जा है। उससे पहले साल 1949 के दशक में जब चीन का शासन कम्युनिस्ट पार्टी के हाथ में आया तो बचे हुए राष्ट्रवादी देश छोड़ ताइवान द्वीप पर जा बसे थे।
इन राष्ट्रवादियों ने ताइवान में लोकतांत्रिक शासन लागू किया था। चीन आज भी ताइवान को अपना हिस्सा बनाता है, मगर अमेरिका के समर्थन की वजह से वहां की लोकतांत्रिक सरकार स्वतंत्र शासन चलाती है। ताइवान का सेमी कंडक्टर उत्पादन चीन को परेशान करता है। जहां से अमेरिका ही नहीं, बल्कि भारत में भी बड़े पैमाने पर सेमी कंडक्टर आयात किये जाते हैं। हालांकि, चीन भी ताइवान से सेमी कंडक्टर आयात करता है, लेकिन उसको ताइवान अपना हिस्सा बनाना है। चिप उद्योग ताइवान की अर्थव्यवस्था की रीढ है, जिसको पूरी तरह से हड़पने पर चीन की नजरें हैं।
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद इस बात की आशंका बहुत ज्यादा बढ़ गई थी कि ताइवान को अपना हिस्सा बता चीन उस पर हमला कर सकता है। मगर क्वाड शिखर सम्मेलन में अमेरिका खुले मंच पर यह कह चुका है कि अगर ताइवान पर हमला होता है तो वह उसकी मदद के लिए सेना भेजेगा। हालांकि, जी20 सम्मेलन में अमेरिका पीछे हटता हुआ नजर आया है, जिसने सैन्य कार्यवाही से इनकार कर दिया। अमेरिका दुश्मन के सामने हमेशा यूं दो कदम आगे और चार कदम पीछे हटता रहा है।
इतने तनाव के बावजूद ये माना जा रहा है कि 2023 में ताइवान पर सीधे हमले से चीन बचना चाहेगा। इसकी वजह साफ है कि ऐसे किसी भी कदम से अमेरिका सीधे जंग में उतर सकता है और चीन ऐसा नहीं चाहेगा। क्योंकि अमेरिका यदि जंग में उतरता है, तो पश्चिमी जगत चीन के उपर प्रतिबंध लगा देगा, जो उसकी अर्थव्यव्था को चौपट कर सकता है। यही वजह है कि बार बार धमकी के बाद भी चीन इनती आसानी से ताइवान पर हमला नहीं करेगा।
दूसरी सबसे बड़ी संभावना यह है कि जापान के सेनकाकू द्वीपों को लेकर भी चीन व जापान के बीच तनाव बढ़ सकता है, लेकिन माना जा रहा है कि फिर भी इन दोनों के बीच युद्ध नहीं होगा। जापान और ताइवान के बीच इन द्वीपों के बीच से चीनी जहाजों को गुजरना होता है। चीन इसलिए भी नहीं चाहता कि इन द्वीपों पर जापान का कब्जा हो।
जापान के निकट एक द्वीपों का समूह द्वितीय विश्व युद्ध के समय से ही चीन और जापान के बीच तनाव की वजह बना हुआ है। जापान इसे सेनकाकू द्वीप समूह कहता है, जबकि चीन इसे दियाउ द्वीप समूह मानता है।
यूं तो इन द्वीपों के मालिकाना हक पर दोनों देशों के बीच तनातनी बहुत पुरानी है, मगर द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद चीन ने इन द्वीपों पर खुलकर आधिपत्य जताया था। इन द्वीपों के आस-पास प्राकृतिक गैस के बड़े भंडार माने जाते हैं, जिसकी वजह से कोई भी इन्हें छोड़ने को तैयार नहीं है। साल 2023 में इन द्वीपों पर अपने अधिकार को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाने के लिए चीन नए स्तर पर प्रयास शुरू कर सकता है, लेकिन फिर भी वह युद्ध नहीं करना चाहेगा।
दरअसल, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही जापान को एशिया में अमेरिका के प्रतिनिधि के तौर पर जाना जाता है। जहां पर अमेरिका से बाहर उसका सबसे बड़ा सैनिक बेस है। ऐसे में जापान से सीधे कोई भी जंग चीन की सेहत के लिए ठीक नहीं होगी। यदि चीन ने इन द्वीपों के बहाने भी जापान पर आक्रमण किया, तो उसके सामने अमेरिकी सेनाएं होंगी, जो कम से कम समय में चीन की सेना को धूल चटा सकती हैं।
इसके साथ ही अमेरिका समेत पश्चिमी जगत चीन पर आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है। चीनी राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग भी रूस की तरह अपने देश पर कोई वाणिज्यिक प्रतिबंध नहीं चाहेंगे।
