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मोदी की विदेश नीति से रूस, चीन, पाकिस्तान और यूएई भी दीवाने क्यों हुये?

Ram Gopal Jat
भारत सरकार की विदेश नीति का आलम यह है कि सबसे बड़े दुश्मन देश, यानी पाकिस्तान और चीन में डंका बज रहा है। दोनों देशों को कहना पड़ रहा है कि भारत की विदेश नीति जैसी किसी देश की नहीं है। रूस भले ही भारत का मित्र है, लेकिन उसको यूक्रेन से युद्ध के दौरान पश्चिमी देशों ने गहरे घाव दिये हैं और चीन उसका हितैषी बना हुआ है, किंतु उसे भारत का साथ देना पड़ रहा है। पिछले दिनों ही रूस ने भारत का नया रक्शा जारी किया, जिसमें भारत के साथ चीन के कब्जे वाले अक्साई चिन और पीओके को भी शामिल किया गया है। यह कोई छोटी घटना नहीं है, जब दुनिया के सबसे बड़े तानाशाही वाले देश चीन से मित्रता के बावजूद रूस ने भारत का यह नक्शा जारी कर दिया।
इधर, चीन के अधिकारियों ने भी भारत की तारीफ करके दुनिया को हत्प्रभ कर दिया है। बंग्लादेश में चीन के राजदूत ली जिमिंग ने कहा कि वह भारत के बहुत बड़े प्रसशंक हैं और साथ मिलकर काम करने का आव्हान किया है। यह पहली बार है, जब चीन के साथ भारत के रिश्तों में खटास होने के बाद भी चीन के किसी अधिकारी ने भारत की तारीफ की है। चीन के अधिकारी की तारीफ का मतलब यह है कि चीन की सरकार भारत के सााथ करोबार को आगे बढ़ाना चाहती है, जबकि दक्षिण चीन सागर समेत समुद्र में चीन और भारत की प्रतिस्पर्दा से भी चीन को नुकसान हो रहा है। चीन को समुद्री भोजना की जरुरत है और भारत के विरोध के दम पर वह इसकी पूर्ति नहीं कर पा रहा है। इसके साथ ही चीन से भारत को होने वाले कारोबार में कमी ने भी चीन की चिंता बढ़ा दी है। चीन को लग रहा था कि कोरोना के बाद एक बार फिर से भारत के साथ चीन का कारोबार बढ़ेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। उपर से भारत और चीन के बीच सीधी वायुसेवा भी नहीं है।
यूं तो भारत ने हमेशा ही अपनी विदेश नीति के केंद्र में गुट निरपेक्षता को रखा है, लेकिन पिछले आठ साल से और मजबूती से देखा जाये तो आठ माह से भारत की विदेश नीति खुलकर सामने आ गई है। इस समय के दौरान रूस युक्रेन यूद्ध ने दुनिया के अधिकांश देशों को दो गुटों में बांट दिया है, लेकिन भारत ने किसी को समर्थन और विरोध नहीं किया है। भारत ने यूक्रेन में फंसे अपने नागरिकों को भी सुरक्षित निकाला है, तो रूस के साथ कारोबार को नई उंचाइयां देकर पश्चिमी जगत की परवाह भी नहीं की है।
वैसे तो रूस को इस वक्त खासतौर पर भारत के साथ ही जरुरत है, लेकिन ऐसा नहीं है कि रूस पहली बार भारत के पक्ष में बोल रहा है या फिर साथ दे रहा है, बल्कि उसने भारत का उस वक्त भी खुलकर साथ दिया था, तब 1971 में पश्चिमी जगत ने पाकिस्तान का साथ देते हुये भारत के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया था। इस समय की बात की जाये तो भारत ने इराक जैसे सबसे बड़े तेल आयातक देश को भी पीछे छोड़ते हुये रूस से कच्चा तेल आयात किया है, जबकि कोयला, उर्वरक जैसे उत्पादों के मामले में भी भारत ने रूस की परोक्ष रुप से खूद मदद की है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि भारत ने केवल मित्रता ही निभाई है, बल्कि एक अच्छे व्यापारी की तरह सस्ता माल आयात कर करोड़ों डॉलर की बचत की है।
