Ram Gopal Jat
कहा जाता है कि भारत को 1955 के वक्त संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सीट का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहलाल नेहरू ने उसे चीन को दे दी। नेहरू ने कहा कि भारत अभी इतना परिपक्व नहीं हुआ है कि उसे यूएन में स्थाई सीट का हकदार बनाया जाये। हालांकि, वर्तमान चीन भी भारत से एक साल बाद बना था। उससे बाद से ही चीन में कम्यूनिस्ट पार्टी का शासन है, जो सीधे तौर पर तानाशाह है, लेकिन फिर भी भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने मित्रता को पक्का करने के लिये चीन को स्थाई सदस्य बनाने की वकालत कर दी। नतीजा यह हुआ कि चीन स्थाई सदस्य भी बन गया और उपर से भारत के लिये बीते 70 साल से यूएन में स्थाई सीट के खिलाफ वीटो करने वाला भी एकमात्र देश बन गया। नेहरू के बाद उनकी बेटी इंदिरा गांधी, लालबहादुर शास्त्री, मोरारजी देसाई, चौधरी चरणसिंह, वीपी सिंह, राजीव गांधी, नरसिंम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह सरकारों ने भी यूएन में भारत को स्थाई सीट के लिये अपने अपने हिसाब से प्रयास किये, लेकिन आज दिन तक भारत को संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सीट नहीं है। जबकि भारत से हर मामले में छोटा ब्रिटेन यूएन का स्थाई सदस्य है।
किंतु बीते आठ साल से भारत सरकार ने इसको बहुत गंभीरता से लिया है। मोदी सरकार ने इन बरसों में दुनियाभर में भारत के पक्ष में बहुमत जुटाने का काम पूरा किया है, बल्कि चीन के अलावा आज हर देश भारत को स्थाई सीट का समर्थन कर रहा है। यही वजह है कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिष्ठित स्थाई सीट पर अपनी नजरें जमा ली है। क्योंकि भारत अब रूस व यूक्रेन के बीच शांति समझौता कराने की दिशा में चतुराई से आगे बढ़ रहा है। लगता है कि विश्व में शांति स्थापना करने वाला एक प्रमुख खिलाड़ी बनने और दुनिया का सबसे बड़ा संकट हल करने का उत्साह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इतिहास में भारत के सबसे महान नेता बनने की तरफ अग्रसर हो रहे हैं।
भारत के विदेश मंत्री डॉ. सुब्रम्ण्यम जयशंकर ने मंगलवार से मास्को का दौरा शुरू किया है। उनकी यात्रा और रूस व यूक्रेन के बीच शांति स्थापना पर जोर देने वाली भारत की संभावित भूमिका पर विदेश नीति के थिंक टैंक्स और कूटनीतिज्ञों द्वारा नजदीकी से नजर रखी जा रही है। अमेरिका के प्रतिष्ठित माने जाने वाले न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि भारत सरकार के अधिकारी यह पहले ही चर्चा करते रहे हैं कि जब भी उचित समय होगा, तब भारत शांति स्थापना के प्रयासों के लिये कौनसी भूमिका निभायेगा, यह तय किया जा चुका है। इस प्रकरण से संबंधित प्रमुख रूस व यूक्रेन के बीच बातचीत के प्रति अनिच्छुक होना है। यूक्रेन जहां यह समझता है कि उसको युद्ध भूमि में निर्णायक बढ़त हासिल है, तो रूस युद्ध के जरिये यूक्रेन को रौंदने तक बातचीत के मूड में दिखाई नहीं देता है। विशेषज्ञों का मानना है कि युद्ध के कारण उर्जा की बढती कीमतों ने यूक्रेन में जीवन बिलकुल दयनीय बना दिया है। दूसरी ओर रूस को अरबों डॉलर का नुकसान हो चुका है, तो हजारों सैनिक अपनी जान गंवा चुके हैं। इस कारण से भारत जैसे निष्पक्ष देश द्वारा बीच बचाव करने पर दोनों देश बातचीत के जरिये युद्ध समाप्त करने को तैयार हो सकते हैं।
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर दोनों पक्षों के बीच जारी उच्चत स्तरीय वार्ता की कड़ी में रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के साथ बातचीत करेंगे। उम्मीद है कि बातचीत के जरिये दोनों पक्षों के सभी मुद्दों को सुलझाने पर वार्ता की जायेगी। जयशंकर ने लंबे समय तक रूस व अमेरिका में भारत के राजदूत रहे हैं। इस वजह से वह दोनों ही पक्षों की मानसिकता को अच्छे से जानते हैं। जयशंकर को रशियन फेडरेशन के उप प्रधानमंत्री एवं व्यापार तथा उद्योग मंत्री देनिस मैन्तुरोव के अलावा इंडिया रशिया इन्टर गवर्नमैंटल कमीशन ओन ट्रेड, इकॉनोमिक, साईन्टिफिक, टैक्नोलॉजिकल एण्ड कल्चरल को—ओपरेशन के अपने समकक्ष से भी मिलने का कार्यक्रम है। विदेश मंत्रलाय की ओर से मिली जानकारी के अनुसार विविध कार्य क्षेत्रों में द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा की जायेगी।
