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अशोक गहलोत के कारण फिर हारेगी कांग्रेस पार्टी!

Ram Gopal Jat
कांग्रेस पार्टी की देश में दो ही राज्यों में सरकार बची है। दिसंबर में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में चुनाव होने वाले हैं। हिमाचल प्रदेश के चुनाव घोषित हो चुके हैं, जबकि गुजरात में कभी भी घोषणा हो सकती है। दोनों ही राज्यों के चुनाव के परिणाम की घोषणा 8 दिसंबर को होगी। जिस तरह के सर्वे और रिर्पोट्स मिल रही हैं, उससे ऐसा लग रहा है कि गुजरात में कांग्रेस का 27 साल बाद भी वनवास खत्म नहीं होगा, जबकि हिमाचल प्रदेश में राजस्थान की तरह कुछ बरसों से जारी सत्ता रिपीट नहीं होने की परंपरा पर भाजपा की कड़ी नजर है। वैसे भी हिमाचल प्रदेश भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का गृहराज्य है, ऐसे में हिमाचल की जीत भाजपा को ना केवल मनोवैज्ञानिक ताकत देगी, वरन बरसों बाद सत्ता रिपीट करके भाजपा यह भी साबित करना चाहती है कि वह किसी भी राज्य में अजेय है और कांग्रेस मुक्त भारत का सपना साकार होने जा रहा है। गुजरात जीतकर भाजपा अपने सबसे बड़े दो नेताओं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को जीत का पुरस्कार देने जा रही है।
कांग्रेस ने पिछले दिनों ही नया अध्यक्ष चुना है, लेकिन कांग्रेस पार्टी अपने युवा अध्यक्ष रहे 52 साल के राहुल गांधी से तीन साल बाद एक बार फिर 80 साल के बुजुर्ग नेता के हाथ में चली गई है, जिसके बाद कोई चमत्कार की उम्मीद नहीं है। राजनीतिक विशलेषकों का मानना है कि नये अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को भी गांधी परिवार ही चलायेगा। इसके संकेत खुद खड़गे ने यह कहकर दिये हैं कि गांधी परिवार के बिना कांग्रेस नहीं चल सकती है। इससे पहले अशोक गहलोत ने भी कहा था कि यदि राहुल गांधी अध्यक्ष नहीं बने तो पार्टी के हजारों कार्यकर्ता घर बैठ जायेंगे। इसका मतलब यही है कि पार्टी के नये अध्यक्ष के बाद भी कांग्रेस में रत्तीभर बदलाव की उम्मीद नहीं होगी। केवल रबर स्टांप के तौर पर खड़गे के हस्ताक्षर होंगे, बाकी सभी फैसले सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ही करेंगी।
इससे पहले जब चुनाव की सुगुगाहट शुरू हुई थी, तब यह माना जा रहा था कि या तो राहुल गांधी को पुन: अध्यक्ष बनाकर उनकी रिलॉचिंग होगी या किसी अन्य युवा नेता को अध्यक्ष बनाया जायेगा, ताकि युवाओं को जोड़ा जा सके, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया और कांग्रेस के 413 मतदाताओं ने रोष जाहिर करते हुये नोटा में वोट कर दिया। इसके साथ ही 9000 में से 1000 से अधिक वोट शशि थरूर को मिलना इस बात का सकेंत है कि भले ही सोनिया गांधी ने खड़गे को अपना उत्तराधिकारी बनाया हो, लेकिन कांग्रेस के बहुत सारे नेताओं को वह मंजूर नहीं हैं। इसके बाद भी कांग्रेस यदि संविधान की दुहाई के साथ अध्यक्ष का चुनाव करवाकर इस औप​चारिकता से मतदाआतों को रिझाना चाहती है, तो इससे अधिक भूल राजनीति में नहीं हो सकती।
बात यदि गुजरात की करें तो इस राज्य में जिन जगदीश ठाकोर कोई करिश्माई नेता नहीं हैं, जिनके दम पर 100 सीटों पर जीत मिल सके। दूसरी ओर सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के नाम पर जनता सबकुछ देख चुकी है। मल्लिकार्जुन खड़गे भले ही नये अध्यक्ष हों, लेकिन उनकी भाषा भी गुजरात में समझ नहीं आयेगी, उपर से उनकी उम्र के कारण कोई मतदाता चमत्कार की आश नहीं लगाये हुये हैं। इसके अलावा जिस तरह से फ्री रेवडियों के सहारे आम आदमी पार्टी भी गुजरात में अपना दमखम दिखा रही है, उससे भी कांग्रेस के मतदाताओं का टूटना तय है। असल बात यह है कि भाजपा पिछले जीत में मिली 99 सीटों से करीब 25—30 सीट की बढ़त के साथ फिर से सत्ता में लौट सकती है।
