Ram Gopal Jat
अक्सर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कहते हैं, कि राजनीति में जो होता है, वह दिखता नहीं है और जो दिखता है, वह होता नहीं है। अशोक गहलोत को राजनीतिक बयानबाजी के साथ जुड़ा हुआ यह संवाद अतिप्रिय है। लोग मानते हैं कि यही काम गहलोत बरसों से करते आ रहे हैं, शायद यही वजह है कि समर्थक उनको जादूगर कहते हैं। ऐसा ही जादू अशोक गहलोत ने एक बार फिर से शुरू कर दिया है। क्या है अशोक गहलोत का इस बार जादूगर प्लान और क्या होगा जादू का असर?
यह सबकुछ जानने से पहले यह जानना जरुरी है कि खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस वक्त अपने ही विधायकों और मंत्रियों के प्रहारों से क्यों घिर गये हैं? इन प्रहारों के कारण उनको सूझ नहीं रहा है कि किया क्या जाये? मुखिया होने के बावजूद गहलोत सत्ता के कुनबे में होती
लड़ाई को खामोशी से देख रहे हैं और हमेशा की तरह आंखें बंद कर बैठे हुये हैं। इस वक्त राजस्थान में सबसे मोटी लड़ाई की बात करें तो ओबीसी आरक्षण में विसंगतियों को लेकर है, जिसका बीज पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सरकार ने बोया था।
इस मामले में का निपटारा करके जितनी कांग्रेस की अशोक गहलेात सरकार दोषी है, उससे कहीं अधिक भाजपा की वसुंधरा राजे सरकार अपराधी है, जिसने 2018 में एक नोटिफिकेशन जारी कर यह कुकर्त्य किया था। वसुंधरा राजे सरकार ने ओबीसी के नुकसान का आकलन किये बिना इसको लागू कर दिया, तो अब गहलोत सरकार इस गलती को सुधारने के बजाये वसुंधरा सरकार के काले कारनामों पर पर्दा डालने का प्रयास कर रही है।
ओबीसी आरक्षण विसंगति के मामले को लेकर अशोक गहलोत सरकार में पूर्व कैबिनेट मंत्री और पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश चौधरी को गहलोत के ही एक मंत्री ने चुप रहने धमकी दी है। मजेदार बात यह है कि धमकी के साथ मेहरानगढ़ हादसे का उदाहरण देते हुये यह भी कहा है कि इतने बड़े हादसे को ही लोग भूल गये हैं, तो ओबीसी आरक्षण मामला क्या है? इसको भूलने में कौनसा समय लगता है?
दरअसल, 23 सितंबर 2012 को जोधपुर के मेहरानगढ़ किले में नवरात्रा के दिन मची भगदड़ में 216 लोगों की मौत हो गई थी। जस्टिस चोपड़ा जांच आयोग ने तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी, लेकिन रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया। उस रिपोर्ट को आज दिन तक भी सार्वजनिक नहीं किया गया है। हादसे में प्रभावित 140 पीड़ित परिवारों ने आयोग को हलफनामा देकर दोषियों को सजा दिलाने की मांग कर रखी है, किंतु इसको लेकर भी कोई कार्यवाही नहीं की गई है।
पूर्व मंत्री हरीश चौधरी ने धमकी देने वाले गहलोत के करीबी मंत्री का नाम नहीं लिया है, लेकिन माना जा रहा है कि आरटीडीसी के चैयरमेन धर्मेंद्र राठौड़ ने हरीश चौधरी को फोन करके समझाने के लहजे में धमकाया है। हालांकि, हरीश चौधरी ने कहा कि समय आने पर मंत्री के नाम का खुलासा किया जायेगा कि मंत्री उनको किस भाषा में समझाने या धमकाने का प्रयास किया है। असल बात यह है कि बीते चार साल से राठौड़ ही गहलोत के संकटमोचक माने जाते हैं। वह पहले कांग्रेस का टिकट नहीं मिलने पर कांग्रेस प्रत्याशी के सामने चुनाव लड़ चुके हैं। आरटीडीस का चैयरमेन बनाने से पहले राठौड़ सरकार बचाने में काफी मेहनत कर चुके हैं। इसी तरह से 25 सितंबर को अशोक गहलोत कैंप की कांग्रेस के खिलाफ बगावत के वक्त भी शांति धारीवाल और महेश जोशी के अलावा धर्मेंद राठौड़ को कांग्रेस आलाकमान ने नोटिस दिया गया है।