पाकिस्तान भले ही छोटा देश हो, लेकिन भारत के पडोस में होने के कारण काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। कुछ महीने पहले जब पाकिस्तान में तख्तापलट हुआ था और इमरान खान को हटाया गया था, तब उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि पाकिस्तान को भी भारत की तरह आजाद विदेश पॉलिसी अपनानी चाहिये। भारत ने इस पॉलिसी के कारण ना केवल पश्चिमी देशों को आइना दिखा दिया है, बल्कि चीन से बड़े खतरनाक देश को भी आंखें दिखाई हैं। इमरान ने यह भी कहा है कि वह भी प्रधानमंत्री रहते रूस के साथ भारत की तरह ही सस्ते तेल की डील करना चाहते थे, लेकिन उनको अमेरिका ने करोड़ों डॉलर खर्च कर ​हटा दिया। इमरान खान आज जबकि पीएम नहीं हैं, तब भी बार बार मोदी सरकार की तारीफ करते हुये कहते हैं कि भारत की तरह पाकिस्तान को भी आजाद विदेश पॉलिसी अपनानी होगी, अन्यथा पश्चिमी देश उसे गुलाम की तरह ट्रीट करते रहेंगे।
माना जा रहा है कि यदि इमरान खान सत्ता में लौटे तो वह भारत के साथ संबंध सुधारने की दिशा में काम कर सकते हैं, हालांकि, जब वह पीएम थे, तब उन्होंने ऐसा नहीं किया, किंतु बदली हुई परिस्थितियों में कुछ भी संभव है और उससे भी बड़ी बात यह है कि पाकिस्तान को इसकी अभी सख्त जरुरत भी है। इसका मतलब यह है कि भारत की विदेश नीति का पाकिस्तान जैसा दुश्मन देश भी दीवाना हो गया है। इधर, दुनिया में इस्लामिक देशों के लिये रॉल मॉडल बने यूएई की सरकार ने भारत के विदेश मंत्री जयशंकर की खुलकर प्रशंसा करते हुये कहा है कि विदेश मंत्री और विदेश नीति कैसी होनी चाहिये, इसका सबसे उत्तम उदाहरण है भारत की सरकार, जो दुनिया के ​किसी देश की ना दुश्मन है और ना ही पिछलग्गू। संयुक्त अरब अमीरात के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस विभाग के राज्यमंत्री उमर सुल्तान अल ओलमा ने बुधवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर की तारीफ करते हुए कहा कि वह जयशंकर की इस खूबी से खासे प्रभावित हैं कि कैसे वह भू-राजनीतिक रस्साकशी के बीच विश्व मंच पर भारत की विदेश नीति को जगह देते हैं। भारत के सााथ काम करते हुये यह सोचने की जरुरत नहीं है कि किसी अन्य देश के साथ संबंध रखने से भारत नाराज हो जायेगा।
भारत की विदेश नीति इस मामले में बिलकुल साफ है कि किसी के संबंधों पर कोई टिप्पणी या दखलअंदाजी नहीं करनी है। यही वजह है कि भारत, अमेरिका, इजराइल, यूएई जैसे देश एक साथ काम कर सकते हैं। यूएई का मानना है कि भारत ने दुनिया को वह रास्ता दिखाया है, जिसपर चलकर दुनिया कारोबार की दुनिया में राज करने के रास्ते तलाश सकती है। ऐसा नहीं है कि भारत की विदेश नीति ही मजबूत है, बल्कि कारोबारी रिश्ते भी काफ महत्वपूर्ण हैं। यही वजह है कि यूएई ने भारत की तरह कारोबारी संबंध स्थापित कर दुनिया के व्यापार में छाया जा सकता है।
ऐसा नहीं है कि भारत ऐसा आसानी से कर पाया है, बल्कि अमेरिका जैसे देश भारत को अपने पक्ष में मोडने के लिये खूब प्रयास करते रहते हैं। अमेरिका ने रूस के खिलाफ जाने के लिये भारत को साम, दाम, दण्ड, भेद की नीति के जरिये तमाम कोशिशें कर ली हैं, लेकिन भारत ने ना तो अमेरिका से रिश्ते खराब किये और ना ही इस दम पर रूस के संबंध बिगाड़े की अमेरिका क्या सोचता होगा? भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हर मोर्चे पर भारत का पक्ष मजबूती से रखा, यहां तक कि अमेरिका व यूरोप को भी आइना दिखाने में कमी नहीं छोड़ी है। शायद यही वजह है कि पिछले करीब 8—10 साल से पाकिस्तान को भुला चुका अमेरिका फिर से उसकी मदद करने के बहाने भारत पर दबाव बनाने का प्रयास कर रहा है। हालांकि, इसमें अमेरिका के दो हित हैं, पहला तो वह भारत पर दबाव बनाना चाहता है, दूसरा चीन के दखल को कम करने के लिये पाकिस्तान को अपने पक्ष में रखना चाहता है। अमेरिका को पता है कि यदि चीन ने पाकिस्तान को अपने पक्ष में ले लिया तो आने वाले समय में यह बहुत खतरनाक स्थिति हो सकती है, जो उसको एशिया में अपना दखल खत्म करने के लिये चुनौदी दे सकती है।