इधर, आशंका यह जताई जा रही है कि 2023 में चीन और रूस के दम पर नॉर्थ कोरिया फिर परमाणु परीक्षण कर सकता है। नॉर्थ कोरियाई सरकारी एजेंसी की ओर से जारी एक तस्वीर में किम जोंग उन एक मिसाइल टेस्ट देख रहे हैं। यह तस्वीर कब की है और कहां खींची गई, एजेंसी ने यह नहीं बताया। कोई भी यह नहीं जानता कि नॉर्थ कोरिया अगला परमाणु परीक्षण कब करेगा। उत्तरी कोरिया में किम जोंग उन की तानाशाही पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बन चुकी है। साल 2022 में किम जोंग उन यहां तक कह चुके हैं कि अगर उन्हें अपने देश पर खतरा महसूस भी हुआ तो वह परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने से नहीं चूकेंगे।
रूस और चीन खुलकर उत्तर कोरिया की तानाशाह सरकार का समर्थन करते रहे हैं। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बावजूद नॉर्थ कोरिया का व्यापार बंद नहीं होता है। अपनी ताकत का अहसास कराने के लिए 2023 की शुरुआत में या फिर 2022 के खत्म होने से पहले किम जोंग उन एक और परमाणु परीक्षण कर सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो यह नॉर्थ कोरिया का सातवां परमाणु परीक्षण होगा, मगर चिंता की बात ये है कि यह 2017 के बाद पहला परमाणु परीक्षण होगा। दुनिया को परमाणु युद्ध की ओर धकेलने का यह एक और कदम होगा।
अब सबसे बड़ी आशंका है भारत और चीन के बीच युद्ध या फिर युद्ध जैसी सैनिक झड़प, जिसमें अमेरिका चीन के लिये कहीं पर भी सीधी चुनौती नहीं है। इसीलिए चीन का फोकस भारत को दबाने की कोशिश पर ज्यादा रहने की संभावना है। जब रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध हुआ है, तब से अमेरिका हर बार भारत को अपने पक्ष में करने की कोशिशें करता रहा है। एक बार अमेरिका के डिप्टी एनएसए दलीप सिंह भारत आकर यह धमकी दे चुके हैं कि यदि चीन ने भारत पर हमला किया तो उसको बचाने के लिये रूस नहीं आयेगा। हालांकि, भारत ने उस धमकी की परवाह नहीं की, लेकिन माना जा रहा है कि चीन ने उस बात को बहुत गंभीरता से लिया है। चीन यह मानकर बैठा है कि इस वक्त भारत और अमेरिका के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं है कि युद्ध की स्थिति में भारत का साथ देने के लिये अमेरिका साथ आ जाये।
एशिया में अभी सैन्य ताकत से लेकर हर मोर्चे पर भारत चीन के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है। अर्थव्यवस्था के आकार के मामले में जापान भले आगे हो, मगर भारत की छवि ऐसे देश की है, जो बिना किसी महाशक्ति के समर्थन के भी दुनिया में अपनी जगह तेजी से बना रहा है। हाल ही में भारत ने ब्रिटेन को पीछे छोड़ दिया है और अब भारत की नजरें जापान और जर्मनी पर है।
ऐसे में चीन की प्राथमिकता हर मोर्चे पर भारत को रोकने की है। उसे यह भी पता है कि भारत को आर्थिक तौर पर विकास करने से रोकने का सबसे अच्छा माध्यम युद्ध ही है, जो भारत फिलहाल टालता जा रहा है। हाल ही के बरसों में भारत ने मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसी योजनाओं के जरिये उद्योगों को आकर्षित किया है, जिसके बाद से कई कंपनियां चीन छोड़कर भारत आ चुकी हैं और आ भी रही हैं। इस वजह से उसको कारोबारी नुकसान हो रहा है। वह अपने देश में कोरोना को काबू नहीं पा रहा है, जिसके कारण विद्रोह जैसी स्थितियां उत्पन्न हो चुकी हैं, जिनसे ध्यान हटाने के लिये वह किसी भी हद तक जा सकता है। चीन मानता है कि अगर सामरिक मोर्चे पर वह भारत को उलझाता है तो पूरे एशिया को अपनी ताकत दिखा सकता है। साथ ही उसे यकीन है कि भारत के मामले में अमेरिका सीधे तौर पर नहीं उतरना चाहेगा। ऐसे में विशेषज्ञ मानते हैं कि 2023 में भारत-चीन सीमा एशिया में तनाव का सबसे बड़ा पॉइंट बन सकती है।
अगले साल भारत पर हमला करेगा चीन
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