असल बात यह है कि चार दिन पहले कैबिनेट बैठक में मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने ही ओबीसी आरक्षण में विसंगति दूर करने का विरोध किया था, जिसके बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस मामले को डेफर कर दिया था, यानी मुद्दो को आगे खिसका दिया था। इसको लेकर खाचरियावास अपनी तरफ से सफाई भी दे चुके हैं, लेकिन अब मामला उनके गले की हड्डी बन चुका है। उससे पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पूर्व मंत्री हरीश चौधरी को आवश्वस्त किया था कि कैबिनेट में इस मामले को निपटा दिया जायेगा।
अब हरीश चौधरी ने यह कहकर मामले को तूल दे दिया है कि सरकार के एक मंत्री, जो चुना हुआ नहीं है, मतलब जिसको नियुक्त किया गया है, उसने चौधरी को फोन करके इस ओबीसी आरक्षण प्रकरण को नहीं उठाने और इससे दूर रहने की धमकी दी है। हालांकि, हरीश चौधरी ने यह भी कहा कि उनको मंत्री की बातों से रत्तीभर फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन उस कैबिनेट बैठक से पहले तक वह गहलोत पर आंख बंद कर विश्वास करते थे, जिन्होंने उनको धोखा दिया है।
सरकार पर संकट के समय चौधरी उन चुनिंदा नेताओं में थे, जिन्होंने सरकार को बचाने में महत्ती भूमिका निभाई थी। चौधरी ने यह भी कहा है कि यदि इस मामले को सुलझाया नहीं गया तो वह आने वाले दिनों में सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन करेंगे। यानी हरीश चौधरी खुद की कांग्रेस सरकार के खिलाफ ही आंदोलन का बिगुल फूंकने वाले हैं।
दूसरी तरफ सैनिक कल्याण मंत्री और बसपा से कांग्रेस में शामिल हुये राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने कहा कि यदि सरकार ने ओबीसी आरक्षण विसंगति को दूर किया तो वह इस्तीफा देकर गहलोत सरकार के खिलाफ ईंट से ईंट बजा देंगे। इधर, एक अन्य कैबिनेट मंत्री राजेंद्र यादव ने अशोक गहलोत को जनवरी तक का समय दिया है। यादव ने कहा कि यदि कोटपूतली को जिला नहीं बनाया गया तो जनवरी में वह इस्तीफा देकर आंदोलन शुरू कर देंगे।
समझने वाली बात यह है कि राजस्थान में चुनाव में अभी कम से कम एक साल का समय बाकी है, फिर भी गहलोत सरकार के मंत्री अपने ही मुखिया और सरकार के खिलाफ मुखर क्यों हो रहे हैं? असल बात यह है कि सभी को लगने लगा है कि यह सरकार किसी भी सूरत में रिपीट नहीं होने वाली है।
यही वजह है कि सभी नेता अपनी सीट बचाने की जुगत में लग चुके हैं। सभी की स्थिति कमोबेश एक जैसी ही है। यह बात खुद अशोक गहलेात को भी पता है कि एंटी इंकमबेंसी इतनी बन चुकी है कि उससे बचा नहीं जा सकता है। यही वजह है कि वह जैसे तैसे अपने पांच साल पूरे करना चाहते हैं।
इस बीच सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा ने जोर पकड़ लिया है, जिसके कारण अशोक गहलोत परेशान हैं। वह एक बार फिर से सियासी जादूगरी करना चाहते हैं। इसलिये अब राहुला गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को निशाना बनाया जा रहा है। अशोक गहलोत ने इस बार सचिन पायलट को रोकने के लिये गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला के बेटे विजय बैंसला को यूज करने का प्लान बनाया है।
