Ram Gopal Jat
भारत और पाकिस्तान के बीच तो शायद युद्ध होने की हालात नहीं है, लेकिन रूस ने युक्रेन को रौंदा है, ठीक वैसे ही अब चीन भी ताइवान पर हमला करने को तैयार हो गया है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को तीसरा कार्यकाल हाल ही में मिला है, उसके बाद सेना के अधिकारियों से बात करते हुये जिनपिंग ने पिपुल्स लिब्रेशन आर्मी को हाई अलर्ट पर रहने को कहा है। जिनपिंग ने साफ किया है कि कभी भी ताइवान के खिलाफ अभियान शुरू किया जा सकता है। असल में चीन को पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने बयान देकर भड़काया तो फिर हाउस ओफ कॉमंस की अध्यक्ष नैन्सी पैलोसी ने ताइवान की यात्रा करके ड्रेगन की आंखें लाल कर दींं। इसके बाद से ही चीन लगातार ताइवान पर चढ़ाई के बयान देता रहता है। हालांकि, यह सबकुछ इतना आसान नहीं है, फिर भी चीन के मंसूबे किसी से छुपे नहीं हैं।
इधर, भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बुधवार को वरिष्ठ सैन्य कमांडरों से कहा कि उन्हें किसी भी आकस्मिक स्थिति में कार्रवाई के लिए तैयार करना चाहिए। यह तैयारी उच्च स्तर पर होनी चाहिए। रक्षा मंत्री ने सैन्य कमांडर सम्मेलन में सुरक्षा और राष्ट्रीय संप्रभुता सुनिश्चित करने के लिए सेना की सराहना करते हुये कहा कि उन्हें भारतीय सेना और उसके नेतृत्व पर पूरा भरोसा है, हमें किसी भी तरह की आकस्मिक संभावनाओं के लिए तैयार रहना चाहिए।
रक्षा मंत्री ने अपनी सीमाओं की रक्षा करने और आतंकवाद से लड़ने के अलावा नागरिक प्रशासन को मदद देने में सेना की भूमिका को सराहा। उन्होंने प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों समेत नागरिक उद्योगों के सहयोग से विशिष्ट प्रौद्योगिकियों को विकसित करने में सेना के प्रयासों और आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रगति की भी सराहना की। सैन्य कमांडर सम्मेलन 11 नवंबर तक चलेगा। इस दौरान सेना का शीर्ष नेतृत्व मौजूदा सुरक्षा परिदृश्य और वर्तमान सुरक्षा तंत्र के लिए चुनौतियों के पहलुओं पर विचार-विमर्श करेगा।
उधर, भारत के उत्तरी क्षेत्र में ताइवान से चल रहे तनाव के बीच चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपनी सेना को देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के सामने अस्थिरता का खतरा बढ़ने की बात कहते हुए युद्ध लड़ने, जीतने के लिए तैयारी रहने और क्षमता बढ़ाने का आदेश दिया। हालांकि जिनपिंग ने संबोधन में किसी देश विशेष का नाम लेने से परहेज किया, लेकिन माना जा रहा है कि जिनपिंग ताइवान पर कभी भी अभियान शुरू करके अपने तीसरे कार्यकाल को उपयोगी बनाने का भरोसा चीन वासियों को दे सकते हैं।
ऑस्ट्रेलिया की एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, शी जिनपिंग मंगलवार को बीजिंग में एक केंद्रीय सैन्य आयोग के संयुक्त अभियान कमान सेंटर का दौरा करने गए थे। इस दौरान उन्होंने सैनिकों से मुलाकात भी की और ताइवान व अन्य देशों के साथ बढ़ते तनाव को देखते हुए सेना को आदेश दिया कि युद्ध की स्थिति कभी भी बन सकती है इसलिए सेना को चौबीस घंटे युद्ध के लिए तैयार रहना है, वह किसी भी युद्ध की तैयारी को व्यापक रूप से मजबूत करेंगे।