भारत की सोच बिलकुल साफ है, जो देश दोस्ती रखना चाहता है, इसको समर्थन किया जाता है और जो पीठ में छुरा घोंपने का काम करता है, उससे संबंध समाप्त करके उनको शून्य हालात में छोड़ दिया जाता है। मोदी की पहली सरकार ने पाकिस्तान के साथ ऐसा किया गया और अब बीते ​तीन साल से भारत ने यही नीति चीन के साथ अपनाई है। नतीजा यह हो रहा है कि चीन को अब भारत से रिश्ते सुधारने की याद आने लगी है। बिना बुलाये ही चीन के विदेश मंत्री भारत आकर पीएम मोदी से मिलना चाहते हैं। भारत की विदेश नीति से प्रभावित होकर ही यूएन ने भी कमजोर देशों की मदद के लिये भारत से अपील की है। अब सवाल यह उठता है कि क्या भारत हमेशा ही ऐसा था, जैसा आज दिखाई दे रहा है? जब अमेरिका व ईरान के बीच तनाव बढ़ा, तब भारत ने अमेरिका के दबाव में ईरान से तेल आयात बंद कर दिया था। किंतु इस बार भारत ने वह गलती नहीं दोहराई। भारत ने स्पष्ट किया कि अमेरिका यदि भारत से संबंध रखना चाहता है, तो उसको भारत की शर्तें भी माननी होगी अमेरिका भारत के उपर अपनी शर्तें थोपकर काम नहीं कर सकता। भारत के इस बदले हुये रुख के कारण अमेरिका भी हत्प्रभ है। वह अब भी भारत को दबाव में लेने के लिये सभी प्रयास कर रहा है, लेकिन भारत की साफ नीति से अमेरिका को यह मैसेज दे दिया है कि वह अब दबाव की नीति में फंसने वाला नहीं है।
इसी तरह से एक समय पाकिस्तान द्वारा भारत में आतंकवादी भेजे जाते थे और कश्मीर में आतंक फैलाने का काम किया जाता था, लेकिन वह इस बात को स्वीकार नहीं करता था, जिसके कारण भारत को नहीं चाहते हुये भी पाकिस्तान से संबंध रखने पड़ते थे। इसी तरह से चीन भी भारत के हिस्सो में घुसपेठ करते हुये कारोबार भी करता था, लेकिन भारत ने अब चीन की इस नीति को आइना दिखा दिया है। चीन ने इस बार डोकलाम में घुसपेठ करने की कोशिश की तो भारत ने उससे सभी राजनेयिक रिश्ते खत्म कर लिये। इसके साथ ही चीन से आयात की निर्भरता कम करने के लिये मेक इन इंडिया के जरिये अपने यहां पर उत्पादन को बढ़ा दिया है, जिसके कारण चीन से आयात में कमी आई है। मोबइल फोन से लेकर रोशनी करने का सामान और इलेक्ट्रोनिक सामान भी भारत ने चीन से आयात करने कम कर दिये हैं। इसका शायद चीन को अंदाजा नहीं रहा होगा कि भारत इस बार इतना सख्त हो जायेगा।
भारत की इस बदलती विदेश नीति का कारण है मजबूत और स्थिर सरकार, जिसको पांच साल से पहले हटने का डर नहीं है। इससे पहले चाहे मनमोहन सिंह की सरकार हो या अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार, हर बार गठबंधन के सहयोगियों के कारण सरकार गिरने का खतरा रहता था, जिसके कारण सरकारों ना तो विदेश नीति का ढंग से पालन कर पाती थीं और ना ही घरेलू स्तर पर कड़े कदम उठा पाती थीं। साल 2014 से भारत में टिकाउ और मजबूत सरकार का दौर शुरू हुआ है, जिसके ​बाद भारत की नीति काफी स्पष्ट और विदेश स्तर पर मजबूती से अपना पक्ष रखने की हुई है। यही वजह है कि आज भारत को अपने पक्ष में करने के लिये अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश को भी पसीने छूट रहे हैं।

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