दो दिन पहले ही विजय बैंसला ने अशोक गहलेात के खास धमेंद्र राठौड़ से मुलाकात की है और घोषणा की है कि यदि उनके पिता के साथ सरकार ने जो वादे किये थे, उनको पूरा नहीं किया गया तो राहुल गांधी को राजस्थान में नहीं घुसने दिया जायेगा। असल बात यह है कि राहुल गांधी की यात्रा पूर्वी राजस्थान से ही गुजरने वाली है, जहां पर 40 सीटों पर गुर्जर समाज को बाहुल्य है।
बैंसला ने इसी इलाके में राहुल गांधी की यात्रा रोकने की घोषणा की है। लोगों को लगता है कि विजय बैंसला, जो कि भाजपा के नेता भी हैं, उनको भाजपा ने ही राहुल गांधी की यात्रा में बाधक बनने को उकसाया होगा, लेकिन असल बात यह है कि विजय बैंसला अशोक गहलेात के ही मोहरे बन गये हैं।
इससे पहले साल 2018 में जब मुख्यमंत्री बनाने को लेकर जयपुर से दिल्ली तक कसमकश चल रही थी, तब अशोक गहलोत ने अपने समर्थक गुर्जर समाज के लोगों द्वारा सचिन पायलट को बदनाम करने के लिये कांग्रेस मुख्यालय पर प्रदर्शन भी करवा चुके हैं। एक बार फिर से सचिन पायलट को बदनाम करने के लिये उन्होंने गुर्जर समाज के सॉफ्ट टारगेट विजय बैंसला के कंधे पर बंदूक रख दी है।
इसको लेकर सोशल मीडिया पर जब विजय बैंसला और धमेंद्र राठौड़ की फोटो वायरल हुई तो गुर्जर समाज के युवाओं ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। युवाओं को साफतौर पर समझ आ रही है कि सचिन पायलट को बदनाम करने के लिये अशोक गहलोत ने विजय बैंसला को हथियार बना लिया है।
असल में यदि राहुल गांधी को पूर्वी राजस्थान में घुसने नहीं दिया जायेगा या यात्रा में बाधा उत्पन्न की जायेगी, तो इससे गुर्जर समाज के सहारे सचिन पायलट को बदनाम करने का काम किया जायेगा। इस वक्त सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा चल रही है, शायद अशोक गहलेात को इस बात की पक्की जानकारी मिल चुकी है कि सीएम बदलने का समय आ गया है, इसलिये वह अपना आखिरी दांव खेलने के लिये विजय बैंसला को यूज ले रहे हैं।
जबकि राहुल गांधी की यात्रा से पहले सरकार में ओबीसी मामले को लेकर बड़ा आंदोलन होने की खबर चल रही है। इसके बावजूद अशोक गहलोत इस बड़े मामले को सुलझाने के बजाये पूर्वी राजस्थान में गुर्जर समाज को आंदोलन के लिये उकसा रहे हैं।
वास्तव में अशोक गहलेात खुद को तो यह कहकर जातिवाद करते हैं कि वह माली जाति के एक ही विधायक हैं, और फिर भी मुख्यमंत्री हैं, जबकि सचिन पायलट को गुर्जर समाज का नेता साबित करके छोटा साबित करने का विफल प्रयास करते रहते हैं, लेकिन हर बार उनका पासा उलटा पड़ जाता है। गहलोत इस बार फिर से वही गैम खेल रहे हैं।
उनका मोहरा बन रहे हैं विजय बैंसला, जो नेता तो बीजेपी के हैं, लेकिन गहलेात के खास धर्मेंद्र राठौड़ के इशारों पर राहुल गांधी की यात्रा का विरोध कर सचिन पायलट के माथे इस बीमारी का मंढना चाह रहे हैं। आपको याद होगा इससे पहले विजय बैंसला के द्वारा पुष्कर में किरोडी सिंह बैंसला के अस्थि विर्सजन का कार्यक्रम था, जिसमें भी गुर्जर समाज के युवाओं ने गहलेात के बेटे वैभव गहलोत, मंत्री अशोक चांदना, धर्मेंद्र राठौड़ का विरोध कर दिया था, जिसकी रिपोर्ट खुद अशोक गहलेात ने लिखित में सोनिया गांधी को सौंपी थी।