बीस लाख से अधिक जवानों और अधिकारियों वाली चीन के पास दुनिया की सबसे बड़ी सेना है, जिसको अपने नए कार्यकाल के पहले ही संबोधन में जिनपिंग ने कहा कि दुनिया ऐसे बदलावों से गुजर रही है जो पिछली एक सदी में नहीं देखे गए। चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा बढ़ती अस्थिरता एवं अनिश्चितता के खतरे का सामना कर रही है और सेना के सामने कठिन कार्य है। जिनपिंग का यह बयान संसाधन संपन्न हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामक सैन्य गतिविधियों को लेकर बढ़ती अंतरराष्ट्रीय चिंता के बीच आया है। उधर, चीन और भारत की सेनाओं के बीच पूर्वी लद्दाख में लंबे समय से गतिरोध जारी है।
अगस्त में अमेरिकी स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद यह तनाव बढ़ गया है। चीन ने पेलोसी की यात्रा को अपनी संप्रभुता के लिए एक चुनौती के रूप में देखा और ताइवान के ऊपर बड़े पैमाने पर सैन्य अभ्यास शुरू कर और बैलिस्टिक मिसाइल दागकर ताकत के प्रदर्शन के साथ जवाबी कार्रवाई की। शी जिनपिंग के तीसरे राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान ताइवान को लेकर चीनी नीति और सख्त हुई है। सरकार का कहना है कि ताइवान उसका अलग द्वीप प्रांत है, उसका जल्द ही चीन में पुनर्मिलन हो जाएगा। जबकि अमेरिका व उसके सहयोगी देश चीन के इस रवैये का विरोध करते हुए ताइवान को स्वतंत्र देश मानते हैं।
बीते दिनों ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग वेन ने कहा था कि उनका स्वशासित द्विपीय देश चीन की आक्रामक धमकियों के आगे घुटने नहीं टेकेगा। हम चीन की धमकियों से डरने वाले नहीं हैं। ताइपे में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वेन ने कहा था कि ताइवान स्वतंत्र राष्ट्र था और रहेगा। अगर चीन मानता है कि वो ताइवान पर कब्जा कर लेगा, तो ये उसकी भूल है।
चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के मुताबिक शी जिनपिंग ने सेना से कहा कि सेना को अपनी सारी ऊर्जा युद्ध में लगा देनी चाहिए। युद्ध की तैयारियों को लेकर सेना को अपनी क्षमता और संसाधनों को भी बढ़ाना चाहिए। जिनपिंग ने चीनी सशस्त्र बलों को 20वीं सीपीसी राष्ट्रीय कांग्रेस के मार्गदर्शक सिद्धांतों का पूरी तरह से अध्ययन, उनका प्रचार और कार्यान्वयन करने तथा राष्ट्रीय रक्षा और सेना को और आधुनिक बनाने के लिए ठोस कार्रवाई करने का निर्देश दिया। जिनपिंग ने सशस्त्र बलों को राष्ट्रीय संप्रभुता, सुरक्षा और विकास हितों की रक्षा करने तथा पार्टी व जनता द्वारा सौंपे गए विभिन्न कार्यों को पूरा करने का भी निर्देश दिया।
असल बात यह है कि जिस तरह से रूस ने 1990 के वक्त यूएसएसआर के विघटन से जन्मे यूक्रेन पर चढ़ाई कर रखी है। पश्चिमी जगत की तमाम नाराजगी को दरकिनार कर रूस वही कर रहा है, जो व्लादिमिर पुतिन चाह रहे हैं। ऐसे में यह माना जा रहा है कि अमेरिका व नाटो की पूरी ताकत को अंदाजा चीन को इस युद्ध से हो चुका है। उसको लगता है कि अमेरिका उसका कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा। यही वजह है कि बीते आठ माह के दौरान चीन ने पश्चिमी जगत की पूरी ताकत देख ली है, जब तमाम तरह की धमकियों के बावजूद नाटो ने यूक्रेन को बिलकुल भी सैन्य सहायता नहीं दी है।
