Ram Gopal Jat
चीन में इन दिनों उइगर मुसलमानों पर अत्याचार का मामला दुनिया में छाया हुआ है। चीन के शिंजयांग प्रांत में एक करोड़ से अधिक मुस्लिम रहते हैं, जिनमें से अधिकांश उइगर मुसलमान हैं। तमाम तरह की धार्मिक पाबंधियों के बाद भी चीन में मुसलमानों की दो करोड़ आबादी है। बताया जाता है कि करीब 50 हजार से अधिक मुस्लिम चीन की जेलों में बंद हैं, जो अपने धर्म को मानना चाहते थे, लेकिन चीनी शासन इसके खिलाफ है। यह सही भी जान पड़ता है, क्योंकि चीन में तानाशाही शासन है और इसके कारण वहां पर विश्व का ना कोई पत्रकार रिपोर्टिंग कर सकता है और ना ही सोशल मीडिया को अनुमति है। इसलिये चीन की सरकार जो चाहती है, वही पूरी दुनिा के सामने आता है, बाकि देश में क्या हो रहा है, इसके बारे में शेष विश्व को कुछ भी पता नहीं होता।
चीन में तीन साल से कोरोना पर काबू नहीं पाया जा सका है। पूरी दुनिया को कोरोना देने वाला चीन ही आज सबसे अधिक प्रभावित है। चीन में इस वक्त अब तक के सबसे अधिक मरीज मिल रहे हैं और देश के कई शहरों में लॉकडाउन लगा हुआ है। राजधानी बिजिंग में 50 से अधिक विश्वविद्यालयों के सैकड़ों छात्रों ने आजादी के लिये आंदोलन शुरू कर दिया है। शिंजियांग की राजधानी उरुम्की में कोविड के कारण लॉकडाउन में बंद इमारत आग में जलकर राख हो गई, जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई। बीते तीन साल से कोविड टेस्ट, क्वारेंटाइन, लॉकडाउन जैसे प्रतिबंध झेल रहे लोगों का धैर्य अब जवाब दे रहा है।
इस बीच शिंजयांग प्रांत में मुसलमानों पर होने वाले अत्याचारों में बेतहाशा बढ़ोतरी हो गई है। यहां पर जो भी कोई शासन के खिलाफ बोलने की हिम्मत करता है, उसको जेल में डाल दिया जाता है, जबकि ये मुसलमान यहीं के मूल निवासी हैं, फिर भी उनको शासन के जुल्मों का सामना करना पड़ रहा है। दूसरी ओर भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में म्यांमार से आये रोहिंग्या मुसलमान भी सरकारी सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं। जबकि बंग्लादेशी मुसलमान भारत के स्थाई नागरिक बन रहे हैं। भारत में इस वक्त भी करीब दो करोड़ मुसलमान अवैध रुप से रह रहे हैं। सबसे अधिक एक करोड़ मुसलमान पश्चिमी बंगाल में अवैध रुप से रह रहे हैं, जबकि गंभीर बात यह है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इन सबको वैध मतदाता बनाने के लिये अभियान चला रही हैं। इसको लेकर भाजपा विरोध कर रही है। असल बात यह है कि ये सभी अवैध मुसलमान यदि मतदाता बन जाते हैं तो अगले चुनाव में टीएमसी को वोट देंगे, जिससे उसका सत्ता में बने रहने का रास्ता साफ हो जायेगा।
इस वक्त पश्चिम बंगाल में काफी संख्या में अवैध बंग्लादेशी मुसलमान हैं, जो आने वाले समय में वहां का मतदाता बन जायेगा। सरकारी महरबानी के कारण यहां के मूल निवासी सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले पा रहा है, लेकिन अवैध मुसलमान सरकारी सुविधाओं का सुख भोग रहे हैं। मतता बनर्जी शासन को पता है कि ये ही उसके पक्के वोटर्स हैं, जो कभी साथ छोड़ने वाले नहीं हैं। पिछले साल हुये विधानसभा चुनाव के लिए प्रकाशित मतदाता सूची में 20,45,593 नए नाम जोड़े गए। यहां पर मतदाताओं की संख्या में 2.01 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। राज्य में मतदाताओं की संख्या 7,32,94,980 है। इनमें से 3,73,66,306 पुरुष, 3,59,27,084 महिलाएं हैं, इसके अलावा 1,590 थर्ड जेंडर है। इस दौरान मतदाता सूची से 5,99,921 नाम हटाए गए हैं, जो या तो स्वर्ग सिधार गये या फिर वो दूसरे राज्यों में चले गये हैं।
भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 40.7 प्रतिशत वोट हासिल किए थे, और राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 18 पर जीत हासिल की थी। दूसरी ओर सत्ताधारी टीएमसी को 43.3 प्रतिशत वोट मिले थे। चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध ताजा आंकड़ों के अनुसार भाजपा को विधानसभा चुनावों में 38.09 प्रतिशत वोट मिले, जबकि टीएमसी के खाते में 47.97 प्रतिशत मत गए। इससे पहले 2016 में 211 सीटों पर जीत हासिल करने वाली टीएमसी को 44.91 फीसदी मत मिले थे, जबकि भाजपा को 10 फीसदी से कुछ ज्यादा मतों के साथ केवल 3 सीटें हासिल हुई थीं। अब यदि टीएमसी की सरकार ने इन सभी एक करोड़ को मतदाता बना दिया तो यह तय मानकर चलिये कि भाजपा यहां पर 2026 में भी कोई करिश्मा नहीं कर पायेगी। असल में जो भी शासन अवैध लोगों को नागरिक बनाता है, उसी को वोट देते हैं। दूसरी बात यह है कि इनमें से अधिसंख्या लोग गरीब या बेहद गरीब हैं। अमूमन देखा गया है कि मतदान का प्रतिशत सबसे अधिक गरीब तबके का ही होता है, उससे कम मध्यम वर्ग और सबसे कम वोट अमीर लोग डालते हैं। पश्चिम बंगाल में मुसलमानों का वोट प्रतिशत हमेशा अधिक रहता है, जिसके कारण ये लोग ममता बनर्जी के लिये सबसे उपयुक्त होंगे।
बांग्लादेश से अवैध तरीके से आने वाले घुसपैठियों की समस्या दिन पर दिन गंभीर होती जा रही है। इसके मद्देनजर केंद्र सरकार ने सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों से बांग्लादेशी घुसपैठियों की तुरंत पहचान करने और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने को कहा है। पिछली बजट सत्र में ही केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने संसद में बताया था कि पिछले पांच साल में 2399 बांग्लादेशी पकड़े गए हैं। इन सभी के पास अवैध तरीके से हासिल किए गए भारतीय दस्तावेज मिले थे। ऐसे में सवाल यह है कि क्या देश में बांग्लादेशी और अप्रवासियों की संख्या में वृद्धि हुई है? बीते वर्षों के दौरान देश में निर्धारित अवधि से अधिक समय तक या अवैध रूप से रहने वाले अप्रवासियों की राज्यवार और राष्ट्रीयतावार संख्या कितनी है।
भारत सरकार ने राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों से विशेष क्षेत्रों में अवैध प्रवास को भी रोकने को कहा गया है। घुसपैठियों के बायोमैट्रिक विवरण के साथ ही पूरी जानकारी एकत्र करने की सलाह दी गई है। उनके पास पाए जाने वाले भारतीय दस्तावेज जैसे आधार कार्ड, वोटर कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, राशन कार्ड इत्यादि को रद करने, उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने और उन्हें वापस उनके देश भेजने की प्रक्रिया शुरू करने को भी कहा गया है। पाकिस्तान और बांग्लादेश से लगती सीमा पर क्षेत्राधिकार बढ़ने से सीमा सुरक्षा बल को ड्रग्स और नशीले पदार्थो की तस्करी को नियंत्रित करने में सफलता मिली है। राष्ट्र विरोधी ताकतों द्वारा ड्रोन और मानव रहित विमानों के इस्तेमाल को देखते हुए बीएसएफ के क्षेत्राधिकार को बढ़ाने के फैसले से लाभ मिला है। बीएसएफ को अब सीमा से 50 किलोमीटर अंतर तक जांच पड़ताल करने की छूट मिली है।
दो वर्ष पूर्व राज्यसभा में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लिखित जवाब में 2017, 2018, 2019 तक के आंकड़े पेश किए थे। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2017 में भारत में वैध तरीके से आने वाले और वीजा खत्म होने के बाद भी रहने वालों की संख्या तकरीबन 26 हजार थी। वर्ष 2018 में ऐसे बांग्लादेशियों की संख्या बढ़कर 50 हजार हो गई थी और वर्ष 2019 में ये संख्या घटकर तकरीबन 35 हजार रह गई थी। यह संख्या तो वह है, जो आंकड़ों में दर्ज है, बल्कि असल कहानी तो इससे कई गुणा अधिक चिंतनीय और आंकड़े भयानक रुप से डराने वाले हैं। केंद्र सरकार ने बताया कि बांग्लादेश से अवैध तरीके से भारत में घुसने वाले अप्रवासियों की तादाद भी लगातार बढ़ती जा रही है। इसमें से सबसे ज्यादा मामले पश्चिम बंगाल में हैं। वर्ष 2017 में भारत-बांग्लादेश की सीमा पर 1175 लोग पकड़े गए थे। वर्ष 2018 में 1118 और वर्ष 2019 में 1351 लोग पकड़े गए थे।