क्योंकि इस वक्त एक बार फिर से सचिन पायलट के सीएम बनने की चर्चा चल रही है, जिसे रोकने के लिये अशोक गहलोत ने चाल चल दी है। हालांकि, गुर्जर समाज के युवाओं द्वारा सोशल मीडिया पर इस साजिश को बेनकाब करने के कारण सफल होने की गुंजाइश नहीं है, फिर भी गहलोत कैंप अपना प्रयास जारी रखे हुये हैं।
कांग्रेस के सूत्रों का दावा है कि गुजरात चुनाव से पहले इसी सप्ताह में अशोक गहलेात को इस्तीफा देने के लिये कहा जा सकता है। शायद यही सबसे बड़ी वजह है, जो गहलोत ने राहुल गांधी की यात्रा के पंद्रह दिन पहले ही विरोध की नौटंकी शुरू करवाकर ध्यान डायवर्ट करने का प्रयास तेज कर दिया है। गहलोत ने यह साबित करने का प्रयास तेज कर दिया है कि राहुल गांधी की यात्रा सचिन पायलट को मुख्यत्रमंत्री नहीं बनाये जाने से नाराज गुर्जर समाज द्वारा रोके जाने की योजना बनाई जा रही है।
विजय बैंसला की धमकी को गहलोत परोक्ष रुप से गुर्जर समाज द्वारा सचिन पायलट की धमकी साबित करने का प्रयास कर रहे हैं। अब यह गुर्जर समाज के उपर है कि इस तरह की साजिश में फंसकर सचिन पायलट की राह रोकते हैं, या गहलोत गुट की साजिश विफल होती है।
इतना तय हो गया है कि राजस्थान में अब शासन प्रशासन जैसी कोई चीज नहीं बची है। चुनाव से एक साल पहले इस तरह के हालात पहली बार बने हैं। ऐसे लग रहा है कि सत्तापक्ष के मंत्री—विधायक और विपक्ष भी चुनाव की तैयारियों में जुट गया है। पूरे घटनाक्रम ये प्रतीत हो रहा है कि सभी जनप्रतिनिधियों को कहीं से यह इशारा मिल चुका है कि राजस्थान में कभी भी चुनाव हो सकते हैं।
यही वजह है कि हरीश चौधरी, प्रताप सिंह खाचरियावास, राजेंद्र सिंह गुढ़ा, राजेंद्र यादव से लेकर दिव्या मदेरणा और अन्य नेता सरकार के अंतिम दिनों की तरह बर्ताव कर रहे हैं। कांग्रेस में एक नेता मुख्यमंत्री बने रहना चाहता है, तो दूसरा मुख्यमंत्री बनना चाहता है। इसी लड़ाई में राजस्थान अपराध का गढ़ बन चुका है, भ्रष्टाचार पूरे एशिया में सबसे अधिक राजस्थान में है।
जबकि महिला अत्याचार, बलात्कार, गैंगरेप से लेकर साम्प्रदायिक दंगों में राजस्थान पूरे देश का नंबर एक राज्य है। आधा दर्जन शहरों में धार्मिक दंगे हो चुके हैं, उदयपुर में कन्हैयालाल की गला काटकर हत्या की गई और पिछले दिनों इंटेलिजेंसी की विफलता के चलते उदयपुर में रेल की पटरी पर डायनामाइट लगाकर रेल उड़ाने की साजिश तक हो चुकी है।
वैसे देखा गया है कि अशोक गहलोत के तीनों ही कार्यकाल ऐसे ही रहे हैं, जब शासन प्रशासन पूरी तरह से नदारद हो जाता है। सरकार के अधिकारी बेलगाम हो जाते हैं और मंत्री बडबोले बयान देने लगते हैं। विधायक अपनी ही सरकार से तंग आ जाते हैं, जबकि हर बार अशोक गहलोत अपनी कुर्सी बचाने में लगे रहते हैं।
सरकार का एक साल बचा है, जिसमें अशोक गहलोत अपना जादू दिखाते हुये सीएम पद पर रहने का प्रयास कर रहे हैं, तो सचिन पायलट इस एक साल में मुख्यमंत्री बनकर कांग्रेस की सत्ता रिपीट कराने की कोशिशों में जुटे हुये हैं। अब देखना दिलचस्प होगा कि इस एक साल तक सरकार चल पायेगी, या मध्यावधि चुनाव हो जायेंगे। क्योंकि अब यह माना जा रहा है कि सचिन पायलट अधिक समय तक चुप बैठने वाले नहीं हैं।
पायलट का शिकार करने को गहलोत ने बैंसला के कंधे पर रखी बंदूक
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