इस मामले में अब भारत के द्वारा दोनों देशों के बीच मध्यस्थता करवाकर युद्ध रोकने का प्रयास किया जा रहा है। पूरी दुनिया में भारत ही ऐसा देश है, जो दोनों पक्षों के लिये निष्पक्ष है। ऐसे में रूस व यूक्रेन, दोनों ही भारत की मध्यस्थता को स्वीकार कर वार्ता कर सकते हैं। हालांकि, रूस के इस अभियान से चीन के हौसले बुलंद हुये हैं, जो इस मौके की तलाश में था कि अमेरिका समेत नाटो की ताकत और धमकियों की असलियत सामने आ जाये तो वह भी ताइवान पर हमला करके खुद में मिला सकता है। अमेरिका ने पिछले दिनों ही साफ किया था कि यदि चीन ने ताइवान पर अटैक किया तो वह चीन के खिलाफ सैन्य कार्यवाही करेगा। चीन को पता है कि उसकी इस हरकत का दुनिया में कोई समर्थन नहीं करेगा, लेकिन उसको यह भी पता है कि भारत भी उसका विरोध नहीं करेगा, क्योंकि भारत को भी अपना पीओके वापस लेना है। इसलिये यह माना जा रहा है कि यह एक श्रंखला हो सकती है, जिसमें रूस के बाद चीन और चीन के बाद भारत भी पीओके वापस लेने के लिये अभियान शुरू कर सकता है।
हालांकि, इस बीच शी जिनपिंग के बाद रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का बयान काफी महत्वपूर्ण है, जिन्होंने लगभग वैसा ही बयान दिया है, जैसा उससे एक दिन पहले जिनपिंग ने दिया था। विशेषज्ञों को मानना है कि चीन का कुछ भी पता नहीं है, वह ताइवान की बात करते करते भारतीय सीमाओं पर कुकर्त्य कर सकता है। यही वजह है कि भारत की सेनाओं को भी तैयार रहने की हिदायत दी गई है। पूरी दुनिया की नजरें अब चीन व भारत पर आ टिकी हैं, क्योंकि सबको यही लगता है कि पहले चीन ताइवान पर अटैक करेगा और उसके बाद भारत भी पाकिस्तान पर हमला करेगा। यही वजह है कि इस वक्त जारी रूस यूक्रेन युद्ध अधिक चीन व भारत के बयानों को सुना और देखा जा रहा है। भारत कई बार साफ कह चुका है कि चीन ने यदि सीमा पर कोई गतिविधि की तो उसको कीमत चुकानी होगी। ऐसा भारत ने डोकलाम और लद्दाख में चीन को जमीन सुंघाकर साबित भी किया है। चीन के नेपाल में राजदूत पहले ही कह चुके हैं कि वह भारत के विदेश मंत्री डॉ. सुब्रम्ण्यम जयशंकर के हर बयान को ध्यान से देखते हैं। 2019 में विदेश मंत्री बनने के बाद जयशंकर ऐसे मिनिस्टर साबित हुये हैं, जो उचित तरीके से भारत का पक्ष हर मंच पर रखते हैं। उनके बयानों से अमेरिका से लेकर यूरोप के तमाम देश घबराने लगे हैं।
यदि चीन ने ताइवान पर हमला किया तो भारत को दोहरा नुकसान होगा। एक तो चिप सप्लाई बाधित होगी, जिससे उभरते हुये भारती इलेक्ट्रोनिक वाहन बाजार को झटका लगेगा, जबकि ताइवान जैसे मित्र देश की मदद भी भारत नहीं कर पायेगा। गौरतलब यह है कि डोकलाम विवाद के बाद से ही भारत के द्वारा वन चाइना पॉलिसी को नकारा गया है। यही वजह है कि चीन को भारत के बयानों से तकलीफ होती है। वन चाइना नीति का मतलब यह है कि भारत भी यह मान ले कि ताइवान चीन को अभिन्न अंग है, जबकि भारत ऐसा मानने को तैयार नहीं है।
चीन यदि ताइवान पर हमला करेगा तो भारत भी पाकिस्तान पर अटैक कर देगा
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