केंद्र सरकार का कहना है कि पिछले 5 साल में गैर कानूनी ढंग से भारत में रह रहे बांग्लादेशियों की संख्या भारत में करीब 2 लाख 50 हजार से अधिक है। ये ऐसे बांग्लादेशी हैं, जो भारत में वीजा लेकर आए थे, लेकिन वीजा की तारीख निकल जाने के बाद भी भारत में अवैध तरीके से रह रहे थे। सरकार ने ये भी कहा था कि अवैध अप्रवासी चोरी-छिपे और छलपूर्वक बिना किसी वैध यात्रा दस्तावेज के देश में प्रवेश कर जाते हैं। बांग्लादेशी नागरिकों सहित अवैध रूप से रह रहे इस प्रकार के विदेशियों का पता लगाना, उन्हें डिटेन करना और निर्वासित करना एक सतत प्रक्रिया है। चूंकि, ऐसे अवैध प्रवासी देश में चोरी-छिपे और छलपूर्वक प्रवेश करते हैं, इसलिए देश के विभिन्न भागों में रह रहे ऐसे बांग्लादेशी नागरिकों के सटीक आंकड़े एकत्र करना संभव नहीं है। सरकार ने कहा कि उपलब्ध सीमित आंकड़ों के मुताबिक ये संख्या 2 लाख 50 हजार है, जबकि सरकारी अधिकारी भी इस बात को मानते हैं कि देश में करीब 2 करोड़ से अधिक अवैध बंग्लादेशी मुसलमान रहते हैं, जिनमें से आधे अकेले पश्चिमी बंगाल में हैं। इससे पहले आसाम में भी बड़ी संख्या में अवैध बंग्लादेशी रहते थे, लेकिन हिमंत बिस्वा शरमा के शासन ने उनकी पहचान कर वापस बंग्लादेश भेज दिया है।
असल में यह सामान्य मान्यता है कि पश्चिमी बंगाल में मुस्लिम तबको टीएमसी को ही वोट देता है। राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की राजनीति करने वाली भाजपा को ये लोग वोट नहीं देते हैं। यही वजह है कि टीएमसी के शासन में इनके वोटर आईडी बनाये जा रहे हैं। आप कल्पना कीजिये कि जब पश्चिम बंगाल में एक करोड़ मतदाता बढ़ जायेंगे, तब टीएमसी की जीत का आंकड़ा क्या होगा। जब करीब 7 करोड़ 32 लाख मतदाताओं में से ही 44 फीसदी टीएमसी को मिलता है, तो एक करोड़ ममदाता जुड़ने पर मत प्रतिशत कितना होगा? इस वक्त विधानसभा में 213 टीएमसी, 77 भाजपा और 2 निर्दलीय विधायक हैं, यदि टीएमसी के वोटर्स की संख्या एक करोड़ बढ़ जायेगी, तो भाजपा के खाते में 77 विधायक रहना भी असंभव हो जायेगा। यही वजह है कि जब भी एनआरसी लागू करने की बात आती है, तो ममता बनर्जी सबसे पहले विरोध करने लगती हैं। इसी तरह से मुस्लिम मतदाताओं के दम पर राजनीति करने वाले मुसलमान नेता असद्दूीन ओवैशी सीएए और एनआरसी का विरोध करते हैं।
भारत सरकार के आंकड़े बताते हैं कि देश में हर दिन 14000 हिंदूओं का धर्म बदला जा रहा है। धर्म बदलने के बाद सबसे बड़ा हिस्सा ईसाई और मुलसमान बन जाता है। इससे हिंदूओं के उपर दोहरी मार पड़ रही है। एक तरफ तो हर दिन 14000 हिंदू कम हो रहे हैं, तो साथ ही दूसरे धर्मों के लोगों की संख्या भी 14000 प्रतिदिन बढ़ रही है। बीते 75 साल में हिंदूओं की आबादी का प्रतिशत देश में घटकर 87 से 78 फीसदी रह गया है। यदि सरकार ने जल्द से जल्द जनसंख्या नियंत्रण कानून और समान नागरिक संहिता जैसे कठोर कानून नहीं बनाये तो आने वाले दशकों में हिंदू जनसंख्या तेजी से कम होती चली जायेगी, जो जनसंख्या असंतुलन को जन्म देगी। इससे भारत की सभ्यता और संस्कृति के मिटने की संभावना पैदा होगी।
एक करोड़ अवैध मुस्लिम बनेंगे भारत के नागरिक!
Siyasi Bharat
0
Post a Comment