यहां पर प्रभारी के तौर पर दो साल राजस्थान के रघु शर्मा के पास जिम्मेदारी है, जो खुद अपने दम पर खुद की सीट नहीं जीत सकते। उनको प्रभारी बनाकर कांग्रेस ने कोई बड़ा काम नहीं किया है। पिछली बार अशोक गहलोत प्रभारी थे, और उस वक्त मोदी को पहली बार कुछ चुनौती मिलती दिख रही थी, लेकिन इस बार अशोक गहलोत सीनियर ओब्जर्वर हैं, जिनके हाथ में पूरी मॉनिटरिंग रहेगी, लेकिन वह कितना चमत्कार कर पायेंगे, इसमें सबसे अधिक संशय है। क्योंकि पहली बात तो उनके पास गुजरात में काम करने का समय नहीं है। दूसरी बात उनके लिये सबसे नकारात्मक बात यह है कि बीते चार साल से राजस्थान में कुर्सी की लड़ाई के कारण गुजरात की जनता ने गहलोत पर पूरी तरह से विश्वास खो चुकी है।
कांग्रेस के पास युवा नेता के तौर पर सचिन पायलट हैं, लेकिन पार्टी को उन्हें ठीक से काम लेना नहीं आता है। पायलट के नाम पर किसी भी राज्य में भीड़ जुटा लेना और उनको वोटों में कन्वर्ट करना आसान काम है, लेकिन फिर भी कांग्रेस के सलाहकारों ने शायद यह सोच लिया है कि जिस नेता के कारण सत्ता पाई जा सकती है, उसको सत्ता और संगठन, दोनों से दूर रखा जाये, ताकि मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के नारे को अंजाम तक पहुंचाया जा सके। कांग्रेस में जब तक जी हूजुरी करने वाले नेताओं को सलाहकार बनाये रखा जायेगा, तब तक उसका पुनरद्वार नहीं हो सकता है। बार बार यदि इस बात का जिक्र किया जाये कि कांग्रेस के हेमंत बिश्वा शरमा से लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे लीडर छोड़कर जा रहे हैं, तो इसका सबसे बड़ा कारण उनके अवसर छीनकर दूसरों को दे देना है।
सचिन पायलट पिछले दो साल से बार बार यही कह रहे हैं कि राजस्थान में सत्ता रिपीट कराने के लिये काम करना होगा। अब यह बात कांग्रेस आलाकमान को समझनी चाहिये कि अशोक गहलोत के दम पर तो सत्ता रिपीट कराना असंभव ही है। तो फिर सचिन पायलट की बात क्यों नहीं सुनी जा रही है? इसी तरह से दूसरे राज्यों में भी कांग्रेस युवा नेताओं की नहीं सुन रही है। गुजरात में हा​र्दिक पटेल कार्यकारी अध्यक्ष थे, लेकिन उनको काम ही नहीं दिया गया। मतलब उनके नाम का इस्तेमाल किया जा रहा था, तो वह कब तक यूं हाथ पर हाथ धरकर बैठे रहते? उन्होंने भी भाजपा का दामन थाम लिया।
जिन हार्दिक पटेल ने पिछले चुनाव में आरक्षण आंदोलन के सहारे भाजपा को घुटनों के बल ला दिया था, उनकी सामाजिक ताकत को कांग्रेस पहचान ही नहीं पाई। कांग्रेस ने यदि हार्दिक पटेल को आगे करके भी चुनाव लड़ लेती, तो भाजपा के सामने बहुत बड़ा संकट खड़ा हो जाता, लेकिन कांग्रेस आलाकमान को जमीनी सच्चाई पता नहीं है और ना ही उनके सलाहकार उनको वास्तविकता से अवगत करवाते हैं। नतीजा यह होता कि युवा नेता, जो मतदाताओं को अपनी ओर खींचने की सबसे अधिक ताकत रखते हैं, उनको पार्टी छोड़कर जाना पड़ता है। असल बात यह है कि अहमद पटेल के बाद कांग्रेस आलाकमान, यानी सोनिया गांधी के पास अब अशोक गहलोत ही ऐसे नेता हैं, जिनके सहारे गुजरात में चुनाव की चौसर बिछाई जायेगी, लेकिन हकिकत यह है कि अशोक गहलोत के पास ना तो जिताने का ​चमत्कार है और ना ही उनके पास गुजरात में कैंप करने का समय है कि दिनरात मेहनत करके भाजपा के दिग्गजों को चुनौती दे पायें।
इसका मतलब यह भी है कि अशोक गहलोत की अगुवाई में कांग्रेस पार्टी गुजरात का चुनाव हारने जा रही है, उसके बाद यदि बदलाव नहीं किया गया, तो राजस्थान का चुनाव भी हारेगी। इसलिये पार्टी को यदि राजस्थान बचाना है तो निश्चित ही अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री के पद से हटाकर सचिन पायलट को सीएम बनाना होगा। साथ ही उनको फ्री हैंड देना होगा, ताकि वह अपने हिसाब से कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी देकर चुनाव में भाजपा से मुकाबला कर सकें। यदि ऐसा नहीं किया गया तो करीब एक साल के भीतर ही अशोक गहलोत के कारण कांग्रेस पार्टी एक राज्य में सत्ता प्राप्त नहीं कर पायेगी, तो दूसरा राज्य भी हाथ से गंवा देगी।

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