वॉशिगंटन स्थित एक रिसर्च इंस्टीट्यूट एशियन स्टडीज सेंटर एट द हैरिटेल फाउंडेशन के निदेशक जैफ एम स्मिथ ने कहा है कि चूंकि भारत की दोनों पक्षों तक पहुंच है, इसलिये उसे एक संभावित शांति स्थापक के रूप में देखा जा रहा है। यदि रूस व यूक्रेन एक निष्पक्ष थर्ड पार्टी मध्यस्थ के रूप में दुनिया में खोज करेंगे तो भारत इस मामले में सबसे योग्य देश पायेंगे। क्योंकि दोनों ही देशों की भारत में पूरी विश्वसनीयता है। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक खबर के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी और पुतिन के अच्छे संबंधन हैं। मोदी बिना किसी प्रोटोकॉल के सीधे पुतिन से बात करते हैं। इस युद्ध के दौरान भारत लगातार रूस से तेल भी खरीद रहा है और उसके खिलाफ लाए जाने वाले प्रस्तावों का भी समर्थन करने से इनकार कर देता है, जिससे यूक्रेन और अमेरिका आक्रोशित हैं, लेकिन भारत का मानना है कि रूस को कोसने से कुछ भी हासिल नहीं होगा, जबकि सार्वजनिक रूप से तटस्थ रहना युद्ध समाप्ति के प्रयासों के लिये सबसे अधिक उपयोगी हो सकता है।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने दिखा है कि गत सितंबर को उज्बेकिस्तान में आयोजित एक क्षेत्रीय शिखर सम्मेलन के दौरान मोदी ने कहा था कि पूरी दुनिया इसकी कीमत चुका रही है। उन्होंने पुतिन से कहा था कि यह युग युद्ध का नहीं है, वह चाहते हैं कि इस पर चर्चा की जाये कि हम शांति के मार्ग पर किस प्रकार से आगे बढ़ सकते हैं। अखबर ने मोदी को कई दशकों में सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री की संज्ञा देते हुये कहा है कि वह नये सिरे से गढ़कर सभी के साथ वाली अधिक प्रभावशाली रणनीति बनाने की कोशिश कर रहे हैं और वह दुनिया के सबसे बड़े संकट को हल करने की कोशिश कर रहे हैं, जो लगता है कि इतिहास में भारत के महानत नेताओं एक बनने की उनकी महत्वाकांक्षा के बिलकुल उपयुक्त है।
विदेश नीति के कूटनीतिज्ञ कहते हैं कि वर्तमान घटनाक्रम का एक अहम पहलू यह है कि भारत, इस्राइल और यूएई द्वारा संयुक्त मध्यस्थता के प्रयास हो सकते हैं। अखबार ने भारत में पूर्व राजदूत रहे कैनथ जस्टर के हवाले से लिखा है कि इसे एक महत्वूपर्ण घटना माना जा रहा है। उन्होने कहा है कि ये तीनों देश एक साथ मिलकर काम कर रहे होंगे और यूक्रेन के साथ विवाद को लेकर संभवतया रूस का रूख करेंगे। यह अंतर्राष्ट्रीय सिस्टम के लचीलेपन और उसमें आये बदलावों को स्पष्ट करता है। कैनथ जस्टर ने आगे कहा है कि भारतीय विदेश सेवा में काफी दक्ष राजनयिक हैं और यदि वे रूस व यूक्रेन के राजी होने पर वार्ताओं में सहयोग का प्रस्ताव देंगे तो यह काफी अच्छा होगा।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन द्वारा भारतीयों की प्रशंसा किये जाने के बाद विदेश मंत्री जयशंकर रूस के दौरे पर हैं। बीते दिनों 4 नवंबर को ही रूस के एकता दिवस के मौके पर पुतिन ने कहा था कि भारत में नि:संदेह इतनी क्षमता है कि वह विकास के सन्दर्भ में उल्लेखनीय परिणाम हासिल कर सकता है। पुतिन ने कहा था कि भारत जिस विकास के पथ पर दौड़ रहा है, उसमें उसकी डेढ अरब की आबादी भी सहयोगी साबित होगी।
माना यह जा रहा है कि यदि भारत ने रूस यूक्रेन युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाते हुये शांति स्थापित करने का सफलतापूर्वक काम कर लिया तो इसके बदले भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थाई सीट के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शांति के नोबल पुरस्कार के लिये भी चुना जा सकता है।
विदेश मंत्री जयशंकर दिलायेंगे भारत को यूएन में स्थाई सदस्यता
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